खंडवा के जलस्रोत
खंडवा नगर के जल स्वावलंबी होने के प्रमाण मिलते हैं। जिले के गजेटियर में इसके प्रमुख जलस्रोतों के रूप में मोघट (नागचून) तालाब, बरूड़ नाला, रामेश्वर कुआं, भैरों टैंक आदि का उल्लेख है। स्थानीय नागरिक भीम कुंड, सूरज कुंड, रामेश्वर कुंड और पदम कुंड की गिनती भी नगर के प्रमुख जलस्रोतों के रूप में करते थे। इसके अलावा नगर में अनेक ताल-तलैया एवं सैकड़ों कुएँ मौजूद थे।
1897 में 4 लाख रूपए की लागत से निर्मित नागचून तालाब नगर से 5 किमी दूर है। इसका पानी बगैर किसी विद्युत खर्च के गुरुत्वीय बल के सहारे 2.7 एमएलडी क्षमता वाले लाल चौकी फिल्टर प्लांट तक पहुंच जाता है जहां से नगर में प्रदाय किया जाता है। इसकी विशेषता यह है कि इसके केचमेंट में कृषि तथा अन्य मानवीय हस्तक्षेप नहीं है। करीब डेढ़ दशक पहले इसके केचमेंट को प्लांटेशन हेतु लीज पर देने का प्रयास किया गया था। तालाब की ज़मीन निजी कंपनी को सौंपे जाने के खिलाफ खंडवा में अभियान चलाया गया था। मामला हाईकोर्ट तक भी गया था। अभियान का प्रमुख मुद्दा प्लांटेशन हेतु उपयोग किए जाने वाले रसायनों से पानी की गुणवत्ता पर पड़ने वाला विपरीत प्रभाव था। अब नागचून को औद्योगिक जलप्रदाय हेतु आरक्षित किए जाने के बहाने फिर से इसके केचमेंट की जमीन पर नजर है।
खंडवा में जलप्रदाय
मौसम/स्रोत | सुक्ता बांध (mld) | नागचून (mld) | बोरवेल (mld) | योग (mld) |
वर्षा | 11.25 | 1.80 | 6.30 | 19.50 |
शीत | 11.25 | 1.80 | 6.30 | 19.50 |
ग्रीष्म | 9.00 | 0.00 | 3.60 | 12.60 |
औसत जलप्रदाय | 10.5 | 1.20 | 5.4 | 17.20 |
स्रोत - विस्तृत योजना रपट, पृष्ठ-17, यहां नागचून से गर्मी के दिनों में शून्य जलप्रदाय दिखाया गया है जबकि गर्मी के दिनों में टैंकर यहीं स्थित हाईड्रेंट से भरे जाते हैं।
115 वर्षों बाद भी यह स्रोत नगर के जलप्रदाय में अहम योगदान दे रहा है। यदि इसके केचमेंट का उचित प्रबंधन तथा तालाब का गहरीकरण होता रहे तो इससे मिलने वाले पानी की मात्रा में वृद्धि हो सकती है।
वर्तमान में खंडवा का मुख्य जलस्रोत भगवंत नगर जलाशय (सुक्ता बांध) है। 78 एमसीएम (मिलियन क्यूबिक मीटर) जल भंडारण क्षमता वाले इस जलाशय में 4.24 एमसीएम या 150 एमसीएफटी (मिलियन क्यूबिक फीट) पानी खंडवा के घरेलू प्रदाय हेतु आरक्षित रखा गया है। इसका पानी भी सुक्ता नदी के प्राकृतिक रास्ते से गुरुत्वीय बल द्वारा 40 किमी दूर स्थित जसवाड़ी बैराज में लाया जाता है, जहां पर 13.6 एमएलडी क्षमता का फिल्डर प्लांट बना है। जसवाड़ी बैराज नगर से 11 किमी दूर स्थित है।
लेकिन नगर को आवश्यक जल का बड़ा हिस्सा भूजल से प्राप्त होता है। निगम के 198 मशीनीकृत बोरवेल से मिलने वाले 5.4 एमएलडी पानी को जलप्रदाय लाईनों से जोड़ कर ही वितरित किया जाता है।
उपरोक्त जलस्रोतों में से सुक्ता से जलप्रदाय वर्ष भर लगभग समान बना रहता है जबकि, गर्मी के मौसम में भूजल और नागचून से जलप्रदाय में कमी आती है। निगम द्वारा गर्मी में 63 लीटर/व्यक्ति/दिन जबकि साल के अन्य महीनों में 97.5 लीटर के हिसाब से जलप्रदाय किया जाता है।
जल आवर्धन का प्रयास
खंडवा में नागचून के बाद पहला जल आवर्धन का प्रयास 1982 में भगवंत सागर जलाशय से पानी लाकर किया गया। कुएं/तालाब आदि स्थानीय जलस्रोतों के उपेक्षा के कारण आज यह नगर का प्रमुख जलस्रोत बन गया है तथा नगर की 60% से अधिक जरूरत की पूर्ति इसी स्रोत से की जा रही है। स्थानीय जलस्रोतों की उपेक्षा का दौर जारी रहने से 2 दशकों बाद फिर पानी की कमी महसूस होने लगी है। वर्ष 2004-05 में इससे मिलने वाले पानी की मात्रा बढ़ाने पर विचार किया गया। इसके तहत भगवंत सागर जलाशय से जसवाड़ी फिल्टर प्लांट तक पाईप लाईन तथा जसवाड़ी फिल्टर प्लांट से नगर तक 28 इंच की एक अतिरिक्त पाईप लाईन बिछाने की योजना थी। इस योजना हेतु हुडको से 13 करोड़ रुपए के कर्ज की मंजूरी मिल गई थी। लेकिन राज्य शासन द्वारा हुडको को काउंटर गारंटी उपलब्ध नहीं करवाने के कारण कर्ज नहीं मिल पाया और योजना ठंडे बस्ते में चली गई। इसके बाद जल आवर्धन के हर प्रयास ने लागत बढ़ाने का काम किया।
i. नवंबर 2006 में ‘अतिविश्वसनीय’ स्रोत से प्रचूर मात्रा में पानी प्राप्त करने हेतु कालमुखी ग्राम के निकट इंदिरा सागर परियोजना की नहर से उद्वहन द्वारा नागचून तालाब में पानी जमा करने की योजना बनाई गई। नागचून तालाब को बेलेसिंग रिजर्वायर की तरह इस्तेमाल करते हुए जलप्रदाय करने वाली इस योजना की अनुमानित लागत 34.35 करोड़ रुए थी। इसमें वर्ष 2022 की खंडवा की जनसंख्या के हिसाब से पर्याप्त जलप्रदाय का दावा किया गया था। वैसे नहरें तो गर्मी के दिनों में ही चलाई जाती है ताकि गैर मानसूनी मौसम में भी फसलें ली जा सकें। लेकिन, नहर की निर्माण एजेंसी नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनवीडीए) ने आश्चर्यजनक रूप से जब यह बताया कि गर्मी में नहर में पानी प्रवाहित नहीं किया जाएगा तो अन्य विकल्प तलाशने का निर्णय लिया गया।
