प्याज (एलियम सिपो)
शल्क कन्दीय फसलों में प्याज का महत्वपूर्ण स्थान है। इसका प्रयोग कच्चे सलाद के रूप में तथा सब्जियां, अचार, पाउडर एवं फ्लेक्स जैसे उत्पाद बनाने में होता है। प्याज में विटामिन सी, फॉस्फोरस आदि प्रमुख पौष्टिक तत्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। प्याज में चरपराहट एवं तीखापन इसमें उपस्थित गंधक के एक मौलिक एलिल प्रोपाइल डाई सल्फाइड के कारण होता है। गंधक की मात्रा अधिक होने के कारण यह रक्तशुद्धि व रक्तवर्धक का गुण रखता है। गर्मी में लू से बचाता है तथा गुर्दे की बीमारी वाले रोगियों के लिए भी प्याज लाभदायक रहता है।
मृदा एवं जलवायु
प्याज फसल के लिए समशीतोष्ण जलवायु सर्वोत्तम मानी जाती है। प्याज की वृद्धि पर तापमान और प्रकाशकाल का गहरा प्रभाव पड़ता है। कन्दों के अच्छे विकास के लिए फसल पकने से पूर्व लम्बा दिन (13 से 14 घंटे की प्रकाश अवधि) तथा कुछ अधिक तापमान 35 से 40 डिग्री सेल्सियस अच्छा रहता है। जीवांश युक्त हल्की दोमट या चिकनी बलुई मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। चिकनी मिट्टी में कंदों का समुचित विकास नहीं हो पाता है।
उन्नत प्रजातियाँ
प्याज की किस्मों को रंगों के आधार पर तीन वर्गों में वर्गीकृत किया गया है
- लाल रंग की किस्में : पंजाब सलेक्शन, पूसा रेड, पूसा खनार, पूसा माधवी, अर्का निकेतन, एग्रीफाउण्ड डार्क रेड, एग्रीफाउण्ड लाइट रेड, अर्का प्रगति, अर्का बिन्दु एवं हिसार-2
- पीले रंग की किस्में : ब्राउन स्पेनिश, फूले स्वर्ण, अर्ली ग्रेनो
- सफेद रंग की किस्में : पूसा व्हाइट फ्लेट, पूसा व्हाइट राउण्ड, फूले सफेद, उदयपुर - 102 एवं पंजाब - 48
पौध तैयार करना
प्याज के एक हैक्टर क्षेत्र के लिए 500 वर्गमीटर में तैयार की गई नर्सरी की पौध पर्याप्त रहती है। नर्सरी की मिट्टी को अच्छी तरह भुरभुरी बनाकर व उसमें छनी हुई गोबर की खाद मिलाकर क्यारियां तैयार करें। एक हेक्टेयर में फसल उगाने के लिए 8-10 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है। बुवाई से पूर्व बीजों को थायरम या कैप्टान (2 ग्राम / किलोग्राम बीज) से उपचारित करके बुवाई करनी चाहिए। क्यारियों में कतार से कतार की दूरी 7-8 सेंमी. रखते हुए 2-3 सेंमी. की गहराई में बुवाई करें। बोने के बाद क्यारियों में हल्की सिंचाई कर सूखी घास फूंस से ढंक देते हैं। बीजों का अंकुरण होने पर घास को हटा देते हैं।
खाद एवं उर्वरक
प्याज से अच्छी पैदावार लेने के लिए अच्छी सडी गोबर की खाद 400 से 450 कुंटल प्रति हैक्टर की दर से खेत तैयार करते समय मिला देवें। इसके अतिरिक्त 100 कि० ग्रा० नत्रजन, 50 कि.ग्रा. फॉस्फोरस तथा 100 कि.ग्रा. पोटाश की आवश्यकता होती है। नत्रजन की आधी मात्रा, फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा पौध रोपाई से पहले खेत में अच्छी तरह से मिला दें। नत्रजन की शेष मात्रा की आधी मात्रा छिड़क कर दें।
