लाख की खेती में अन्य फसलों की अपेक्षा बहुत ही दक्षता एवं समय की आवश्यकता नहीं होती है। इसकी खेती में बहुत ही आसान प्रक्रियाएँ सम्मिलित हैं। यदि लाख की खेती को वैज्ञानिक तरीके अपना कर किया जाये तो यह अधिक आय एवं रोजगार का स्रोत होगा जो कि ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के लिये पलायन की समस्या को कम करेगा। लाख पोषक वृक्ष जो कि बहुतायत में बंजर भूमि में उपलब्ध है या ऐसी भूमि पर पोषक वृक्षों को लगाया जा सकता है जो कि खेती के लिये अनुपयुक्त समझी जाती है लाख की खेती से प्राप्त आय किसानों द्वारा जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं एवं अन्य कृषि आगतों को खरीदने में प्रयोग किया जाता है।
लाख एक प्राकृतिक एवं अहानिकारक राल (रेजिन) है जो कि लाख कीट केरिया लैक्का (केर) का दैहिक स्राव है। लाख कीट विभिन्न प्रकार के लाख पोषक वृक्षोें की मुलायम टहनियों पर बैठते है व उनसे पोषण प्राप्त कर लाख का स्राव करते है। लाख पोषक वृक्षों में प्रमुख-पलास (ब्युटिया मोनोस्पर्मा), कुुसुम (श्लिचेरा) ओलिओसा, बेर (जिजिफस मौरिसियाना), बबूल (अकेशिया निलोटिका) व खैर (अकेशिया कैटेचु) है। लाख की महत्ता वैदिक काल से ही जानी जाती है और इस पर अथर्ववेद में एक सम्पूर्ण अध्याय भी है। काव्य 5, सूत्र 5 में लाख का वर्णन है। प्रकृति का यह बहुमूल्य उपहार पेड़ और कीट के अनोखे सम्बध का उदाहरण है और यह लाख उत्पादक क्षेत्रों के जनजातीय व सीमान्त किसानों के कृषि आय में लगभग 28 प्रतिशत योगदान देता है।लाख व्यावसायिक दृष्टिकोण से तीन महत्त्वपूर्ण उत्पादको का जनक है जो कि क्रमशः लाल रंग एवं मोम है। लाख रेजिन बाजार में व्यावसायिक रूप से चपड़ा, चौरी एवं बटन लाख के रूप में पाया जाता है लाख के मूल्य वर्धित उत्पादों में प्रमुखः ब्लीच, लाख, एल्यूरिटिक अम्ल व आइसोइम्ब्रेटेलाइट है। इसके बहुत सारे क्षेत्रों तथा वर्निश, पेन्ट, छापने की स्याही, औषधि, चमड़ा, विद्युत एवं ओटोमोबाइल उद्योगों व रक्षा, रेलवे एवं डाक विभागों में बहुआयामी प्रयोग है। लाख कीट के द्वारा उत्पन्न रंग वस्त्र एवं खाद्य उद्योगों में प्रयोग किया जाता है। लाख मोम का प्रयोग पॉलिस व सौन्दर्य उत्पादों में किया जाता है।
लाख कीट की दो प्रजातियाँ, जिन्हें रंगीनी एवं कुसमी के रूप में जाना जाता है। यह एक वर्ष में दो जीवन चक्र पूरा करती है ये प्रजातियाँ अपने जीवन चक्र एवं लाख पोषक वृक्षों की अभिरूचि के अनुसार भिन्न होती है। कुसमी लाख जो कि मुख्य रूप से कुसुम, बेर, गलवांग, भालिया और सेमिएलाटा पर पैदा की जाती हैं, से दो फसल अगहनी एवं जेठवी ली जाती है। अगहनी फसल की अवधि जून-जुलाई से जनवरी-फरवरी तक होती है जबकि जेठवी फसल का जीवनचक्र जनवरी-फरवरी से जून-जुलाई तक का होता है। इस प्रकार से अगहनी एवं जेठवी फसल दोनों की अवधि छः-छः महीने की होती है। रंगीनी प्रजाति मुख्य रूप से पलास एवं बेर पर ली जाती है जिसकी फसल बैसाखी एवं कतकी के नाम से जानी जाती है। बैसाखी फसल आठ महीने की होती है जो की अक्टूबर-नवम्बर में लगाई जाती है एवं जून-जुलाई में काटी जाती है जबकी कतकी सिर्फ चार महीने की फसल है। जिसकी अवधि जून-जुलाई से अक्टूबर-नवम्बर तक की होती है। रंगीनी लाख का उत्पादन कुसमी लाख की तुलना में लगभग तीन गुना ज्यादा है क्योंकि इसके लाख पोषक वृक्ष ज्यादा संख्या में उपलब्ध हैं।