ii. तत्कालीन निगम कमिश्नर श्री शिवनाथ झारिया और योजना के सलाहकार मेहता एंड एसोसिएट्स ने 17 अप्रैल 2007 को चारखेड़ा तथा सेलदामाल के मध्य छोटी तवा नदी के किनारे स्थित इंदिरा सागर जलाशय क्षेत्र से जल उद्वहन को उपयुक्त पाया। इस स्थान पर समुद्र सतह से 239 मीटर के स्तर से पानी लिया जा सकता था। इस योजना की लागत 83.74 करोड़ रुपए आकलित की गई थी। जलस्रोत की नगर से दूरी 40 किमी थी। इस योजना को खारिज कर दिया गया।
iii. ऊपर की योजना को खारिज करने का कारण यह दिया गया कि ग्राम रजूर से बाई ओर जलस्रोत तक पहुंच मार्ग से आरक्षित वन (लगभग 5 हेक्टेयर) था तथा अग्नि नदी से होकर जलस्रोत छोटी तवा नदी तक पहुंचने हेतु एक पुल की आवश्यकता थी। इस कारण पाईप लाईन का मार्ग परिवर्तन किया गया तथा चारखेड़ा से खंडवा-छनेरा राजमार्ग होकर 52 किमी. लंबा रूट तय किया गया। इस मार्ग में भी 3.1 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ तथा उतने ही संसाधन और उतना ही समय लगा जितना 5 हेक्टेयर की मंजूरी लेने में लगता। इस योजना की लागत बढ़कर 96.31 करोड़ रूपए हो चुकी थी।
इसी योजना को जब 17 सितंबर 2007 को मध्य प्रदेश विकास प्राधिकरण संघ द्वारा छोटे तथा मझौले नगरों की अधोसंरचना विकास योजना (UIDSSMT) के तहत स्वीकृत किया गया तब तक लागत और बढ़ कर 106.72 करोड़ रूपए हो चुकी थी। हालांकि, बाद में योजना लागत को 160 करोड़ रुपए तक बढ़ाने का प्रयास किया गया लेकिन केंद्र सरकार के इंकार के बाद यह संभव नहीं हो पाया।
योजना की स्वीकृत लागत 106.72 करोड़ रूपए में से 103.61 करोड़ रुपए (97%) योजना की लागत तथा शेष 3.10 करोड़ (3%) योजना की तैयारी, कंसलटेंसी आदि आकस्मिक कार्यों के लिए है। योजना लागत 103.61 करोड़ रुपए में से 93.25 करोड़ रुपए (90%) केंद्र तथा राज्य सरकारों से मिला अनुदान है। शेष 10.36 करोड़ रुपए (10%) की राशि नगरनिगम को अपने स्रोतों से जुटानी थी।
इसके बाद भी लागत बढ़ने का क्रम जारी रहा और ‘विश्वा इंफ्रास्ट्रक्चर्स एंड सर्विसेस प्राइवेट लिमिटेड’ (इसे आगे संक्षिप्त में निजी कंपनी कहा गया है) के साथ अनुबंध 115.32 करोड़ रुपए पर हुआ।
यूआईडीएसएसएमटी और उसके प्रभाव
नगरीय पेयजल तंत्र के पुनर्वास हेतु बड़े पैमाने पर पूंजी निवेश अधिकांश नगरनिकायों के बूते से बाहर है। इसलिए अब शासन (केंद्र या राज्य) द्वारा प्रायोजित योजनाओं के माध्यम से धन की व्यवस्था की जा रही है। 2005 में नगरीय बुनियादी ढांचों के निर्माण हेतु केंद्र सरकार द्वारा ‘जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन’ (JnNURM) के नाम से एक बड़ी केंद्रीय योजना बनाई गई। इसी योजना के तहत ‘छोटे तथा मझौले नगरों की अधोसंरचना विकास योजना’ (Urban Infrastructure Develop Scheme for small and Medium Towns) जारी है। इसके तहत मिलने वाले अनुदान में केंद्र और राज्य का हिस्सा क्रमशः 80% तथा 10% है। शेष 10% राशि संबंधित नगरनिकाय को जुटानी होती है। खंडवा पेयजल आवर्धन योजना UIDSSMT के तहत स्वीकृत है।
नगर की वर्ष 2010 की प्रस्तावित जनसंख्या 2,15,373 के लिए नगरनिगम ने 135 एलपीसीडी के हिसाब से 29 एमएलडी (मिलियन लीटर प्रतिदिन) पानी की जरूरत बताई गई थी, जबकि नगरनिगम 17.20 एमएलडी ही जलप्रदाय कर पा रहा था। इस प्रकार 11.80 एमएलडी की कमी की पूर्ति हेतु नगरनिगम ने नगर से 52 किमी दूर छोटी तवा नदी के किनारे स्थित इंदिरा सागर परियोजना के जलाशय से पानी लाने की योजना बनाई है।
यूआईडीएसएसएमटी की ओर स्थानीय निकायों का रूझान तेजी से बढ़ा है। अगस्त 2010 तक 5 वर्षों में इस योजना के तहत देश में 19,936 करोड़ रूपए की लागत वाली 979 योजनाएं स्वीकृत की गई थी जिनमें से 10,478 करोड़ रूपए की 524 योजनाएं जलप्रदाय से संबंधित थी। यदि इन योजनाओं में पानी से संबंधित अन्य योजनाएं जैसे मलनिकास, तुफानी जलनिकास, जलस्रोतों का संरक्षण तथा ठोस अपशिष्ट प्रबंधन भी शामिल कर लिया जाए तो कुल योजनाओं की संख्या 843 थी जिनकी कुल लागत 18,506 करोड़ रूपए थी। इस प्रकार यूआईडीएसएसएमटी में 93% राशि पानी से संबंधित योजनाओं पर खर्च की गई। जून 2012 तक मध्य प्रदेश के 50 नगरों में 1230 करोड़ रूपए की लागत वाली कुल 68 योजनाएं स्वीकृत की गई। इनमें से 990 करोड़ रुपए की लागत वाली 47 योजनाएं पानी से संबंधित है। मध्य प्रदेश की योजनाओं की जानकारी संलग्नक के रूप में दी गई है।