पौध रोपण
प्याज की पौध लगभग 7-8 सप्ताह में रोपाई के योग्य हो जाती है। रबी में रोपाई का उपयुक्त समय 15 दिसंबर से 15 जनवरी तक है। रोपाई 15 सेंमी. कतार से कतार तथा 10 सेंमी. पौधे से पौधे की दूरी रखते हुए क्यारियों में करनी चाहिए। फसल को गुलाबी जड़ सड़न रोग से बचाने हेतु पौधों को कार्बेण्डाजिम 2 ग्राम / लीटर पानी के घोल में डुबोकर रोपाई करें।
कन्दों की बुवाई
कन्दों की बुवाई 45 सेंमी. की दूरी पर बनी मेड़ों पर 10 सेंमी. की दूरी पर दोनों तरफ करते हैं। 15 से 20 सेंमी. व्यास वाले आकार के कंद ही चुनने चाहिए। एक हेक्टेयर के लिए 10 कुंटल कन्द पर्याप्त रहते हैं।
रोपाई
रोपाई के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई करें एवं उसके तीन-चार दिन बाद फिर हल्की सिंचाई अवश्य करें ताकि मिट्टी नम रहे। अच्छे कन्दों के उत्पादन के लिए भूमि में सदैव अनुकूल नमी का होना आवश्यक है। कन्द बनते समय सिंचाई करना अति आवश्यक है। यदि इस समय भूमि में नमी की कमी रह जाती हैं, तो कन्द फट जाते हैं और उपज भी घट जाती है। फसल तैयार होने पर पौधे के शीर्ष पीले पड़कर गिरने लगते हैं। इस समय सिंचाई बंद कर देनी चाहिए।
निराई-गुड़ाई
प्याज की फसल उगाते समय खरपतवार नियंत्रण आवश्यक है। ऑक्सीफ्लोरफेन 23.5 ई.सी. 800 मिली. प्रति हेक्टेयर की दर से पौधरोपण से पहले खेत में छिड़काव करने से खरपतवार नष्ट हो जाते हैं।
पौध नियंत्रण
प्रमुख कीट
- थ्रिप्सः कीट छोटे आकार के होते हैं तथा इनका आक्रमण तापमान की वृद्धि के साथ प्याज पर तीव्रता से बढ़ता है और मार्च महीने में अधिक स्पष्ट दिखाई देता है। ये पत्तियों से रस चूसकर पत्तियां कमजोर कर देते हैं तथा आक्रमण के स्थान पर सफेद चकते दिखाई देते हैं। मैलाथियान 50 ई.सी. 1.5 मिली. प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। आवश्यकता होने पर 15 दिन बाद दोबारा छिड़काव करें।
- प्याज का मैगटः ये जड़ के पास अण्डे देता है तथा एक सप्ताह में अण्डे से बाहर आ जाता है। नियंत्रण के लिए बोरडेक्स मिश्रण (4:4:50 ) का छिड़काव करें।
बीमारियाँ
तुलासिताः पत्तियों की निचली सतह पर फफूंद की वृद्धि हो जाती है इसकी रोकथाम के लिए जाइनेब 2 ग्राम / लीटर की दर से छिड़काव करें।
अंगमारी
पत्तियों की सतह पर सफेद धब्बे बन जाते हैं जो बाद में बीज में बैंगनी रंग के हो जाते हैं। जाइनेब 2 ग्राम / लीटर का छिड़काव करें।
खुदाई:
कन्दों द्वारा बुवाई करके लगाई प्याज की फसल 90 से 110 दिन में तैयार हो जाती है तथा बीजों द्वारा तैयार की गई फसल 140 से 150 दिन में तैयार होती है। फसल तैयार होने पर पत्तियों के शीर्ष पीले पड़कर सूख जाते हैं इसके 15 दिन बाद खुदाई कर लेनी चाहिए।
