यों तो खनिजों का खनन देश की अहम जरूरत है। लेकिन कुछ दशकों से समूचे देश में अवैध खनन की बाढ़ आ गई है। यह कारोबार नेताओं, अफसरों और माफियाओं की मिलीभगत की वजह से एक संगठित अपराध का रूप ले चुका है। इस मामले की पड़ताल कर रहे हैं। ‘विवेक आनंद’
भारत प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध देश है। भारत में खनन का इतिहास करीब छह हजार साल पुराना है। देश की आजादी के बाद राष्ट्र निर्माण में खनिजों की महत्ता सामने आई और सरकार ने औद्योगिक विकास के लिए इस ओर ध्यान दिया। 1956 में औद्योगिक नीति प्रस्ताव सामने आया, जिसके तहत उद्योगों के लिए खनिजों की भारी जरूरत महसूस की गई। कोयला सबसे महत्वपूर्ण खनिज पदार्थ था क्योंकि इस्पात, रेलवे और बिजली उत्पादन में इसकी भूमिका बड़ी थी। लोहा, खनिज तेल, प्राकृतिक गैस, सोना, चांदि, तांबा, जस्ता वगैरह खनिज पदार्थ सार्वजनिक क्षेत्र की खदानों से निकाले जाते थे।
नई खनिज नीति 1993 के तहत खनिज क्षेत्र को निजी भागीदारी बढ़ाने के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए खोल दिया गया। भारत में कुल 89 खनिजों का उत्पादन होता है जिनमें 4 ईंधन, 11 धात्विक, 52 अधात्विक और 22 लघु खनिज हैं। इंडियन माइंस ब्यूरो; आईबीएम खनन मंत्रालय के अधीन संस्था है जो खनिजों और खानों के संरक्षण का कार्य करती है। खान और खनिज विकास और नियमन कानून 1997 और खान कानून 1952 भारत में खान और खनन के लिए बुनियादी कानून हैं। लेकिन देशी और विदेशी निजी भागीदारी बढ़ाने और निवेश आकर्षित करने के लिए 1994 में इन कानूनों को संशोधित किया गया। इसके तहत ईंधन और परमाणु खनिजों को छोड़कर बाकी खनिजों के खनन को निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया गया। साथ ही खनन के लिए राज्य सरकारों को पट्टे देने का अधिकार दे दिया गया। 1999 में फिर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ाने के लिए कानून को उदार बनाया गया। 24 अप्रैल 2000 को कोयला खान, राष्ट्रीयकरण विधेयक 1973 को संशोधित कर कोयला क्षेत्र को भी निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया गया।
खनन हमारे औद्योगिक विकास से जुड़ा हुआ है। इसलिए सरकार ने खनन में निजी भगीदारी का रास्ता खोला लेकिन निजी भागीदारी के नाम पर अवैध खनन देश का विकास नहीं विनाश कर रहा है। खनन में एक फीसद की बढ़ोतरी का मतलब होता है औद्योगिक उत्पादन में 1.2 से 1.4 फीसद की वृद्धि जिसका सीधा असर सकल घरेलू उत्पादन में 0.3 फीसद के इजाफे के तौर पर सामने आता है। इसलिए खान मंत्रालय सकल घरेलू उत्पाद में खनन के मौजूदा 2.3 फीसद हिस्से को बढ़ाकर 7.8 फीसद करना चाहता है लेकिन इसका रास्ता अवैध खनन से होकर नहीं जाना चाहिए। इसके लिए एक टिकाऊ और समग्र पारदर्शी नीति होनी चाहिए। इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए सरकार ने माइंस एंड मिनरल्स, डेवलपमेंट ऐंड रेगुलेशन-विधेयक 2011 प्रस्तुत किया है।