यूआईडीएसएसएमटी जल क्षेत्र सुधार का एक प्रमुख हिस्सा है। इस योजना का घोषित उद्देश्य स्थानीय निकायों को आर्थिक दृष्टि से सक्षम बना कर उन्हें पब्लिक-प्रायवेट पार्टनरिशप (पीपीपी) को आकर्षित करने योग्य बनाना है। योजना की शर्त के मुताबिक यूआईडीएसएसएमटी योजना स्वीकार करने वाली राज्य सरकारों और नगरनिकायों को “सुधार” का एजेंडा स्वीकार करना होता है। सुधार का सामान्य अर्थ है पूर्ण लागत वसूली, सामाजिक जवाबदेही से परे सबसे वसूली और अंततः सेवाओं का निजीकरण। अंडवा नगरनिगम ने 4 दिसंबर 2008 को तत्कालीन राज्य स्तरीय नोडल एजेंसी “मध्य प्रदेश विकास प्राधिकरण संघ” के साथ सुधार एजेंडे पर हस्ताक्षर किए। योजना की शर्तों में उल्लेखित सुधार दो श्रेणियों के हैं (1) आवश्यक और (2) ऐच्छिक। ऐच्छिक सुधारों को स्थानीय निकाय अपनी सुविधानुसार थोड़ा आगे-पीछे लागू कर सकते हैं। लेकिन, योजना शुरू होने के बाद 7 वर्षों की अवधि में ही पीपीपी सहित सुधार संबंधी सारी शर्तें पूरी करने की बाध्यता है।
स्थानीय निकायों की दयनीय आर्थिक स्थिति के कारण उन्हें निजीकरण का आसान बहाना मिल गया है। हालांकि निजीकरण UIDSSMT के ऐच्छिक सुधारों की श्रेणी में शामिल है लेकिन, भारी भरकम सरकारी अनुदान प्राप्त करने तथा अपने हिस्से के पूंजी निवेश से बचने के लिए नगरनिकाय शुरू से ही पीपीपी के आसान विकल्प की ओर आकर्षित हो रहे हैं। अगस्त 2010 तक UIDSSMT का दायरा देश के 640 नगरों तक बढ़ गया था जिनमें से 501 नगरनिकायों ने जन-निजी भागीदारी हेतु तैयारी दिखाई थी। इस प्रकार सार्वजनिक धन से निर्मित योजनाओं को पीपीपी के बहाने निजी कंपनियों को सौंपा जा रहा है ताकि ये कंपनियां अल्प निवेश से लंबे समय तक तथा अत्यधिक मुनाफा कमा सकें।
चूंकि UIDSSMT के तहत मांग के अनुसार धन आसानी से उपलब्ध है इसलिए स्थानीय निकायों का रुझान अधिक लागत वाली योजनाओं तथा निजीकरण की तरफ है। जिसके कारण स्थानीय परिस्थितियों और संसाधनों के अनुरूप योजनाएं बनाने पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। लागतें अनाप-शनाप बढ़ाई जा रही हैं। खंडवा में भी यही सामने आया है। चूंकि इन योजनाओं में निजीकरण का विकल्प रखा गया है अतः इसका सीधा असर नागरिकों पर पड़ेगा।
वित्तीय आंकलन
खंडवा की पेयजल योजना को जन-निजी भागीदारी के तहत हैदराबाद की ‘विश्वा इंफ्रास्ट्रक्चर्स एंड सर्विसेस प्रा. लिमिटेड’ नामक निजी कंपनी को सौंप दिया है। विश्वा कंपनी ने एक अन्य निजी कंपनी ‘इलेक्ट्रोस्टील कास्टिंग लिमिटेड’ को 11% हिस्सेदारी देकर ‘विश्वा यूटिलिटीज प्राइवेट लिमिटेड’ (आगे से इसे संक्षेप में विश्वा कंपनी या कंपनी कहा गया है। नाम से स्पेशल परपज वेहीकल (Special Purpose Vechile) बनाया है जो अगले 23 वर्षों तक खंडवा में जलप्रदाय पर एकाधिकार रखेगा।
कंपनी ने योजना की लागत 115.32 करोड़ रूपए बताई है जिसमें से कंपनी को 93.25 करोड़ रूपए का अनुदान उपलब्ध करावाया जाएगा। शेष 22.06 करोड़ रूपए कंपनी को खुद की ओर से जुटाने होंगे। कंपनी अपने हिस्से की 75% राशि कर्ज लेगी जिसका ब्याज एवं कंपनी का मुनाफा भी जल दरें बढ़ाकर ही वसूला जाना है। योजना हेतु विश्वा ने विश्व बैंक की संस्था अंतरराष्ट्रीय वित्त निगम से कर्ज लिया है। कर्ज के लिए अंतरर्राष्ट्रीय वित्त निगम, विश्वा यूटीलिटीज और नगरनिगम के बीच त्रिपक्षीय सब्स्टीट्यूशन एग्रीमेंट हुआ है, जिसकी शर्त के अनुसार यदि विश्वा कंपनी कर्ज चुकाने में असमर्थ रहती है तो विश्व बैंक को यह अधिकार रहेगा कि वह विश्वा यूटिलिटीज के बजाए किसी अन्य निजी कंपनी को खंडवा की जलप्रदाय व्यवस्था सौंप दें। यह जानकारी नागरिकों को नहीं दी गई।
खंडवा नगरनिगम का जलप्रदाय पर खर्च
मद/वर्ष | 2005-2006 | 2006-2007 | 2007-2008 |
स्थापना खर्च | 75,25,372 | 8089023 | 9566194 |
विद्युत खर्च | 14,47,784 | 42,42,039 | 35,23,502 |
जल शुद्धिकरण खर्च | 6,83,224 | 7,45,259 | 4,53,018 |
मरम्मच खर्च | 33,96,662 | 26,88,401 | 29,02,084 |
अन्य खर्च | 1,32,12,647 | 1,17,76,984 | 1,53,83,605 |
कुल खर्च | 2,62,65,689 | 2,75,41,706 | 3,18,28,403 |
कुल वसूली | 65,44,294 (24.92%) | 1,17,84,974 (42.79%) | 94,25,115 (29.61%) |
स्रोत- खंडवा नगरनिगम से प्राप्त जानकारी के आधार पर।
