नैनीताल विश्व के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है, जो नैनीझील और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए विख्यात है। पीटर बैरन ने वर्ष 1841 में नैनीझील की खोज की थी। अंग्रेजों ने यहां प्राकृतिक सौंदर्य को बनाए रखने का भरसक प्रयास किया। एक समय पर नैनीझील को इतना पवित्र माना जाता था कि सूरज ढलने के बाद कोई भी व्यक्ति यहां रुक नहीं सकता था। इसके लिए कई प्रकार के कठोर नियम भी बनाए गए थे, लेकिन दुनिया जैसे-जैसे आधुनिकता की तरफ बढ़ती गई, नैनीताल में आवाजाही बढ़ने लगी। नैनीझील ने बड़े पैमाने पर देश-विदेश के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित किया। जिससे नैनीताल एक विश्व विख्यात पर्यटन स्थल के रूप में तब्दील हो गया और अब हर साल लाखों की संख्या में पर्यटक नैनीताल आने लगे। कई बार सर्दियों में हालात इतने खराब हो जाते हैं, कि प्रशास को पर्यटकों के प्रवेश पर रोक लगानी पड़ती है। इन सबसे नैनीताल और आसपास के इलाकों के लोगों को रोजगार के अवसर मिले, लेकिन प्रकृति को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी।
बढ़ती आबादी के बोझ के कारण में वायु प्रदूषण बढ़ने लगा। अतिसंवेदनशील पहाड़ियों में कैरिंग कैपेसिटी से ज्यादा भवनों का निर्माण किया गया, जिसके लिए वनों सहित अन्य प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया गया। इससे नैनीताल का तापमान लगातार गर्म होने लगा और आज जिस नैनीताल में लोगों ने पंखे नहीं देखे थे, वहां घरों में एसी लगाए जाते हैं। इसके अलावा नैनीझील को जलापूर्ति करने वाले सैंकड़ों प्राकृतिक स्रोतों पर सड़क व भवन निर्माण कर उन्हें बंद कर दिया गया। झील को 50 प्रतिशत पानी देने वाला सूखाताल (wetland) भी अतिक्रमण की भेंट चढ़ गया। वहीं बड़ी मात्रा में कूड़ा डंप करने और विभिन्न माध्यमों से गाद भरने के कारण झील के नीचे मौजूद जलस्रोत भी लगभग समाप्त हो गए हैं। परिणामस्वरूप नैनीझील को पर्याप्त पानी मिलना बंद हो गया और झील लगातार सूखती जा रही है। वर्ष 2018 में तो झील का जल स्तर 18 फीट तक कम हो गया था। घरों और विभिन्न प्रतिष्ठानों से निकलने वाला सीवरेज भी नैनीझील को प्रदूषित कर रहा है। हालाकि नैनीताल में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट भी है, लेकिन मांग के अनुरूप उसकी क्षमता कम है। जिससे पानी पहले की अपेक्षा कम साफ दिखता है, लेकिन लाॅकडाउन के कारण नैनीझील 3 गुना तक साफ हो गई है।
नैनीताल में सैंकड़ों की संख्या में होटल हैं। कैरिंग कैपेसिटी से ज्यादा घर यहां बन चुके हैं। हजारों दुकाने हैं। सरकारी फाइलों में तो नैनीझील साफ है और सीवरेज इसमें नहीं गिरता है, लेकिन धरातल पर स्थिति बिल्कुल अलग है, जिसका प्रमाण लाॅकडाउन ने पेश किया है। लाॅकडाउन के कारण सभी प्रतिष्ठान, होटल पूरी तरह बंद है। पर्यटकों की आवाजाही पर भी पूरी तरह से रोक है। प्रसिद्ध पर्यावरणविद डाॅ. अजय रावत ने आजतक को बताया कि लाॅकडाउन ने नैनीझील पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। प्रदूषण के कारण जो फिश मूवमेंट 7 फीट तक ही दिखाई देता था, वो अब लगभग 25 फीट तक दिखाई दे रहा है। पानी फिजिकल, कैमिकल और बैक्टीरियल सहित विभिन्न पैमानों पर खरा भी उतरा है। स्थानीय निवासी मयंक मिश्रा ने बताया कि 20 साल में पहली बार नैनीझील को इतना साफ देखा है। नैनीताल में साफ पानी और शुद्ध हवा को देख कर लगा रहा है कि बचपन वाला नैनीताल फिर से वापिस आ गया। ये काफी सुखद है।
नैनीताल में नैनीझील को इतना साफ देखकर लोग काफी खुश है। सभी मान रहे हैं, नैनीताल के अस्तित्व को बचाने के लिए झील इसी प्रकार साफ रहनी चाहिए। साथ ही सरकार को झील को जल प्रदान करने वाले स्रोतों को भी पुनर्जीवित करने की जरूरत है। क्योंकि नैनीताल को पानी की सप्लाई नैनीझील से ही की जाती है, यदि झील नहीं रहेगी, तो सभी को बूंद बूंद पानी के लिए तरसना पड़ सकता है। इसके लिए सरकार को नैनीताल के प्राकृतिक परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए सतत विकास के माॅडल पर काम करना होगा, जिसमें प्रकृति के साथ तालमेल बैठाते हुए विकास की ओर बढ़ा जाए।
हिमांशु भट्ट (8057170025)
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