यह चिन्तित करने वाला है कि भारत दुनिया के उन देशों में शुमार है जहाँ सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण है और जिसकी वजह से यहाँ के लोगों को समय से तीन साल पहले ही काल का ग्रास बनना पड़ रहा है। यह खुलासा यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो, हार्वर्ड और येल के अध्ययन से हुआ है। अध्ययन में पाया गया है कि भारत की आधी आबादी यानी 66 करोड़ लोग उन क्षेत्रों में रहते हैं जहाँ सूक्ष्म कण पदार्थ (पार्टिकुलेट मैटर) प्रदूषण भारत के सुरक्षित मानकों से ऊपर है। अध्ययन में बताया गया है कि यदि भारत अपने वायु मानकों को पूरा करने के लिए इस आंकड़े को उलट देता है तो इससे 66 करोड़ लोगों के जीवन के 3.2 वर्ष बढ़ जाएँगे।
गौरतलब है कि यह नए आंकड़े विश्व स्वास्थ्य संगठन के उन आंकड़ों के बाद आए हैं जिनमें कहा गया है कि विश्व के सर्वाधिक 20 प्रदूषित शहरों में से 13 भारत में हैं। इनमें दिल्ली को सर्वाधिक प्रदूषित शहर बताया गया है। याद होगा गत वर्ष विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में भी दुनिया के 91 देशों के 1600 शहरों में दिल्ली को सर्वाधिक प्रदूषित शहर बताया गया। रिपोर्ट से उद्घाटित हुआ कि विश्व की आधी शहरी आबादी ऐसी प्रदूषित हवा इस्तेमाल करने को मजबूर है, जो सुरक्षित माने जाने वाले मानक के हिसाब से ढाई गुना अधिक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो साल 2012 में घर के बाहर वायु प्रदूषण के कारण दुनिया भर में 37 लाख लोगों की मौत हुई। एनवायरमेन्टल रिसर्च लेटर्स जर्नल के शोध से भी खुलासा हो चुका है कि दुनिया भर में वायु प्रदूषण से हर वर्ष तकरीबन 26 लाख लोगों की मौत हो रही है।
यूनिवर्सिटी ऑफ कैरोलीना के विद्वान जैसन वेस्ट के अध्ययन के मुताबिक इनमें से ज्यादातर मौतें दक्षिण और पूर्व एशिया में हुई है। आंकड़ें बताते हैं कि हर साल मानव निर्मित वायु प्रदूषण से 4 लाख 70 हजार और औद्योगिक इकाईयों से उत्पन प्रदूषण से 21 लाख लोग दम तोड़ते हैं। विषेशज्ञों का मानना है कि अगर इससे निपटने की तत्काल वैश्विक रणनीति तैयार नहीं हुई तो विश्व की बड़ी जनसंख्या वायु प्रदूषण की चपेट में होगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वायु प्रदूषण से होने वाले स्वास्थ्य जोखिम के बारे में जागरुकता बढ़ाने की अपील की है। लेकिन विडम्बना है कि भारत सरकार वायु प्रदूषण के खतरों से बेखबर है और इसे रोकने की ठोस पहल नहीं कर रही है।
जबकि तीन साल पहले ‘क्लीन एयर एक्शन प्लान’ के जरिए वायु प्रदूषण से निपटने का संकल्प व्यक्त किया गया था। लेकिन यह योजना फाइलों में कैद है। नतीजा आज भारत के विभिन्न शहर वायु प्रदूषण की चपेट में हैं। उपग्रहों से लिए गए आंकड़ों के आधार पर तैयार रिपोर्ट के मुताबिक विश्व के 189 शहरों में सर्वाधिक प्रदूषण स्तर भारतीय शहरों में पाया गया है। उदाहरण के तौर पर भारत का सिलिकॉन वैली बंगलुरु विश्व के शहरों में वायु प्रदूषण स्तर में वृद्धि के मामले में अमेरिका के पोर्टलैंड शहर के पश्चात दूसरे स्थान पर है। यहाँ वर्ष 2002-10 के बीच वायु प्रदूषण स्तर में 34 फीसद की वृद्धि दर्ज की गई है। कुछ ऐसा ही बदतर हालात देश के अन्य बड़े शहरों की भी है।
इसके अलावा देश के शहरों के वायुमण्डल में गैसों का अनुपात लगातार बिगड़ता जा रहा है। हाल के वर्षों में वायुमण्डल में ऑक्सीजन की मात्रा घटी है और दूषित गैसों की मात्र बढ़ी है। कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा में तकरीबन 25 फीसद की वृद्धि हुई है। इसका मुख्य कारण बड़े कल-कारखानें और उद्योगधन्धों में कोयले एवं खनिज तेल का उपयोग है। गौरतलब है कि इनके जलने से सल्फर डाई ऑक्साइड निकलती है जो मानव जीवन के लिए बेहद खतरनाक है।