कंपनी ने सालाना संचालन-संधारण खर्च 7.62 करोड़ रुपए बताया है और पानी की न्यूनतम दर 11.95 रूपए प्रति किलोलीटर निर्धारित की है। इसका अर्थ है कि कंपनी को अपना संचालन-संधारण खर्च निकालने हेतु कम से कम 17.47 एमएलडी जलप्रदाय करना होगा। यह लगभग उतनी ही पानी की मात्रा है जितनी वर्तमान में नगरनिगम द्वारा प्रदाय की जा रही है। यानी उतने ही जलप्रदाय के लिए अब कंपनी कई गुना अधिक पैसा वसूलेगी। यदि कंपनी खंडवा की वर्ष 2011 की आंकलित जनसंख्या 2,18,744 को 135 lpcd (लीटर/व्यक्ति/दिन) के हिसाब से 29.53 mld (दस लाख लीटर/दिन) जलप्रदाय करती है तो वह नगर से 12 करोड़ 88 लाख रुपए सालाना वसूलेगी। वर्ष 2011 में नगर की जनसंख्या 2,00,681 थी।
खंडवा नगरनिगम का जल राजस्व वसूली का इतिहास निराशाजनक रहा है। नगरनिगम वित्तीय वर्ष 2007-08 में पानी पेटे मात्र 94 लाख लाख 25 हजार रुपए ही वसूल पाया है जबकि इस अवधि में निगमन ने जलप्रदाय व्यवस्था पर कुल 3 करोड़ 18 लाख रुपए खर्च किए थे।
निजीकृत जलप्रदाय योजना का संचालन एवं संधारण खर्च
सं.क्र. | विवरण | खर्च/वर्ष (रुपए) |
a. | मानव संसाधन एवं प्रशासन | 72,00,000 |
b. | उपभोग सामग्री | 2,64,00,000 |
c. | कच्चा जल एवं विद्युत शुल्क | 3,66,00,000 |
d. | बीमा | 12,00,000 |
e. | विविध लागतें | 48,0,000 |
कुल संचालन संधारण खर्च |
| 7,62,00,000 |
स्रोत - विश्व इन्फ्रा द्वारा प्राईस ऑफर-II के फार्मेट नं. 15B, के आधार पर
ऐसे में सवाल उठता है कि जो नगरनिगम जलप्रदाय की अपनी अल्प लागत ही नहीं वसूल पा रहा है तथा वर्ष 1997-98 से लेकर 2012-13 तक जलदरों में वृद्धि का साहस नहीं कर पाया वह कंपनी के लिए उन्हीं नागरिकों से सालाना पौने तेरह करोड़ रुपए से अधिक राशि कैसे वसूलेगा? यदि कंपनी के मार्फत वसूली हो भी पाई तो स्थानीय नागरिकों की स्थिति क्या होगी? उल्लेखनीय है कि खंडवा के 14,089 परिवार यानी कुल आबादी का 40% हिस्सा गरीबी रेखा से नीचे होकर झुग्गी बस्तियों में निवास करता है।
अनुबंध के अनुसार कंपनी को 2 वर्षों में यानी सितंबर 2011 तक निर्माण पूर्ण कर जलप्रदाय शुरू करना था लेकिन कंपनी 4 वर्षों में भी निर्माण पूरा नहीं कर पाई है। मीडिया रिपोर्टें और स्थानीय समुदाय की प्रतिक्रियाएं दर्शाती है कि कंपनी द्वारा किया जा रहा निर्माण कार्य गुणवत्तापूर्ण नहीं है।
पहले नगरनिगम ने कंपनी के फायदे के लिए नल कनेक्शनों पर मीटर लगाने का विचार त्याग दिया था। इसके बदले घरेलू और व्यावसायिक कनेक्शनधारियों से कंपनी द्वारा वसूले जाने वाले फ्लैट रेट क्रमशः 150 और 300 रुपए/माह प्रस्तावित किए थे। गरीबों से (लाईफलाईन कनेक्शन) 100 रुपए/माह वसूला जाना था। लेकिन 31 मई 2012 को कंपनी का एक और काम नगरनिगम ने खुद ही कर दिया। जल दरें 50 रुपए/माह से बढ़ा कर 150 रुपए/माह कर दी।
औद्योगिक कनेक्शनों हेतु 2400 रुपए/माह की दरें प्रस्तावित की थी लेकिन इससे वसूली की दर पर कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि एक तो, खंडवा में औद्योगिक कनेक्शनों की संख्या उपेक्षणीय है और दूसरे, औद्योगिक जलापूर्ति नागचून से करने की योजना है जो कंपनी का काम नहीं है। रेलवे एक बड़ा व्यावसायिक उपभोक्ता है लेकिन उसकी अपनी खुद की जलप्रदाय योजना और शुद्धिकरण तंत्र है।
निजी कंपनी को योजना सौंपने का प्रमुख कारण ही यह रहा है कि जलप्रदाय व्यवस्था पर खर्च की जाने वाली राशि को निगम वसूल नहीं पा रहा है और दूसरे मदों का पैसा इसके घाटे की पूर्ति में खर्च हो जाता है जिससे नगर का विकास प्रभावित होता है। लेकिन निजी कंपनी को जलप्रदाय सौंपने के बाद तो निगम को जलप्रदाय के मद में पहले की अपेक्षा कई गुना अधिक राशि खर्च करनी पड़ेगी।निगम द्वारा पहले प्रस्तावित दरों से शतप्रतिशत वसूली होने के बावजूद निगम को सालाना 2 करोड़ 97 लाख रूपयों की ही आय संभावित थी। यदि मान लिया जाए कि खंडवा नगरनिगम की सीमा में स्थित सारी संपत्तियों (चाहे उनके स्वामी अनुमति दें चाहे न दें ) और गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों को नल कनेक्शन दे दिए जाते और उनसे शतप्रतिशत वसूली हो पाती तो भी 6 करोड़ 80 लाख रुपए सालाना से अधिक वसूली नहीं हो पाती और इतनी राशि से कंपनी के पानी के बिल की पूर्ति नहीं हो पाती। कंपनी के वास्तविक बिल और वसूली में भारी अंतर होता और अनुबंध की शर्तों के तहत करोड़ों रूपए की अंतर राशि अनुदान के रूप में नगरनिगम द्वारा कंपनी को चुकानी पड़ती। यही स्थिति भविष्य में भी उत्पन्न होने वाली है। लेकिन सवाल उठता है कि वर्ष 2009-10 में मात्र 14 करोड़ रुपए के सालाना बजट वाले नगरनिगम के पास कंपनी को चुकाने के लिए करोड़ों रुपया हर साल आएगा कहां से?