सुखाना: खुदाई की हुई गांठों को पत्तियों सहित एक सप्ताह तक सुखाते हैं। धूप तेज होने पर छाया में सुखाते हैं। इसके एक सप्ताह बाद पत्तियों को 2 से 3 सेंमी. ऊपर से काट लेते हैं।
उपज
प्याज की उपज 200 से 350 कुंटल / हेक्टेयर तक हो जाती है।
लवणीय जल सिंचाई के परिणाम
लवणीय जल द्वारा प्याज की खेती में सिंचाई जल के पांच उपचार प्रयोग में लाये गये, जो क्रमशः नहरी जल, वैद्युत चालकता 2, 4, 6 एवं 8 डेसी. / मीटर थे। प्याज की प्रजाति नासिक रेड का प्रयोग किया गया था। तालिका 13 के अवलोकन से ज्ञात होता है कि प्याज में नहरी जल एवं वैद्युत चालकता 2 डेसी. / मीटर के जल द्वारा सिंचाई करने पर आपस में कोई सार्थक अन्तर किसी भी कारक तथा उपज पर दिखाई नहीं देता है। लेकिन वैद्युत चालकता 4 एवं 6 डेसी. / मीटर के जल द्वारा सिंचाई करने पर कारक प्रभावित होते हैं जो परिणाम सार्थक देते हैं। पौधों की ऊँचाई, पत्तियों की संख्या प्रति पौधा, कंद का व्यास, कंद का शुद्ध भार, कंद का आयतन एवं उपज कुंटल / हेक्टेयर, वैद्युत चालकता 4 एवं 6 डेसी. / मीटर में बराबर थे लेकिन नहरी जल से सार्थक रूप से कम थे। तालिका 13 के पुनरीक्षण से ज्ञात होता है कि वैद्युत चालकता 8 डेसी. / मी. जल की सिंचाई में ये कारक सबसे कम पाये गये । प्याज की उपज नहरी जल में सबसे अधिक 243.0 कुंटल / हैक्टर तथा वैद्युत चालकता 2 डेसी. / मीटर में 234.4 कुंटल / हेक्टेयर पाई गयी जो आपस में बराबर थी। इसी प्रकार विद्युत चालकता 4, 6 एवं 8 डेसी. / मीटर पर क्रमशः 148.9, 113.6 एवं 80.9 कुंटल / हेक्टेयर उपज प्राप्त हुई जो सांख्यिकीय दृष्टि से नहरी जल से सार्थक रूप से कम थी।
तालिका 13. लवणीय जल उपचारों का प्याज के वृद्धि कारक एवं उपज पर प्रभाव
उपचार |
पौधों की लम्बाई (सेंमी.) |
पत्तियों की संख्या/ पौधा (सेंमी.) | कन्द का व्यास (सेंमी.) |
कंद का शुद्ध भार (ग्राम) |
कंद का आयतन (सॅमी.) |
कंद की उपज (कुंटल/ हैक्टर) |
सिंचाई जल की लवणता (डेसीसीमन्स / मीटर ) | ||||||
नहरी जल | 44.9 | 8.5 | 8.8 | 80.2 | 72.1 | 243.0 |
2 | 44.5 | 8.4 | 8.7 | 75.1 | 68.9 | 234.0 |
4 |
38.9 |
7.3 | 7.6 | 60.9 | 51.5 | 148.9 |
6 | 37.3 | 7.0 | 6.8 | 52.6 | 40.8 | 113.6 |
8 | 29.7 | 6.0 | 5.8 | 42.6 | 28.6 | 80.9 |
क्रांतिक अन्तर (0.05) |
4.5 | 1.3 |
0.7 |
8.5 | 15.1 | 10.1 |
स्रोत-अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें:
प्रभारी अधिकारी
अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना लवणग्रस्त मृदाओं का प्रबंध एवं खारे जल का कृषि में उपयोग" राजा बलवंत सिंह महाविद्यालय, बिचपुरी, आगरा-283105 (उत्तर प्रदेश)
ईमेल: aicrp.salinity@gmail.com
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