गोवा की अर्थव्यवस्था में खनन का बहुत बड़ा हिस्सा है। हालांकि यह जीएसडीपी के 7.5 प्रतिशत से अधिक भी नहीं रहा। इससे रोजगार प्राप्त होता है और यह राज्य सरकार को थोड़ा बहुत राजस्व भी प्रदान करता है। परन्तु खनन गोवा की सबसे बड़ी पर्यावरणीय एवं सामाजिक समस्या भी है। इसने हमारे खेत, खदान एवं नदियों को नष्ट कर दिया और मछली करी और चावल के स्रोतों को भी नुकसान पहुँचाया। इसने खनन क्षेत्र में निवास कर रहे लाखों लोगों के फेफड़ों को क्षति पहुँचाई है और यह असंख्य मौतों के लिये भी जिम्मेदार है। गोवा में खनन बेहद विभाजनकारी है। अतएव खनन पर अपना दृष्टिकोण बनाते समय हमने अत्यन्त सावधानीपूर्वक सभी भागीदारों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखा है और कुछ सिद्धान्तों के आधार पर ठोस कदम उठाए हैं जिससे कि सभी पक्ष लाभान्वित हो सकें। खनन पर निर्भर व्यक्तियों को लाभ हो, खनन से प्रभावित व्यक्तियों को लाभ हो, गोवा की राज्य सरकार लाभान्वित हो, गोवा के नागरिक लाभान्वित हों, गोवा के भविष्य के नागरिक लाभान्वित हों, खननकर्ता 20 प्रतिशत तक लाभार्जन कर सकते हैं परन्तु अब वे लूट नहीं सकते।
पृष्ठभूमि
संविधान के अन्तर्गत (अनुच्छेद 295) गोवा के खनिज का स्वामित्व गोवा राज्य का है। परन्तु सार्वजनिक ट्रस्ट सिद्धान्त (डाक्ट्रिन) अनुच्छेद 21, जीवन का अधिकार के अनुसार राज्य सरकार विशेषकर भविष्य की पीढ़ी के सन्दर्भ में प्राकृतिक संसाधनों की महज ट्रस्टी है। दूसरे शब्दों में कहें तो खनिज गोवा के निवासियों की साझा सम्पत्ति है। इसके अतिरिक्त आनुवंशिक समता सिद्धान्त (इंटरजनरेशनल इक्विटी प्रिसिंपल) (अनुच्छेद 21 जीवन का अधिकार) के अनुसार, हमें तो खनिज विरासत में मिले हैं हम महज इनके अभिरक्षक हैं और हमें हर हाल में इन्हें अपनी भविष्य की पीढ़ियों को हस्तान्तरित करना है।
खनन लीज होल्डर जमीन के नीचे दबे खनिजों के मालिक या स्वामी नहीं हैं। उनके पास महज वैध खनन करने की लीज है। वह वास्तव में केवल कच्ची धातु निकाल सकते हैं। यदि उन्होंने केवल कच्ची धातु के लिये ही भुगतान किया हो तो क्या इससे उन्हें कच्ची धातु पर स्वामित्व भी प्राप्त हो जाता है?