भारत में लाख उत्पादन के दृष्टिकोण से पलास सबसे महत्त्वपूर्ण लाख पोषक वृक्ष है, किन्तु गुणवत्ता के हिसाब से इसका स्थान कुसुम एवं बेर के बाद आता है कुसुम पर उपजने वाला लाख गुणवत्ता के मामले में सर्वोतम माना जाता है। कुसुम पेड़ के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह जगंलों में बिखरा पड़ा है। पूरे देश में बेर एक महत्त्वपूर्ण लाख पोषक वृक्ष है जिस पर लाख की दोनों प्रजातियाँ उपजाई जाती है।
भारत वर्ष में लाख की खेती झारखण्ड, प. बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, महाराष्ट्र, व उत्तर प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, गुजरात एवं पुर्वोतर राज्यों के कुछ भागों में की जाती है। झारखण्ड देश का प्रमुख लाख उत्पादन राज्य है। लाख पोषक वृक्ष बंजर, सीमान्त एवं कम उत्पादकता वाली मिट्टी पर भी समायोजित हो जाते है। जहाँ की अन्य दुसरी फसल नहीं ली जा सकती है। अतः बड़े पैमाने पर अनुपयोगी जमीन पर लाख की खेती की जा सकती है। चूँकि आवश्यकता अधारित कृषि के अन्तर्गत कृषि वानिकी प्रणाली को लोकप्रियता हासिल हो रही है अतः ऐसी स्थिति में लाख की खेती को छोटे, सीमान्त एवं आदिवासी किसानों एवं उद्योगों के फायदे के लिये इस प्रणाली में समायोजित किया जा सकता है। जनजातीय अर्थव्यवस्था में लाख की खेती के पुनरुत्थान हेतु एक सामान्य तरीका है कि लाख को कृषि वानिकी प्रणाली के अन्तर्गत स्थानीय रूप से मुख्य फसलों के साथ लिया जाये।चूँकि लाख पोषक वृक्षों को उगाने एवं इसके पहले से ही मौजूद वृक्षों के लिये अधिक प्रबन्धन की जरूरत नहीं होती, अतः प्रति इकाई भूमि उत्पादकता एवं आय बढ़ाने हेतु लाख की खेती को कृषि एवं कृषि वानिकी प्रणाली के साथ आसानी से लिया जा सकता है ऐसी स्थिति में कृषि सम्भाव्य खतरे को भी कम किया जा सकता है। भरातीय लाख अनुसन्धान संस्थान, राँची में किये गए एक प्रयोग से पता चलता है कि वन-चरागाह प्रणाली के अन्तर्गत दीनानाथ घास को टेपिओका या हल्दी अथवा दोनों को पलास बगान के साथ अतः शस्य फसल के रूप में लिया जा सकता है जिससे की उत्पादकता एवं लाभ को लाख उत्पादन को प्रभावित किये बगैर बढ़ाया जा सकता है। इस प्रयोग से लाख की खेती से 20.000 रु. एवं अतः शस्यन प्रणाली से 14.000 रु प्रति हेक्टेयर की शुद्ध आमदनी प्राप्त होती है। कुसुम बगान में हल्दी एवं अदरक के अतःशस्यन के द्वारा न केवल अधिक आय प्राप्त की जा सकती है बल्कि लाख फसल की असफलता की भरपाई भी की जा सकती है। बेर जो कि एक महत्त्वपूर्ण लाख पोषक वृक्ष है की काँटेदार टहनियों को बाड़ बनाकर जानवरों इत्यादि से फसल बचाव के रूप में प्रयोग में लाया जा सकता है। लाख पोषक विभिन्न वृक्षों या पौधों को उसकी कटाई-छँटाई के उपरान्त जलावन की लकड़ी के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। साथ ही इसकी पत्तियों को जानवरों के चारे के रूप में उपयोग में लाया जा सकता है।
लाख उद्योगों से लाख को धोने के पश्चात जो अवशिष्ट (लैक मड) प्राप्त होता है उसे कार्बनिक खाद के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। इस कार्बनिक खाद में प्रचुर मात्रा में नाइट्रोजन, स्फूर, पोटाश एवं कार्बनिक कार्बन (नाइट्रोजन 2.77 प्रतिशत, स्फूर- 0.28 प्रतिशत, पोटाश-2.5 प्रतिशत, एवं कार्बनिक कार्बन-23 प्रतिशत) पाया जाता है व इसका पी.एच. मान 6.0 होता है। भारतीय लाख अनुसन्धान संस्थान में किये गए एक प्रयोग से पता चला है कि लैक मड को गोबर खाद की जगह सुरक्षित रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
