कीटनाशकों का बढ़ता उपयोग और उनके अवशेषों की खाद्य पदार्थों में उपस्थिति आज सार्वजनिक चिन्ता का विषय बना हुआ है। कीटनाशक हमारे जीवन में अहम भूमिका निभाते हैं। इनका प्रयोग न केवल हमारी फसलों को कीटों से बचाकर उनके उत्पाद को बढ़ाने के लिए तथा मानव के स्वास्थ्य को प्रभावित कर क्षति पहुंचाने वाले कीटों को नष्ट करने के लिए भी किया जाता है। आज लगभग 1055 से भी अधिक सक्रिय कीटनाशक पूरे संसार में पंजीकृत हैं जिनसे लगभग हज़ारों की संख्या में कीटनाशक उत्पाद उत्पादित किये जा रहे हैं आज ये उत्पाद विभिन्न बाजारों में उपलब्ध हैं।
भोजन मानव की बुनियादी आवश्यकता है। बढ़ती जनसंख्या तथा कृषि के लिए कम होती भूमि दुनिया के लिए एक गंभीर समस्या बन चुकी है इसलिए कृषि उत्पादों को बढ़ाने तथा कृषि उत्पादन को नष्ट करने वाले कीड़े, कवक और अन्य हानिकारक कीटों को नियंत्रित करने के लिए इन रसायनों का कीटनाशकों के रूप में प्रयोग किया जाता है। हम खाद्य पदार्थों का सेवन अपने शरीर को पोषण देने के लिए करते हैं। पोषण युक्त भोजन की शुद्धता शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए आवश्यक है और यह हमारे शरीर को बीमारियों से लड़ने की क्षमता प्रदान करती है। जब इन कीटनाशकों का अनुचित तरीके से प्रयोग किया जाता है तो परिणामस्वरूप उनके अवशेष खाद्य कड़ी श्रृंखला में मिलकर उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। यदि ये कीटनाशक खाद्य पदार्थों में उपस्थित हो तो वे हमारे शारीरिक एवं मानसिक विकास की दर को कम कर सकते हैं।
कुछ शोधों से यह भी ज्ञात हुआ है कि कीटनाशकों के उपयोग के बिना फलों, सब्जियों और अनाजों के उत्पादन में कोटों द्वारा होने वाली हानि क्रमश: 72 प्रतिशत 58 प्रतिशत और 32 प्रतिशत तक पहुंच सकती है।
कीटनाशकों के उपयोग से प्रतिवर्ष 55 प्रतिशत से 42 प्रतिशत फसले कोटों से बचाई जा सकती हैं, परन्तु कीटनाशकों और उनके अवक्रमित उत्पाद पर्यावरण में उपस्थित होने के कारण विषैले रसायनों का संचय खाद्य श्रृंखला में करते हैं और यह संचय मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। कीटनाशक कृत्रिम रूप से संश्लेषित रसायनों का समूह है जिनका आविष्कार कीटों को मारने या नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। कीटनाशक शक्तिशाली रसायन होते हैं जिनका पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है चाहे वह सकारात्मक रूप में हो या नकारात्मक रूप में
कीटनाशकों के प्रकार
कीटनाशकों को अकार्बनिक, कृत्रिम और जैविक रूपों में वर्गीकृत किया जा सकता है। जैव कीटनाशकों के अंतर्गत सूक्ष्मजैविक कीटनाशकों और जैव रासायनिक कीटनाशकों को शामिल किया गया है। कृत्रिम कीटनाशक वनस्पतियों द्वारा तैयार किये जाते हैं। जैसे पायरेब्रॉइड्स, रोटीनोनॉयड्स, निकॉटिनॉयड्स, स्किलोसाइट्स कीटनाशकों को निम्नलिखित मापदंडों के अनुसार विभाजित किया जा सकता है:
उत्पत्ति के आधार पर (Origin)
लक्ष्य जीवों के आधार पर (Target Organisms); प्रविष्टि के आधार [पर] (Mode of Entry): क्रिया-विधि के आधार पर (Mode of Action); मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव के आधार पर (Effects on Human Health) व रासायनिक संरचना के आधार पर (Chemical Structure )