भारत के 28 राज्यों में से कम से कम बीस राज्यों में खनिजों का खनन होता है। इसके लिए यहां की सरकारें खनन पट्टे आंवटित करती हैं। खनन पट्टों को आवंटित करने के अलावा खनन की प्रक्रिया भी सरकारी नियमों के अनुसार तय है। लेकिन खनन पट्टों के आवंटन को लेकर खनन के क्षेत्र, उसमें विस्फोटकों और मजदूरों के इस्तेमाल की सीमा और स्थानीय प्रशासन को सूचित करने की औपचारिकता को माफिया अधिकारी और नेताओं का संयुक्त गिरोह सब कुछ ताक पर रखकर अपने हितों के लिए राष्ट्रीय संपत्ति की लूट को बेखौफ अंजाम देता आ रहा है। जंगल का अतिक्रमण, सरकारी हिस्से के धन की चोरी और आदिवासियों के जमीन पर पारंपरिक अधिकार को चुनौती देकर यह काम होता है। खनन मंत्री दिनसा पटेल ने लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में बताया कि अकेले वर्ष 2010-2011 में 78189 मामले अवैध खनन के दर्ज किए गए। इससे राष्ट्रीय स्तर पर हो रहे अवैध खनन का अंदाजा लगाया जा सकता है।
आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, जम्मू कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मेघालय, उड़ीसा, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल- में मुख्य रूप से इस्पात, कोयला, पत्थर और रेत का खनन निजी कंपनियों के जरिए किया जाता है। खनन के इस खेल में करीब-करीब सभी सत्ताधारी दल भी शामिल हैं। दिलचस्प बात यह है कि खनिजों के मामले में समृद्ध ज्यादातर राज्यों जैसे झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और उड़ीसा में बरसों से गैर कांग्रेसी सरकारें हैं। संवैधानिक रूप से भारत एक समाजवादी देश है। समाजवाद, उत्पादन और वितरण के साधनों पर समाज के नियंत्रण का नाम है लेकिन उदारीकरण के बाद व्यावहारिक रूप से सत्ता प्रतिष्ठान ने उस विचार और कार्यक्रम को तिलांजलि दे दी, जो आजाद भारत का सबसे चमकदार और आकर्षक विचार था और जिसे जवाहरलाल नेहरू और कुछ हद तक इंदिरा गांधी ने बड़े प्यार से पाला था। उदारीकरण के दौर में लाइसेंस, कोटा, परमिट और इंस्पेक्टर राज मिटाने के नाम पर नियमों में जो छूट मिली उससे खनिजों की खुली लूट का राजमार्ग खुल गया। इसी के साथ एक पार्टी शासन की समाप्ति ने गठबंधन की मजबूरी के नीचे बहुत से गैरकानूनी और अनैतिक चीजों को सार्वजनिक जीवन में स्वीकार्य बना दिया।
खतरनाक बात यह है कि पहले खनन माफिया एक छोटे से इलाके में खनन की अनुमति लेता है और उसके बाद वह बड़े इलाके तक अतिक्रमण कर लेता है इसके लिए वह न तो कोई कर देता है और न ही उसकी कोई जिम्मेदारी ही होती है। खनन माफिया के काम का तरीका लगभग सब जगह एक समान है क्योंकि आमतौर पर खनन के ठेके नेताओं और मंत्रियों के संबंधियों और सहयोगियों को ही दिए जाते हैं, जिस पर वे अनुमति के दायरे से बाहर जाकर काम करते हैं।
इसी तरह उत्तर प्रदेश के सोनभद्र, सिंगरौली पट्टी में पत्थरों का गोरखधंधा बदस्तूर जारी है। प्रदेश सरकार के संरक्षण में कराए जा रहे गिट्टी, बालू के अवैध खनन देश में काल कमाई का सबसे बड़ा जरिया है। सोनभद्र के बिल्ली, मारकुंडी खनन क्षेत्र में लगभग दो सौ क्रसर्स और डोलोमाइट्स की खदाने हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 2000 में सोनभद्र में किसी भी नई क्रशर यूनिट के लगाए जाने पर पाबंदी लगाया था। लेकिन नई खनन इकाइयों का लगाया जाना तेजी से जारी है। वाराणसी से शक्ति नगर मार्ग पर खनन इकाइयों की भरमार है। चारों तरफ धूल का साम्राज्य दिखाई देता है।
