टाइफा, फैरामाइटिस मीफिया और सिपर्स पौधे करेंगे गंगा को शुद्ध
लखनऊ । गंगा को भले ही राष्ट्रीय नदी घोषित कर दिया गया हो। गंगा एक्शन प्लान के नाम पर कई हजार करो़ड़ रुपए बीते 25 वर्षों में पानी की तरह बहा दिए गए हों, लेकिन लखनऊ के राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) के वैज्ञानिकों को देने के लिए केंद्र सरकार के खजाने में फूटी कौ़ड़ी नहीं है। यही वजह है कि वैज्ञानिकों को गंगा सफाई के नाम पर मांगी गई धनराशि में से केवल 5.5 फीसदी धन ही मुहैया कराया गया। वह भी तब जब इस धनराशि से एनबीआरआई के वैज्ञानिकों को न कहीं यात्रा करनी थी और न ही कोई प्रोजेक्ट तैयार करना था। बल्कि इस धनराशि को उन्हें तीन नए जलीय पौधों को गंगा नदी के एक इलाके में उगाना था ताकि यह देखा जा सके कि नदियों में प्रदूषण दूर करने के उनके दावे में कितनी सच्चाई है।
वैसे तो हमारे देश की नदियों में जलकुंभी, हाईड्रा और सिंघा़ड़ा जैसे जलीय पौधों की भरमार रहती है, लेकिन एनबीआरआई के वैज्ञानिकों द्वारा तीन नए ऐसे जलीय पौधे खोजे गए हैं जो नदी के प्रदूषण को दस फीसदी तक कम कर सकते हैं। एनबीआरआई के वैज्ञानिक डॉ. यूएन राय ने बताया कि जिन जलीय पौधों को संस्थान के वैज्ञानिकों की टीम द्वारा खोजा गया है उनमें टाइफा (पीपीताज), फैरामाइटिस (नरकुल), सिर्पस (अटेर) और मीफिया (कुमुदनी) शामिल है। वैज्ञानिक डॉ. राय बताते हैं कि इन पौधों की विशेषता यह है कि इनके तने अंदर से खोखले होते हैं। ये ज़ड़ों और तनों के माध्यम से सूक्ष्म जीव प्रदूषित जल-मल में पाए जाने वाले जटिल प्रदूषकों को शुद्ध करते हैं। ये पौधे प्रदूषण को अपने खोखले तने में सोखते हैं। इन पौधों में ऑक्सीजन इरोबिक और ऑक्सीजन इनरोबिक शामिल है।
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