उत्पत्ति के आधार पर
उत्पत्ति के अनुसार कीटनाशकों को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है कार्बनिक और अकार्बनिक जैविक कीटनाशक कार्बनिक होते हैं जबकि अकार्बनिक कीटनाशक कार्बोनेट्स व साइनाइइस के रूप में पाए जाते हैं
लक्ष्य जीवों के आधार पर
अधिकांश कीटनाशकों को उनके लक्ष्य जीवों को क्षति पहुंचाने के आधार पर विभाजित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए कीड़ों को मारने या रोकने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है। खेती में खरपतवार को रोकने के लिए खरपतवार नाशक (Weedicides) का प्रयोग किया जाता है तथा कवकों की नियंत्रित करने के लिए भी कवकनाशियों का प्रयोग किया जाता है। फसलों को कुतरकर नुकसान पहुंचाने वाले जानवरों से बचाने के लिए रोडटीसाइड्स का तथा दीमक से बचाने के लिए मिटिसाइड्स का प्रयोग किया जाता है।
प्रविष्टि के आधार पर
प्रविष्टि के आधार पर कीटनाशकों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है
(1) पाचनतंत्र के माध्यम से ऐसे कीटनाशक जिनका प्रवेश खाद्य पदार्थों द्वारा पाचनतंत्र में होता है
(2) त्वचा के माध्यम से ऐसे कीटनाशक जो कि त्वचा के सम्पर्क में आने से मानव शरीर में प्रवेश करते हैं। तथा
(3) वॉस के माध्यम से (Fumigants) ऐसे कीटनाशक जो कि श्वास के माध्यम से मानव शरीर में प्रवेश करते हैं।
क्रियाविधि के आधार पर ये मुख्यतः चार प्रकार से मानव शरीर पर प्रभाव डालते हैं
(1) भीतिक विष के रूप में (Physical Poison);
(2) प्रोटोप्लाज्मिक विष के रूप में (Protoplasmic Poison)
(3) श्वसन विष के रूप में (Respiratory Poison) व
4) तंत्रिका विप के रूप में (Nerve Poison) |
मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव के आधार पर
कीटनाशकों का मानव स्वास्थ्य पर निम्नलिखित तीन प्रकार से प्रभाव पड़ता है
(1) त्वरित विषाक्तता (तीव्र और कम समय में प्रभाव डालते हैं)
(2) दीर्घकालीन विषाक्तता (लम्बे समय तक कीटनाशकों के सम्पर्क में रहने पर) व
(3) भोजन में कीटनाशक अवशेषों के प्रभाव से
रासायनिक प्रकृति के आधार पर
इन रासायनिक कीटनाशकों को निम्नलिखित समूह के आधार पर विभाजित किया जा सकता है
(1) ऑर्गेनोक्लोरीन कीटनाशक
(2) ऑर्गेनोफॉस्फेट कीटनाशक
(3) कार्बोनेट कीटनाशक
(4) सिन्थेटिक पायरेथ्रॉइड्स नामक कीटनाशक
ऑगेनोक्लोरीन
इन कीटनाशकों का प्रयोग लगभग 19280 से कृषि, वानिकी (Forestry) तथा कीटों से मानव की रक्षा करने के लिए बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। ऑर्गेनोक्लोरीन कीटनाशक अपनी प्रकृति के अनुसार अधिक समय तक पर्यावरण में विद्यमान रहते हैं। ये कीटनाशक पर्यावरण में लगभग 30 से 40 वर्षों तक विद्यमान बने रहते हैं। इसी कारण इन कीटनाशकों के अवशेष खाद्य पदार्थो में मिलकर हमारी खाद्य श्रृंखला में सम्मिलित हो जाते हैं और मानव स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव डालते हैं। इसीलिए गत वर्षों में इनके प्रयोगों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। उदाहरण के लिए एल्ड्रिन, डी.डी.टी., एण्डोसल्फॉन, इकोफॉक्सर आदि।
