माइक्रोप्लास्टिक 5 मिलीमीटर से कम लंबे प्लास्टिक के टुकड़े होते हैं जो हमारे लिए हानिकारक हो सकते हैं। 100 nm से नीचे के कणों को नैनो प्लास्टिक कहा जाता है। माइक्रोप्लास्टिक्स और नैनो प्लास्टिक्स दोनों आमतौर पर प्लास्टिक के बड़े टुकड़ों के टूटने से बनते हैं। उदाहरण के लिए शॉपिंग बैग से लेकर कार के टायरों तक भूजल संसाधन भारतीयों के लिए प्रमुख पेयजल स्रोत हैं। इसलिए प्रत्येक भारतीय के स्वस्थ जीवन के लिए सुरक्षित भूजल की आवश्यकता है।
माइक्रोप्लास्टिक प्रमुख उभरते प्रदूषक में से एक है और हाल ही में दुनिया भर में कई स्थानों में रिपोर्ट की गई है। पर्यावरण में प्लास्टिक माइक्रोस्कोपिक कणों में टूट जाती है जो एक स्थान से दूसरे स्थान तक परिवहन कर सकते हैं। माइक्रोप्लास्टिक का मुख्य स्रोत लैंडफिल साइट, ओपन डंपिंग और विनिर्माण इकाइयां हैं। माइक्रोप्लास्टिक आमतौर पर भारी वर्षा के दौरान फ्रैक्चर के माध्यम से जल प्रवाह के साथ भूजल प्रणाली में चले जाते हैं। उदाहरण के लिए सेप्टिक अपशिष्ट जल में हजारों माइक्रो फाइबर पॉलीमर (पॉलिएस्टर और पॉलिथीन) होते हैं। आमतौर पर घरेलू अपशिष्ट जल में फाइबर/सिंथेटिक उनके कपड़े धोने से छोटे-छोटे कणों का प्रवाह शुरू हो जाता है। कल्पना कीजिए कि सिर्फ कपड़े धोने के भार से कितने हजारों पॉलिएस्टर फाइबर भूजल प्रणाली में अपना रास्ता तलाशते हैं। विशेष रूप से इस तरह से एक्वीफर्स में जहां सतह का पानी भूजल के साथ आसानी से संपर्क करता है। माइक्रोब्लैड्स एक प्रकार का माइक्रोप्लास्टिक है, जो कि पॉलीइथाइलीन प्लास्टिक के बहुत छोटे टुकड़े होते हैं, जिन्हें स्वास्थ्यवर्धक और सौंदर्य उत्पादों जैसे कुछ क्लींजर और टूथपेस्ट के रूप में जोड़ा जाता है। यह छोटे कण आसानी से जल निस्पंदन प्रणालियों से गुजरते हैं। कुछ स्वच्छता और सौंदर्य प्रसाधन उत्पादों (जैसे बॉडी वॉश, शिव प्लास्टिक माइक्रोबीड्स) भी आपके घर में अपशिष्ट जल के साथ मिल सकते हैं, जो कि बाद में मिट्टी-भूजल प्रणाली में मिल जाते हैं और पर्यावरण प्रदूषित करते हैं। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अनुसार प्लास्टिक माइक्रोबीड्स लगभग 50 साल पहले व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों में दिखाई दिए थे, जिसमें प्लास्टिक तेजी से प्राकृतिक अवयवों की जगह ले रहा था। वायुमंडलीय जमाव माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण का एक प्रमुख कारण है।
क्या है माइक्रोप्लास्टिक
माइक्रोप्लास्टिक 5 मिलीमीटर से कम लंबे प्लास्टिक के टुकड़े होते हैं जो हमारे लिए हानिकारक हो सकते हैं। 100 nm से नीचे के कणों को नैनो प्लास्टिक कहा जाता है। माइक्रोप्लास्टिक्स और नैनो प्लास्टिक्स दोनों आमतौर पर प्लास्टिक के बड़े टुकड़ों के टूटने से बनते हैं। उदाहरण के लिए शॉपिंग बैग से लेकर कार के टायरों तक भूजल संसाधन भारतीयों के लिए प्रमुख पेयजल स्रोत हैं। इसलिए प्रत्येक भारतीय के स्वस्थ जीवन के लिए सुरक्षित भूजल की आवश्यकता है।
वर्तमान में किए गए शोध