गोवा की अर्थव्यवस्था में खनन का बहुत बड़ा हिस्सा है। हालांकि यह जीएसडीपी के 7.5 प्रतिशत से अधिक भी नहीं रहा। इससे रोजगार प्राप्त होता है और यह राज्य सरकार को थोड़ा बहुत राजस्व भी प्रदान करता है। परन्तु खनन गोवा की सबसे बड़ी पर्यावरणीय एवं सामाजिक समस्या भी है। इसने हमारे खेत, खदान एवं नदियों को नष्ट कर दिया और मछली करी और चावल के स्रोतों को भी नुकसान पहुँचाया। इसने खनन क्षेत्र में निवास कर रहे लाखों लोगों के फेफड़ों को क्षति पहुँचाई है और यह असंख्य मौतों के लिये भी जिम्मेदार है।
खनन गोवा में भ्रष्टाचार का एकमात्र सबसे बड़ा स्रोत है और इसकी वजह या जड़ है गोवा की निकृष्ट प्रशासनिक व्यवस्था। सर्वोच्च न्यायालय ने स्वयं अपने निर्णय में कहा है कि प्रतिबन्ध लगाने के पहले पाँच साल तक हुआ खनन पूरी तरह से अवैध था यानी 100 प्रतिशत अवैध। इसके अलावा भी अवैधानिक खनन को लेकर तमाम रिपोर्ट सामने आ चुकी हैं। जिनमें शामिल हैं (1) पीएसी रिपोर्ट (2) शाह आयोग रिपोर्ट 1 एवं 2 (3) सीईसी रिपोर्ट (4) पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को प्रस्तुत ईएसी रिपोर्ट, (5) ईआईए पर सीईई/गाडगिल रिपोर्ट (6) शाह आयोग रिपोर्ट-3 (7) 17 चार्टर्ड अकांउटेंट (सीए) द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट। इसके अलावा एसआईटी, लोकायुक्त एवं प्रवर्तन निदेशालय द्वारा जाँचें जारी हैं।
सबसे बदतर बात यह है कि ऐसा अनुमान लगाया गया है कि खनन की लीज देने की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप हमारे खनिजों के मूल्यों में 95 प्रतिशत से अधिक ही हानि हो जाती है और जो क्षुद्र सी धनराशि प्राप्त भी होती है, वह भी खर्च हो जाती है और उसे भविष्य के लिये सम्भाल कर या जमा करके नहीं रखा जाता। कुल मिलाकर यह जबरदस्त नुकसान था। गणना करें तो इससे राज्य के राजस्व को करीब दोगुना घाटा हुआ है या प्रति व्यक्ति आय के 25 प्रतिशत या गरीबी रेखा से तीन गुना घाटा हुआ है। इस घाटे को प्रति व्यक्ति कर के रूप में भी सभी में विभाजित किया जा सकता है। कुछ लोग हमारे बच्चों की विरासत से अमीर बन गए अतएव यह कोई मान्य स्थिति नहीं है।
भाजपा सरकार को खनन मुद्दा सुलझाने का स्वर्णिम अवसर मिला था। 10,000 करोड़ रु. से अधिक की कच्ची धातु व इकट्ठा सामग्री राज्य की सम्पत्ति बन गई थी। कोई भी खनन लीज वैध नहीं थी और उनके पास इस पूरी प्रणाली को नए सिरे से तैयार करने का मौका था। परन्तु सरकार ने 88 लीजों का नवीनीकरण कर दिया। इनमें से तमाम को एक हफ्ते के अन्दर मंत्रीमंडल की स्वीकृति एवं अध्यादेश जारी होने के मध्य नवीनीकृत कर दिया गया।
ओड़िशा की तरह न होते हुए गोवा में पिछले दिनांक से भी इन्हें नवीनीकृत कर दिया गया। फलस्वरूप हमारा दावा ही खत्म हो गया। चूँकि यह 95 प्रतिशत नुकसान वाली पुरानी प्रणाली पर आधारित है अतएव इसके परिणामस्वरूप हमें 79,000 करोड़ रु. का अतिरिक्त घाटा होगा। यह कुल मिलाकर 1,44,000 करोड़ रु. बैठेगा यानी प्रति व्यक्ति करीब 10 लाख रु.। इसे हर हाल में रोकना ही होगा।