ऑर्गेनोफॉस्फेट
कृषि क्षेत्र में ऑर्गेनोफॉस्फेट का प्रयोग लगभग 1932 से हो रहा है। यह अधिक शक्तिशाली कीटनाशकों का समूह है। ऑर्गेनोफॉस्फेट प्रणालीगत होते हैं (अर्थात् ये कीटनाशक पौधों के ऊतकों द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं) और बैक्टीरिया, कवक और परजीवी को नष्ट कर देते हैं ये कीटनाशक खाद्य शृंखला में सम्मिलित होकर हमारे शरीर में पहुंच जाते हैं और एसिटिलकोलीन (Acetylcholine ) को नियंत्रित करने वाले एन्जाइम्स को वाषित कर देते है जिसके कारण तरिका तंत्र प्रभावित हो जाता है। कुछ ऑर्गेनोफॉस्फेट अत्यधिक विषैले होते हैं। इसी कारण इनका उपयोग दूसरे विश्व युद्ध में किया गया था ये कीटनाशक पर्यावरण में अधिक समय तक विद्यमान नहीं रहते हैं अर्थात् विघटित हो जाते हैं। इसी कारण वर्तमान समय में इन कीटनाशकों का प्रयोग अत्यधिक किया जा रहा है। इसके फलस्वरूप, ऑर्गेनोफॉस्फेट कीटनाशकों ने ऑर्गेनोक्लोरीन कीटनाशकों को प्रतिस्थापित कर अपना स्थान सुनिश्चित कर लिया है। उदाहरण के लिए मैलाथियोन, क्लोरपायरीफॉस, एथियॉन, पैराथियॉन, आदि ।
कार्बामेट
कार्बामेट कीटनाशकों का उपयोग लगभग 1950 से कृषि तथा वन संरक्षण के लिए किया जा रहा है। इनका प्रयोग फसल को कीटों और कीड़ों से बचाने के लिए किया जाता है। ये कीटनाशक भी ओर्गनोफॉस्फेटे की तरह मानव शरीर में प्रवेश कर एसिटिलकोलीन (Acetylcholine) को नियंत्रित करने वाले एन्जाइम को बाधित करके तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करते हैं। परन्तु इनका प्रभाव उत्क्रमणीय (Reversible) होता है। उदाहरण के लिए कार्बोफ्यूरॉन, एल्डिकार्य, थायोकायमेिट इथाइल तथा मिथाइल कायमेट आदि।
सिंथैटिक पाइरेथ्रॉइड
इन कीटनाशकों का प्रयोग लगभग 1970 से कृषि, वानिकी तथा जल में उपस्थित फीटों को नष्ट करने के लिए किया जा रहा है। इन कीटनाशकों को विशेष प्रकार के पौधों के प्राकृतिक स्रोत पाइरेथ्रम (Pyrethrum) से प्राप्त किया जाता है किन्तु इनकी संरचना के अनुरूप रसायनों द्वारा संश्लेषित कर पाइरेथ्रॉइड कीटनाशक भी बनाए गए हैं। ये कीटनाशक अधिक ताप और ऊष्मीय अवस्था में भी वातावरण में स्थिर बने रहते हैं और इनमें कीटों को नष्ट करने की क्षमता ऑर्गेनोफॉस्फेट तथा कार्बामेट से 10 गुना अधिक होती है ये कीटनाशक भी तंत्रिका तंत्र को विषाक्त कर प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए साइपरमेथिन, वाइफेन्थिन, फेनप्रोपेथिन, साइफ्लूविन एलेखिन व फेनवेलरेट आदि।
सर्वविदित है कि कीटनाशक ऐसे विषैले रसायन होते हैं जिनका प्रयोग मात्र एक वार करने पर ही वे अधिक समय तक पर्यावरण में विद्यमान रहते हैं। कीट व कीड़े-मकोड़े हमारे कृषि उत्पादों को क्षति पहुंचाते हैं और इन कीटों से फसलों को सुरक्षित रखने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है। कुछ कीट हमारी फसलों को खाते हैं तो कुछ अन्य मांसाहारी कीटों का आहार बन जाते हैं और इसी प्रकार यह क्रम चलता रहता है, जिसके कारण प्रकृति का संतुलन बना रहता है। कीटनाशक इन कीटों में मतभेद नहीं करते और हमारे मित्र कीटों तथा मिट्टी में