लुप्त होते जा रहे हैं तालाब

पानी और पनिहारिन का बहुत पुराना नाता रहा है जो अब खत्म हो गया है। सच तो यह है कि तालाबों के किनारे पनिहारिनों की आवाजें भी अब बिल्कुल शांत हो गई हैं।

तालाबों का सरोकार आमजन से हुआ करता था क्योंकि हमारी प्यास बुझाने का सरल और सुलभ साधन सिर्फ तालाब ही होते थे। हमारी ही नहीं बल्कि खेत-खलिहानों की फसलों की सिंचाई भी इन्हीं तालाबों के पानी से हुआ करती थी लेकिन आज तालाब इतिहास का हिस्सा बन गए हैं। मुल्क की आजादी के वक्त तक हमारे देश में तालाबों की कुल संख्या करीब 24 लाख थी, उत्तर प्रदेश के पीलीभीत, लखीमपुर और बरेली जिले में 182 तालाब हुआ करते थे जिनसे खेतों की सिंचाई की जाती थी लेकिन अब महज 34 तालाब ही बचे हैं। उनमें भी पानी नहीं के बराबर है। पहले का किसान महज मानसून पर ही निर्भर नहीं रहता था, बारिश न होने पर उन तालाबों से अपने खेतों की सिंचाई कर लेता था। पर यह आने वाली पीढ़ी के लिए अदृश्य हो जाएगा।

इसके अलावा अकेले मद्रास प्रेसीडेंसी में पचास हजार तालाब थे। भोपाल का विशालतम तालाब 250 वर्ग मील तक फैला था। अब हालात देखिए तो देश भर में तालाबों की संख्या 80 हजार के आस-पास ही है। इसका आकार लगभग 80 प्रतिशत तक सिमट गया है। जहां तालाब हुआ करते थे वहां अब सपाट खेत या आसमान चूमती अट्टालिकाएं दिखाई पड़ती हैं। तालाबों की भूमि पर नगर का विकास हो रहा है और तालाबों की भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए सरकार प्रयास कर रही है। बोतलबंद पानी प्रथा ने पनिहारिनों के रास्तों पर कांटे बिछा दिए हैं। जो अपने पारंपरिक लिबास में परिवार के लिए पानी भरने अपने सिर पर घड़ा रख कर दूर तालाब में पानी भरने जाया करती थीं। आधुनिक शहरी जीवन शैली के चलते पहले से फिजा अब जुदा हो गई है।

अब भोपाल का बड़ा झील भी सूख रहा हैअब भोपाल का बड़ा झील भी सूख रहा हैबड़े-बुजुर्ग कहते हैं कि तालाबों के खत्म होने से और उनसे जुड़ी हुई कई बेशकीमती चीजें भी हमसे दूर होती जा रही हैं। मसलन, तालाब नहीं है तो पानी नहीं है, पानी नहीं है तो पनिहारिन भी नहीं है। कहावत है कि पानी और पनिहारिन का बहुत पुराना नाता रहा है जो अब खत्म हो गया है। सच तो यह है कि तालाबों के किनारे पनिहारिनों की आवाजें भी अब बिल्कुल शांत हो गई है। यह सब हमारे लिए अब केवल किस्से-कहानियों की बातों तक ही सिमट कर रह जाएंगी।

नदियों-तालाबों की सफाई के मद में अरबों रुपये खर्च किए जाते हैं। पर सफाई के नाम पर कुछ भी नहीं हो पाता है। सोचने वाली बात है यदि हमारा पर्यावरण ही उत्तम नहीं होगा तो प्रकृति का चक्र असंतुलित हो ही जाएगा। लुप्त होते इन तालाबों ने कई नए और घातक खतरों को जन्म दे दिया है। तालाबों के अलावा देश की अधिकतर छोटी-बड़ी नदियां घातक प्रदूषण की चपेट में हैं जबकि 70 प्रतिशत शहरों में आज भी पीने के पानी का आधार यही नदियां हैं।

Path Alias

/articles/laupata-haotae-jaa-rahae-haain-taalaaba

Post By: Hindi
×