बारिश के बदलते मिजाज और भूस्खलन ने हिमालयी क्षेत्र के पारम्परिक स्रोतों पर असर डालना शुरू कर दिया है। जलवायु परिवर्तन और भूगर्भीय हलचल के कारण उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश के सदियों पुराने जलस्रोत सूखने के कगार पर हैं। एक शोध के अनुसार पहाड़ों के सदियों पुराने हजारों जलस्रोत सूख चुके हैं। शोध कर वैज्ञानिकों ने इसका कारण भूगर्भीय उथल-पुथल बताया है।
शोध के दौरान यह बात भी सामने आई है कि पहाड़ों के परम्परागत जलस्रोतों के सूखने के कई कारण हैं। कम बरसात तो है ही, इसके साथ ही आधुनिक विकास मॉडल भी इसके लिये जिम्मेदार है। पहाड़ों पर गर्मी के मौसम में देश विदेश से इकट्ठे हो रहे सैलानी, वृक्षों का अंधाधुंध कटान, पहाड़ों को तोड़कर पत्थर बाहर ले जाना भी पहाड़ के पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित किया है। वृक्षों के कटने से पहाड़ नंगे हो गए। बरसात के समय जंगल के वृक्ष पहाड़ के कटान को रोकते थे।
जिससे जलस्रोतों में मिट्टी नहीं समा पाता था। लेकिन जंगलों के कटने से पहाड़ों और चट्टानों के खिसकने का सिलसिला शुरू हुआ तो अब थमने का नाम नहीं ले रहा है। पहाड़ी क्षेत्रों के लिये जंगल वरदान था। पहाड़वासी जंगल से भोजन के साथ ही ईंधन, चारा और दवाईयाँ मुफ्त में प्राप्त करते थे। लेकिन विकास की अंधी दौड़ में ज्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में वन एवं खनिज माफियाओं ने जंगल की बेशकीमती एवं औषधीय महत्व की लकड़ियों को काटना शुरू किया।
इसके बाद इमारती लकड़ियों का नंबर आया और धीरे-धीरे पूरे जंगल को ही चट कर गए। पेड़ों के कटने से जंगल तबाह हो गए। जिसका खामियाजा अब पहाड़ों को भुगतना पड़ रहा है। हिमालयी क्षेत्र के जलस्रोत खतरे में है। वजह भूगर्भीय उथल-पुथल है। इसका असर पहाड़ों पर पड़ रहा है। शोध कर रहे वैज्ञानिकों ने पाया है कि हिमालयी क्षेत्र में जमीन के भीतर प्लेटों की चाल बदलने से भूकम्प पट्टियाँ तो सक्रिय हो ही रही हैं साथ ही इसका असर जलस्रोतों पर पड़ रहा है। वैज्ञानिकों को अंदेशा है कि प्लेटों की चाल से पहाड़ की मिट्टी धसती जा रही है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक इस कारण भी जलस्रोत बंद हो सकते हैं। कई क्षेत्रों में सदियों से चले आ रहे परम्परागत जलस्रोत गायब मिले हैं। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अधीन उत्तराखण्ड स्पेस अप्लीकेशन सेंटर (यूसैक) ने पर्वतीय क्षेत्रों के जल स्रोतों की मैपिंग की है। हिमालयी क्षेत्र के बहुत से जलस्रोतों के सूखने और पानी की मात्रा कम होने के संबंध में वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के विज्ञानियों ने भी पुष्टि की है। जलवायु परिवर्तन से स्थिति और चिन्ताजनक बन रही है। वैज्ञानिकों के मुताबिक जलवायु परिवर्तन से बारिश का मिजाज बदला है। एक ही बार मूसलाधार बारिश होने से जलस्रोत रिचार्ज नहीं हो पा रहे जिससे वे सूख रहे हैं। देहरादून स्थित वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक और जलस्रोत विशेषज्ञ डॉ. एसके बरतरिया ने भी जलस्रोतों के सूखने और इसमें पानी कम होने की पुष्टि की है। राज्य विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी विभाग द्वारा यूसैक से कराई गई मैपिंग में पाया गया है कि पुराने जलस्रोत अब अपने स्थान पर मौजूद नहीं हैं। यह केवल एक क्षेत्र की बात नहीं है। पूरे उत्तराखण्ड में परम्परागत जलस्रोत सूख रहे हैं। अध्ययन के दौरान देखा गया कि कई जलस्रोतों का तो अस्तित्व ही मिट गया है।
पहाड़ों की दशा सुधारने के लिये सरकार लंबे समय से कार्य कर रही है। लेकिन सरकारी योजना जमीन पर कम कागजों पर अधिक चल रही है। सबसे बड़ी बात यह है कि हमारे पुराने जलस्रोत और जीवन से जुड़ी तमाम चीजों का हमारे आज के दिन-प्रतिदिन की जरूरत से दूर होते जा रहे हैं। तालाब एवं कुओं की जगह हैण्डपम्प और ट्यूबवेल ने ले लिया है। जिसके कारण परम्परागत जलस्रोत एक हद तक उपेक्षित हो गए।
इस कारण से भी तलाब, बावली और कुएँ दुर्दशा के शिकार होते गए। लेकिन प्रकृति के परिवर्तन ने तो उनके अस्तित्व पर ही सवालिया निशान लगा दिया है।
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