बिहार के टाइगर प्रोजेक्ट से इनके पलायन की एक और महत्वपूर्ण वजह यह भी है कि उन जीवों की भी संख्या घटी है जिन पर बाघ पेट भरने के लिए आश्रित होते हैं। जंगलों में हिरन, बकरी, भेड़ और सुअरों की घटती संख्या ने भी बाघों को पलायन के लिए मजबूर किया है। जंगल में बाघों के आवास स्थल भी समाप्त होते जा रहे हैं। यही कारण है कि बाघों को बिहार से नेपाल की ओर पलायन हो रहा है। नेपाल के चितवन निकुंज में पहले बाघों की संख्या 121 थी जो अब बढ़कर 155 हो गई है जबकि इतनी ही संख्या वाल्मीकिनगर प्रोजेक्ट में घट गई है।
बिहार में कानून व्यवस्था में सुधार के बाद गोवा से अधिक पर्यटक आने लगे तो राज्य सरकार ने पर्यटन की नई संभावनाओं को लेकर भी कार्ययोजना पर काम शुरू कर दिया। जंगल में विचरते बाघ हमेशा से रोमांच पैदा करते रहे हैं। बिहार सरकार ने पर्यटकों की इसी दिलचस्पी के मद्देनजर टाइगर टूरिज्म को विकसित करने का निर्णय लिया है। वाल्मीकि नगर टाइगर प्रोजेक्ट में बाघों की संख्या को लेकर अलग-अलग दावे किए जाते रहे हैं लेकिन यह सच है कि हाल के दिनों में जंगलों के उजड़ने, शिकारियों के हमले और सुरक्षित क्षेत्र में नक्सलियों के अड्डों ने बाघों के लिए मुश्किलें पैदा की हैं। यही कारण है कि बाघों के पलायन की खबरें भी सुर्खियां बनती रही हैं। हाल में ही इस सुरक्षित क्षेत्र से निकलकर एक बाघ ने वैशाली इलाके में दहशत फैला रखी थी। नेपाल के चितवन पार्क में बाघों का पलायन हो रहा है। स्थिति की गंभीरता भांपते हुए बिहार सरकार ने टाइगर टूरिज्म के जरिए बाघों के संरक्षण की महत्वाकांक्षी योजना पर अमल प्रारंभ कर दिया है।पर्यटन की इस नई योजना के तहत वाल्मीकि नगर टाइगर प्रोजेक्ट को अंतर्राष्ट्रीय स्तर के पर्यटक केंद्र के रूप में विकसित किया जाना है। प्रोजेक्ट क्षेत्र में बारह कमरों का पर्यटक आवास गृह बनाया जाने वाला है ताकि पर्यटकों को सुखद विश्राम स्थल उपलब्ध कराया जा सके। केंद्र सरकार ने भी इस योजना में मदद पर सहमति दे दी है। पहले चरण में केंद्र सरकार साढ़े तीन करोड़ रुपए देगी जिसकी पहली किस्त जारी भी हो चुकी है। पुराने पर्यटन विश्राम स्थल के जीर्णोद्धार पर 23 लाख रुपए खर्च किए जा रहे हैं। बाघों के अलावा अन्य जीवों की संख्या बढ़ाने और हरी घास के मैदानों का प्रबंधन भी इस योजना में शामिल है। शिकारियों से निपटने के लिए पांच स्थानों पर विशेष कैंप बनाए जाएंगे। राज्य सरकार ने स्थानीय लोगों को शामिल करते हुए एक समिति भी गठित कर दी है। बॉर्डर एरिया डेवलपमेंट प्लान के तहत वाल्मीकि नगर टाइगर प्रोजेक्ट के विकास पर 45 लाख रुपए खर्च किए जा रहे हैं। मिनी ऑडिटोरियम और छह म्यूजियम हट भी बनाए जाने के प्रस्ताव हैं।
दो म्यूजियम हट गोवरदेरना में तथा चार वाल्मीकि नगर में बनेंगे। इन पर 25 लाख रुपए की राशि खर्च होने का अनुमान है। इसके अलावा पर्यटकों की सुविधा के लिए सड़क और पुलों के निर्माण की भी योजना है। पर्यटक वाहनों की संख्या बढ़ाने और टाइगर फाउंडेशन की स्थापना भी इस ईको टूरिज्म का हिस्सा बनने वाली है। केंद्र सरकार ने टाइगर टूरिज्म को लेकर दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं जिसके तहत तमाम योजनाओं को इस रूप में लागू करना होगा ताकि बाघों के एकांत में खलल पैदा न हो सके। बाघ भोजन और प्रणय क्रिया के बीच खलल पसंद नहीं करते। व्याघ्र परियोजना के कोर एरिया के नक्सलियों के आरामगाह के रूप में तब्दील हो जाने के बाद बाघों के लिए यह इलाका निरापद नहीं रह गया है। नतीजतन, प्रजनन के लिए भारतीय बाघ नेपाल की शरण लेने को विवश हुए हैं। यह पलायन वाल्मीकि नगर, ठोरी और पिपरादोन इलाके से हो रहा है।