रहने वाले सूक्ष्म जैविक और स्थूल जीवों को क्षति पहुंचाकर उन्हें स्वतः नष्ट कर देते हैं। इसके फलस्वरूप, जो कीट बच जाते हैं वे अपने अन्दर ऐसी प्रतिरोधक शक्ति विकसित कर लेते हैं जो उन्हें कीटनाशकों के प्रभाव से बचाती है। इसलिए इन कीटों को नष्ट करने के उद्देश्य से अधिक कीटनाशकों का प्रयोग अधिक मात्रा में करना पड़ता है। और यह चक्र इसी प्रकार चलता रहता है। इस चक्र के परिणामस्वरूप हमारे खाद्य पदार्थों में इन कीटनाशकों की मात्रा बढ़ती जा रही है और इसी कारण मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
'अमरीका में हुए कुछ अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि 1990 के दशक में इस देश की नदियों का विश्लेषण करने पर लगभग 20 प्रतिशत से अधिक जल तथा उसमें रहने वाली मछलियों में एक या एक से अधिक कीटनाशक उपस्थित हैं। अमरीकी भू-वैज्ञानिकों द्वारा किए गए इस अध्ययन ने यह सिद्ध कर दिया कि वहां की 90 प्रतिशत से अधिक नदियां, तालाब, कुएं और पोखर कीटनाशकों से प्रदूषित हैं तथा कीटनाशकों के अवशेष वर्षा और भूजल में भी उपस्थित हैं।'
कीटनाशकों का पर्यावरण पर प्रभाव
कीटनाशकों के उपयोग से मिट्टी (मृदा, जल और अन्य उपयोगी वनस्पतियां दूषित हो रही है। कीड़ों एवं खरपतवारों को नष्ट करने वाले कीटनाशक पक्षियों, सामप्रद कीड़ों, अन्य पौधों तथा जीवों को भी विषाक्त कर नष्ट कर सकते हैं।कीड़ों को नष्ट करने वाले कीटनाशक (Insecti cides) सबसे अधिक तीव्रता से विषाक्त करने वाले वर्ग हैं परन्तु शाकनाशी तथा खरपतवारनाशक (Weedicides or Herbicides) भी अन्य जीवों को क्षति पहुंचाकर नष्ट कर सकते हैं।
जल प्रदूषण
पौधों और मिट्टी में प्रयोग किए गए कीटनाशकों के छिड़काव के बाद, जब वर्षा ऋतु आती है तब ये कीटनाशक वर्षा जल में मिलकर, नदियों, तालाबों तथा पोखरों में पहुंच जाते हैं। कीटनाशकों द्वारा जल का व्यापक रूप में प्रदूषण होता है।
अमरीका में हुए कुछ अध्ययनों से ज्ञात हुआ। कि 1990 के दशक में इस देश की नदियों का विश्लेषण करने पर लगभग 20 प्रतिशत से अधिक जल तथा उसमें रहने वाली मछलियों में एक या एक से अधिक कीटनाशक उपस्थित है। अमरीकी भू-वैज्ञानिकों द्वारा किए गए इस अध्ययन ने यह सिद्ध कर दिया कि वहां की 90 प्रतिशत से अधिक नदियां, तालाब, कुएं और पोखर कीटनाशकों से प्रदूषित हैं तथा कीटनाशकों के अवशेष वर्षा और भूजल में भी उपस्थित है।ब्रिटिश सरकार द्वारा कराए गए एक अध्ययन से यह सिद्ध हुआ है कि नदियों के जल और भू-जल में उपस्थित कीटनाशकों की मात्रा स्वीकार्य स्तर से अधिक थी।
मृदा प्रदूषण
कीटनाशकों की विभिन्न विशेषताएं हैं जो यह निर्धारित करती हैं कि कीटनाशक मृदा में किस प्रकार कार्य करेंगे कीटनाशकों की मृदा में उपस्थिति एक निश्चित समय के लिए होती है उस समय के उपरान्त उनको क्षमता आधी रह जाती है और इस तरह वे धीरे-धीरे स्वतः सूक्ष्मजीवों द्वारा विगठित हो जाते हैं। कुछ हानिकारक कीटनाशकों के कारण सूक्ष्मजीव नष्ट होते जा रहे हैं, जिसके कारण उनकी संख्या में कमी आई है। यही कारण है कि वे कीटनाशक अधिक समय तक मृदा में ही पड़े रहते हैं, जिसके फलस्वरूप मृदा को लाभ पहुंचाने वाले सूक्ष्मजीव, केंचुए, कीट-पतंगे, पर्यावरणीय नाइट्रोजन को नाइट्रेट में परिवर्तित करने वाले बैक्टीरिया भी नष्ट हो रहे हैं। इसी कारण मृदा में नाइट्रोजन के स्तर में निरन्तर कमी आने से कृषि उत्पादों में भी कमी आ रही है। इस कमी को पूरा करने के लिए हमें नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों का प्रयोग अधिक मात्रा में करना पड़ता है।
