लापोड़िया का प्रयोग भारत के लिये आदर्श होगा- लक्ष्मण सिंह लापोड़िया

‘आसमां में होगा सूराख जरूर
तबियत से एक पत्थर तो उछालो यारो।’


प्रगति पथ पर आगे बढ़ते समय अक्सर पथरीले, कंकरीले, ऊबड़-खाबड़ रास्तों से इंसान को गुजरना पड़ता है। अधिकांश लोग बचते-बचाते, गिरते-संभलते उन रास्तों को पार कर आगे निकल जाते हैं। वहीं कुछ लोग रुककर रास्ते की तमाम बाधाओं को हटाने में जुट जाते हैं ताकि बाद में आने वाले लोगों को कंटकहीन, साफ-सुथरा मार्ग मिले। ऐसे कामों को शुरू करने वालों को अक्सर लोग गंवार, मूर्ख, सनकी और जाहिल आदि उपनामों से ही संबोधित करते हैं। किंतु बाद में उनकी एकाग्रता और लगन देखकर खुद भी उसी मुहिम से जुड़ जाते हैं। ऐसे ही अक्सर एकल विचार, एकल प्रयास को लेकर पर्यावरण सुरक्षा की मुहिम में आगे बढ़ने वाले और बाद में समूह के नेतृत्वकर्ता है- राजस्थान के छोटे से गांव लापोड़िया के लक्ष्मण सिंह लापोड़िया। नदी, पेड़, तालाब को बचाने, उसका निर्माण करने और जन-जन को अन्न, जल, जीवन की खुशहाली का सूत्र देने वाले लक्ष्मण सिंह से बातचीत की डॉ. मनोज चतुर्वेदी और डॉ.प्रेरणा चतुर्वेदी ने।

डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. लक्ष्मण जी आप अपने जन्म और शिक्षा के बारे में बताइये?
लक्ष्मण सिंह.. मेरा जन्म सन् 1956 में राजस्थान जिला जयपुर के लापोड़िया ग्राम में हुआ। मेरी प्रारंभिक शिक्षा लापोड़िया में ही हुई। बाद में आगे की शिक्षा जयपुर में हुई।

डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. आपने लापोड़िया गाँव में तालाबों और गोचर के लिए बहुत काम किया हैं। इसकी प्रेरणा आपको कब और कहाँ से मिली?
लक्ष्मण सिंह..दरअसल, मैं जबलपुर में था तो मेरे गांव का नाम सुनकर लोग मजाक उड़ाते थे, उसे खराब, बेकार लोगों का गांव कहते थे। ये सब सुनकर मैं 1973 में अपने गांव लापोड़िया आया और वापस फिर यहां से नहीं गया। फिर मैंने सोचा कि इस गांव को ऐसा बनाना है कि जो लोग इसके नाम से भी दूर भागते हैं, वे सब इस गांव से प्रेरणा लें।

डॉ. मनोज चतुर्वेदी..आपको कब और कहाँ से मिली?
लक्ष्मण सिंह.. दरअसल, मैं जबलपुर में था तो मेरे गांव का नाम सुनकर लोग मज़ाक उड़ाते थे, उसे खराब, बेकार लोगों का गांव कहते थे। ये सब सुनकर मैं 1973 में अपने गांव लापोड़िया आया और वापस फिर यहां से नहीं गया। फिर मैंने सोचा कि इस गांव को ऐसा बनाना है कि जो लोग इसके नाम से भी दूर भागते हैं, वे सब इस गांव से प्रेरणा लें।

डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी.. आपने इसकी शुरूआत कैसे की?
लक्ष्मण सिंह.. हमारे गांव में एक ही तालाब था, मगर उसके किनारे टूटे हुए थे। जिससे बरसात का सारा पानी बह जाता था। मैंने सोचा, सबसे पहले इसी तालाब को ठीक कराना चाहिए, ताकि इसमें बरसात का पानी रुके और उसका उपयोग हो सके।

डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी.. तालाब ठीक कराने का काम करने में आपको किन-किन लोगों ने मदद की।
लक्ष्मण सिंह.. मैंने तालाब ठीक कराने के लिए सबसे पहले गांव के लोगों को एकजुट करना शुरू किया। उनके साथ तीन बार बैठकें कीं। लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। तालाब ठीक करने कोई आगे नहीं आया। मैं हताश हो चुका था। फिर मेरे कुछ मित्र जयपुर घूमने आये। उनसे मैंने जब ये बात कही, तब वे तैयार हो गये और हम चार-पांच लोग फावड़ा, कुदाल लेकर तालाब के पास पहुंचे और मिट्टी से उसके किनारे बनाने लगे। यह देखकर गांव के कई लोग वहां पहुंचे। हम रोज जाते और तालाब के किनारे मिट्टी इकट्ठी करते। हमें लगन से काम में जुटा देखकर गांव के कुछ लोगों ने हमारा साथ देना शुरू किया। और पंद्रह-बीस दिनों में तालाब के टूटे किनारे ठीक हो गए। बारिश हुई और इस साल तालाब में पानी रुका। गाँववालों को भी लगा कि हम लोगों ने वाकई कुछ ठीक काम किया है फिर बरसात जाने के बाद हमने तालाब के किनारों को और भी ऊंचा कर दिया। और अगले बारिश में तालाब में और भी ज्यादा पानी रूका।

डॉ. मनोज चतुर्वेदी .. आपने लापोड़िया में कितने तालाब बनाये?
लक्ष्मण सिंह.. हमने कई छोटे-छोटे तालाब बनाये। बड़े तालाब भी बनाये ओर उनके नाम रखे- अन्नसागर, देवसागर, और फूलसागर। इन तालाबों के पानी से खेतों की अच्छी सिंचाई होने लगी। सूखी पड़ी जमीनें लहलहा उठीं। फसल, चारे का अच्छा प्रबन्ध होने से पशुपालन में वृद्धि हुई।

डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी .. आपने गांव में रोज़गार के भी अवसर उपलब्ध कराए हैं। उसके बारे में बतायें?
लक्ष्मण सिंह.. दरअसल, लापोड़िया में सिंचाई के लिए पानी समुचित मात्रा में उपलब्ध नहीं था। जिससे खेती और पशुपालन पर बुरा असर पड़ा था और इनसे आमदनी खत्म हो गई थी। पानी की व्यवस्था ठीक होने से खेती, पशुपालन के अवसर बढ़े। खेतों में सब्ज़ियाँ और औषधियां उगाई जाने लगी। जिसको लोगों ने इन्हें बाहर बेचना शुरू किया। औषधियों की मांग बढ़ने लगी और उससे गांव की आमदनी।

डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी .. आज पर्यावरण के लिए सरकार जागरूक है। इस विषय में आपका क्या कहना है?
लक्ष्मण सिंह .. आज पर्यावरण सुरक्षा को लेकर जितनी समस्या बतायी जा रही है, सरकारी नीतियों द्वारा सुझाये गये समाधान उनको और बढ़ा ही रहे हैं। सरकार नदियों की पानी बहने से रोककर उन पर बांध बनाकर सिंचाई की बात करती है जबकि इससे नदी का पानी कम हो रहा है। जबकि खेतों में छोटे-छोटे तालाब या बड़े गड्ढों में पानी रोकने से आस-पास की काफी दूर तक की ज़मीन में अंदर से पर्याप्त नमी आ जाता है जिससे खेतों में सिंचाई की कम जरूरत पड़ती है। इसी तरह रासायनिक खादों के प्रयोग अंधाधुंध तरीकों से किए गये, जिनका नतीजा आज किसान भुगत रहे हैं। शहरों के बीच कल-कारख़ानों, उद्योगों की स्थापना ने कुछ लोगों को भले रोज़गार दिया हो, मगर उस पूरे इलाके में लंबे समय के लिए स्वास्थ्य गत समस्याएं उत्पन्न कर दीं। लोगों के पास पीने के लिए स्वच्छ पानी तक नही बचा। सारा केमिकल का कचरा हमारी नदियों में बेतहाशा बहाया जा रहा है जिससे ज़मीन के ऊपर ही नीचे के पानी यानि भूजल में भी खनिज लवण व आर्सेनिक आदि बढ़ने से कैंसर जैसी बीमारियाँ आम होती जा रही है। इसके बदले ग्रामीण तौर-तरीकों से ही खेती में सिंचाई और खाद यदि उपलब्ध कराये जाए तो बचत के साथ-साथ भूमि की उर्वरता भी बढ़ेगी। सिंचाई और खाद में लगने वाले खर्च भी कम होंगे और ज़मीन में रासायनिक तत्वों का समावेश भी कम होगा।

डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. सिंचाई और खाद में लगने वाला खर्च ग्रामीण तौर-तरीकों को अपनाने से कैसे कम होगा?
लक्ष्मण सिंह.. खेतों में किसान छोटे-छोटे तालाबों का निर्माण करें। हालांकि प्रथम दृष्ट्या लगेगा कि इससे उतनी दूर की ज़मीन पर फसल न उगने से हानि हो रही है, लेकिन इसके निर्माण से पानी का प्राकृतिक स्रोत बना रहेगा और आस-पास की ज़मीन के अंदर नमी आने से सिंचाई में कम पानी और खपत होगी। इसी तरह पशुपालन करने से उनका मलमूत्र, रसोई का बेकार अन्न, आदि से भी खाद तैयार होगी। इसके अलावा बरगद के पेड़ के नीचे जहां तक उसकी छाया पड़े वहां तक एक घेरा बनाएं। उसी में वृक्ष की पत्तियां गिरेंगी, साथ ही उस वृक्ष पर बैठने वाले पक्षियों की बीट उसी घेरे में गिरेगी। केवल इसी तरह हर बरगद के नीचे छोड़ी गयी जगहों पर एकत्र मिट्टी और अवशेषों से जो खाद तैयार होगी उससे 10 एकड़ भूमि में उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है। इस तरह की तैयार खाद से केवल भूमि की रासायनिकता खत्म करेगी बल्कि उसकी प्राकृतिक शक्ति भी विकसित कर उत्पादकता बढ़ाएगी। और इसमें कोई खर्च भी नहीं है।

डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. आपको इस तरह के काम करने की प्रेरणा कहां से मिली?
लक्ष्मण सिंह.. मैंने अन्ना हजारे जी के गांव का भ्रमण किया था। वहां के बदलाव ने मुझे काफी प्रभावित किया। साथ ही मुझे जीवन में हमेशा अच्छे लोग मिलते गये, जिससे कुछ हटकर तथा समाज के लिए काम करने का हौसला बढ़ता गया।

डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी.. क्या आपके काम से दूसरों ने भी प्रेरणा ली है?
लक्ष्मण सिंह.. हां, हमने अपने गांव में जो सुधार के लिए काम किये। उससे आस-पास के गाँववालों ने भी सीख ली। इसके साथ ही हम भी अपने गांव से यात्रा जत्था निकालते हैं, जो गांव-गांव में जाकर कुछ दिन रुककर वहां के लोगों की समस्या सुलझाकर उन्हें विकास का मार्ग सुझाते हैं। शाम को उसी गांव के लोग यात्रा का स्वागत करने के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। अगले दिन यात्रा फिर आगे बढ़कर दूसरे गांव में चली जाती है।

डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. आपने अब तक कितने गाँवों के लिए काम किया है?
लक्ष्मण सिंह .. अब तक 50 गाँवों में 4000 तालाब बनवाए तथा 3000 हेक्टेयर भूमि में गोचर का निर्माण किया।

डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी.. आपकी उम्र भी कम थी तो कुछ कारण दिखाई दिया?
लक्ष्मण सिंह.. मैं भले ही कम उम्र का था लेकिन मेरा परिवार क्षेत्र में सम्मानित परिवार माना जाता है। मैं ठाकुर परिवार से हूं अतः इसका प्रभाव लोगों पर पड़ा तथा ग्रामीण भाई-बहनों ने तन-मन और धन से मेरा सहयोग किया।

डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. आपके इस अहिंसामूलक परियोजना से प्रभावित होकर किन-किन हस्तियों ने आपको संबल प्रदान किया है?
लक्ष्मण सिंह.. लापोड़िया में ऐसी बड़ी-बड़ी हस्तियां आकर 15-15 तथा 20-20 दिनों तक अध्ययन करती है तथा देश भर के विभिन्न अखबारों ने फीचर तथा समाचारों को प्रकाशित किया है। हां, मेरे यहां सुश्री सुनीता नारायण, अनुपम मिश्र, महाराजा जोधपुर तथा कई मंत्री आ चुके हैं।

डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. आप राजनीतिक रूप से किस पार्टी के नज़दीक पाते हैं?
लक्ष्मण सिंह .. यद्यपि मेरे पास हरेक दलों के नेता आते है वे मुझसे अपने साथ प्रचार के लिए कहते हैं, पर मैं कहता हूं भैया जनता का काम करो, तो जनता आपको ज़रूर मत देगी। यह लोकतंत्र है। लोकमत के द्वारा बहुत कुछ किया जा सकता है। जिसके कारण कई दलों के नेता मुझसे नाराज़ भी हो जाते हैं। लापोड़िया गांव पर कई डाक्यूमेंट्रियां भी बन चुकी है।

डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. क्या आपने किसी संस्था का रजिस्ट्रेशन भी करवाया है?
लक्ष्मण सिंह..हां, नवयुवक मंडल लापोड़िया का गठन 1986 में हुआ। प्रतिवर्ष लापोड़िया से यात्रा शुरू होती है। यात्रा में हम देव पूजन, भूमि पूजन तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। ग्राम पंचायत एक पेड़ के काटने पर 2 पेड़ लगाने की सजा देती है। इससे जनता में पेड़ काटने की अपेक्षा पेड़ लगाने के प्रति जागरूकता बढ़ी है।

डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. इस महान कार्य से प्रेरणा लेकर कुछ संस्थाओं ने आपको सम्मानित भी किया?
लक्ष्मण सिंह.. हां, पंचायत समिति तथा संभाग आयुक्त द्वारा राजस्थान सम्मान दो बार, 1991 में राष्ट्रीय युवा पुरस्कार, 2007 में माननीया राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल द्वारा सम्मान, 2007 में टीना अंबानी की संस्था द्वारा मुंबई हरमनी रजत पुरस्कार तथा 2008 में डालमिया ट्रस्ट द्वारा राज्य पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। इसके साथ ही अन्य छोटी-बड़ी संस्थाओं ने भी मुझे सम्मानित किया है।

डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी.. आपने अब तक लापोड़िया के प्रयोग को कहां-कहां शेयर किया है?
लक्ष्मण सिंह.. मैने अब तक गुजरात, पंजाब, हरियाणा और यूपी में दौरा किया है तथा किए गए प्रयोगों को साझा किया है। धीरे-धीरे देश में जनता मेरे प्रयोगों से प्रभावित हो रही है।

डॉ. मनोज चतुर्वेदी .. आपके आदर्श कौन है?
लक्ष्मण सिंह माननीय अनुपम मिश्र जी मेरे आदर्श है जिन्होंने लापोड़िया पर पुस्तक लिखी है। पुस्तक का नाम है- गोचर का प्रसाद बांटता लापोड़िया।

डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी.. वर्तमान राजनीति के संबंध में कुछ कहेंगे?
लक्ष्मण सिंह.. भारतीय सामाजिक समस्याओं का समाधान वर्तमान राजनीति द्वारा संभव नहीं है। वर्तमान समय में ग्रामीण विकास से संबंधित लोगों एवं संस्थाओं से मेरा संबंध है तथा उन्हीं से मेरी अपेक्षा भी है।

डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. भविष्य की कोई योजना?
लक्ष्मण सिंह .. लापोड़िया के प्रयोग को पूरे राजस्थान में फैलाना। एक लंबे संघर्ष के बाद भारत को स्वतंत्रता मिली पर महात्मा गांधी, डॉ.लोहिया, बाबासाहब अम्बेडकर और पं. दीनदयाल उपाध्याय जैसे नेताओं के स्थान पर जगह स्वार्थी नेताओं ने ले ली। देश में अकाल, बाढ़, भूखमरी तथा आत्महत्या की स्थिति है। हमारे नेता सफारी से घुमते है तथा फोन पर लाखों रूपये खर्च करते है।

डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी.. आपने अन्ना हजारे के प्रयोग को देखा। क्या कभी नानाजी देशमुख के प्रकल्प को देखने की ईच्छा हुई?
लक्ष्मण सिंह .. मैं चित्रकूट में नानाजी के परियोजना को देख चुका हूं। नानाजी के समान प्रोजेक्ट देश भर में शुरू होना चाहिए।

डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी.. राजस्थान में ही एक पानीबाबा उर्फ राजेन्द्र सिंह जी है। क्या उनको आपने देखा है?
लक्ष्मण सिंह .. राजेन्द्र सिंह उर्फ पानीबाबा मेरे रिश्तेदार हैं तथा मैं जल बिरादरी का सदस्य रह चुका हूं। लेकिन वर्तमान में मैं जल बिरादरी का सदस्य नहीं हूं।

डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. आपने अपना बहुमूल्य समय दिया। इसके लिये धन्यवाद!
लक्ष्मण सिंह.. धन्यवाद।

लेखक हिन्दुस्थान समाचार में कार्यकारी फीचर संपादक तथा स्वतंत्रता संग्राम और संघ पर डी.लिट् कर रहे हैं।
लेखिका, कहानीकार, कवयित्री, मनोवैज्ञानिक सलाहकार तथा संपादन से जुड़ी हैं।

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