खूब बरसीं बरखा रानी, फिर भी न भरे तालाब

बुंदेलखण्ड
बुंदेलखण्ड

अंबरीश कुमार / जनसत्ता
बुंदेलखण्ड में खूब पानी बरसने के बाद भी चंदेलकालीन तालाब प्यासे रह गए। सालों से पहाड़ी में हो रहे विस्फोटों के चलते बुंदेलखण्ड के इस अंचल में अब मानसून टूट रहा है। गंधी कीड़ा आ चुका है जो मानसून की विदाई का सूचक माना जाता है। समूचे बुंदेलखण्ड में दो सौ से तीन सौ गुना बारिश हुई है पर महोबा में कुल 417 मिलीमीटर बारिश रिकॉर्ड की गई है। पिछले साल भीषण अकाल के दौर में यह आंकड़ा 211 का था।

गुरूवार की सूचना के मुताबिक महोबा शहर के बीच बसे ऐतिहासिक मदनसागर में घुटने भर भी पानी नहीं है। यही हाल कीरतसागर का है। विजय सागर में चार फीसद पानी तो रैपुरा सागर में 12 फीसद और बेलासागर में 25 फीसद, कल्याण सागर में पानी का स्तर 30 फीसद था। जबकि थोड़ी दूर के तालाब बिसरापुरा में 49 फीसद और कमालपुरा में 50 फीसद पानी भर पाया है। बांधों का हाल भी अलग नहीं है। अर्जुन बांध में 172 मीटर पानी था तो चंद्रावल में 148 मीटर, कबरई बांध में 150, उर्मिल में 235, मझगवां बांध में 221 मीटर पानी है। सिंचाई विभाग के अधिषासी अभियंता संदीप गुप्ता ने कहा, ' तालाब और बांधों में पानी का यह स्तर काफी नीचे है।'

महोबा और आसपास के इलाके में पिछले दस साल से लगातार अवैध खनन हो रहा है। रोज दस क्विंटल से ज्यादा विस्फोटकों का इस्तेमाल वैध-अवैध खनन हो रहा है। महोबा से जनसत्ता प्रतिनिधि हरिष्चंद्र के मुताबिक कबरई, कुलपहाड़, कम्हौरा, अलीपुरा जैसे इलाकों में खनन का काम बुरी तरह हो रहा है। विस्फोस्टकों के चलते इन क्षेत्रों में असमान में धुंध की परत हमेशा जमी रहती है। पेड़ों के पत्ते सफेद चादर ओढ़ चुके हैं। जहां सांस लेना मुश्किल है, वहीं गांव वाले ब्लास्टिंग को रोकने के लिए आए दिन प्रशासन से गुहार लगाते नजर आते हैं।

हाल ही में कलेक्टर विजय विश्वास पंत ने कबरई में दौरा करके तीन क्रेशर बंद करा दिए। हाल ही में कबरई ब्लाक के खरका गांव के जिया लाल कहार, बिंदादीन कोरी, महिपाल और बत्री धोबी ने कलेक्टर के यहां जाकर कहा कि विस्फोटकों से पहाड़ के पास बने हनुमान मंदिर को नुकसान पहुंचा है। एक तरफ मंदिर क्षतिग्रस्त हो रहा है तो दूसरी तरफ आसपास के पेड़-पौधे खत्म हो रहे हैं। कलेक्टर ने जांच का के बाद कार्रवाई का भरोसा दिया। पर पूरे इलाके में राजनीतिक संरक्षण को चलते खनन जारी है इस पर अंकुश लगाना संभव नजर नहीं आता। क्योंकि सारा मामला उगाही से जुड़ा है जिसके तार सत्ता का गलियारों से जुड़े हुए है।

उत्तर-प्रदेष प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुख्य पर्यावरण अधिकारी जेएस यादव ने कहा कि विस्फोटकों के अंधाधुंध इस्तेमाल से पर्यावरण पर तो असर पड़ेगा ही। हालांकि शासन के स्तर पर कोई अध्ययन नहीं किया गया है। मौसम विभाग, सिंचाई विभाग और पर्यावरण से जुड़े विषेशज्ञों का कहना है कि किसी भी क्षेत्र में अगर दस साल तक लगातार विस्फोटकों का इस्तेमाल होगा तो समूचे पर्यावरण का मानसून पर असर स्वाभाविक है।

बुंदेलखण्ड में अवैध खनन और विस्फोटकों का इस्तेमाल सबसे अधिक महोबा में होता रहा है। यही वजह है कि बुंदेलखण्ड के अन्य इलाकों में जहां बाढ़ का खतरा पैदा हो रहा है, वहीं महोबा के ताल-तालाब प्यासे हैं। सावन में पूरे बुंदेलखण्ड में जमकर बरसात हो रही है। ज्यादातर इलाकों में भूजल स्तर ऊपर आ चुका है और सूखे के बाद हरियाली दिखने लगी है। पर महोबा अपवाद है। यहां खेती भी अन्य इलाकों के मुकाबले बहुत कम नजर आ रही हैं। जितना पानी इस बार बरसा है यह तीन-चार महीने से ज्यादा राहत देने वाला नहीं है। अवैध खनन और विस्फोटकों पर अगर रोक नहीं लगाई तो महोबा की जमीन पूरी तरह से बंजर हो जाएगी। दो महीने पहले महोबा से लेकर केन नदी तक की धार टूटती नजर आ रही थी। अब बेतवा से लेकर केन तक में पानी है पर महोबा में बारूद के चलते मानसून टूटता नजर आ रहा है। यहां पर वह गांधी कीड़ा निकलने लगा है जिसे मानसून की विदाई का संकेत माना जाता है। महोबा के लोगों के मुताबिक काले रंग का यह कीड़ा जब निकलना शुरू होता है तो उसकी गंध और काटने से लोग परेशान होते हैं। मान लिया जाता है कि बारिश अब खत्म होने वाली है।
 

Path Alias

/articles/khauuba-barasain-barakhaa-raanai-phaira-bhai-na-bharae-taalaaba

Post By: admin
×