लेजर इण्टरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्जर्वेटरी (लिगो) भौतिकी विज्ञान का एक विशाल प्रयोग है। जिसका उद्देश्य गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाना है। लेजर इण्टरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्जर्वेटरी (लिगो) अमेरिका के नेशनल साइंस फाउंडेशन (NSF) द्वारा भौतिकी के विशाल प्रयोगों के माध्यमों से ब्रह्माण्ड की सबसे प्रभावी प्रवृत्ति गुरुत्वाकर्षण तरंगों की उत्पत्ति का रहस्य जानने में सफलता प्राप्त करने के लिये लिगो की स्थापना की जा रही है। लेजर इण्टरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्जर्वेटरी (लिगो) अमेरिका के नेशनल साइंस फाउंडेशन (NSF) द्वारा भौतिकी के विशाल प्रयोगों के माध्यमों से ब्रह्माण्ड की सबसे प्रभावी प्रवृत्ति गुरुत्वाकर्षण तरंगों की उत्पत्ति का रहस्य जानने में सफलता प्राप्त करने के लिये लिगो की स्थापना की जा रही है। गुरुत्वाकर्षण तरंगों की सम्भावना के 100 वर्षों बाद नासा अन्तरिक्ष के ज्ञान को विस्तार देने के लिये यह एक श्रेष्ठ प्रयोग है।
भारत में पहली लेजर इण्टरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्जर्वेटरी (लिगो) की स्थापना के लिये 9 सितम्बर 2016 को महाराष्ट्र सरकार द्वारा भूमि उपलब्ध करा दी गई है। यह वेधशाला राज्य के हिंगोली जिले के औंध नामक स्थान पर बनाई जानी प्रस्तावित है। औंध हिंगोली (महाराष्ट्र) में विश्व की तीसरी लिगो स्थापित की जा रही है। यह अमेरिका से बाहर विश्व की पहली वेधशाला है। अमेरिका में लिगो का निर्माण हैन्सफोर्ड तथा लिविंगस्टोन में किया जा चुका है।
क्या है लिगो?
लेजर इण्टरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्जर्वेटरी (लिगो) भौतिकी विज्ञान का एक विशाल प्रयोग है। जिसका उद्देश्य गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाना है। यह मैसाच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) कालटेक तथा अन्य वैज्ञानिक संस्थाओं की सम्मिलित परियोजना है जो अमेरिकी संस्था नेशनल साइंस फाउंडेशन (एनएसएफ) द्वारा संचालित है।
वर्ष 1915 में अलबर्ट आइन्सटीन ने सापेक्षतावाद का सिद्धान्त प्रस्तुत किया। इस सिद्धान्त के अनेक पूर्वानुमानों में से एक अनुमान कॉल-अन्तराल को भी विकृत कर सकने वाली गुरुत्वाकर्षण तरंगों की उपस्थिति भी थी। इन गुरुत्वाकर्षण तरंगों की उपस्थिति को प्रमाणित करने में एक पूरी शताब्दी लग गई और 11 फरवरी 2016 को लिगो के शोधकर्ताओं ने दो ब्लैक होल की टक्कर से निकलने वाली गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाने का दावा किया है।
लिगो द्वारा गुरुत्वाकर्षण तरंगों के संकेत का दृष्टिकोण
लिगो द्वारा पहली बार गुरुत्वाकर्षण तरंगों के संकेतों को 14 सितम्बर 2015 को ग्रहण किया। 26 दिसम्बर 2015 को लिगो ने दूसरी बार गुरुत्वाकर्षण तरंग के संकेत पकड़े जो पहले प्राप्त तरंगों से सूक्ष्म थे। शोधकर्ताओं के अनुसार पहली बार प्राप्त गुरुत्वाकर्षण तरंगों को प्राप्त करने के लिये शोधकर्ताओं ने मैच फिल्टरिंग तकनीकी को अपनाया। यह तकनीकी ज्ञात तरंगों या शोर के पैटर्नों से गुरुत्वाकर्षण तरंगों के पैटर्न को अलग करने में सहायक थी। एक अन्य विश्लेषण तकनीक मानदण्ड आकलन वैज्ञानिक द्वारा अपनाई गई। वैज्ञानिकों ने पाया कि 14.2 एवं 7.5 सौर द्रव्यमान के दो ब्लैक होल्स के 1.4 अरब प्रकाशवर्ष दूर विलय से उत्पन्न प्रक्रिया के दौरान गुरुत्वाकर्षण तरंगें प्राप्त हो सकती हैं।
टकराने वाले ब्लैक होल प्रथम संकेत के दौरान दूसरे ब्लैक होल से अत्यधिक कम द्रव्यमान के हैं जिससे गुरुत्वाकर्षण तरंगें अपेक्षाकृत रूप से कमजोर हैं। कम द्रव्यमान वाले ब्लैक होल की संख्या ब्रह्माण्ड में खगोलशास्त्रियों द्वारा निरीक्षित ब्लैक होल से अधिक हैं। भविष्य में गुरुत्वाकर्षण तरंगों के लिये प्रयोगों को ब्लैक होल्स की संख्या का लाभ मिलेगा।
लिगो : आखिर क्यों महत्त्वपूर्ण है यह खोज?
मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट फॉर ग्रेविटेशनल फिजिक्स तथा लेबनीज यूनीवर्सिटी के प्राध्यापक कार्स्टन डान्जमैन ने लिगो के साथ गुरुत्वाकर्षण तरंगों की खोज को डीएनए के ढाँचे की समझ विकसित करने तथा हिग्स-बोसॉन कणों की खोज को जितना महत्त्वपूर्ण माना है। इस खोज को नोबल पुरस्कार जैसी मान्यता भी मिल सकती है। इस खोज के महत्त्व का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि इन्हें शताब्दी की सबसे बड़ी खोज माना जा रहा है। दशकों से वैज्ञानिक इस बात का पता लगाने का प्रयास कर रहे थे कि क्या गुरुत्वाकर्षण तरंगों को देखा जा सकता है अथवा महसूस किया जा सकता है। इसकी खोज के लिये अन्तरिक्ष एजेंसी (ईएसए) ने लीज पाथफाउंडर नाम से एक अन्तरिक्ष यान भी अन्तरिक्ष में प्रक्षेपित किया।
1.25 अरब वर्ष पहले ब्रह्माण्ड में दो ब्लैक होल आपस में टकराए थे। इस टक्कर से तात्कालिक अन्तरिक्ष का स्वरूप बदल गया। इस टक्कर के फलस्वरूप अन्तरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण तरंगें उत्पन्न हुईं और ये तरंगें किसी तालाब में पैदा तरंगों की तरह लगातार बढ़ रही हैं। वैज्ञानिकों ने आइन्सटीन के सापेक्षता के सिद्धान्त के प्रमाण प्राप्त कर लिये हैं। इसे अन्तरिक्ष विज्ञान की बड़ी सफलता माना जा रहा है। गुरुत्वाकर्षण तरंगों की खोज से खगोल विज्ञान तथा भौतिकी के क्षेत्र में अनुसन्धान के नए दरवाजे खुलेंगे।
कैसे काम करती हैं ये तरंगें?
आइन्सटीन के सामान्य सापेक्षतावाद के सिद्धान्त के अनुसार अन्तरिक्ष और समय दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं जिन्हें हम काल - अन्तराल भी कहते हैं। सामान्य तौर पर गुरुत्वाकर्षण बल एक आकर्षित करने या खींचने वाला बल है। किन्तु आइन्स्टीन के अनुसार गुरुत्वाकर्षण काल-अन्तराल को मोड़-देता है उसे विकृत कर देता है और इस प्रभाव को हम एक आकर्षण बल के रूप में देखते हैं। यह अत्यधिक द्रव्यमान वाला पिण्ड काल अन्तराल को इस प्रकार मोड़ देता है कि मुड़े हुए काल-अन्तराल से गुजरते हुए अन्य पिण्ड की गति त्वरित हो जाती है। वर्ष 1974 में खगोल विज्ञानी जोसेफ टेलर तथा रसेल हल्स ने युग्म न्यूट्रॉन तारों की खोज की थी। ये तारे एक-दूसरे की परिक्रमा अत्यधिक तीव्र गति से करते थे। इस तीव्र गति से परिक्रमा करने पर पिण्डों द्वारा गुरुत्वाकर्षण तरंग उत्पन्न की जाती थी। तारों के बीच की दूरी भी कम हो रही थी जो सापेक्षतावाद के सिद्धान्त की गणना से मेल खाते थे। टेलर और हल्स को उनकी खोज के लिये भौतिकी का नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया। अप्रत्यक्ष रूप से उन्होंने गुरुत्वाकर्षण तरंगों की खोज की।
लिगो द्वारा कैसे खोजी गई गुरुत्वाकर्षण तरंगें?
