माई को मार डालने को आतुर

‘‘भागलपुर से 32 किलोमीटर दूरी पर मौजूद कहलगाँव में तीन छोटे-छोटे टापू हैं। कहते हैं इसी जगह पर जाह्नु ऋषि ने गंगा को अपनी जांघ पर रोक दिया था। बाद में भागीरथ की प्रार्थना पर उन्होंने गंगा को छोड़ दिया’’ सुभाष मड़र चौरासी के मड़र है और राजघाट पर भीड़ का नेतृत्व कर रहे थे। घाट पर ठठम ठठ पंचैती शुरू हो चुकी थी। सुभाष मड़र ने बोलना जारी रखा, “जाह्नु बाबा ने तो गंगा की सिर्फ दिशा बदली थी लेकिन एनटीपीसी तो माई को मार डालने को आतुर है।”

देवसर की डेंगी तेजी से लहरों पर उछलती हुई गंगा के बीचों बीच उभरे एक ऊंचे पहाड़ की ओर बढ़ रही थी, देवसर काफी विचलित था और थोड़ा गुस्से में भी। श्रीघाट से पहाड़ तक पहुँचने में उसे दस मिनिट भी ना लगे। डेंगी को पहाड़ की तलहटी पर बाँध कर वह फंलाग लगाता हुआ ऊपर चढ़ा। ‘‘बाबा ओ बाबा कहाँ है आप?’’ ‘‘ऐ देवसर काहे इतना तेज चिल्ला रहे हो, बाबा सुबह की पूजा कर रहे है।’’...‘‘अरे कैलाश बाबू एनटीपीसी पर ढेर सारी मच्छीयन मरी पड़ी हैं। ये तो रोज-रोज की बात हो गई है। पिछले महीने कलेक्टर साब के सामने ही एनटीपीसी वालों ने बाबा से कहा था कि अबकि ऐसा नहीं होगा।’’ देवसर एक ही साँस में सब बोल गया। ‘‘ठीक है तू साँस तो ले, बाबा की पूजा खत्म होने दे फिर बात करते हैं।’’ करीब आधे घंटे बाद मन्दिर के बाहर आँगन में शान्ति बाबा आसन पर बैठे थे और उनके ठीक सामने कैलाश बाबू, देवसर, महादेव और आश्रम की देखभाल करने वाले कुछ लोग नीचे दरी पर बैठे थे। शान्ति बाबा सारी बात सुन चुके थे कि देवसर ने कुछ याद आते ही कहा बाबा दो ठो सोंस भी मरी दिखी थी। बाबा ने आँखें बन्द कर ली।

बात पूरे कहलगाँव में फैल चुकी थी कि रात एनटीपीसी से निकले डिस्चार्ज से हजारों मछलियाँ मर गई हैं। महज तीन माह पहले तक इस तरह की घटना से शहर को कोई फर्क नहीं पड़ता था लेकिन इन तीन महीनों में गंगा को लेकर कलहगाँव संवदेनशील हो गया है, गंगा की शान में गुस्ताखी अब यह शहर बर्दाश्त नहीं करता। तीन माह पहले इसी तरह एक रात डिस्चार्ज के बाद मछलियाँ पलट कर ऊपर आ गई थी और पूरा इलाका सड़ान से भर गया था।

यह तो पता नहीं कि विरोध की शुरुआत किसने की लेकिन देखते ही देखते हजारों लोगों की भीड़ ने एनटीपीसी प्लांट को घेर लिया। एकाएक आम आदमी को यह लगने लगा कि कहलगाँव की गंगा भी भ्रष्टाचार के चलते ही हर रोज प्रदूषित हो रही है। प्लांट में भीड़ आग लगाने पर अमादा थी। तब शान्ति बाबा ने बीच-बचाव करके मामले को सुलझाया था। लेकिन कुछ दिन बाद ही फिर ऐसा ही हुआ इस बार प्रशासन ने समझौते के लिए कुछ गणमान्य लोगों को इक्कट्ठा किया जिसमें एनटीपीसी के अधिकारियों ने इस बात का वायदा किया कि वे जल्दी डिस्चार्ज का कुछ इन्तजाम करेंगे और ध्यान रखेंगे कि दोबारा ऐसा ना हो। ‘‘भागलपुर से 32 किलोमीटर दूरी पर मौजूद कहलगाँव में तीन छोटे-छोटे टापू हैं। कहते हैं इसी जगह पर जाह्नु ऋषि ने गंगा को अपनी जाँघ पर रोक दिया था। बाद में भागीरथ की प्रार्थना पर उन्होंने गंगा को छोड़ दिया।’’ सुभाष मड़र चौरासी के मड़र है और राजघाट पर भीड़ का नेतृत्व कर रहे थे। घाट पर ठठम ठठ पंचैती शुरु हो चुकी थी। सुभाष मड़र ने बोलना जारी रखा, ‘‘जाह्नु बाबा ने तो गंगा की सिर्फ दिशा बदली थी लेकिन एनटीपीसी तो माई को मार डालने को आतुर है।’’