उड़ीसा का क्योंझर जिला बहुत गरीब है। लेकिन भारत के लौह अयस्क का पांचवां भाग यहां पाया जाता है। साथ ही भयानक गरीबी, पिछड़ापन और नक्लवाद भी उसके साथ जुड़ा है। लोहे के अवैध खनन में माफिया के साथ राजनीतिक संरक्षण ने क्योंझर में कई लोग करोड़पति हो गए। नवीन पटनायक सरकार ने गैरकानूनी गतिविधियों को रोकने की कोशिश भी की लेकिन पूरी कामयाबी नहीं मिल पाई। कर्नाटक के लोकायुक्त संतोष हेगड़े ने 27 जुलाई 2011 को राज्य में अवैध खनन मामले की रिपोर्ट पेश करते हुए कहा कि तब के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के परिवार द्वारा संचालित प्रेरणा ट्रस्ट को खनन कंपनियों से 30 करोड़ रुपए की रिश्वत ली। रिपोर्ट में लोकायुक्त हेगड़े ने 2006-2010 के बीच 16,085 करोड़ रुपए के घोटाले का आरोप लगाया था। कर्नाटक खनन मामले से संबंधित रिपोर्ट में मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा, पूर्व मुख्यमंत्री और जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी रेड्डी बंधुओं उनके कुछ सहयोगियों, मंत्री एच श्रीरामूलू और कांग्रेस सांसद अनिल लाड की पत्नी के नाम थे। घोटाले में शामिल लोगों की सूची साबित करती है किस तरह से अधिकारी अपराधी नेता और उनके सगे संबंधी और कृपापात्र लोग बिना किसी मतभेद के इसमें एक साथ शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट की बनाई समिति ने जांच के दौरान पाया कि कर्नाटक में बड़े पैमाने पर अवैध खनन हुआ है। खासकर बेल्लारी के जंगली इलाके में अफसरों और नेताओं की साठगांठ से जमकर अवैध खनन हुआ है। इस समिति ने बेल्लारी क्षेत्र में 2003 से 2010 के बीच हुए बड़े पैमाने पर हुए इस अवैध खनन के बारे में कहा है कि कर्नाटक सरकार कोई भी कार्रवाई करने में नाकाम रही है। इस बारे में लोकायुक्त की रिपोर्ट के बावजूद 2009-10 तक अवैध खनन का यह क्रम जारी रहा।
रेड्डी बंधुओं, जी करुणाकर रेड्डी, जी जनार्दन रेड्डी और जी सोमशेखर रेड्डी के स्वामित्व वाली ओबलापुरम माइनिंग कंपनी पर खनन गतिविधियों में अनियमितता के आरोप हैं। आरोप है कि उन्होंने बेल्लारी के निकट आंध्र प्रदेश की सीमा के अंदर तक आकर माइनिंग कराई। अवैध खनन के जरिए सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाया और लोगों के साथ भी धोखाधड़ी की।
गोवा में अवैध खनन के मुद्दे पर कांग्रेस चुनाव हार गई। सत्ता में आई भाजपा के मुख्यमंत्री मनोहर पणिक्कर ने विधानसभा में स्वीकार किया कि सरकारी कोशिशों के बावजूद राज्य में अवैध खनन जारी है। उन्होंने राज्य के खनन विभाग के अधिकारियों को भी इसमें शामिल बताया। बिहार के धनबाद जिले को अवैध कोयला व्यापार का अड्डा बताते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने आदिवासियों द्वारा झेली जा रही आर्थिक मुसीबतों और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में अवैध खनन पर राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है। आयोग ने कहा कि खनन करने वाले समूह कोयले के अवैध खनन और उसे एक जगह इकट्ठा करने के लिए आदिवासियों की भर्ती कर रहे हैं। रांची से धनबाद जाते हुए कोयला ढोती साइकिलों की पंक्तियां देखी जा सकती हैं। आयोग ने यह भी कहा कि कोयला खनन को रोकने की कोशिश सरकार ने नहीं की। राजस्थान में 22 मार्च को पुलिस ने भरतपुर जिले में करीब सौ लोगों को गिरफ्तार किया। ये लोग अवैध तरीके से पत्थर निकालने और उसकी ढुलाई में लगे हुए थे। फरवरी में राजस्थान उच्च न्यायालय ने अवैध खनन के मामले में जांच राजस्थान उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति गठित की है और खनन पर एक तफसीलवार रिपोर्ट देने को कहा है। विधानसभा में प्रस्तुत सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में 2005 से 2010 के बीच राज्य में 6,906 अवैध खनन के मामले सामने आए। इससे राज्य को 1,496 करोड़ रुपयों का नुकसान हुआ। पश्चिम बंगाल में कोल इंडिया लिमिटेड के मुताबिक कोयला माफिया और अवैध खनन की वजह से हर महीने 12 करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान हो रहा है। झारखंड में सिस्टर वालसा की हत्या में भी अंगुली कोयला माफिया की ही ओर उठी थी।
