आज जहाँ दुनिया की 40 फीसदी ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति पेट्रोलियम करता है, वहीं एक-तिहाई ऊर्जा का उत्पादन प्राकृतिक गैस के माध्यम से होता है। इनके अलावा एक चौथाई ऊर्जा जरूरतों के लिए दुनिया अब भी कोयले पर ही निर्भर है। चौंकाने वाली बात यह है कि दुनिया के 40 फीसदी कोयले की खपत अकेले भारत में ही हो जाती है। अब ऊर्जा के ये स्रोत सीमित हैं, लिहाजा अनवरत उपयोग होने के कारण धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं। आधुनिक मानव को गतिशील रखने के लिए ऊर्जा का होना अनिवार्य है लेकिन दिन-पर-दिन सूखते जा रहे ऊर्जा के पारम्परिक स्रोतों के कारण आज न सिर्फ भारत बल्कि विश्व के ज्यादातर हिस्सों के लिए आवश्यक ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति चिन्ता का विषय बनती जा रही है।
शुरू-शुरू में तो लोग ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति के लिए केवल कोयले पर निर्भर थे, पर उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में समय के साथ कोयले पर से ये निर्भरता कुछ कम हुई और लोग पेट्रोलियम तथा गैस की तरफ भी उन्मुख हो गए। हालांकि ऊर्जा आपूर्ति के ये सभी स्रोत न सिर्फ सीमित हैं, बल्कि धरती के अस्तित्व के लिए घातक भी हैं, कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस के विभिन्न प्रकार की ऊर्जा के उत्पादन हेतु किए जा रहे निरन्तर और अनवरत दोहन से होने वाले हानिकारक गैसों के उत्सर्जन के कारण धरती का पर्यावरणीय सन्तुलन बिगड़ता जा रहा है, जिससे धरती के अस्तित्व पर ही संकट के बादल मँडराने लगे हैं। लेकिन इन तमाम् विसंगतियों के बावजूद आज सम्पूर्ण विश्व की अधिकाधिक ऊर्जा जरूरतें इन्हीं पारम्परिक स्रोतों से पूरी होती हैं।
एक आँकड़े के मुताबिक, आज जहाँ दुनिया की 40 फीसदी ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति पेट्रोलियम करता है, वहीं एक-तिहाई ऊर्जा का उत्पादन प्राकृतिक गैस के माध्यम से होता है। इनके अलावा एक चौथाई ऊर्जा जरूरतों के लिए दुनिया अब भी कोयले पर ही निर्भर है। चौंकाने वाली बात यह है कि दुनिया के 40 फीसदी कोयले की खपत अकेले भारत में ही हो जाती है। अब ऊर्जा के ये स्रोत सीमित हैं, लिहाजा अनवरत उपयोग होने के कारण धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं।
बताना आवश्यक है कि ऊर्जा के ये सभी स्रोत अगले तीन-चार दशकों में समाप्त हो जाएँगे। ऐसे में, विकट प्रश्न ये है कि आने वाले समय में जब ऊर्जा के ये पारम्परिक स्रोत नहीं रहेंगे, तब मानव की ऊर्जा जरूरतें किस प्रकार पूरी होंगी? एक शोध के मुताबिक, 2030-40 तक दुनिया की ऊर्जा जरूरतें आज की तुलना में 50 से 60 फीसदी तक बढ़ जाएँगी।
ऐसे में, ये एक कटु सत्य है कि अगर अभी से हमने पारम्परिक स्रोतों से अलग ऊर्जा के ऐसे वैकल्पिक स्रोतों जो अक्षय हों, को विकसित करने की तरफ गम्भीरता से कदम बढ़ाना शुरू नहीं किया तो आने वाले समय में हमें ऊर्जा के पारम्परिक स्रोतों के अभाव में बिना ऊर्जा के ही जीना पड़ सकता है।