बाघों का वजूद तस्वीरों तक सिमटकर रह जाने के खतरे पहले से व्यक्त किए जाते रहे हैं। सौ साल में दुनिया भर से 68 हजार बाघ कम हो गए हैं। सौ साल पहले जहां इनकी आबादी एक लाख के करीब थी वहीं अब इनकी तादाद 32 हजार पर थम गई है। बाघों को बचाने के लिए रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में पिछले साल 'बाघ सम्मेलन' का भी आयोजन हुआ। बाघों की तीन उप प्रजातियां बाली, जावा और कैस्पियन पहले ही विलुप्त हो चुकी हैं। इनकी चौथी प्रजाति भी चीन में विलुप्त होने के कगार पर है। पैंथर वंश की टिगरिस प्रजाति भी दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया और रूस के सुदूर पूर्व में सिर्फ 3,200 की संख्या में शेष रह गई है। भारत में पाए जाने वाले बंगाल रायल टाइगर प्रजाति के बाघों की संख्या अब सिर्फ 1,850 पर सिमट गई है। राहत देने वाली बात यह है कि रूस में आयोजित होने वाले बाघ सम्मेलन में 2022 तक बाघों की संख्या दोगुनी करने की कार्ययोजना बनने वाली है।
880 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले वाल्मीकि टाइगर प्रोजेक्ट क्षेत्र में बाघों की संख्या में कमी का मुख्य कारण उनका शिकार रहा है। नक्सलियों के अलावा नेपाली अपराधियों ने 335 वर्ग किलोमीटर में फैले बाघों के 'कोर एरिया' को आश्रयस्थली बनाया है। नतीजतन, घने जंगलों की नीरवता और शांति भंग हो गई है। बाघों का उनके अंगों के लिए भी शिकार किया जाता रहा है। समाज में रुतबा दिखाने, सजावट और दवाओं के लिए बाघों का शिकार लंबे समय से होता रहा है। वाइल्ड लाइफ ट्रेड मॉनिटरिंग नेटवर्क की रिपोर्ट के अनुसार दस साल में भारत, नेपाल और चीन से बाघों के 1,220 अंग जब्त किए गए। बिहार के टाइगर प्रोजेक्ट से इनके पलायन की एक और महत्वपूर्ण वजह यह भी है कि उन जीवों की भी संख्या घटी है जिन पर बाघ पेट भरने के लिए आश्रित होते हैं। जंगलों में हिरन, बकरी, भेड़ और सुअरों की घटती संख्या ने भी बाघों को पलायन के लिए मजबूर किया है। जंगल में बाघों के आवास स्थल भी समाप्त होते जा रहे हैं।
यही कारण है कि बाघों को बिहार से नेपाल की ओर पलायन हो रहा है। नेपाल के चितवन निकुंज में पहले बाघों की संख्या 121 थी जो अब बढ़कर 155 हो गई है जबकि इतनी ही संख्या वाल्मीकिनगर प्रोजेक्ट में घट गई है। नियंत्रक एवं महालेखाकार भी अपनी रिपोर्ट में बाघों की घटती संख्या पर चिंता जाहिर कर चुके हैं। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण वर्ष में बिहार सरकार को सुरक्षा के लिए अवकाश प्राप्त सैनिकों का दल गठित करने को कहा गया था लेकिन आज तक यह टीम गठित नहीं हो सकी। वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना से बाघ व तेंदुआ की खाल बरामदगी ने यह साबित कर दिया है कि परियोजना के अंदर अंतर्राष्ट्रीय वन्यजीव तस्करों का एक बड़ा सिंडिकेट सक्रिय है। नेपाल के चितवन नेशनल पार्क की खुली सीमा से लगी इस व्याघ्र परियोजना के संरक्षित जीवों का शिकार कर चमड़े तथा अन्य अवशेष विदेशों में पहुंचाए जा रहे हैं।
शिकारी बाघ व भालुओं का शिकार कर उनके खालों तथा अंगों को चीन भेजते रहे हैं। चीन में बाघ की हड्डियों से डाइगर व्हिस्की बनती है जो काफी महंगी बिकती है। कई बार अंतर्राष्ट्रीय तस्कर तथा शिकारी पकड़े भी गए हैं फिर भी शिकार पर लगाम नहीं लग रहा है। यही वजह है कि बंगाल टाइगर विलुप्त हो रहे हैं। वर्ष 1984 में टाइगर प्रोजेक्ट घोषित व्याघ्र परियोजना में बाघों की संख्या 81 थी। वर्ष 2005 में इनकी संख्या 33 से 37 के बीच आंकी गई परन्तु 2006-07 में भारतीय वन्यप्राणी संस्थान के विशेषज्ञों ने सर्वेक्षण किया तो बाघों की संख्या 7 से 13 के बीच पहुंच गई। अब टाइगर टूरिज्म के बहाने बाघों के लिए अनुकूल माहौल उपलब्ध कराने की तैयारी है ताकि उनका पलायन बंद हो और संख्या में इजाफा हो सके।
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