पिछले दिनों नगरनिगम ने एक बार फिर 200 रुपए/माह की फ्लैट दरें घोषित की है। वास्तव में इस घोषणा का अर्थ सिर्फ नागरिकों को भ्रमित कर कंपनी और पानी के निजीकरण की वकालत करना मात्र है क्योंकि एक तो, इन दरों से भी कंपनी की मांग पूरी नहीं होगी तथा दूसरे, कंपनी द्वारा जलप्रदाय शुरू करते ही दरें तय करने का काम नगरनिगम के क्षेत्राधिकार से बाहर हो जाएगा।
भगवंत सागर से 42 पैसे प्रति किलोलीटर में मिलने वाले पानी की रायल्टी भी निगम चुका नहीं पा रहा है। वर्ष 2002-03 तक की बकाया राशि का शासन स्तर पर समायोजन किया गया। इसके बाद भी निगम पानी की रॉयल्टी नहीं चुका पाया। वर्ष 2010-11 में पानी की रॉयल्टी पेटे निगम पर जल संसाधन विभाग के 1 करोड़ 7 लाख रुपए बकाया था।
पानी के बदले निजी कंपनी को किया जाने वाला भुगतान
वर्ष | जनसंख्या | मांग @ 135 Ipcd (एमएलडी) | प्रस्तावित दरें प्रति/किली (रुपए) | कंपनी को भुगतान (लाख रुपए) |
2011 | 218744 | 29.53 | 11.95 | 1288.04 |
2012 | 222172 | 29.99 | 11.95 | 1308.22 |
2013 | 225659 | 30.46 | 13.15 | 1461.63 |
2014 | 229206 | 30.94 | 13.15 | 1485.17 |
2015 | 232815 | 31.43 | 14.47 | 1508.56 |
2016 | 236485 | 31.93 | 14.47 | 1656.15 |
Note
1. विश्व इन्फ्रा ने प्राईस ऑफर-II में एक संक्षिप्त नोट में कहा है कि वह 30 एमएलडी जलप्रदाय 4 वर्ष बाद तब शुरू करेगी जब हर परिवार को कनेक्शन दे दिए जाएंगे तथा वितरण लाईनों तथा तंत्र पुनर्वास का काम भी पूरा हो जाएगा।
2. कंपनी ने पाईस ऑफर-II में सालाना संचालन-संधारण खर्च 7 करोड़ 62 लाख रुपए तथा सालाना जल राजस्व 7 करोड़ 70 लाख रुपए का आंकलन किया है। 11.95 रुपए/किली के हिसाब से 7 करोड़ 62 लाख रुपए में साल भर मात्र 17.47 एमएलडी पानी ही प्रदाय किया जा सकता है। पानी की यह मात्रा उतनी ही है जितनी वर्तमान में नगरनिगम द्वारा प्रदाय की जा रही है।
3. हर तीसरे साल की जाने वाली 10% की वृद्धि के आधार पर दरें दर्शाई गई है।
स्रोत - विस्तृत योजना रपट तथा विश्वा इन्फ्रा द्वारा प्रस्तुत वित्तीय निविदा प्रपत्र
निजी कंपनी को योजना सौंपने का प्रमुख कारण ही यह रहा है कि जलप्रदाय व्यवस्था पर खर्च की जाने वाली राशि को निगम वसूल नहीं पा रहा है और दूसरे मदों का पैसा इसके घाटे की पूर्ति में खर्च हो जाता है जिससे नगर का विकास प्रभावित होता है। लेकिन निजी कंपनी को जलप्रदाय सौंपने के बाद तो निगम को जलप्रदाय के मद में पहले की अपेक्षा कई गुना अधिक राशि खर्च करनी पड़ेगी। चूंकि निगम के पास इस मद में राशि नहीं होगी इसलिए उसे अन्य मदों की और अधिक राशि कंपनी को भुगतान करनी पड़ेगी और नगर का विकास पहले से अधिक प्रभावित होगा। निजी कंपनी द्वारा जलप्रदाय की कीमत नागरिकों को कई तरीकों यथा सड़क, शिक्षा, स्वच्छता, स्ट्रीट लाईट आदि, की परेशानी उठाकर दशकों तक चुकाना होगा।
निजीकरण के प्रभाव
सामाजिक और आर्थिक विषमताओं से भरे समाज में जलप्रदाय योजनाओं के निजी हाथों में चले जाने के बहुआयामी एवं दूरगामी परिणाम होंगे। जलप्रदाय व्यवस्था का संचालन कल्याणकारी कर्तव्य के बजाए बाजार के नियमों से होगा और समाज के सबसे कमजोर तबके के प्रति जवाबदेही को सिरे नकार दिया जाएगा। सार्वजनिक नलों को बंद कर दिया जाएगा और नगर में ऐसी कोई गतिविधि संचालित नहीं होने दी जाएगी जिससे लोग कंपनी के अलावा अन्य स्रोतों से पानी प्राप्त कर सकें। अनुबंध के पूर्व से चालू हैंडपंपों को बंद करने का भी कंपनी को अधिकार होगा।
प्रतियोगी सुविधा का विरोध
कंपनी से किए गए अनुबंध की 11वीं कण्डिका के रूप में No Parallel Competing Facility यानी ‘कोई समानांतर प्रतियोगी सुविधा नहीं’ नाम की एक कण्डिका का उल्लेख किया गया है। इस कण्डिका को बड़ी चतुराई से अस्पष्ट रूप से लिखा गया है। अनुबंध दस्तावेज में न तो इस वाक्यांश की परिभाषा दी गई है और न ही इसमें उपयोग किए गए शब्दों की व्याख्या की गई है। इसके विपरीत अन्य सभी धाराओं की विस्तृत व्याख्या की गई है। इस धारा के माध्यम से खण्डवा के नागरिकों को पानी के अधिकार से वंचित किया जाएगा।
‘कोई समानांतर प्रतियोगी सुविधा नहीं’ धारा के तहत नगरनिगम की सीमा में कंपनी के काम (पेयजल प्रदाय) के समानांतर प्रतियोगी गतिविधि संचालित हो पाएगी। यदि कोई व्यक्ति या समूह नगर में जलप्रदाय करता है तो इससे कंपनी के हित प्रभावित होंगे। इसका अर्थ है कि न तो नागरिक और न ही नगरनिगम अगले 23 वर्षों के लिए पानी प्राप्त करने की कोई युक्ति निर्मित/संचालित कर पाएंगे।