ऐसा नहीं है कि आज ऊर्जा के वैकल्पिक या नवीन स्रोतों पर बिल्कुल भी काम नहीं हो रहा या आज दुनिया में उनके प्रति बिल्कुल भी गम्भीरता न हो। बेशक, आज दुनिया के तमाम देशों में ऊर्जा के नवीन स्रोतों के इस्तेमाल से ऊर्जा उत्पादन किया जा रहा है, लेकिन नवीन स्रोतों से उत्पादित ऊर्जा की मात्रा अपेक्षाकृत रूप से काफी कम है।
पनबिजली परियोजनाओं, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा आदि ऊर्जा के नवीन स्रोतों में प्रमुख हैं। पनबिजली परियोजनाओं द्वारा जल के धार में मौजूद गतिज ऊर्जा का विद्युत ऊर्जा में रूपान्तरण करके बिजली प्राप्त की जाती है। ये ऊर्जा के नवीन स्रोतों में वर्तमान में काफी अधिक प्रयोग होने वाला स्रोत है। आज पनबिजली बाँधों के माध्यम से दुनिया की तकरीबन 20 फीसदी विद्युत ऊर्जा का उत्पादन होता है।
अगर अब इस स्रोत को विकसित तथा विस्तारित करने की तरफ गम्भीरता से ध्यान दिया जाए तो इसके जरिए अन्य पारम्परिक स्रोतों की अपेक्षा बेहद कम प्रदूषण में काफी अधिक विद्युत ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है। इसके अलावा, ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति का एक अन्य नवीन और अक्षय स्रोत सौर ऊर्जा भी है।
सौर ऊर्जा तो प्रकृति का ऐसा अनूठा वरदान है, जिसके प्रति गम्भीर होते हुए अगर मानव जाति इसके उपयोग की सही, सहज और सस्ती तकनीक विकसित कर ले तो सम्पूर्ण विश्व की ऊर्जा जरूरत से कहीं ज्यादा ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। सौर ऊर्जा के उत्पादन के लिहाज से दुनिया के ज्यादातर देशों की अपेक्षा भारत की स्थिति बेहद अनुकूल है, क्योंकि यहाँ वर्ष के अधिकतर महीनों में सूर्य की गर्मी अधिक तीव्रता के साथ उपलब्ध रहती है।
लिहाजा, अगर सही तकनीक हो तो सूर्य के जरिए पर्याप्त ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। सम्भवतः इसी नाते मोदी सरकार सौर ऊर्जा को लेकर काफी गम्भीर दिख रही है और इसके उत्पादन के लिए तरह-तरह के विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। आज सौर ऊर्जा का सर्वाधिक उपयोग विद्युत ऊर्जा में रूपान्तरित करके किया जा रहा है।
सौर ऊर्जा का विद्युत ऊर्जा में रूपान्तरण करने के लिए आज फोटोवोल्टेइक सेल की जिस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है, व जरूरत के लिहाज से बेहद महँगी है। इसलिए इस तकनीक के सहारे अधिक सौर ऊर्जा का उत्पादन करना घाटे का ही सौदा लगता है। लिहाजा, जरूरत यह है कि सौर ऊर्जा के उपयोग के लिए सस्ती तकनीक विकसित की जाए और ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति के लिए सौर ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ाई जाए।
सौर ऊर्जा के अतिरिक्त पवन ऊर्जा भी ऊर्जा उत्पादन का एक नवीन और बेहतरीन माध्यम है। ये भी सौर ऊर्जा की तरह ही ऊर्जा प्राप्ति का अक्षय स्रोत होने के साथ-साथ प्रदूषण रहित भी है। इसके अन्तर्गत पवनचक्कियों को हवादार स्थानों में लगाया जाता है और फिर जब वे हवा के जोर से घूमने लगती है, तो हवा की उस गतिज ऊर्जा को यान्त्रिक अथवा विद्युत ऊर्जा में रूपान्तरित कर दिया जाता है। हालांकि मूलतः इस ऊर्जा का उत्पादन तकनीक से ज्यादा वायु पर निर्भर है।