कर्नाटक लोकायुक्त संतोष हेगड़े ने 2009-10 के दौरान ही 1800 करोड़ रुपए की सरकारी रायल्टी का नुकसान होने का अनुमान लगाया गया। इसके अलावा 2006-2010 के बीच 1,6,085 करोड़ रुपए के घोटाले का आरोप लगाया था। सामाजिक खनन से नुकसान सिर्फ आर्थिक ही नहीं बल्कि पर्यावरण के साथ मानवीय भी है। तय सीमा से बाहर खनन, वन्य जीवन के साथ छेड़-छाड़ और खनिजों का बिना अनुमति परिवहन के अलावा ओवर लोडिंग और पकड़े जाने पर रिश्वत का चारा ये सब कुछ एक साथ कई चीजों को नुकसान पहुंचा रहा है। यहां तक सांस्कृतिक पुरावशेषों को भी नहीं छोड़ रहा खनन माफिया। आंध्र प्रदेश के करीम नगर जिले के हुस्नाबाद मंडल का एक छोटा सा गांव पोटलपल्ली है जहां हजारों वर्ष पुरानी मेगालिथ महापाषाण कब्रें मिली हैं।
पुरातत्व विभाग को एक शिकायत मिली कि ग्रेनाइट माफिया उस ऐतिहासिक पहाड़ी को नुकसान पहुंचा रहा है। तेलंगाना भूमि रक्षा समिति ने जिलाधिकारी और राजस्व विभाग को ग्रेनाइट माफिया द्वारा महापाषाण कब्रों को पहुंचाए जा रहे नुकसान के बारे में शिकायत की। अधिकारियों ने वह जानकारी पुरातत्व विभाग को दी। पुरातत्व विभाग के निर्देश पर एक तीन सदस्यीय दल ने पोटलपल्ली का दौरा किया और पहाड़ी पर उन्हें दस महापाषाण कब्रें मिलीं जिनमें चार को घसीटकर अवैध रूप से सड़क बनाने के लिए रखा गया था। हर पुरावशेष की परिधि 100 फुट और व्यास 33 फुट था। बाकी बचे पुरावशेषों को संरक्षित घोषित कर दिया गया है। सवाल है कि माफिया की निगाह में उन पुरावशेषों की कोई कीमत नहीं है। लेकिन राज्य और समाज के लिए तो वे मूल्यवान धरोहर है। उसी तरह उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद का हाल है। इलाहाबाद के भीटा और कौशंबी जिले की पगोशा पहाड़ी अपने शैलाश्रयों और गुफा चित्रों के लिए प्रसिद्ध रही है। यहां पुरापाषाण काल के अवशेष आज भी सुरक्षित हैं लेकिन खनन माफिया के धरकरम का नतीजा है कि वह विरासत खतरे में पड़ गई है। पटना के पास जहानाबाद जिले में स्थित बराबर पहाड़ियों के साथ भी कुछ ऐसा ही सुलूक हो रहा है। गुफाओं में दरारें पड़ रही हैं। ये गुफाएं मौर्यकाल की शानदार निशानियां हैं। कर्नाटक के पूर्व लोकायुक्त न्यायमूर्ति संतोष हेगड़े ने कोलकाता में कहा कि बिना राजनीतिक दलों की सहायता के खनन माफिया काम नहीं कर सकता।
दिलचस्प बात यह है कि नक्सली- जो कि माओ के कथित सपनों को भारत भूमि पर साकार करने के लिए खून बहा रहे हैं वे भी इन्हीं खनिज प्रचुर इलाकों में सक्रिय हैं और अवैध खनन के मामले में उनकी रहस्यमय चुप्पी मायने रखती है। लगता है अवैध खनन में अपना हिस्सा लेने से अधिक उनकी रुचि नहीं है। अवैध खनन से केवल आर्थिक नुकसान नहीं होता बल्कि पर्यावरण, समाज, संस्कृति और मानवीय क्षति भी होती है। जल, जंगल, जमीन और मानव का सहसंबंध भी प्रभावित होता है। शायद नक्सलियों को ये सब दिखाई नहीं देता। आमतौर पर अवैध खनन ने खेल में भारतीय राजनीतिक प्रतिष्ठानों