वायु प्रदूषण
छिड़काव करने के बाद कीटनाशक वाणित हो जाते हैं या वायु में वह जाते हैं और उसे प्रदूषित करते है। छिड़काव के बाद 2-25 प्रतिशत रसायन वाष्पित होने के बाद अधिक समय तक वायु में उपस्थित रहते हैं जो श्वास द्वारा हमारे श्वसन तंत्र में पहुंच कर हमें क्षति पहुंचाते हैं। इस क्षेत्र में अभी कीटनाशकों का शोध अध्ययन सीमित है। इस विषय पर और भी शोध अध्ययन करने की आवश्यकता है क्योंकि कुछ शोधों से यह ज्ञात हुआ है कि कीटनाशकों के अवशेष वायु में उपस्थित रहते हैं जो कि वर्षों के दिनों में वर्षा जल के साथ ठंड के दिनों में कोहरे तथा बर्फ के साथ मृदा और भू-जल में प्रवेश करते हैं और उन्हीं के माध्यम से पुनः हमारी खाद्य श्रृंखला में सम्मिलित हो जाते हैं।
कीटनाशकों का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव
कुछ शोध यह दर्शाते हैं कि कृषि में उपयोग होने वाले कीटनाशकों का केवल 1 प्रतिशत ही लक्ष्य तक पहुंचता है जबकि शेष पर्यावरण के विभिन्न घटकों को दूषित करता है तथा खाद्य श्रृंखला में सम्मिलित होकर हानिकारक स्तर तक पहुंच जाता है। खाद्य श्रृंखला की श्रेणी में मानव उच्च पोषण स्तर पर विद्यमान है इसलिए बायोएक्युमिलेशन तथा बायोमैग्निफिकेशन की प्रक्रिया के कारण मानव कीटनाशकों द्वारा अत्यधिक प्रभावित होते हैं।
कुछ कीटनाशक जल अविलेय होते हैं जिस कारण वे मानव तथा अन्य जीवों के वसा युक्त ऊतकों में एकत्रित हो जाते हैं और समय के साथ-साथ इनके स्तर में बायोएक्युम्युलेशन की प्रक्रिया द्वारा वृद्धि होती रहती है। केवल बायोएक्युम्युलेशन और बायोमैग्निफिकेशन की प्रक्रिया ही नहीं परन्तु सहकियाशील प्रभाव (Synergistic Effect) के कारण भी मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाला प्रतिकुल प्रभाव बढ़ जाता है। जिसका तात्पर्य यह है कि कीटनाशक पर्यावरण में उपस्थित अन्य रसायनों के साथ मिलकर कई गुना अधिक हानिकारक बनकर मानव स्वास्थ्य को क्षति पहुँचाते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Orga nization, WHO) ने यह प्रमाणित किया है कि वर्ष में लगभग 3 मिलियन ( 30 लाख) मानव कीटनाशक के उपयोग द्वारा प्रभावित होते हैं।
कुछ कीटनाशक अंतःस्रावी प्रतिरोधक होते हैं जो मानव शरीर में उपस्थित प्राकृतिक हॉर्मोन्स को प्रभावित करते हैं अधिक समय तक कम मात्रा में कीटनाशकों का मानव द्वारा सेवन उनके प्रतिरक्षा तंत्र को प्रभावित करता है। इसके साथ ही ये कीटनाशक मानव हॉर्मोन्स, बुद्धि विकास तथा प्रजनन दर को भी कम कर देते हैं। इसके अतिरिक्त कैंसर जैसी घातक बीमारियों को भी उत्पन्न कर देते हैं। कुछ कम समय तक तीव्रता से प्रभावित करने वाले कीटनाशक, मानव में सर्दी, जुकाम, माइग्रेन और त्वचा रोग जैसी सामान्य बीमारियों को जन्म देते हैं।