जितनी तेज और ज्यादा वायु मिलेगी, इस तकनीक से उतनी ज्यादा ऊर्जा प्राप्त की जा सकेगी। कहने का अर्थ है कि इस तकनीक के लिए पेड़-पौधों आदि से भरे-पूरे क्षेत्र की ही जरूरत होती है। नवीन ऊर्जा स्रोतों में ये सर्वाधिक प्रयोग किया जाने वाला माध्यम है। इन सबके अलावा ऊर्जा के नवीन स्रोतों में परमाणु ऊर्जा भी अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान रखता है, लेकिन परमाणु से जुड़े होने के कारण इसके प्रयोग में खतरे की काफी गुंजाइश होती है। बावजूद इसके, दुनिया में परमाणु ऊर्जा का ठीकठाक रूप से प्रयोग हो रहा है।
उपर्युक्त बातों से स्पष्ट है कि अगर दुनिया को आने वाले समय में ऊर्जा और पर्यावरणीय संकट से बचना है तो उसे ऊर्जा के नवीन स्रोतों के प्रति पूरी तरह से गम्भीर होना होगा। इस सम्बन्ध में आज इस स्तर पर प्रयास किए जाने की जरूरत है कि दुनिया की अधिकाधिक ऊर्जा जरूरतें ऊर्जा के पारम्परिक स्रोतों से इतर केवल नवीन माध्यमों, विशेषतः सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा से पूरी की जा सकें। इसके लिए आवश्यक है कि इस दिशा में अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर वैज्ञानिक निवेश बढ़ाते हुए शोध तथा आविष्कार को बढ़ावा दिया जाए।
उर्जा के इन नवीन स्रोतों को पूर्ण विकसित करने के साथ-साथ ऊर्जा बचत के लिए भी प्रयास किए जाने की जरूरत है। इस दिशा में एल.ई.डी. बल्ब जैसी पहलें तो बेहद कारगर हैं ही, लोगों के अन्दर ऊर्जा बचत को लेकर जागरुकता लाने की भी जरूरत है। यह सब करके ही हम ऊर्जा के भावी संकट को टालने की सोच सकते हैं।
1. सौर ऊर्जा स्वतन्त्र स्रोत के रूप में पूरी तरह सूर्य से मिलता है यानी अनन्त काल तक सूर्य ही इस ऊर्जा का प्रचुर भण्डार बना रहेगा।
2. सौर ऊर्जा विकिरण से भी मिलती है। इसे कुछ आधुनिक तकनीकों जैसे कि फोटो-वोल्टिक, सोलर हीटिंग, आर्टीफिशियल फोटोसेन्थेसिस, सोलर आर्किटेक्चर और सोलर थर्मल इलेक्ट्रिसिटी से सौर ऊर्जा में बदलकर प्राप्त किया जाता है।
3. सौर प्रौद्योगिकी के तहत् एक्टिव और पैसिव, दो तरीकों से ऊर्जा को एकत्रित किया जा सकता है। यानी सीधी किरणों से एक्टिव और कमरे में सूर्य से उत्पन्न गर्मी से पैसिव, दोनों से ऊर्जा प्राप्त की जा रही है।
4. हमारी पृथ्वी ऊपरी वायुमण्डल में प्रवेश करती किरणों को विकिरण के जरिए 174 पैटावॉट पाती हैं। पैटावॉट एक घण्टे में पृथ्वी तक पहुँचे विकिरण की मापक इकाई है।
5. करीब 30 फीसदी किरणें अन्तरिक्ष में चली जाती हैं और बाकी धरती और महासागर अवशोषित कर लेते हैं।
6. सौर परिग्रहण (एनसुलेशन) के महत्वपूर्ण नतीजे धरती पर पैदा होने वाले जल चक्र हैं।
7. धरती, महासागर और वायुमण्डल सौर विकिरण और उससे बढ़ती गर्मी को सोख लेते हैं।
8. हवा में गर्मी बढ़ने की एक वजह सूर्य है तो दूसरी वजह है महासागरों की प्रकृति। जब हवा गर्म होकर ऊपर जाती है, तो ये महासागर के पानी के भाप में बदले रूप ही हैं। यही भाप बादल में परिवर्तित होकर बारिश कराते हैं, जो धरती पर पानी पहुँचने का एक निश्चित चक्र है। यह प्रक्रिया सौर ऊर्जा की वजह से चलती रहती है।
9. सौर ऊर्जा का एक और इस्तेमाल भी है- प्रकाश संश्लेषण के जरिए सौर ऊर्जा हरे पौधे से केमिकल एनर्जी में बदल जाती है जिससे बायो मास निर्मित होते हैं। इसी से लम्बे समय बाद जीवाश्म ईंधन (पेट्रोल आदि) बनते हैं।