का असली गुरुघंटाल चेहरा सामने ला दिया है। यह पूरा मुद्दा एक तरह से उस राष्ट्रीय त्रासदी की तरह है जहां राष्ट्रहित शायद सबसे तुच्छ है। हद तो यह है कि अवैध खनन के मामले में सरकारी कार्रवाई लगभग रहस्मयी है और इसके खिलाफ कोई जनांदोलन भी नहीं दिखाई देता। जो कुछ पहलकदमी हुई है वह अदालतों, सीएजी और लोकायुक्त जैसी संस्थाओं की मेहरबानी से। राजस्थान उच्च न्यायालय ने जयपुर-जोधपुर रेलवे लाइन के करीब पैंतालीस मीटर के दायरे के भीतर हो रहे खनन पर कहा कि यह ‘पूरा जंगलराज’ है। नियमों का खुला उल्लंघन है और जनता के जीवन को खतरे में डालने वाला है। राजस्थान उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने सीधे खनन विभाग और राज्य सरकार को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया कि ‘वे लोक कल्याणकारी राज्य बनने के बजाय राष्ट्रीय संपत्ति और मानव जीवन को खतरे में डाल रहे हैं।’ अपनी सख्त टिप्णणी में न्यायालय ने कहा कि ‘अगर रोका न गया तो ये लोग हाईकोर्ट को भी खोद डालेंगे।’
सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि विभिन्न राज्यों में अवैध खनन जारी है। खनन के लिए नियम मौजूद हैं लेकिन राज्यों के स्तर पर उनका उल्लंघन हो रहा है समस्या की जड़ पर अंगुली रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘समय के साथ मैंने महसूस किया है कि कमी कानूनों में नहीं हमारे चरित्र में है।’
लौह अयस्क और मैगनीज के अवैध खनन पर नियुक्त एमबी शाह आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है। सरकार ने उस पर अपनी कार्रवाई रिपोर्ट भी प्रस्तुत की है। शाह आयोग की अहम सिफारिशों में कहा गया है कि मिनरल कंसेशन रूल्स 1960 के नियम को संशोधित कर उसमें दो नए उपबंध बी और सी जोड़े जाए, जिससे राज्य सरकार से खनन के पट्टे का नवीनीकरण कराने के लिए प्रार्थना पत्र देते समय अभ्यर्थी को वन और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से मंजूरी साथ लेना जरूरी हो। खनन पट्टे के डीम्ड विस्तार की अवधि को एक साल सीमित किया जाए। खानों की सीमा का ठीक से निर्धारण हो।
अवैध खनन के दोषी के पट्टे की अवधि निर्धारण का अधिकार राज्य सरकार को हो। साथ ही ऐसे अभ्यर्थी के नवीनीकरण के आवेदन को रद्द करने का अधिकार हो। खनन क्षेत्र की सीमा निर्धारित करने के लिए खंभों के बीच की दूरी बीस मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए। साथ ही खंभे कंक्रीट के होने चाहिए। आईबीएम अपने कर्तव्यों का ठीक से निर्वहन करें इसके लिए जरूरी है कि उसके अधिकारी महीने में कम से कम एक बार खानों का दौरा करें और तय करें कि खंभें सही जगह लगे हैं। अवैध खनन को रोकने और सरकारी रायल्टी वसूलने के लिए जांच चौकियां, कंप्यूटरीकृत नापतौल की व्यवस्था होनी चाहिए।
इस मामले में खान मालिक या ट्रांसपोर्टरों पर भरोसा करना अनुचित है। लौह अयस्क और मैगनीज के अवैध खनन का मुख्य कारण है इससे होने वाले निर्यात से बड़ा मुनाफा। इसलिए सरकार को इनके निर्यात पर रोक लगानी चाहिए।
भारत प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध देश है। भारत में खनन का इतिहास करीब छह हजार साल पुराना है। देश की आजादी के बाद राष्ट्र निर्माण में खनिजों की महत्ता सामने आई और सरकार ने औद्योगिक विकास के लिए इस ओर ध्यान दिया। 1956 में औद्योगिक नीति प्रस्ताव सामने आया, जिसके तहत उद्योगों के लिए खनिजों की भारी जरूरत महसूस की गई। कोयला सबसे महत्वपूर्ण खनिज पदार्थ था क्योंकि इस्पात, रेलवे और बिजली उत्पादन में इसकी भूमिका बड़ी थी। लोहा, खनिज तेल, प्राकृतिक गैस, सोना, चांदि, तांबा, जस्ता वगैरह खनिज पदार्थ सार्वजनिक क्षेत्र की खदानों से निकाले जाते थे।