शहरों का बढ़ता दायरा, कारखानों से निकलने वाला धुँआ, वाहनों की बढ़ती तादाद एवं मेट्रो का विस्तार तमाम ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से प्रदूषण बढ़ रहा है। वाहनों के धुएँ के साथ सीसा, कार्बन मोनोऑक्साइड तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड के कण निकलते हैं। ये दूषित कण मानव शरीर में कई तरह की बीमारियाँ पैदा करते हैं। मसलन सल्फर डाईऑक्साइड से फेफड़े के रोग, कैडमियम जैसे घातक पदार्थों से हृदय रोग और कार्बन मोनोऑक्साइड से कैन्सर और श्वास सम्बन्धी रोग होते हैं। कारखानें और विद्युत गृह की चिमनियों तथा स्वचालित मोटरगाड़ियों में विभिन्न ईंधनों के पूर्ण और अपूर्ण दहन भी प्रदूषण को बढ़ावा देते हैं।
वायु प्रदूषण से न केवल मानव समाज को बल्कि प्रकृति को भी भारी नुकसान पहुँच रहा है। प्रदूषित वायुमण्डल से जब भी वर्षा होती है प्रदूषक तत्व वर्षा जल के साथ मिलकर नदियों, तालाबों, जलाशयों और मृदा को प्रदूषित कर देते हैं। अम्लीय वर्षा का जलीय तंत्र समष्टि पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। इससे न केवल कैंसर जैसे असाध्य रोगों में वृद्धि हो रही है बल्कि पेड़ों से कार्बनिक यौगिकों के उत्सर्जन में बढ़ोत्तरी हुई है। इससे ओजोन एवं अन्य तत्वों के बनने की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है।
वायु प्रदूषण का दुष्प्रभाव ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासतों पर भी पड़ रहा है। गत वर्ष देश के 39 शहरों की 138 विरासतीय स्मारकों पर वायु प्रदूषण के घातक दुष्प्रभाव का अध्ययन किया गया। उचित होगा कि सरकार प्रदूषण की रोकथाम के लिए प्रभावकारी नीति बनाए और उस पर अमल करे।
अम्लीय वर्षा का जलीय तन्त्र समष्टि पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। इससे न केवल कैंसर जैसे असाध्य रोगों में वृद्धि हो रही है बल्कि पेड़ों से कार्बनिक यौगिकों के उत्सर्जन में बढ़ोत्तरी हुई है। इससे ओजोन एवं अन्य तत्वों के बनने की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। वायु प्रदूषण का दुष्प्रभाव ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासतों पर भी पड़ रहा है। गत वर्ष देश के 39 शहरों की 138 विरासतीय स्मारकों पर वायु प्रदूषण के घातक दुष्प्रभाव का अध्ययन किया गया। उचित होगा कि सरकार प्रदूषण की रोकथाम के लिए प्रभावकारी नीति बनाए और उस पर अमल करे।
गौरतलब है कि यह नए आंकड़े विश्व स्वास्थ्य संगठन के उन आंकड़ों के बाद आए हैं जिनमें कहा गया है कि विश्व के सर्वाधिक 20 प्रदूषित शहरों में से 13 भारत में हैं। इनमें दिल्ली को सर्वाधिक प्रदूषित शहर बताया गया है। याद होगा गत वर्ष विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में भी दुनिया के 91 देशों के 1600 शहरों में दिल्ली को सर्वाधिक प्रदूषित शहर बताया गया। रिपोर्ट से उद्घाटित हुआ कि विश्व की आधी शहरी आबादी ऐसी प्रदूषित हवा इस्तेमाल करने को मजबूर है, जो सुरक्षित माने जाने वाले मानक के हिसाब से ढाई गुना अधिक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो साल 2012 में घर के बाहर वायु प्रदूषण के कारण दुनिया भर में 37 लाख लोगों की मौत हुई। एनवायरमेन्टल रिसर्च लेटर्स जर्नल के शोध से भी खुलासा हो चुका है कि दुनिया भर में वायु प्रदूषण से हर वर्ष तकरीबन 26 लाख लोगों की मौत हो रही है।
यूनिवर्सिटी ऑफ कैरोलीना के विद्वान जैसन वेस्ट के अध्ययन के मुताबिक इनमें से ज्यादातर मौतें दक्षिण और पूर्व एशिया में हुई है। आंकड़ें बताते हैं कि हर साल मानव निर्मित वायु प्रदूषण से 4 लाख 70 हजार और औद्योगिक इकाईयों से उत्पन प्रदूषण से 21 लाख लोग दम तोड़ते हैं। विषेशज्ञों का मानना है कि अगर इससे निपटने की तत्काल वैश्विक रणनीति तैयार नहीं हुई तो विश्व की बड़ी जनसंख्या वायु प्रदूषण की चपेट में होगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वायु प्रदूषण से होने वाले स्वास्थ्य जोखिम के बारे में जागरुकता बढ़ाने की अपील की है। लेकिन विडम्बना है कि भारत सरकार वायु प्रदूषण के खतरों से बेखबर है और इसे रोकने की ठोस पहल नहीं कर रही है।