लिगो के अन्तर्गत दो प्रयोगशालाएँ हैं। इन दोनों वेधशालाओं में लम्बी L आकार की सुरंगें हैं। चार किमी लम्बी सुरंग के सबसे दूर वाले सिरे पर दर्पण लगे हैं जहाँ सुरंगें जुड़ी होती हैं वहाँ शक्तिशाली उपकरण लगा है। यह लेजर उपकरण लेजर किरण को एक विशेष दर्पण पर डालता है और यह दर्पण इस लेजर किरण को विभाजित कर सुरंग के दोनों ओर भेजता है। इस वृहद प्रयोग को समझने के लिये सुरंग के सिरे पर लगे दो दर्पण को M1 तथा M2 मानते हैं इन दो सुरंगों के जोड़ पर लेजर विभाजक B लेजर उपकरण LS तथा लेजर जाँचक LD लगा है।
लेजर स्रोत LS से लेजर किरण लेजर विभाजक पर पड़ती है और वह उसे विभाजित कर दर्पण M1 तथा M2 पर भेजती है। M1 तथा M2 से परावर्तित किरणें B से गुजरती हुई लेजर जाँचक उपकरण LD पर आती हैं। इस जाँच प्रणाली को मिशल्सन इन्टरफेरोमीटर कहते हैं। B से M1 तथा M2 की दूरी 4 किमी है। सामान्य स्थिति में लेजर स्रोत LS से उत्सर्जित लेजर किरण विभाजक B द्वारा विभाजित होकर M1 तथा M1 से परावर्तित हो LD तक पहुँचेगी। गुरुत्वाकर्षण तरंग की उपस्थिति में किरणें कभी कम अन्तराल पर आती हैं तो कभी समान अन्तराल पर आती हैं।
भारत में लिगो का विस्तार
भारत में लिगो की स्थापना के लिये 17 फरवरी 2016 को केन्द्रीय मंत्रीमण्डल ने अपनी स्वीकृति प्रदान की। अप्रैल 2016 में अमेरिका की नेशनल साइंस फाउंडेशन (एनएसएफ) तथा भारत के परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) के बीच सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर किये गए। लिगो-इण्डिया की स्थापना के लिये विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा किये गए अनुसन्धान तथा खोज के बाद औंध हिंगोली (महाराष्ट्र) का चयन इसकी स्थापना के लिये किया गया।
लिगो इण्डिया के निर्माण पर 1200 करोड़ की राशि खर्च होने का अनुमान है। लिगो इण्डिया के निर्माण संचालन में अमेरिकी संस्थाओं के साथ पुणे (महाराष्ट्र) स्थित यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स राजा रमन्ना सेंटर फॉर एडवान्स्ड टेक्नोलॉजी (इन्दौर, मध्य प्रदेश) तथा इंस्टीट्यूट फॉर प्लाज्मा रिसर्च (अहमदाबाद, गुजरात) के समन्वित प्रयास से कार्य किया जा रहा है।
हिंगोली (महाराष्ट्र) में ही क्यों बना लिगो?
हिंगोली के अतिरिक्त केन्द्र सरकार की ओर से उदयपुर (राजस्थान) को भी अधिसूचित किया गया था। लिगो के निर्माण के लिये 8 किमी की लम्बी पट्टी तथा 150 मीटर चौड़ी समतल पट्टी का होना अनिवार्य है। इस स्थान का चयन करने का कारण इतनी लम्बाई की भूमि की उपलब्धता है।
भारतीय अनुसन्धान दल (इण्डिगो)
भारतीय खगोलविज्ञानियों के समूह को इण्डियन इनिशिएटिव इन ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्जर्वेशन (इण्डिगो) नाम दिया गया है जो लेजर इण्टरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्जर्वेशन (लिगो) के भारत में अनुसन्धान पर कार्य कर रहे हैं। जिसका उद्देश्य गुरुत्वाकर्षण तरंगों की जानकारी प्राप्त करना है। इण्डिगो का गठन वर्ष 2009 में हुआ जो एशिया-प्रशान्त क्षेत्रों में लिगो-इण्डिया प्रोजेक्ट भी कहा जा रहा है। लिगो में भारत के अतिरिक्त यूके, जर्मनी तथा ऑस्ट्रेलिया की भी भागीदारी है। भारत में इण्डिगो की तरह इटली में विर्गो कार्य कर रहा है। जापान में कागरा प्रस्तावित है। इण्डिगो में वर्तमान में 70 वैज्ञानिक शामिल हैं।
निष्कर्ष
गुरुत्वाकर्षण तरंगों की जानकारी मानवता के कई रहस्यों को सुलझा सकेगी। ये तरंगें अपने प्रवाह के उपरान्त भी अपनी शक्ति नहीं खोती हैं। इन तरंगों की सम्पूर्ण जानकारी से ब्लैक होल्स को जानने में सहायता मिलेगी जो प्रकाश का विकिरण नहीं करते। ब्रह्माण्ड को बेहतर तरीके से जानने के लिये गुरुत्वाकर्षण तरंगों को जानना जरूरी है। हम ब्रह्माण्ड की उन प्रवृत्तियों के होने की प्रक्रिया को प्रयोगशाला में अवश्य समझ सकते हैं। गुरुत्व और द्रव्यमान के क्षेत्र में नए अनुप्रयोगों के लिये लिगो के प्रयोग तथा उनसे प्राप्त सन्देशों का महत्त्व अत्यधिक होगा। विज्ञान के साथ मनुष्य का सम्बन्ध अधिक सशक्त बनेगा। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विकास का स्तर बढ़ता जाएगा।
लेखक परिचय
श्री आशीष प्रसाद
द्वारा फ्रेंड्स बुक डिपो, यूनीवर्सिटी गेट, श्रीनगर, गढ़वाल-246 174 (उत्तराखण्ड),
मो. : 08126360950,
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Post By: Editorial Team