हम इस लीज को तुरन्त रद्द करने के सभी वैधानिक तरीके ढूँढेंगे और अपने अधिकार एवं बकाया राशि भी प्राप्त करेंगें। हम शून्य हानि खनन (जीरो लॉस खनन) की नीति जीरो वेस्ट माइनिंग का क्रियान्वयन करवाएँगे और इससे प्राप्त धनराशि को गोआंचि माटी परमानेंट फंड (स्थायी कोष) में जमा करेंगे तथा केवल वास्तविक आमदनी को नागरिक लाभांश के रूप में वितरित करेंगे।
खनन पर आगे बढ़ने से पूर्व हम सर्वप्रथम यह सुनिश्चित करेंगे कि हमारी भविष्य की पीढ़ी के पास खनन हेतु यथोचित खनिज उपलब्ध रहें। इसके पश्चात हम यह सुनिश्चित करेंगे कि सभी पर्यावरणीय एवं कानूनी आवश्यकताओं की पूर्ति हो। तीसरा यह कि नए खनन प्रारम्भ के पूर्व हम वहाँ पर जो पहले से पड़ा है उसे निपटाएँगे। इससे स्थायी कोष (परमानेंट फंड) के लिये धन इकट्ठा होगा और यह दो पर्यावरणीय समस्याओं, वहाँ पर इकट्ठा धातु एवं खाली छोड़ दिये गए गड्ढों से भी निपटने में सहायक होगा। चौथा, नए खनन हेतु हम एकाग्र (कन्सन्ट्रेटेड) खनन का प्रस्ताव दे रहे हैं। इसमें केवल एक या दो खदानों को लीज पर दिया जाएगा जो कि व्यापक विध्वंस को न्यूनतम करेगा और इससे हमारे नियंत्रण में वृद्धि होगी। पाँचवा, यह कि जिला खनन फेडरेशन, खनन प्रभावितों के साथ पारस्परिक भागीदारी बजट प्रक्रिया के तहत अपनी योजनाएँ विकसित करेंगे।
यह स्पष्ट है कि इन बन्दिशों की वजह से खनन कम्पनियों द्वारा प्रस्तावित विशाल ट्रकों के प्रयोग एवं यंत्रीकरण के माध्यम से होने वाले सुधारों पर अंकुश लगेगा। परिणामस्वरूप पहले के स्तर का रोजगार उपलब्ध नहीं हो पाएगा। अतएव हमने अधिक रोजगार सृजन एवं साथ ही साथ नए अवसरों हेतु एवं व्यक्तियों को पुनः कौशलपूर्व बनाने हेतु एक अन्तरिम योजना भी बनाई है। और यह तो तय है कि खनन पर निर्भर एवं खनन प्रभावित दोनों को राहत पहुँचाने की आवश्यकता है।खनन इन सिद्धान्तों पर आधारित होगा
(1) हम गोवा के नागरिक, खनिजों के साझा स्वामी हैं। राज्य सरकार इन प्राकृतिक संसाधनों के सन्दर्भ में व्यक्तियों और विशेषकर भावी पीढ़ियों के लिये महज एक ट्रस्ट है। (सार्वजनिक ट्रस्ट सिद्धान्त)
(2) चूँकि हमें खनिज विरासत में मिले हैं और हम महज इसके अभिरक्षक हैं अतएव हम इसे निश्चित तौर पर भविष्य की पीढ़ियों को हस्तान्तरित करें। (वंशानुगत समता-इंटरजनरेशनल इक्विटी)
(3) अतएव यदि हम खनन करते हैं और अपने खनिज संसाधनों की बिक्री करते हैं, तो हमें शून्य हानि (जीरो लॉस) सुनिश्चित करना होगा। अर्थात हम पूरा आर्थिक किराया प्राप्त करें। (बिक्री मूल्य में से खनन की लागत, जिसमें की खननकर्ता का लाभ भी शामिल है) खनन में किसी भी तरह का नुकसान हम सभी का और हमारी भावी पीढ़ी का नुकसान है।
(4) सभी प्राप्तियों (धनराशि) को अनिवार्यतः माटी परमानेंट फंड में रखा जाये। इसका क्रियान्वयन पूरी दुनिया में पहले ही हो चुका है। खनिजों की तरह परमानेंट फंड (स्थायी कोष) भी सभी का साझा होगा। सर्वोच्च न्यायालय ने पहले ही गोवा के आयरन (लौह अयस्क) हेतु परमानेंट फंड के निर्माण का आदेश दे दिया है और उसमें अभी 95 करोड़ रु. जमा हैं।
(5) गोआंचि माटी परमानेंट फंड से होने वाली कोई भी वास्तविक आय (मूल्यवृद्धि के पश्चात) को सभी को स्वामित्व के अधिकार के नाते नागरिक लाभांश (सिटिजन डिविडेंड) के रूप में बाँटा जाएगा। यह कम्युनिडाडे जोन (सामूहिक कोष) की तरह होगा परन्तु सभी को भुगतान किया जाएगा।