जबकि तीन साल पहले ‘क्लीन एयर एक्शन प्लान’ के जरिए वायु प्रदूषण से निपटने का संकल्प व्यक्त किया गया था। लेकिन यह योजना फाइलों में कैद है। नतीजा आज भारत के विभिन्न शहर वायु प्रदूषण की चपेट में हैं। उपग्रहों से लिए गए आंकड़ों के आधार पर तैयार रिपोर्ट के मुताबिक विश्व के 189 शहरों में सर्वाधिक प्रदूषण स्तर भारतीय शहरों में पाया गया है। उदाहरण के तौर पर भारत का सिलिकॉन वैली बंगलुरु विश्व के शहरों में वायु प्रदूषण स्तर में वृद्धि के मामले में अमेरिका के पोर्टलैंड शहर के पश्चात दूसरे स्थान पर है। यहाँ वर्ष 2002-10 के बीच वायु प्रदूषण स्तर में 34 फीसद की वृद्धि दर्ज की गई है। कुछ ऐसा ही बदतर हालात देश के अन्य बड़े शहरों की भी है।
इसके अलावा देश के शहरों के वायुमण्डल में गैसों का अनुपात लगातार बिगड़ता जा रहा है। हाल के वर्षों में वायुमण्डल में ऑक्सीजन की मात्रा घटी है और दूषित गैसों की मात्र बढ़ी है। कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा में तकरीबन 25 फीसद की वृद्धि हुई है। इसका मुख्य कारण बड़े कल-कारखानें और उद्योगधन्धों में कोयले एवं खनिज तेल का उपयोग है। गौरतलब है कि इनके जलने से सल्फर डाई ऑक्साइड निकलती है जो मानव जीवन के लिए बेहद खतरनाक है।
शहरों का बढ़ता दायरा, कारखानों से निकलने वाला धुँआ, वाहनों की बढ़ती तादाद एवं मेट्रो का विस्तार तमाम ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से प्रदूषण बढ़ रहा है। वाहनों के धुएँ के साथ सीसा, कार्बन मोनोऑक्साइड तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड के कण निकलते हैं। ये दूषित कण मानव शरीर में कई तरह की बीमारियाँ पैदा करते हैं। मसलन सल्फर डाईऑक्साइड से फेफड़े के रोग, कैडमियम जैसे घातक पदार्थों से हृदय रोग और कार्बन मोनोऑक्साइड से कैन्सर और श्वास सम्बन्धी रोग होते हैं। कारखानें और विद्युत गृह की चिमनियों तथा स्वचालित मोटरगाड़ियों में विभिन्न ईंधनों के पूर्ण और अपूर्ण दहन भी प्रदूषण को बढ़ावा देते हैं।
वायु प्रदूषण से न केवल मानव समाज को बल्कि प्रकृति को भी भारी नुकसान पहुँच रहा है। प्रदूषित वायुमण्डल से जब भी वर्षा होती है प्रदूषक तत्व वर्षा जल के साथ मिलकर नदियों, तालाबों, जलाशयों और मृदा को प्रदूषित कर देते हैं। अम्लीय वर्षा का जलीय तंत्र समष्टि पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। इससे न केवल कैंसर जैसे असाध्य रोगों में वृद्धि हो रही है बल्कि पेड़ों से कार्बनिक यौगिकों के उत्सर्जन में बढ़ोत्तरी हुई है। इससे ओजोन एवं अन्य तत्वों के बनने की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है।
वायु प्रदूषण का दुष्प्रभाव ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासतों पर भी पड़ रहा है। गत वर्ष देश के 39 शहरों की 138 विरासतीय स्मारकों पर वायु प्रदूषण के घातक दुष्प्रभाव का अध्ययन किया गया। उचित होगा कि सरकार प्रदूषण की रोकथाम के लिए प्रभावकारी नीति बनाए और उस पर अमल करे।
अम्लीय वर्षा का जलीय तन्त्र समष्टि पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। इससे न केवल कैंसर जैसे असाध्य रोगों में वृद्धि हो रही है बल्कि पेड़ों से कार्बनिक यौगिकों के उत्सर्जन में बढ़ोत्तरी हुई है। इससे ओजोन एवं अन्य तत्वों के बनने की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। वायु प्रदूषण का दुष्प्रभाव ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासतों पर भी पड़ रहा है। गत वर्ष देश के 39 शहरों की 138 विरासतीय स्मारकों पर वायु प्रदूषण के घातक दुष्प्रभाव का अध्ययन किया गया। उचित होगा कि सरकार प्रदूषण की रोकथाम के लिए प्रभावकारी नीति बनाए और उस पर अमल करे।
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