इसी भीड़ में मोहन साहनी भी खड़ा है। मछली पकड़ना ही उसका मुख्य व्यवसाय है। गंगा में मछलियाँ तेजी से कम हो रही हैं। यह बात तो वह अपने अनुभव से ही जानता था लेकिन इसके असली कारणों का पता उसे कुछ ही दिन पहले पता चला जब अखबारों में इस मुद्दे पर कई पेज काले हुए। दिलचस्प बात यह है कि अखबारों में इस चर्चा की तह में भी वह खुद था। उस दिन अपने भाई बबलू के साथ मोहन ने रात में मछली पकड़ने की योजना बनाई थी। उन्होंने सोचा था कि रात में कोई होता भी नहीं है और राजघाट के आसपास मुख्यधारा में आसानी से मछली पकड़ी जा सकती है। करीब दस बजे रात को उन्होंने अपना महाजाल फैलाया और इन्तजार करने लगे। तभी तेज बहाव के बीच उनकी नाव का संतुलन बिगड़ गया और नाव पलट गई। दोनों भाईयों का सारा जीवन ही गंगा किनारे बीता था शायद इसीलिए वे शानदार तैराक थे। किसी तरह तैरकर वे दोनों दियारा तक पहुंचे। दियारा क्या वह स्थान दो धाराओं के बीच का रेतीला हिस्सा था जहाँ एक टापू सा उभर आया था। दोनों भाई रातभर रेत के उस टापू पर पड़े रहे। दिन में भी किनारे की दूरी ज्यादा होने और तेज धार होने के चलते उनकी हिम्मत नहीं हुई कि पूरी नदी को ही तैरकर पार कर ले। वैसे भी कहलगाँव की गंगा अपने पूरे पथ में सबसे ज्यादा गहरी है। कहीं- कहीं तो 90 फीट तक। अब तक सभी जगह यह खबर फैल गई थी कि रात में गैरकानूनी तौर पर मछली पकड़ने गए दो मछुआरे गंगा में बह गए। उन्हें ढूँढ़ने के लिए सरकारी स्टीमर सक्रिय हो गए। अखबारों में अवैध रूप से मछली मारने को लेकर पन्ने काले होने लगे।

‘बिहार के मछुआरे गंगा से 47 किस्म की मछलियाँ पकड़ते थे और उनका कारोबार पूरे देश में करते थे। गंगा के प्रदूषण ने कई डेड जोन बनाए हैं जिनके चलते नदी की 75 प्रतिशत मछलियाँ खत्म हो चुकी हैं। अब जो मछलियाँ बची हैं वे मछुआरों के लिए नहीं हैं।’ ऐसी ही और कई जानकारियाँ मोहन और बबलू को तब पता चली जब चार दिन के बाद उन्हें खोज लिया गया। खोजा क्या गया वे दोनों खुद ही बहाव कम होने पर तैर कर वापस आ गए। वापस आते ही थाने में बैठा लिया गया और पूरे 2000 रुपए खर्च करने पड़े थे। बहरहाल इस भीड़ में मोहन के खड़े होने का एनटीपीसी के विरोध के अलावा एक कारण और था। वह सोच रहा था कि भीड़ खत्म हो और वह नाव लेकर एनटीपीसी के पीछे पहुँचे, जहाँ मछलियाँ बिखरी हुई थी। वह और उसके जैसे कई मछुआरे वहां से मछलियाँ बटोर कर बाजार में खपा देंगे। मछलियाँ दिखने में ताजी और खाने में स्वादिष्ट होनी चाहिए। इससे क्या फर्क पड़ता है कि वह किस जहर से मरी है। हालाँकि स्थानीय लोगों को इस बात की भनक है वे इस तरह के हादसे के दिन सावधान रहते हैं लेकिन राजमार्ग से गुजरने वाली कारें और होटल इस माल के आसान ग्राहक होते हैं।

