विकसित देशों में नदियां सर्वाधिक खतरे में हैं। एक वैश्विक अध्ययन से पता चला है कि नदियों के प्राकृतिक प्रवाह में आ रहे लगातार अवरोधों के कारण नदियों और उसके सहारे चल रहा जीवन और जैव विविधता सभी कुछ संकट में पड़ गए हैं। आवश्यकता इस बात की है कि हम पुनः नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को सुनिश्चित करें। सिर्फ मनुष्यों के लिए पानी उपलब्धता सुनिश्चित कराने हेतु नदियों के प्रवाह पर लगती रोक अंततः विनाशकारी सिद्ध होगी।
विश्व की नदियां कुप्रबंधन और प्रदूषण से संकट में हैं। इस वजह से प्रत्येक 10 में से 8 व्यक्ति एवं 10 से 20 हजार ऐसे प्राणी संकट में हैं, जिनका कि ये घर है। यह तथ्य उस प्रथम वैश्विक पहल के माध्यम से उभरा है, जिसने व्यक्तियों के लिए जल सुरक्षा और नदियों की जैव विविधता का मूल्यांकन किया है। ग्यारह वैज्ञानिकों ने प्रदूषण, सघन खेती, केचमेंट क्षेत्र में अवरोध और बांध निर्माण जैसे 23 प्रभावों की पहचान कर उन्हें एक साथ रखकर एक नक्शा तैयार किया है, जो कि इन सबका नदियों के स्वास्थ्य और उससे जुड़े रहवास पर पड़ रहे प्रभाव दर्शाता है।
नक्शे में बताया गया है कि समुद्र में सामूहिक रूप से आधे से अधिक अपवाह (पानी पहुंचाने वाली) सबसे बड़ी 47 नदी प्रणालियों में से 30 खतरे में हैं। यूरोप और उत्तरी अमेरिका के अमीर देशों ने बांधों, एक्वाडक्ट, गहरे नलकूप एवं जलशोधन संयंत्रों के माध्यम से पीने के पानी की कमी से संबंधित जोखिमों को 95 प्रतिशत तक कम करके अपने नागरिकों के लिए सुरक्षित एवं पर्याप्त पानी की आपूर्ति सुरक्षित कर ली है।
परंतु 30 सितम्बर के ‘नेचर’ के अंक में बताया गया है कि यह सब कुछ नदियों की पारिस्थितिकी की कीमत पर किया गया है। नक्शे में बताया गया है कि दशकों के प्रदूषण नियंत्रण प्रयत्नों एवं नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र की पुर्नस्थापना के बावजूद अमेरिका और पश्चिमी यूरोप की अधिकांश नदी प्रणालियां सर्वाधिक खतरे में हैं।
इस संबंध में जानकारी देते हुए समूह के एक वैज्ञानिक पीटर मेकइन्टायर कहते हैं कि उत्तरी अमेरिका के प्रत्येक नदी बेसिन में हजारों की संख्या में बांध बने हुए हैं। इन बांधों से श्रृंखलाबद्ध तरीके से सालमोन जैसी प्रवासी मछली विलुप्त हो गई और अन्य दर्जनों जलीय प्रजातियां खतरे में हैं। मेकइन्टायर कहते हैं ‘हमने मानवों के लिए जल की उपलब्धता बनाए रखने हेतु अनेक तकनीकी नवाचार कर लिए हैं लेकिन जैव विविधता सुरक्षित बनाए रखने की दिशा में बहुत ही कम नवाचार हुआ है।
रिपोर्ट ने इसी तरह की चेतावनी विकासशील देशों में भी नदियों के ह्रास के संदर्भ में भी दी है, जिनके पास इतने संसाधन नहीं हैं कि वे तकनीक में निवेश कर अपनी नदियों को साफ कर सकें और जहां जनसंख्या भी तेजी से बढ़ रही है। ब्राजील, रूस, भारत, चीन और ओईसीडी (आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन) देशों को सहस्त्राब्दी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु अपनी जल अधिसंरचना को सुधारने हेतु प्रति वर्ष 800 अरब अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता है। नक्शे में बताया गया है कि निवेश की कमी की वजह से विकासशील देशों के मनुष्यों और जैव विविधता को और अधिक खतरा है।
अध्ययन में यह आग्रह किया गया है कि विकासशील देश अमीर देशों का अनुसरण न करें। इस संबंध में भरत झुनझुनवाला जो कि भारतीय अर्थशास्त्री हैं और जिन्होंने हाल ही में अमेरिका में बांधों को हटाए जाने पर एक पुस्तक भी लिखी है, का कहना है कि ‘विकासशील देश अभी इस स्थिति में हैं कि वे टिकाऊ तरीके से जलसुरक्षा प्राप्त कर सकते हैं।’ वैज्ञानिकों का सुझाव है जलशोधन के खर्चों को कम करने के लिए जलस्रोतों की सुरक्षा जैसी रणनीतियां अपनानी चाहिए। उदाहरण के लिए न्यूयार्क शहर ने जलशोधन संयंत्र का स्तर और ऊँचा करने की अत्यधिक लागत से बचने के लिए केटसकिल पर्वत का एक हिस्सा इस हेतु लिया, जिससे कि प्राकृतिक रूप से फिल्टर किया हुआ पानी उपलब्ध करवाया जा सके। वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है कि नीति निर्माताओं को चाहिए कि बजाए महंगे कृत्रिम अवरोध बनाकर कृषि भूमि को डुबोने के, वे पानी के स्रोत और वेटलेण्ड को सुरक्षित रखें क्योंकि वे न केवल कम लागत पर पानी उपलब्ध करवाएगें बल्कि बाढ़ रोकने में भी मदद करेंगे।
(साभारः सप्रेस- सीएसई, डाउन टू अर्थ फीचर्स)
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