नागरिकों द्वारा अपने घरों में लगे ट्यूबवेलों की न तो क्षमता बढ़ाई जा सकेंगी और न ही नए ट्यूबवेल खोदे जा सकेंगे। जिन हैंडपंपों में गर्मी के दिनों में जलस्तर नीचे चला जाएगा वहां अतिरिक्त पाईप (आवर्धन) भी नहीं लगाए जा सकेंगे। केवल इतना ही नहीं पड़ोसी को पानी देना भी महंगा पड़ने वाला है।
24x7 जलप्रदाय की पोल खुली
योजना की शुरुआत में 24x7 जलप्रदाय का सब्जबाग दिखाया गया था लेकिन टेंडर भरने वाली 4 में से 3 कंपनियों अशोका बिल्डकॉन, यूनिटी इंफ्रा और जसकों ने इस विचार को अव्यावहारिक बताया था। इसलिए, पहले दिन में 6 घंटे का आश्वासन दिया गया लेकिन बाद में इसे बदलकर सुबह-शाम 2-2 घंटे कर दिया गया। यहां उल्लेखनीय है कि खंडवा के नागरिकों ने स्वंय ही 24x7 जलप्रदाय को नकार कर प्रतिदिन 1 या 2 घंटे जलप्रदाय की मांग की है। पानी के निजीकरण संबंधी नागरिकों की शिकायतों के निराकरण हेतु राज्य शासन द्वारा गठित स्वतंत्र समिति के समक्ष नगरनिगम 24x7 जलप्रदाय का दावा नहीं कर पाई है।
आपातकालीन परिस्थिति
अनुबंध के No Parallel Competing Facility संबंधी प्रावधान के कारण जलप्रदाय तंत्र और नगर के सारे सार्वजनिक जलस्रोत कंपनी को सौंपने पड़ेंगे। नगर के सारे सार्वजनिक नल बंद करने पड़ेंगे। वर्तमान जलस्रोतों की क्षमता वृद्धि और नए स्रोत निर्माण पर पाबंदी होगी। साथ ही टैंकर से जलप्रदाय भी संभव नहीं होगा। संक्षेप में अनुबंध की इस शर्त का प्रभाव यह होगा कि आगामी कुछ वर्षों में सारे वैकल्पिक जलस्रोत बंद कर दिए जाएंगे जिससे वर्तमान में कार्यरत पूरा जलप्रदाय तंत्र या तो कंपनी के नियंत्रण में चला जाएगा या चालू हालत में नहीं रहेगा। सबसे दुःखद सार्वजनिक क्षेत्र में जलप्रदाय कौशल की समाप्ति होगा। इस काम को जानने वाली पीढ़ी सार्वजनिक क्षेत्र में नहीं रहेगी। आपातकालीन परिस्थिति में साधन तो जुटाए जा सकते हैं लेकिन जलप्रदाय तंत्र के सुचारू संचालन के लिए अपेक्षित कौशल और ज्ञान रखने वाले मानव संसाधन की तात्कालिक व्यवस्था नहीं की जा सकती है।
इसके बावजूद नल कनेक्शन के अनुबंध में यह लिखवा लिया जाएगा कि कंपनी द्वारा जलप्रदाय नहीं कर पाने की स्थिति में नागरिक अपने पानी की व्यवस्था स्वयं कर लेंगे। सार्वजनिक जलप्रदाय तंत्र खत्म होने के बाद यदि किन्हीं तकनीकी या प्राकृतिक कारणों से कंपनी का जलप्रदाय बाधित हुआ तो नागरिक पानी लाएंगे कहां से और कैसे?
कर्मचारियों का भविष्य अंधकारमय
खण्डवा में 1733 सार्वजनिक नल कनेक्शनों सहित 17,676 नल कनेक्शन हैं। प्रति हजार कनेक्शन पर 10 के हिसाब से करीब 175 कर्मचारी हैं। पेयजल व्यवस्था के निजी हाथों में जाने के कारण इन कर्मचारियों की जबरन छंटनी करनी होगी।
UIDSSMT हेतु आवेदन करने के पूर्व स्थानीय निकायों को रिफार्म एजेंडा स्वीकार करना होता है। 4 दिसंबर 2007 को तत्कालीन राज्य स्तरीय नोडल एजेंसी मध्य प्रदेश विकास प्राधिकरण संघ के साथ किए गए अनुबंध (मेमोरंडम ऑफ एग्रीमेंट) में प्रशासनिक सुधार के नाम पर जलप्रदाय से जुड़े कर्मचारियों को स्वैच्छिक (अनिवार्य) सेवानिवृत्ति देने और सेवानिवृत्ति से रिक्त पदों को नहीं भरने का निर्णय खण्डवा नगरनिगम ने ले लिया है।
इसके अलावा नगरनिगम प्रस्ताव दिनांक 31 मार्च 2008 में भी घोषणा की गई है कि जलप्रदाय से संबंधित अमला नर्मदा योजना के संचालन हेतु प्रशिक्षित नहीं है। अतः इस बात की कोई संभावना नहीं है कि कंपनी इन ‘अप्रशिक्षित’ कर्मचारियों को नौकरी दें। ऐसी स्थिति में कर्मचारियों की छंटनी नगरनिगम की बाध्यता है।
अनुबंध की कण्डिका 7.5 में निर्माण मजदूरों और कर्मचारियों के अधिकारों और उनकी सुरक्षा के बारे में 10 उप कण्डिकाओं में विस्तार से उल्लेख किया गया है। लेकिन, नगरनिगम के जलप्रदाय विभाग में कार्यरत कर्मचारियों की रोज़गार सुरक्षा के बारे में कहीं कुछ नहीं कहा गया है। जबकि, निगम चाहता तो निजी कंपनी में इन कर्मचारियों की नौकरी का प्रावधान किया जा सकता था।
