पहाड़ में फ्लैट्स और कॉटेज संस्कृति का सूत्रपात करीब दो दशक पहले भीमताल की इसी हसीन वादी से हुआ। पहाड़ की शुद्ध आबोहवा में एक अदद फ्लैट या कॉटेज खरीदने के फैशन ने जोर पकड़ा है। जमीन कारोबारियों और बिल्डरों की बन आई। इस सब की कीमत चुकानी पड़ रही है भीमताल के तालाब को। फ्लैट और कॉटेजों न केवल भीमताल के तालाब के कैचमेंट क्षेत्र को प्रभावित किया है, बल्कि इनके निर्माण में निकला मलबा भी भगत्यूड़ा और खूटानी नालों के जरिए भीमताल के तालाब तक पहुंच गया है।
नैनीताल। तालों के जिले नैनीताल की एक और झील भीमताल के वजूद पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं। नैसर्गिक सौंदर्य से लबरेज भीमताल झील में पानी का स्तर कम होने से झील का करीब एक चौथाई हिस्सा इन दिनों मिट्टी के सूखे मैदान में तब्दील हो गया है। पानी से लबालब भरी रहने वाली इस झील के मल्लीताल वाले छोर में मिट्टी के मलबे का बदसूरत टापू उभर आया है। भीमताल कुमाऊं मंडल में मौजूद प्राकृतिक झीलों में सबसे बड़ी और खूबसूरत झील है। झील के बीच में मौजूद प्राकृतिक टापू भीमताल के सौंदर्य को और बढ़ा देता है। इस त्रिभुजाकार झील की लंबाई 1701 मीटर, चौड़ाई 451 मीटर और गहराई दो से 18 मीटर है। भीमताल झील 63.25 हेक्टेयर के विशाल क्षेत्रफल में फैली है। झील में 4.61 मिलियन घन मीटर पानी संग्रहित होने की क्षमता है। झील का कैचमेंट 1712 हेक्टेयर इलाके में फैला है।भीमताल का पौराणिक महत्व है। इसके नाम और भीमकाय आकार के मद्देनजर इसे पाण्डु पुत्र भीम से जोड़ते हैं। लोक मान्यता है कि महाबली भीम की गदा प्रहार से इस विशाल झील की उत्पत्ति हुई। कुछ लोग इसे कुमाऊं के चंदवंशी राजाओं में से एक राजा भीष्म चंद से जोड़कर देखते हैं। माना जाता है कि कुमाऊं के चंदवंशी शासकों में से एक राजा भीष्म चंद के नाम से इसका नाम भीमताल पड़ा। यहां झील के किनारे चंद वंशी राजा बाजबहादुर चंद के शासनकाल के दौरान सत्रहवी सदी में बना भीमेश्वर महादेव का पौराणिक मंदिर भी मौजूद है। भीमताल के आसपास द्वापर युग के कई प्रतीकात्मक अवशेष मौजूद हें। भीमताल के करीब स्थित सातताल से लगी पहाड़ी को महाभारत काल की राक्षसी हिडिंबा का निवास माना जाता है। इस पहाड़ का नाम हिडिंबा पर्वत है। भीमताल के ठीक ऊपर की चोटी को कुषाणवंशी राजाओं के समकालीन माने जाने वाले कश्मीर के नागवंशी राजा क्रकोटक पहाड़ के नाम से जाना जाता है।