10. बागवानी यानी हॉटीकल्चर और कृषि सौर ऊर्जा से सबसे ज्यादा लाभ प्राप्त करते हैं। अर्थ यह है कि पौधों के उगने और बढ़ने का चक्र और पौधों की विविधता की बनावट यही निर्मित करते रहते हैं।
11. ग्रीन हाउस साल भर फसलों को उगाने में सूर्य की किरणों से मदद पर निर्भर होते हैं।
12. सौर ऊर्जा सभी जल प्रणालियों यानी नदी, पोखरे, झीलों और सागर को गर्म करके मौसम में बदलाव लाते रहते हैं।
शुरू-शुरू में तो लोग ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति के लिए केवल कोयले पर निर्भर थे, पर उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में समय के साथ कोयले पर से ये निर्भरता कुछ कम हुई और लोग पेट्रोलियम तथा गैस की तरफ भी उन्मुख हो गए। हालांकि ऊर्जा आपूर्ति के ये सभी स्रोत न सिर्फ सीमित हैं, बल्कि धरती के अस्तित्व के लिए घातक भी हैं, कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस के विभिन्न प्रकार की ऊर्जा के उत्पादन हेतु किए जा रहे निरन्तर और अनवरत दोहन से होने वाले हानिकारक गैसों के उत्सर्जन के कारण धरती का पर्यावरणीय सन्तुलन बिगड़ता जा रहा है, जिससे धरती के अस्तित्व पर ही संकट के बादल मँडराने लगे हैं। लेकिन इन तमाम् विसंगतियों के बावजूद आज सम्पूर्ण विश्व की अधिकाधिक ऊर्जा जरूरतें इन्हीं पारम्परिक स्रोतों से पूरी होती हैं।
एक आँकड़े के मुताबिक, आज जहाँ दुनिया की 40 फीसदी ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति पेट्रोलियम करता है, वहीं एक-तिहाई ऊर्जा का उत्पादन प्राकृतिक गैस के माध्यम से होता है। इनके अलावा एक चौथाई ऊर्जा जरूरतों के लिए दुनिया अब भी कोयले पर ही निर्भर है। चौंकाने वाली बात यह है कि दुनिया के 40 फीसदी कोयले की खपत अकेले भारत में ही हो जाती है। अब ऊर्जा के ये स्रोत सीमित हैं, लिहाजा अनवरत उपयोग होने के कारण धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं।
बताना आवश्यक है कि ऊर्जा के ये सभी स्रोत अगले तीन-चार दशकों में समाप्त हो जाएँगे। ऐसे में, विकट प्रश्न ये है कि आने वाले समय में जब ऊर्जा के ये पारम्परिक स्रोत नहीं रहेंगे, तब मानव की ऊर्जा जरूरतें किस प्रकार पूरी होंगी? एक शोध के मुताबिक, 2030-40 तक दुनिया की ऊर्जा जरूरतें आज की तुलना में 50 से 60 फीसदी तक बढ़ जाएँगी।
ऐसे में, ये एक कटु सत्य है कि अगर अभी से हमने पारम्परिक स्रोतों से अलग ऊर्जा के ऐसे वैकल्पिक स्रोतों जो अक्षय हों, को विकसित करने की तरफ गम्भीरता से कदम बढ़ाना शुरू नहीं किया तो आने वाले समय में हमें ऊर्जा के पारम्परिक स्रोतों के अभाव में बिना ऊर्जा के ही जीना पड़ सकता है।
ऐसा नहीं है कि आज ऊर्जा के वैकल्पिक या नवीन स्रोतों पर बिल्कुल भी काम नहीं हो रहा या आज दुनिया में उनके प्रति बिल्कुल भी गम्भीरता न हो। बेशक, आज दुनिया के तमाम देशों में ऊर्जा के नवीन स्रोतों के इस्तेमाल से ऊर्जा उत्पादन किया जा रहा है, लेकिन नवीन स्रोतों से उत्पादित ऊर्जा की मात्रा अपेक्षाकृत रूप से काफी कम है।
पनबिजली परियोजनाओं, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा आदि ऊर्जा के नवीन स्रोतों में प्रमुख हैं। पनबिजली परियोजनाओं द्वारा जल के धार में मौजूद गतिज ऊर्जा का विद्युत ऊर्जा में रूपान्तरण करके बिजली प्राप्त की जाती है। ये ऊर्जा के नवीन स्रोतों में वर्तमान में काफी अधिक प्रयोग होने वाला स्रोत है। आज पनबिजली बाँधों के माध्यम से दुनिया की तकरीबन 20 फीसदी विद्युत ऊर्जा का उत्पादन होता है।