वास्तव में मोहन और बबलू जैसे मछुआरों को बहुत हद तक मजबूरी में इस तरह का कदम उठाना पड़ता है। कहलगाँव में इसका एक बड़ा कारण डाल्फिन सेंचुरी है। सुल्तानगंज से कहलगाँव तक फ्री फिशिंग पर प्रतिबंध है। पर कहलगाँव आकर तस्वीर का एक और पहलू सामने आता है। सुभाष मड़र के पिता सहित कई लोगों ने करीब दो दशकों तक गंगा मुक्ति आन्दोलन चलाया था। उस समय यहाँ महाशय घोष और मुशर्रफ हुसैन नामक दो ठेकेदारों का ही लठ्ठ चलता था। उनकी अनुमति के बिना इस क्षेत्र में कोई मछली नहीं पकड़ सकता था। बड़ी लम्बी लड़ाई लड़कर इन मछुआरों ने यहाँ मछली पकड़ने की आजादी पाई थी जिसके बाद उनकी हालात में थोड़ा सुधार आया था लेकिन सरकार ने इस क्षेत्र को डाल्फिन सेंचुरी घोषित करके एक बार फिर उन्हें दशकों पहले वाली हालत में ला दिया है। देवसर के पिता सहित उसके दोनों चाचा की इस लड़ाई में लाशें गिर गई थी तब देवसर मात्र 5 माह का था।

कुल मिलाकर अच्छे-बुरे, नेता-कार्यकर्ता, से लेकर आम आदमी तक कहलगाँव में सड़क पर उतर आया था। इसका सबूत था कि एक बार फिर एनटीपीसी के अधिकारी गलती ना दोहराने का वादा करते शान्ति बाबा के सामने खड़े थे। गंगा तट पर बसे इस छोटे से कस्बे ने विरोध करना सीख लिया है।

.गंगा तट से महज एक किलोमीटर दूरी पर बसे ग्यारह गाँव मानों ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठे हैं। कहते हैं गंगा किनारे जब सभ्यता विकसित हुई तभी से ये गाँव भी बसे। सरकार सहित किसी को भी यह मानने से गुरेज नहीं कि ये गाँव किसी की भी जमीन पर कब्जा करके नहीं बसाए गए हैं। लेकिन अब गंगा तट के नाम पर गर्व करने वाले इन गाँवों की जमीनें विकास का शिकार हो रही है। इन गाँव के कई हिस्सों पर वे लोग भी बसे हैं जिन्हें डाल्फिन सेंचुरी बनने के चलते मछली पकड़ने का अपना धंधा छोड़ना पड़ा था। उनमें से कई लोगों ने नए धंधे के साथ नया ठिकाना भी तय कर लिया था। देवसर का अपना परिवार भी उनमें से एक है। देवसर के पास इस क्षेत्र में दस बीघा जमीन है और उसकी जमीन सहित यहाँ की एक हजार एकड़ से ज्यादा भूमि राज्य सरकार सीमेंट कम्पनियों और फूड प्लाजा के लिए देने जा रही है। यहाँ रिसर्च सेंटर और हैंडलूम पार्क भी खुलेंगे। एक ओर कम्पनी जो प्रशासन बताने से परहेज कर रहा है वह मिनरल वाटर बनाने वाला प्रोजेक्ट है। इस प्रोजेक्ट को बोतलों में भरने के लिए मिनरल वाटर यानी गंगा जल यहाँ आसानी से उपलब्ध हो जाएगा। यह सारी जमीन बहुफसली कही जाती है। इसलिए यहाँ के किसान अपेक्षाकृत आर्थिक रूप से मजबूत हैं। इस जमीन पर किसान मिर्च, आलू, प्याज, टमाटर, करेला, भिंडी के अलावा जिस भी सब्जी का बीज पड़ जाता है, गंगा के पानी से फल-फूल जाता है। वहीं मक्का, गेहूँ व अरहर की खेती भी यहाँ बहुत शानदार है। लेकिन अब सरकार ने इस जमीन का विकास करना ठान लिया है।