एककिंसन के गजिटेयर में कुमाऊं के इस इलाके में 60 झीलें होने का जिक्र किया गया है। शायद इसी वजह से ब्रिटिश कालीन सरकारी दस्तावेजों में यह इलाका पट्टी छहखाता के नाम से दर्ज चला आ रहा है। छहखाता शब्द षष्ठी खाता का बिगड़ा रूप है षष्ठी खाता यानी 60 तालाब। अंग्रेजी शासनकाल के दौरान भीमताल में व्यवस्थित नगरीकरण के कुछ बुनियादी काम हुए थे। ब्रिटिश हुकूमत ने 1880 के दशक में भीमताल के तालाब के एक छोर में डैम बनवाया था। यह डैम ब्रिटिश शासनकाल की इंजीनियरिंग के बेजोड़ नमूने के रूप में करीब 130 सालों बाद भी आज ज्यों का त्यों बना हुआ है। यह डैम गर्मियों के दिनों में हल्द्वानी के भावरी क्षेत्र को पानी मुहैया कराने की मंशा से बना था। हर साल 15 मई से 30 जून तक इस बांध से रोजाना 50 क्यूसेक पानी गौला नदी में छोड़ा जाता है। यह व्यवस्था पिछले करीब एक सौ सालों से बदस्तूर जारी है।
सिंचाई विभाग हर साल बरसात में तालाब में 44 फुट ऊंचाई तक पानी भरता है। इससे अधिक पानी को डैम से बाहर निकाल दिया जाता है। गर्मियों के दिनों में पानी का स्तर 22 फुट आ जाने तक पानी छोड़ते रहने की व्यवस्था है। सिंचाई विभाग के इंजीनियरों के मुताबिक इस साल जाड़ों में बारिश नहीं होने के कारण हल्द्वानी के इलाके में पानी की कमी को दूर करने के लिए जून के तीसरे हफ्ते तक भी बांध से हर रोज 50 क्यूसेक पानी छोड़ा जा रहा है। बावजूद इसके डैम के पास 20 जून तक पानी का स्तर 26 फुट के आसपास है। दूसरी तरफ मल्लीताल की ओर से लीलावती इंटर कालेज के सामने तक तालाब का करीब चार सौ मीटर से ज्यादा हिस्से से पानी गायब है। तालाब के करीब एक चौथाई हिस्से में मिट्टी के मलबे का ढेर जमा हो गया है। सिंचाई विभाग के अफसरों की राय में यह सब भीमताल के कैचमेंट इलाके में उग आए कंक्रीट के विशाल जंगल का नतीजा है।
दरअसल पहाड़ में फ्लैट्स और कॉटेज संस्कृति का सूत्रपात करीब दो दशक पहले भीमताल की इसी हसीन वादी से हुआ। पहाड़ की शुद्ध आबोहवा में एक अदद फ्लैट या कॉटेज खरीदने के फैशन ने जोर पकड़ा है। जमीन कारोबारियों और बिल्डरों की बन आई। इस सब की कीमत चुकानी पड़ रही है भीमताल के तालाब को। फ्लैट और कॉटेजों न केवल भीमताल के तालाब के कैचमेंट क्षेत्र को प्रभावित किया है, बल्कि इनके निर्माण में निकला मलबा भी भगत्यूड़ा और खूटानी नालों के जरिए भीमताल के तालाब तक पहुंच गया है। उत्तराखंड सिंचाई विभाग के कुमाऊं क्षेत्र के मुख्य अभियंता वीसीसी खेतवाल के मुताबिक, भीमताल के मल्लीताल वाले इलाके में चार सौ मीटर से ज्यादा लंबी, दो सौ मीटर से ज्यादा चौड़ी और डेढ़ से दो मीटर ऊंची करीब बारह हजार घन मीटर मिट्टी की परत जमा हो गई है।
मुख्य अभियंता खेतवाल के मुताबिक भीमताल के तालाब को मौजूद दुर्दशा से उबारने के लिए सिंचाई विभाग ने भारत सरकार के जल संसाधन विकास मंत्रालय के पास 784 लाख रुपए की योजना का प्रस्ताव भेजा है। योजना में तालाब से मिट्टी का मलबा निकालने के अलावा संरक्षण के और भी कई काम प्रस्तावित हैं। फिलहाल सिंचाई विभाग को अपनी इस महत्वाकांक्षी योजना के मंजूर होने का इंतजार है और भीमताल के तालाब को बरसात का।
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