अनुभव बताते हैं कि निजी कंपनियों स्थानीय खासकर संगठित कर्मचारियों को पसंद नहीं करती है। नागपुर (महाराष्ट्र) के धरमपेठ झोन में जलप्रदाय का ठेका पीपीपी के तहत फ्रांस की ‘विओलिया’ द्वारा नियंत्रित कंपनी को दिया गया है। वहां कंपनी द्वारा बिछाई गई भूमिगत पाईप लाईनों तथा मीटर लगाने जैसे कार्यों में स्थानीय कर्मचारियों और संगठित कामगारों की कोई भूमिका नहीं रही। पंजीकृत यूनियन के तहत नगरनिगम के कार्यों से जुड़े रहे स्थानीय कुशल/अकुशल मजदूरों तथा प्लंबरों तक को कंपनी ने कोई काम नहीं दिया।
कंपनी का हित संरक्षण
अनुबंध में नागरिकों के हितों की तो अनदेखी की गई है लेकिन, कंपनी के हितों का बखूबी ध्यान रखा गया है। निगम द्वारा निजीकरण के पक्ष में चौबीसों घंटे जलप्रदाय, पूरी तरह भरोसेमंद तंत्र, भरपूर पानी उपलब्धता वाली सस्ती जलप्रदाय व्यवस्था का दावा किया गया था लेकिन कंपनी को फायदा पहुंचाने हेतु 24x7 जलप्रदाय की शर्त को पिछले दरवाजे से बदल दिया गया है। पाईप मटेरियल में अनुचित तरीके से बदलाव किया गया। मीटर स्थापना के खर्च से कंपनी को मुक्त कर दिया तथा 120 किमी की नई वितरण लाईन डालने की बाध्यता को घटाकर 60 किमी कर दिया गया।
कंपनी के बिलों का तत्परता से भूगतान किया गया। बिलों में देरी होने पर प्रदेश के एक केबिनेट मंत्री द्वारा आधिकारिता नहीं होने के बावजूद हस्तक्षेप कर कंपनी को भुगतान का आदेश दिया गया। समय पर काम पूरा नहीं करने वाली कंपनी से अनुबंध तोड़ना तो दूर उसे चेतावनी तक नहीं दी गई। काम में देरी पर कंपनी से हर्जाना वसुलने के बजाए समय सीमा बढ़ाकार उसे पुरस्कृत किया गया।
कंपनी द्वारा जलप्रदाय शुरू करने के बाद नगरनिगम जल कनेक्शनधारियों से एक नए अनुबंध पर हस्ताक्षर करवाएगा। इस अनुबंध में सेवा बेहतर करने का तो कोई आश्वासन नहीं है लेकिन सेवा में कमी पर कंपनी की शिकायत न की जा सके इसका जरूर प्रावधान कर दिया गया है। नल कनेक्शनधारियों से वचन लिया जाएगा कि वे पानी के कम दबाव, जलप्रदाय का समय और उपलब्ध करवाई जा रही पानी की मात्रा के संबंध में कोई शिकायत नहीं करेंगे।
बिल राशि संबंधी विवाद के पूर्व कंपनी द्वारा जारी बिल का भुगतान करना होगा। शिकायत सही पाए जाने पर भुगतान की गई राशि अगले बिलों में समायोजित की जा सकेगी। साथ ही यह भी लिखवा लिया जाएगा कि यदि कारणवश कंपनी जलप्रदाय नहीं कर पाए तो नागरिक अपने पानी की व्यवस्था स्वयं कर लेंगे।
2 माह बिल नहीं भरने पर कंपनी कनेक्शन काट देगी। फिर से सेवा शुरू करवाने हेतु नागरिकों को बकाया बिल राशि के साथ नए कनेक्शन का शुल्क भी देना होगा।
यदि कंपनी अनुबंध में उल्लेखित जलप्रदाय नहीं कर पाई तो भी उसके खिलाफ सेवा में कमी का मामला नहीं बन पाएगा क्योंकि संबंधित धारा में “यथा संभव” जोड़ कर कंपनी को जवाबदेही से मुक्त कर दिया गया है।
खंडवा की पेयजल योजना निर्माण हेतु 90% अनुदान दिए जाने के बावजूद टेंडर प्रक्रिया में शामिल जलक्षेत्र की अनुभवी कंपनियों ने इसे व्यावहारिक मानने से इंकार कर दिया था। लेकिन, जानबूझकर निहित कारणों से इस योजना को आगे बढ़ाया गया। हर प्रकार से कोशिश करने के बाद भी जब योजना आर्थिक दृष्टि से व्यवहार्थ नहीं बनाई जा सकी तो राज्य स्तरीय नोडल एजेंसी की आपत्ति के बावजूद बगैर किसी आधिकारिता के गैरकानूनी तरीके से इसे आगे बढ़ाया गया ताकि ठेकेदार कंपनी को फायदा पहुंचाया जा सके।कनेक्शन शुल्क तो 300 रूपए ही रखा गया है लेकिन इसके साथ मेन लाईन से घर तक का कंपनी द्वारा निर्धारित ब्रांड तथा मटेरियल के पाईप, फेरूल, मीटर, अन्य कनेक्शन सामग्री, रोड खुदाई और प्लंबर का खर्च कनेक्शनधारियों को उठाना पड़ेगा। नागपुर में बिओलिया कंपनी द्वारा किए जा रहे कनेक्शन का खर्च करीब 12 हजार रुपए प्रति कनेक्शन है। निजीकरण हेतु जारी अधिसूचना (नगर पालिका निगम खंडवा वाटर मीटरिंग और नल संयोजन नियमितीकरण नियम 2012) कंडिका 20 एवं 28 में लगाए जाने वाले ‘वायरलेस’ के जरिए ऑटोमेडेड मीटर रीडिंग इंटरफेस वाले अत्याधुनिक मीटर की अनिवार्यता बताई गई है जिसकी कीमत करीब 10 हजार रुपए है। इस मीटर की खासियत यह होती है कि मीटर रीडर को मीटर देखकर रीडिंग पढ़ने की जरूरत नहीं होती है। इस आधुनिक प्रणाली में मीटर रीडर को एक उपकरण लेकर गलियों के चक्कर भर लगाने होते हैं और रीडिंग अपने आप मीटर रीडर के उपकरण में दर्ज हो जाती है। चूंकि मीटर लगाना अनिवार्य है इसलिए प्रत्येक कनेक्शन की लागत करीब 15 हजार रुपए होने का अनुमान है।
कितना पानी ?