अगर अब इस स्रोत को विकसित तथा विस्तारित करने की तरफ गम्भीरता से ध्यान दिया जाए तो इसके जरिए अन्य पारम्परिक स्रोतों की अपेक्षा बेहद कम प्रदूषण में काफी अधिक विद्युत ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है। इसके अलावा, ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति का एक अन्य नवीन और अक्षय स्रोत सौर ऊर्जा भी है।
सौर ऊर्जा तो प्रकृति का ऐसा अनूठा वरदान है, जिसके प्रति गम्भीर होते हुए अगर मानव जाति इसके उपयोग की सही, सहज और सस्ती तकनीक विकसित कर ले तो सम्पूर्ण विश्व की ऊर्जा जरूरत से कहीं ज्यादा ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। सौर ऊर्जा के उत्पादन के लिहाज से दुनिया के ज्यादातर देशों की अपेक्षा भारत की स्थिति बेहद अनुकूल है, क्योंकि यहाँ वर्ष के अधिकतर महीनों में सूर्य की गर्मी अधिक तीव्रता के साथ उपलब्ध रहती है।
लिहाजा, अगर सही तकनीक हो तो सूर्य के जरिए पर्याप्त ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। सम्भवतः इसी नाते मोदी सरकार सौर ऊर्जा को लेकर काफी गम्भीर दिख रही है और इसके उत्पादन के लिए तरह-तरह के विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। आज सौर ऊर्जा का सर्वाधिक उपयोग विद्युत ऊर्जा में रूपान्तरित करके किया जा रहा है।
सौर ऊर्जा का विद्युत ऊर्जा में रूपान्तरण करने के लिए आज फोटोवोल्टेइक सेल की जिस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है, व जरूरत के लिहाज से बेहद महँगी है। इसलिए इस तकनीक के सहारे अधिक सौर ऊर्जा का उत्पादन करना घाटे का ही सौदा लगता है। लिहाजा, जरूरत यह है कि सौर ऊर्जा के उपयोग के लिए सस्ती तकनीक विकसित की जाए और ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति के लिए सौर ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ाई जाए।
सौर ऊर्जा के अतिरिक्त पवन ऊर्जा भी ऊर्जा उत्पादन का एक नवीन और बेहतरीन माध्यम है। ये भी सौर ऊर्जा की तरह ही ऊर्जा प्राप्ति का अक्षय स्रोत होने के साथ-साथ प्रदूषण रहित भी है। इसके अन्तर्गत पवनचक्कियों को हवादार स्थानों में लगाया जाता है और फिर जब वे हवा के जोर से घूमने लगती है, तो हवा की उस गतिज ऊर्जा को यान्त्रिक अथवा विद्युत ऊर्जा में रूपान्तरित कर दिया जाता है। हालांकि मूलतः इस ऊर्जा का उत्पादन तकनीक से ज्यादा वायु पर निर्भर है।
जितनी तेज और ज्यादा वायु मिलेगी, इस तकनीक से उतनी ज्यादा ऊर्जा प्राप्त की जा सकेगी। कहने का अर्थ है कि इस तकनीक के लिए पेड़-पौधों आदि से भरे-पूरे क्षेत्र की ही जरूरत होती है। नवीन ऊर्जा स्रोतों में ये सर्वाधिक प्रयोग किया जाने वाला माध्यम है। इन सबके अलावा ऊर्जा के नवीन स्रोतों में परमाणु ऊर्जा भी अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान रखता है, लेकिन परमाणु से जुड़े होने के कारण इसके प्रयोग में खतरे की काफी गुंजाइश होती है। बावजूद इसके, दुनिया में परमाणु ऊर्जा का ठीकठाक रूप से प्रयोग हो रहा है।