उपाय एवं सुझाव
किसानों को अपनी फसलों के लिए उचित कीटनाशकों का चयन करना चाहिए क्योंकि भिन्न-भिन्न फसलों के लिए भिन्न-भिन्न कीटनाशक चिन्हित किये गये हैं।
- कीटनाशकों की उचित मात्रा/हेक्टेयर का ज्ञान किसानों को अवश्य होना चाहिए।
- सरकार को समय-सयम पर गांव व कस्बों में विभिन्न कार्यक्रम चलाकर, शिविर लगाकर तथा संगोष्ठी के माध्यम से किसानों को कीटनाशकों तथा उनके प्रयोग करने की उचित विधि का वर्णन करने के लिए कीट विशेषज्ञों की सहायता लेनी चाहिए।
- बिक्री हो रहे कीटनाशकों के डिब्बे तथा पैकेटों के ऊपर उनके प्रयोग करने की विधि साफ-साफ, वहां की स्थानीय भाषा में लिखी होनी अति आवश्यक है।
- कीटनाशकों के डिब्बों पर यह भी लिखा होना चाहिए कि किस प्रकार के कीटों के लिए के कीटनाशक बनाए गए हैं।
- किसानों को बहु फसलीय तकनीकी का प्रयोग कम से कम करना चाहिए। इससे फसलों का उत्पादन कम होता है, साथ ही कीटनाशकों का चयन भी ठीक से नहीं हो पाता है कि किस प्रकार की फसलों में कौन से कीटनाशकों का छिड़काव किया जाए। हाल ही में हुए शोधों से यह ज्ञात हुआ है कि कीटनाशकों के अवशेष सब्जियों, फलों और अनाओं में पाए जाते हैं।
- घरों में प्रयोग होने वाले फलों तथा सलादों को अच्छी तरह से साफ जल से धोएं तथा गुनगुने जल में 10 से 15 मिनट के लिए काटकर छोड़ दें फिर उसका सेवन करें। ऐसा करने से इनकी सतह पर लगे कीटनाशकों का अधिकतर प्रतिशत निकल जाता है।
- सब्जियों को काट कर जल में 10-15 मिनट के लिए छोड़ देने से उनकी सतह पर लगे कीटनाशकों का भी प्रतिशत काफी कम हो जाता है जो कि पकाने के उपरान्त वाष्पिकृत होकर निकल जाता है।
- किसानों को कीटनाशकों का छिड़काव करने के दौरान अपने आप को सुरक्षित रखने के लिए पूरे कपड़े पहनकर व हाथों में प्लास्टिक के दस्ताने पहनकर आंखों पर चश्मा लगाकर तथा मुंह को कपड़े से बाधकर छिड़काव करना चाहिए।
- कीटनाशकों का छिड़काव करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि कहीं छिड़काव वायु की उल्टी गति में तो नहीं किया जा रहा जब वायु की गति बन्द हो या धीरे हो उसी समय छिड़काव करें।
अन्त में सुझाव यही है कि हम सब इन्टीग्रेटिड पेस्ट मैनेजमेन्ट को अपनाएं कीटों को व्यवस्थित करने के लिए इन्टीमेटिड पेस्ट मैनेजमेन्ट प्रभावशाली तथा पर्यावरण संवेदनशील प्रयास है। इस कार्यक्रम में कीटों के जीवन चक्र तथा उन पर पर्यावरण के पड़ते प्रभाव की जानकारी द्वारा कोटों को नियंत्रित किया जाता है। यह आर्थिक तरीका है जिससे मानव और पर्यावरण कम से कम प्रभावित होते हैं। इन सुझावों से कीटनाशकों के ही रहे अत्यधिक प्रयोग तथा इनके दुष्प्रभाव से काफी हद तक पर्यावरण तथा मानव स्वास्थ्य को बचाया जा सकता है
संपर्क सूत्र
सुश्री स्वाती सचदेव, श्री आशुतोष कुमार श्रीवास्तव, श्री सत्यजीत राय, सुश्री सपना यादव और डा. लक्ष्मण प्रसाद श्रीवास्तव, कीटनाशक विश्व विज्ञान प्रयोगशाला, सीएसआईआर- भारतीय विपविज्ञान अनुसंधान संस्थान, महात्मा गांधी मार्ग, पोस्ट बाक्स 80 लखनऊ-226001, (उ.प्र.)
स्रोत :- विज्ञान प्रगति मई 2014
/articles/kitanashak-paryavaran-par-dabaav-tatha-janmanas-par-dushprabhav