बहरहाल, देवसर सहित सैकड़ों लोगों ने राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 80 को रोक रखा है। गंगा किनारे बने इस राजमार्ग पर सैकड़ों गाड़ियों का चक्का जाम कर दिया गया है। सबौर थाना प्रभारी बच्चू यादव ने अपने सिपाहियों के साथ मोर्चा सम्भाला हुआ है। हेड कांस्टेबल पाठक को अपने पास बुलाकर उसने कहा बस किसी तरह जाम क्लीयर कराना है। किसी भी हालत में हालात बिगड़ना नहीं चाहिए। इस जाम को माले का समर्थन हासिल है ध्यान दिए रहना। ऊपर से आदेश है नहीं तो हम सब की लाश यही गंगा में तैरती मिलेंगी। हेड कांस्टेबल पाठक बिना कुछ कहे सिर हाँ में हिलाता है और बाकि सिपाहियों को यह समझाने चल देता है। बच्चू यादव खड़ा सोच रहा है कि यह नक्सली वाला मामला ना होता तो इन गाँव वालों के चुतड़ सुजा देता। एकाएक तेज नारे गुँजने लगते है रणधीर यादव को आजाद करो, गरीब का साथी रणधीर यादव। बच्चू ने ही दो दिन पहले उसे गिरफ्तार किया था। किसान-मजदूर संघर्ष समिति के सचिव रणधीर यादव ने इस भूमि अधिग्रहण के खिलाफ सूचना के अधिकार के तहत कई जानकारियाँ माँगी थी। जिससे सीमेंट कंपनी वाले मालिक नाराज हो गए थे और उन्होंने उसे पुलिस भेजकर रात में ही घर से उठा लिया। इसी बात के विरोध को लेकर यह राजमार्ग पिछले कई घंटे से जाम है।

हालाँकि बच्चू यादव का आरोप है कि देवसर सहित इस भूमि अधिग्रहण का विरोध कर रहे कई लोग वास्तव में नक्सली ही हैं। पहले विरोध करेंगे फिर कम्पनियों से पैसा लेकर खुद ही जमीन खाली करवा देंगे। वहीं इस प्रदर्शन के बाद देर शाम को रणधीर यादव को छोड़ दिया गया। इसके बाद रणधीर यादव ने सोचा कि इस पूरे मामले को मीडिया में लाकर देश का ध्यान आकर्षित किया जाए। लेकिन कहलगाँव में मीडिया का मतलब सच्चिदानंद मिश्रा हैं। सच्चिदानंद ही कहलगाँव से कई बड़े अखबारों और खबरिया चैनलों सहित न्यूज एजेंसी के लिए स्ट्रींगर का काम करते हैं यानी कहलगाँव में जो सच्चिदानंद लिख देते हैं वही देश भर के मीडिया के लिए सच हो जाता है। यह कहलगाँव की किस्मत ही है कि गंगा भक्त सच्चिदानंद की गिनती ईमानदार पत्रकारों में होती है। उनकी खबरों के बाद ही देश जान पाया कि भूमि अधिग्रहण की इस कार्यवाई से 6,000 परिवारों की जमीन छिन जाएगी और 30,000 हजार से ज्यादा लोगों को रोजी-रोटी के लाले पड़ जाएंगे।

देवसर उन चंद लोगों में शामिल है जिन्होंने अब तक जमीन के बदले सरकारी मुआवजा नहीं लिया है। लेकिन वह जानता है जिन्होंने मुआवजा स्वीकार किया है वह मजबूर थे। इस जगह से पाँच किलोमीटर पर एनटीपीसी है और एक किलोमीटर गंगा। व्यावसायिक दृष्टि से यह जमीन सोना है। यही वजह है कि निजी कम्पनियां इसका मोह छोड़ नहीं पा रही है।

इस हंगामे के कुछ दिन बाद कुप्पा घाट पर बैठे देवसर को कुछ लोग प्रोत्साहित कर रहे हैं। भइया तुम तो चुनाव लड़ लो। मीटिंग में तुम्हारा नाम हम आगे कर देंगे। माले का हाथ रहेगा चुनाव तो तुम जीत ही जाओगे। देवसर बिना कुछ कहे सोचता रहता है। शान्ति बाबा और रणधीर यादव ने तय किया है कि भूमि अधिग्रहण के खिलाफ लड़ाई चलती रहेगी, हालाँकि पटना ने कहा है कि हम मुआवजा बढ़ाने पर विचार कर रहे हैं लेकिन अधिग्रहण को रोका नहीं जा सकता। सच्चिदानंद ने दैनिक जागरण में लिखा है कि रणधीर यादव वाले मामले के चलते एक बार फिर लोगों का ध्यान एनटीपीसी से हट गया है। मोहन और बबलू साहनी अपने घरों में रोहू रोटी खाते हुए इस खबर को समझने की कोशिश कर रहे हैं।

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