लाख पोषक पौधों में से एक झाड़ीदार पौधा, भलिया में उचित मात्रा में पोषक तत्व नाइट्रोजन- 2.37 से 2.83 प्रतिशत, स्फूर- 0.19 से 0.25 प्रतिशत, पोटाश- 0.98 से 1.4 प्रतिशत पाये जाते हैं तथा यह पाया गया है कि प्रति हेक्टेयर 10,000 पौधों से औसतन 124 क्विंटल पत्तियों का शुष्क तत्व की फसल की कटाई से प्राप्त होता है। लाख की खेती को मौजूद लाख पोषक वृक्षों यथा पलास, बेेर एवं कुसुम में आसानी से अपनाया जा सकता है। इसके अलावा बागान आाधारित खेती के लिये लाख पोषक वृक्षों यथा भलिया, सेमिएलाटा व गलवांग (अल्बबीजीया ल्यूसिडा) को लिया जा सकता है। लाख की खेती में पुरुष एवं महिलाएँ दोनों की समान हिस्सेदारी हो सकती है। पेड़ों की काँट-छाँट बीहन लाख का पेड़ों पर बाँधना फसल काटना व दवा का छिड़काव इत्यादि पुरूषों के द्वारा किया जाता है जबकि लाख का चुनाव व बंडल बनाना, फून्की लाख को एकत्रित करना फसल कटाई के उपरान्त बीहन लाख को एकत्रित करना व लाख की डंडियों से लाख छीलना इत्यादि महिलाओं के द्वारा की जा सकती है। उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि वन उपज आधारित समुदाय विशेषतः गरीब आदिवासी एवं सीमान्त किसानों के लिये लाख बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। बहुत क्षेत्रों में जाविकोपार्जन के लिये लाख आय का मृख्य स्रोत है। लाख की खेती में अन्य फसलों की अपेक्षा बहुत ही दक्षता एवं समय की आवश्यकता नहीं होती है। इसकी खेती में बहुत ही आसान प्रक्रियाएँ सम्मिलित हैं। यदि लाख की खेती को वैज्ञानिक तरीके अपना कर किया जाये तो यह अधिक आय एवं रोजगार का स्रोत होगा जो कि ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के लिये पलायन की समस्या को कम करेगा।
लाख पोषक वृक्ष जो कि बहुतायत में बंजर भूमि में उपलब्ध है या ऐसी भूमि पर पोषक वृक्षों को लगाया जा सकता है जो कि खेती के लिये अनुपयुक्त समझी जाती है लाख की खेती से प्राप्त आय किसानों द्वारा जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं एवं अन्य कृषि आगतों को खरीदने में प्रयोग किया जाता है। अतः समय की यह माँग है कि लाख पोषक वृक्षों का लाख की खेती के लिये अधिकतम प्रयोग किया जाये।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में लाख की उपज बढ़ाने एवं इसकी निरन्तरा को बनाए रखने के लिये आवश्यक है कि-1. लाख की खेती में उन्नत एवं आधुनिक तरीका को अपनाया जाये।
2. लाख पोषक वृक्षों की लाख की खेती के लिये अधिक-से-अधिक प्रयोग किया जाये।
3. लाख की कीमत कम होने पर भी इसकी खेती की निरन्तरता को बनाया रखा जाये।
4. लाख उत्पादन की निरन्तरता को बनाए रखने के लिये बीहन लाख संरक्षक वृक्षों का संरक्षण किया जाये।
5. किसानों द्वारा कृषि फसलों के साथ लाख फसल की खेती को प्रोत्साहित किया जाये।
पठारी कृषि (बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की त्रैमासिक पत्रिका) जनवरी-दिसम्बर, 2009 (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।) | |
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2 | उर्वरकों की क्षमता बढ़ाने के उपाय (Measures to increase the efficiency of fertilizers) |
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4 | फसल उत्पादन के लिये पोटाश का महत्त्व (Importance of potash for crop production) |
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