शोधकर्ताओं ने कुओं और झरनों से 17 भूजल के नमूने एकत्र किए जिसमें 11 सेंट लुइस महानगरीय क्षेत्र के पास एक अत्यधिक खंडित चूना पत्थर के एक्विफर से और 6 ग्रामीण उत्तर पश्चिमी इलिनोइस फ्रैक्चर एक्विफर से। माइक्रो प्लास्टिक फाइबर की अधिकतम सांद्रता 15.2 कण/लीर्र थी। माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति के साथ में फास्फेट क्लोराइड और ट्राई क्लोसन सहित अन्य प्रदूषक भी थी वैसे ही गैर-लाभकारी पत्रकारिता संगठन और मीडिया ने बोतल बंद पानी में माइक्रोप्लास्टिक्स पर शोध किया। उन्होंने नौ विभिन्न देशों से खरीदे गए पानी की 259 बोतलों का परीक्षण किय।ा जांच की गई सभी 259 बोतलों में से 93 प्रतिशत में कुछ प्रकार के माइक्रोप्लास्टिक कण पाए गए। नेचर जनरल में प्रकाशित एक प्रयोग के अनुसार केंचुए का प्रत्येक जोड़ा पीई-माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति-अनुपस्थिति (द=5) के साथ लिया गया था। केचुओं की त्वचा पर पॉलीइथिलीन सूक्ष्म कण पाए गए। शोध के अनुसार केंचुआ सतह से गहरी मिट्टी के क्षेत्र में माइक्रोप्लास्टिक पहुंचा सकता है। केंचुए केवल मिट्टी के बायोटर्स का उत्पादन करने वाले नहीं हैं पौधों की जड़े भी व्यापक बायोफोर्स का उत्पादन करती हैं। इसका मतलब यह है कि मिट्टी प्रोफाइल के नीचे माइक्रोप्लास्टिक के परिवहन को बढ़ाने की क्षमता के लिए मृदा बायोटा की भी जांच की जा सकती है। बायो प्रोड्यूसिंग बायोटा के अलावा अन्य मृदा बायोटा भी उध्र्वाधर और क्षैतिज परिवहन में योगदान कर सकते हैं। एक अन्य अध्ययन समुद्री नमक में अस्ससी प्रतिशत निकाले गए फाइबर और टुकड़े क्रमशः 2000 माइक्रोन और 500 माइक्रोन से छोटे पाॅलीइथिलीन टेरेफ्थेलेट (पीईटी), पाॅलीमाइड, पाॅलीइथाइलीन और पाॅलीस्टायरीन थे।
अनुसंधान प्राथमिकता
माइक्रोप्लास्टिक्स के संभावित खतरों से अधिक मजबूत मात्रात्मक मूल्यांकन की आवश्यकता है। विशेष रूप से भारतीय मृदा जल प्रणाली में निम्न उपाय किए जाने चाहिए -
- स्थलीय वातावरण में माइक्रोप्लास्टिक के वितरण को संबोधित करने के लिए अनुसंधान।
- माइक्रोप्लास्टिक व्यवहार (परिवहन, क्षरण और विघटन) को प्रभावित करने वाली मानव जनित प्रक्रियाओं की जांच।
- माइक्रोप्लास्टिक गुणवत्ता का पता लगाने के लिए पद्धतिगत सटीकता में सुधार।
- हाल ही के अध्ययन व्यापक विषाक्तता का लक्ष्य और नैनो प्लास्टिक के उत्थान की ओर इशारा करते हैं। पारिस्थितिकी विषाक्तता अध्ययन आवश्यक है। पाचन तंत्र और श्वसन प्रणाली के माध्यम से नैनो प्लास्टिक के शरीर के अन्य भागों में इसके परिवहन और परिणाम स्वरूप स्थानीय प्रभावों का विश्लेषण किया जाना चाहिए।
- इसके अतिरिक्त पर्यावरण हाइड्रोफोबिक प्रदूषकों के संपर्क की सुविधा के लिए नैनो प्लास्टिक की भूमिका को स्पष्ट किया जाता है।
भूजल प्रदूषण को रोकें
कपड़ा उद्योग के अपशिष्ट जल को शुद्ध बायोरिएक्टर मेंब्रेन फिल्टर जैसी अधिक उन्नत तकनीक द्वारा किया जाना चाहिए। कपड़े धोने के क्षेत्र के पास रेत फिल्टर सेटअप तैयार कर सकते हैं। माइक्रोंप्लास्टिक की विषाक्तता को रोकने के लिए मिट्टी में कार्बनिक प्रदूषक, डीजल ऑयल, कीटनाशक दवाएं इत्यादि नहीं छोड़नी चाहिए।
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