उपर्युक्त बातों से स्पष्ट है कि अगर दुनिया को आने वाले समय में ऊर्जा और पर्यावरणीय संकट से बचना है तो उसे ऊर्जा के नवीन स्रोतों के प्रति पूरी तरह से गम्भीर होना होगा। इस सम्बन्ध में आज इस स्तर पर प्रयास किए जाने की जरूरत है कि दुनिया की अधिकाधिक ऊर्जा जरूरतें ऊर्जा के पारम्परिक स्रोतों से इतर केवल नवीन माध्यमों, विशेषतः सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा से पूरी की जा सकें। इसके लिए आवश्यक है कि इस दिशा में अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर वैज्ञानिक निवेश बढ़ाते हुए शोध तथा आविष्कार को बढ़ावा दिया जाए।
उर्जा के इन नवीन स्रोतों को पूर्ण विकसित करने के साथ-साथ ऊर्जा बचत के लिए भी प्रयास किए जाने की जरूरत है। इस दिशा में एल.ई.डी. बल्ब जैसी पहलें तो बेहद कारगर हैं ही, लोगों के अन्दर ऊर्जा बचत को लेकर जागरुकता लाने की भी जरूरत है। यह सब करके ही हम ऊर्जा के भावी संकट को टालने की सोच सकते हैं।
सौर ऊर्जा से जुड़े अहम तथ्य
1. सौर ऊर्जा स्वतन्त्र स्रोत के रूप में पूरी तरह सूर्य से मिलता है यानी अनन्त काल तक सूर्य ही इस ऊर्जा का प्रचुर भण्डार बना रहेगा।
2. सौर ऊर्जा विकिरण से भी मिलती है। इसे कुछ आधुनिक तकनीकों जैसे कि फोटो-वोल्टिक, सोलर हीटिंग, आर्टीफिशियल फोटोसेन्थेसिस, सोलर आर्किटेक्चर और सोलर थर्मल इलेक्ट्रिसिटी से सौर ऊर्जा में बदलकर प्राप्त किया जाता है।
3. सौर प्रौद्योगिकी के तहत् एक्टिव और पैसिव, दो तरीकों से ऊर्जा को एकत्रित किया जा सकता है। यानी सीधी किरणों से एक्टिव और कमरे में सूर्य से उत्पन्न गर्मी से पैसिव, दोनों से ऊर्जा प्राप्त की जा रही है।
4. हमारी पृथ्वी ऊपरी वायुमण्डल में प्रवेश करती किरणों को विकिरण के जरिए 174 पैटावॉट पाती हैं। पैटावॉट एक घण्टे में पृथ्वी तक पहुँचे विकिरण की मापक इकाई है।
5. करीब 30 फीसदी किरणें अन्तरिक्ष में चली जाती हैं और बाकी धरती और महासागर अवशोषित कर लेते हैं।
6. सौर परिग्रहण (एनसुलेशन) के महत्वपूर्ण नतीजे धरती पर पैदा होने वाले जल चक्र हैं।
7. धरती, महासागर और वायुमण्डल सौर विकिरण और उससे बढ़ती गर्मी को सोख लेते हैं।
8. हवा में गर्मी बढ़ने की एक वजह सूर्य है तो दूसरी वजह है महासागरों की प्रकृति। जब हवा गर्म होकर ऊपर जाती है, तो ये महासागर के पानी के भाप में बदले रूप ही हैं। यही भाप बादल में परिवर्तित होकर बारिश कराते हैं, जो धरती पर पानी पहुँचने का एक निश्चित चक्र है। यह प्रक्रिया सौर ऊर्जा की वजह से चलती रहती है।
9. सौर ऊर्जा का एक और इस्तेमाल भी है- प्रकाश संश्लेषण के जरिए सौर ऊर्जा हरे पौधे से केमिकल एनर्जी में बदल जाती है जिससे बायो मास निर्मित होते हैं। इसी से लम्बे समय बाद जीवाश्म ईंधन (पेट्रोल आदि) बनते हैं।
10. बागवानी यानी हॉटीकल्चर और कृषि सौर ऊर्जा से सबसे ज्यादा लाभ प्राप्त करते हैं। अर्थ यह है कि पौधों के उगने और बढ़ने का चक्र और पौधों की विविधता की बनावट यही निर्मित करते रहते हैं।
11. ग्रीन हाउस साल भर फसलों को उगाने में सूर्य की किरणों से मदद पर निर्भर होते हैं।
12. सौर ऊर्जा सभी जल प्रणालियों यानी नदी, पोखरे, झीलों और सागर को गर्म करके मौसम में बदलाव लाते रहते हैं।
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Post By: Shivendra