लाॅकडाउन 2ः मनरेगा में खेती-पानी के कार्यों में मिली ये छूट

लाॅकडाउन 2ः मनरेगा में खेती-पानी के कार्यों में मिली ये छूट
लाॅकडाउन 2ः मनरेगा में खेती-पानी के कार्यों में मिली ये छूट

कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए 22 मार्च को देशभर में जनता कर्फ्यू लगाया गया था, लेकिन इस महामारी से लोगों की सुरक्षा को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 21 दिनों के लाॅकडाउन की घोषणा कर दी और 14 अप्रैल तक के लिए देश में आवश्यक सेवाओं को छोड़कर सभी कुछ बंद हो गया। रेल, सड़क, हवाई सेवाओं पर रोक लगा दी गई। उन्हीं उद्योगों को खोलने की अनुमति मिली जहां सेनिटाइजर या दवाईयां बनती हैं। कृषि क्षेत्र भी पूरी तरह से बंद हो गया। तो वहीं निर्माण कार्य भी लाॅकडाउन के कारण बंद हो गया। मनरेगा के कार्यो पर भी इसका समान प्रभाव पड़ा। रोजी-रोटी पर संकट मंडराता देख करोड़ों की संख्या में प्रवासी मजूदर अपने गांवों की तरफ लौटने लगे, दिल्ली में जुटी भीड़ जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। लेकिन जैसे-तैसे गांव लौटने के बाद भी इनके पास रोजगार का कोई माध्यम नहीं था। हालाकि रहने के लिए अपना घर और परिवार है, जिनके साथ विपदा की इस घड़ी में रहकर उन्हें काफी सुकून मिल रहा है। शासन-प्रशासन और समाजसेवियों द्वारा हर जरूरतमंदों तक हर संभव सहायता देश के विभिन्न स्थानों में पहुंचाई जा रही है, जिस कारण इन लोगों ने जैसे-तैसे 21 दिनों के लाॅकडाउन में अपना गुजर-बसर किया, लेकिन लाॅकडाउन-2 की घोषणा होते ही मजूदरों के सर्ब का बांध टूट गया और रोजगार का अभाव तथा पेट की भूख इन्हें सड़कों तक खींच लाई। 

सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए लाॅकडाउन 3 मई तक बढ़ा दिया है, लेकिन इसमें कई मामलों में जनता को 20 अप्रैल के बाद राहत भी दी जाएगी। लाॅकडाउन के दौरान रोजगार खोने से कष्ट झेल रहे मजदूरों के हितों का भी सरकार ने ध्यान रखा है और 20 अप्रैल के बाद से मनरेगा के कार्यों में छूट दी गई है, जिससे देश के करीब 5 करोड़ मजदूरों को राहत मिलने की संभावना है। हालाकि कई सख्त नियमों के अंतर्गत ही छूट दी गई है, जिसमें सभी को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन तो करना ही होगा, साथ ही चेहरे पर मास्क पहनना भी अनिवार्य है। मनरेगा में केवल खेती और पानी से जुड़े कामकाज को ही प्राथमिकता दी जाएगी। यानी खेती और पानी से जुड़ी केंद्र व राज्य सरकार की योजनाओं में काम किया जा सकता है, लेकिन यहां भी ऐसे ही कार्यों को किया जा सकेगा, जिसमें 3-4 से अधिक लोगों के रोजगार की आवश्यकता नहीं होती है। इन कार्यों में तालाबों या जानवरों के आश्रय निर्माण संबंधी, कुओं और कुंड़ों की खुदाई, पेड़ या बागवानी जैसी गतिविधियां शामिल हो सकती हैं। 

क्या वास्तव में मनेरगा से मिलेगी राहत ?

महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम साल में 100 दिन के रोजगार की गारंटी दी जाती है। मनेरगा के अंतर्गत देश भर में पंजीकृत मजदूरों की संख्या करीब 277.9 मिलियन है, जिनमें से 12 करोड़ 84 लाख 33 हजार एक्टिव मजूदर हैं, यानी जिन्हें कार्य मिल रहा है या जो काम कर रहे हैं। लाॅकडाउन के दौरान मनरेगा में कार्यों में से भले ही सरकार ने मजदूरों को राहत देने का काम किया है, जो काबिले-तारीफ है, लेकिन सवाल ये खड़ा होता है कि क्या हर मजदूर, जो इस वक्त अपने परिवार का पेट पालने हेतु दो जून की रोटी के लिए तरस रहा है, क्या इससे लाभांवित होगा ? भले ही मनरेगा के अंतर्गत पंजीकृत और एक्टिव मजदूरों की संख्या में एक बहुत बड़ा अंतर है, लेकिन इस वक्त लगभग उन सभी को रोजगार की जरूरत है, जो अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत हैं। बेशक, सरकार का उद्देश्य इन सभी को रोजगार देना है, लेकिन जिन नियमों को सरकार ने लाॅकडाउन के दौरान बनाया है, उससे फिलहाल तो ये संभव नहीं लग रहा है। यदि सरकार सभी को रोजगार देने की सोचे भी तो, उन स्थानों में हर व्यक्ति को हर दिन रोजगार कैसे दिया जाएगा, जहां मजदूरों की संख्या काफी ज्यादा है ? ऐसे में सरकार को मजदूरों के रोजगार के अन्य विकल्पों की इस दौरान तलाश करने की आवश्यकता है। 


हिमांशु भट्ट (8057170025)

 

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Post By: Shivendra
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