विस्तृत योजना (DPR) में केंद्रीय लोक स्वास्थ्य एवं पर्यावरणीय अभियांत्रिकी संगठन (CPHEEO) के मानकों के अनुसार खंडवा की वर्ष 2011 की अुमानित 2,18,744 जनसंख्या के लिए 135 Ipcd के हिसाब से 29.53 एमएलडी की मांग बताई गई है। जबकि जलप्रदाय 12.6 एमएलडी से 19.50 एमएलडी के मध्य होता है।
CPHEEO मानकों के अनुसार खंडवा जैसे छोटे नगरों, जहां मलनिकास प्रणाली (Sewege System) नहीं है, के लिए जलप्रदाय का मानक मात्र 70Ipcd है। इस मानक के अनुसार खंडवा की वर्ष 2011 की जनसंख्या 2,00,681 की वास्तविक जरूरत मात्र 14.05 एमएलडी होती है।
सार्वजनिक नलों से पानी लेने वालों के लिए यह मानक मात्र 40 Ipcd है। खंडवा में वर्तमान में एक तिहाई परिवारों के पास ही अपने स्वयं के नल कनेक्शन है। यदि शेष 2 तिहाई परिवार आगे भी अपने नल कनेक्शन नहीं ले पाते हैं और ‘विश्वा’ कंपनी द्वारा सुझाए गए समूह कनेक्शनों से ही पानी लेते हैं तो नगर की वास्तविक मांग मात्र 10.03 एमएलडी ही रहेगी। (मोटे तौर पर नल कनेक्शनधारी एक तिहाई जनसंख्या (66,894) के लिए 70 Ipcd के हिसाब से 4.68 एमएलडी और बिना नल कनेक्शनधारी दो तिहाई जनसंख्या (1,33,787) के लिए 40Ipcd के हिसाब से 5.35 एमएलडी।
नगरनिगम के आंकड़े खुद बताते हैं कि नगर में गर्मी के मौसम में भी CPHEEO मानक से अधिक मात्रा में पानी उपलब्ध है। गर्मी के मौसम में खंडवा के बाहर से पानी के परिवहन की जरूरत नहीं पड़ती है और टैंकरों में भी नगर के जलस्रोतों से ही पानी भरा जाता है।
नगर में होने वाला जलसंकट वास्तव में व्यवस्थापन की समस्या है जिसे बगैर निजीकरण के हल किया जा सकता है। पर्याप्त जल उपलब्धता के बावजूद कृत्रिम जल संकट पैदा करने का कारण एक गैरजरूरी योजना के पक्ष में माहौल तैयार करना मात्र है।
कसी व्यक्ति के डिफाल्टर होने पर भी कंपनी को खास फर्क नहीं पड़ेगा। ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति पर बकाया राशि में से आधी राशि का भुगतान निगम द्वारा कंपनी को तुरंत कर दिया जाएगा तथा शेष भुगतान व्यक्ति से मिलने के बाद किया जाएगा।
जल दर पुनरीक्षण
जल दर पुनरीक्षण समिति में निगम के लेखापाल, ऑडिटर, इंजीनियर और कंपनी के प्रतिनिधि शामिल होंगे। जल दरें प्रत्येक 3 वर्ष में 10% की दर से बढ़ाई जानी प्रस्तावित है। लेकिन जब कभी कंपनी जलदरें बढ़ाने का निवेदन करे तो यही समिति उसके बारे में निर्णय लेगी। 3 वर्ष में 10% की जलदर वृद्धि कम लगती है। इसलिए संभावना है कि कंपनी समय-समय पर मांग कर जलदरों में वृद्धि करवा लेगी। चूंकि इस समिति में सरकारी कर्मचारी और कंपनी के प्रतिनिधियों का बहुमत है। इसलिए कंपनी के लिए मनमानी दरें तय करवाना आसान होगा।
योजना पर प्रश्नचिन्ह
निजी निवेश के समय योजना के वित्तीय स्वावलंबन पर बल दिया जाता है। लेकिन इस योजना की वित्तीय स्वावलंबन पर टेंडर प्रक्रिया में शामिल कंपनियों ने गंभीर सवाल खड़े किए हैं। संभवतः इसी कारण से अधिकांश कंपनियों ने टेंडर प्रस्तुत ही नहीं किए।
योजना के टेंडर 19 कंपनियों ने खरीदे थे, प्रि-बिड मीटिंग में 12 कंपनियां शामिल हुई लेकिन टेंडर प्रस्तुत करने केवल 4 कंपनियां ही सामने आई। टेंडर प्रक्रिया में शामिल 4 में से 3 कंपनियों ने लिखित में स्पष्ट किया था कि यह योजना आर्थिक दृष्टि से व्यवहार्य नहीं है।
1. अशोका बिल्डकॉन ने योजना को आर्थिक स्वावलंबी बनाने हेतु योजना लागत तथा संचालन /संधारण खर्च कम करने हेतु वर्तमान स्रोत जसवाड़ी (सुक्ता) प्लांट और नागचून से जलप्रयाद जारी रखने का सुझाव दिया था। कंपनी 24x7 जलप्रदाय के विचार को भी खारिज कर दिया था क्योंकि इससे बिजली का खर्च काफी बढ़ जाता। उल्लेखनीय है कि विश्वा यूटिलिटीज द्वारा संचालन-संधारण खर्च का आधा हिस्सा तो सिर्फ विद्युत पर खर्च किया जाना है।
2. जसको ने योजना को आर्थिक दृष्टि से अव्यवहार्थ बताते हुए कहा था कि सामाजिक और राजनैतिक कारणों से पानी के दाम इतने नहीं बढ़ाए जा सकते कि उससे पूरी लागत निकाल ली जाए। ऐसी स्थिति में निगम को पूर्ण भुगतान की गारंटी लेनी चाहिए। क्योंकि निजी कंपनी यह जोखिम नहीं उठा सकती।
3. यूनिटी इन्फ्रा ने बताया था कि खंडवा में पानी की कम मांग और लंबे परिवहन के कारण संचालन/संधारण खर्च अधिक होगा जिससे योजना आर्थिक दृष्टि से व्यावहारिक नहीं रह जाएगी। पानी की दरे वर्तमान की अपेक्षा 6-7 गुना जाएंगी, जिसके लोग आदी नहीं है। इसके हल के रूप में कंपनी ने गारंटी की मांग की थी।
खंडवा की पेयजल योजना निर्माण हेतु 90% अनुदान दिए जाने के बावजूद टेंडर प्रक्रिया में शामिल जलक्षेत्र की अनुभवी कंपनियों ने इसे व्यावहारिक मानने से इंकार कर दिया था। लेकिन, जानबूझकर निहित कारणों से इस योजना को आगे बढ़ाया गया। हर प्रकार से कोशिश करने (निविदा प्रपत्रों में संशोधनों) के बाद भी जब योजना आर्थिक दृष्टि से व्यवहार्थ नहीं बनाई जा सकी तो राज्य स्तरीय नोडल एजेंसी की आपत्ति के बावजूद बगैर किसी आधिकारिता के गैरकानूनी तरीके से इसे आगे बढ़ाया गया ताकि ठेकेदार कंपनी को फायदा पहुंचाया जा सके।
वित्तिय वर्ष 2009-10 में खंडवा नगरनिगम की समस्त राजस्व आय मात्र 10.14 करोड़ आंकी गई है। ऐसी स्थिति में क्षतिपूर्ति तथा उन्य मदों के तहत शासन से प्राप्त होने वाली राशि का समायोजन कंपनी के खाते में करना पड़ेगा और पैसे के अभाव में नगर का विकास अवरूद्ध हो जाएगा। संक्षेप में आसानी से पानी उपलब्ध करवाने के नाम पर निगम का खजाना पूरे 23 सालों के लिए निजी कंपनी के लिए खोल दिया गया है जिसका परिणाम नगर की एक पूरी पीढ़ी को भुगतना पड़ेगा।
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