(6) इन सिद्धान्तों का क्रियान्वयन गोवा के निवासियों के साथ भागीदारी मूलक पारदर्शी प्रणाली के माध्यम से किया जाएगा।
हम निम्न ठोस कदम उठाना चाहते हैं
1. गौण (मायनर) खनिज की लीज केवल नीलामी के माध्यम से प्रदान की जाएँगी।
2. हमारी यह नीति होगी कि जहाँ भी कानूनी रूप में सम्भव हो वहाँ की वर्तमान में विद्यमान सभी मुख्य (मेजर) खनिज खदानों की लीज रद्द कर दी जाएगी।
3. हम सभी गैरकानूनी खनन के साथ ही साथ खनन में व्याप्त अवैधानिकताओं के माध्यम से जो भी बाकी है उसे हम वसूल करेंगे और इस राशि को परमानेंट फंड में जमा करेंगे।
4. गोवा सरकार द्वारा प्रारम्भ की जाने वाली नई खदानों का लक्ष्य शून्य हानि खनन और शून्य अपशिष्ट खनन होगा।
5. नया खनन कार्य शुरू करने से पहले हम जगह खाली करने हेतु डम्प हुए खनिज को हटाने का पूर्ण कार्य कराएँगे और पर्यावरणीय जोखिम कम करेंगे।
6. खनन पर बन्दिशें :- चूँकि खनिज घटते जाने वाली सम्पत्तियाँ हैं, अतएव इससे केवल एक बार आमदनी हो सकती है।
(अ) हम अनुशंसा करेंगे कि तय भण्डार के 1/200 तक के खनन की सीमा बाँधी जाये। इससे यह सुनिश्चित होगा कि गोवा की अगली 7 (सात) पीढ़ियों तक खनिज उपलब्ध रहें।
(ब) पर्यावरणीय आधार पर हम अनुशंसा करेंगे कि शुरुआती दौर में प्रतिवर्ष 1.20 करोड़ टन (12 मिलियन) की खनन सीमा रखी जाये। इसके पश्चात सभी पर्यावरणीय मापदण्डों का आकलन कर इस सीमा को घटाया अथवा बढ़ाया जा सकता है।
इन बन्दिशों के चलते केवल एक या दो विशाल खदानों से ही खनन सम्भव हो पाएगा। हम अपने परिचालन पर ध्यान केन्द्रित कर व्यापक पर्यावरणीय एवं अन्य नुकसानों पर काबू पा सकेंगे। इससे हम खनन कार्य को बेहतर तरीके से नियंत्रण में भी रख सकते हैं।
7. अन्तरिम योजनाएँ :- खनन के कार्य को पुनः ठीक से प्रारम्भ होने में कुछ समय लगेगा। उदाहरण हेतु नए ई सी की आवश्यकता भी पड़ेेगी। हम शायद पहले के उत्पादन स्तर पर पहुँच भी नहीं पाएँगे।
आन्तरिक योजना हेतु
(अ) पहले स्तर पर ई-नीमाली के द्वारा कच्ची धातु (1,000 करोड़ रु.) की बिक्री होगी एवं मसौदा आर पी 2021 के माध्यम से राष्ट्रीय राजमार्ग (एन एच) 17 को मापुसा से वाया धारबांडोर, बल्ली तक पहुँचना है। अगर यह क्रियान्वित हो जाता है तो इससे ट्रकों को काम मिल जाएगा। जब यह पूर्ण हो जाएगा तो यह खनन के अंचल में वैकल्पिक आर्थिक सम्भावनाएँ भी उत्पन्न करेगा।
(ब) दूसरे स्तर पर:- बेचे जाने योग्य जमा कच्ची धातु (डम्प) की पहचान करके उसे बेचा जाएगा ऐसा अनुमानित है कि कुल जमा 164 मिलियन टन (1 मिलियन = 10 लाख) में से 20 प्रतिशत यानी कि 153 मिलियन टन कच्चीधातु बेची जाने योग्य है। (कुल मूल्य 15000 करोड़) इसे बेचा जा सकता है। बकाया बिक्री योग्य स्तर की नपाई जाने वाली कच्ची धातु (डम्प) को उदाहणार्थ पहले से छोड़ दी गई खदानों को भरने और जिन खदानों को पुनः नहीं खोला जा सकता है उन्हें भरने के काम में लिया जा सकता है। वर्तमान 2 करोड़ टन (20 मिलियन) की सीमा के चलते इस 153 मिलियन टन को बेचने में ही 8 वर्ष लगेंगे। इससे हमे नई खदानें प्रारम्भ करने का भरपूर समय मिल जाएगा।
8. परमानेंट फंड (स्थायी कोष): हम यह सुनिश्चित करने के लिये विधेयक लाएँगे कि:
(अ) सभी खनिजों से प्राप्त होने वाले धन को हम परमानेंट फंड में जमा करेंगे। इसका नया नामकरण गोआंचि माटी परमानेंट फंड होगा और यह सभी खनिजों को अपने में समेटना सुनिश्चित करेगा।
(ब) हम यह सुनिश्चित करेंगे कि परमानेंट फंड को सर्वश्रेष्ठ वैश्विक मापदंड (सेंटिआगो सिद्धान्त) में 100 में से 95 अंक प्राप्त हों। परमानेंट फंड का लक्ष्य होगा कि वह दीर्घावधि में अधिकतम लाभ प्राप्त करने का प्रयास करे।
9. परमानेंट फंड से बढ़ती दर से आमदनी प्राप्त करने के बाद हम गोवा निवासियों को नागरिक लाभांश (सिटीजन डिविडेंड) का वितरण करेंगे। प्रथम नागरिक लाभांश तब वितरित किया जाएगा जबकि प्रति नागरिक कम से कम 100 रु. का भुगतान किया जा सके। तत्पश्चात इसे वार्षिक या अधिक बार भी दिया जा सकता है।
10. हम खनन प्रभावितों के साथ मिलकर भागीदारी बजटिंग के आधार पर जिला खनिज फाउंडेशन हेतु वार्षिक योेजना विकसित करेंगे।
11. हम व्हिसिलब्लोअर की सुरक्षा एवं उन्हें पुरस्कृत करने हेतु विधेयक लाएँगे।
12. हम गोवा के नागरिक जो कि इन खनिजों के स्वामी हैं, खदानों के लिये एक नई नियंत्रण प्रणाली एवं आमूल पारदर्शिता का क्रियान्वयन करेंगे जिससे कि हम अपने बच्चों की विरासत पर निगरानी रख सकें। खनन सम्बन्धी जितने भी दस्तावेज स्कैन किये जा चुके हैं उन्हें सार्वजनिक किया जाएगा।
यह विभिन्न भागीदारों को किस प्रकार से लाभान्वित करेगा
खनन पर निर्भर:- अन्तरिम योजनाओं के अन्तर्गत परिवहन व्यापार को संरक्षण प्रदान किया जाएगा और नये मार्गों एवं पुनः कौशलीकरण कार्यक्रमों के माध्यम से नए रोजगार और सम्भावनाएँ निर्मित की जाएँगी। उन्हें नागरिक लाभांश से भी फायदा होगा।
खनन प्रभावित:- इकट्ठा कच्ची धातु (डम्प) को हटाने एवं परित्यक्त खदानों को पुन: ठीक करने से व्यापक पर्यावरणीय प्रभाव में कमी आएगी। नए खनन का निचला स्तर एवं 1 या 2 खदानों पर एकाग्र होने से यह प्रभाव और भी कम होगा। जिला खनिज फाउंडेशन के कोष (धन) को खनन प्रभावितों की जरूरतों के अनुरूप भागीदारी मूलक प्रक्रिया से खर्च किया जाएगा।
गोवा सरकार:- खनन परिवहन के कम होने और नई सड़क के बनने से गोवा में उद्योगों और पर्यटन की पहुंच में वृद्धि होगी। जैव औषधि निर्माता (बायो-फार्मास्युटिकल्स) जो कि जैव विविधता (बायो डाइवर्सिटी) पर निर्भर हैं, उन्हें स्वतः ही विस्तार मिलेगा। खनिजों एवं इनके परिवहन से सम्बन्धित खुले आँकड़े उपलब्ध हो जाने से इस क्षेत्र में नए प्रयोग या आयाम विकसित होंगे।
गोवा के नागरिक:- हम अपनी भावी पीढ़ियों के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह कर पाएँगे। नागरिक लाभांश से हमें बराबरी का लाभ मिलेगा, समाज के सभी कमजोर वर्ग जैसे कि बच्चे, महिलाएँ, वृद्ध, विकलांग, गरीब, मानसिक अस्वस्थ, दलितों, आदिवासियों आदि को अधिक लाभ प्राप्त हो सकेगा।
गोवा की भावी पीढ़ियाँ:-
शून्य हानि के माध्यम से और खनन से प्राप्त सभी तरह की आमदनी को गोआंचि माटी परमानेंट फंड में रखकर हम उनके हितों की रक्षा करेंगे। वे नागरिक लाभांश (सिटीजन डिविडेंड) से भी लाभान्वित होंगे।
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Post By: RuralWater