नई खनिज नीति 1993 के तहत खनिज क्षेत्र को निजी भागीदारी बढ़ाने के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए खोल दिया गया। भारत में कुल 89 खनिजों का उत्पादन होता है जिनमें 4 ईंधन, 11 धात्विक, 52 अधात्विक और 22 लघु खनिज हैं। इंडियन माइंस ब्यूरो; आईबीएम खनन मंत्रालय के अधीन संस्था है जो खनिजों और खानों के संरक्षण का कार्य करती है। खान और खनिज विकास और नियमन कानून 1997 और खान कानून 1952 भारत में खान और खनन के लिए बुनियादी कानून हैं। लेकिन देशी और विदेशी निजी भागीदारी बढ़ाने और निवेश आकर्षित करने के लिए 1994 में इन कानूनों को संशोधित किया गया। इसके तहत ईंधन और परमाणु खनिजों को छोड़कर बाकी खनिजों के खनन को निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया गया। साथ ही खनन के लिए राज्य सरकारों को पट्टे देने का अधिकार दे दिया गया। 1999 में फिर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ाने के लिए कानून को उदार बनाया गया। 24 अप्रैल 2000 को कोयला खान, राष्ट्रीयकरण विधेयक 1973 को संशोधित कर कोयला क्षेत्र को भी निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया गया।
खनन हमारे औद्योगिक विकास से जुड़ा हुआ है। इसलिए सरकार ने खनन में निजी भगीदारी का रास्ता खोला लेकिन निजी भागीदारी के नाम पर अवैध खनन देश का विकास नहीं विनाश कर रहा है। खनन में एक फीसद की बढ़ोतरी का मतलब होता है औद्योगिक उत्पादन में 1.2 से 1.4 फीसद की वृद्धि जिसका सीधा असर सकल घरेलू उत्पादन में 0.3 फीसद के इजाफे के तौर पर सामने आता है। इसलिए खान मंत्रालय सकल घरेलू उत्पाद में खनन के मौजूदा 2.3 फीसद हिस्से को बढ़ाकर 7.8 फीसद करना चाहता है लेकिन इसका रास्ता अवैध खनन से होकर नहीं जाना चाहिए। इसके लिए एक टिकाऊ और समग्र पारदर्शी नीति होनी चाहिए। इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए सरकार ने माइंस एंड मिनरल्स, डेवलपमेंट ऐंड रेगुलेशन-विधेयक 2011 प्रस्तुत किया है।
भारत के 28 राज्यों में से कम से कम बीस राज्यों में खनिजों का खनन होता है। इसके लिए यहां की सरकारें खनन पट्टे आंवटित करती हैं। खनन पट्टों को आवंटित करने के अलावा खनन की प्रक्रिया भी सरकारी नियमों के अनुसार तय है। लेकिन खनन पट्टों के आवंटन को लेकर खनन के क्षेत्र, उसमें विस्फोटकों और मजदूरों के इस्तेमाल की सीमा और स्थानीय प्रशासन को सूचित करने की औपचारिकता को माफिया अधिकारी और नेताओं का संयुक्त गिरोह सब कुछ ताक पर रखकर अपने हितों के लिए राष्ट्रीय संपत्ति की लूट को बेखौफ अंजाम देता आ रहा है। जंगल का अतिक्रमण, सरकारी हिस्से के धन की चोरी और आदिवासियों के जमीन पर पारंपरिक अधिकार को चुनौती देकर यह काम होता है। खनन मंत्री दिनसा पटेल ने लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में बताया कि अकेले वर्ष 2010-2011 में 78189 मामले अवैध खनन के दर्ज किए गए। इससे राष्ट्रीय स्तर पर हो रहे अवैध खनन का अंदाजा लगाया जा सकता है।
आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, जम्मू कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मेघालय, उड़ीसा, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल- में मुख्य रूप से इस्पात, कोयला, पत्थर और रेत का खनन निजी कंपनियों के जरिए किया जाता है। खनन के इस खेल में करीब-करीब सभी सत्ताधारी दल भी शामिल हैं। दिलचस्प बात यह है कि खनिजों के मामले में समृद्ध ज्यादातर राज्यों जैसे झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और उड़ीसा में बरसों से गैर कांग्रेसी सरकारें हैं। संवैधानिक रूप से भारत एक समाजवादी देश है। समाजवाद, उत्पादन और वितरण के साधनों पर समाज के नियंत्रण का नाम है लेकिन उदारीकरण के बाद व्यावहारिक रूप से सत्ता प्रतिष्ठान ने उस विचार और कार्यक्रम को तिलांजलि दे दी, जो आजाद भारत का सबसे चमकदार और आकर्षक विचार था और जिसे जवाहरलाल नेहरू और कुछ हद तक इंदिरा गांधी ने बड़े प्यार से पाला था। उदारीकरण के दौर में लाइसेंस, कोटा, परमिट और इंस्पेक्टर राज मिटाने के नाम पर नियमों में जो छूट मिली उससे खनिजों की खुली लूट का राजमार्ग खुल गया। इसी के साथ एक पार्टी शासन की समाप्ति ने गठबंधन की मजबूरी के नीचे बहुत से गैरकानूनी और अनैतिक चीजों को सार्वजनिक जीवन में स्वीकार्य बना दिया।
राजस्थान उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने सीधे खनन विभाग और राज्य सरकार को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया कि ‘वे लोक कल्याणकारी राज्य बनने के बजाय राष्ट्रीय संपत्ति और मानव जीवन को खतरे में डाल रहे हैं।’ अपनी सख्त टिप्णणी में न्यायालय ने कहा कि ‘अगर रोका न गया तो ये लोग हाईकोर्ट को भी खोद डालेंगे।’ सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि विभिन्न राज्यों में अवैध खनन जारी है। खनन के लिए नियम मौजूद हैं लेकिन राज्यों के स्तर पर उनका उल्लंघन हो रहा है समस्या की जड़ पर अंगुली रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘समय के साथ मैंने महसूस किया है कि कमी कानूनों में नहीं हमारे चरित्र में है।’
कालेधन और भ्रष्टाचार के मुद्दे देश की जनता का ध्यान ज्यादा खींचते हैं। लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन चलाने वालों को इस बात पर भी गंभीरता से सोचना चाहिए कि अकेला अवैध खनन भ्रष्टाचार का कितना बड़ा संयुक्त उपक्रम है और यह अकेले कितना काला धन पैदा कर रहा है? यह तो नहीं हो सकता कि अवैध खनन चालू रहे और भ्रष्टाचार खत्म हो जाए। होली के दिन मुरैना जिले में गैर कानूनी खनन को रोकने गए 2009 बैच के मध्यप्रदेश कैडर के एक आईपीएस अधिकारी नरेंद्र कुमार की हत्या ट्रैक्टर से कुचलकर कर दी गई। युवा आईपीएस अधिकारी की हत्या करने के दो दिन बाद खनन माफिया ने पन्ना जिले के अजयगढ़ के निकट पुलिस दल पर फायरिंग की। पन्ना में रेत माफिया के खिलाफ कार्रवाई करने गए सरकारी अमले पर माफिया ने ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं थी। इसमें पन्ना के उपजिलाधिकारी, पुलिस क्षेत्राधिकारी और थानाध्यक्ष बाल-बाल बचे थे। 25 मार्च को उत्तर प्रदेश के जालौन जिले में कालपी के निकट जांच अधिकारी आर के सिंह अवैध खनन के एक मामले की जांच कर रहे थे। वाहनों के जांच के दौरान जब उन्होंने अपनी टीम के साथ एक ओवरलोड ट्रक को रुकने के लिए इशारा किया तो चालक ने उनकी जीप में टक्कर मार दी। जिसमें कई लोग घायल हो गए। कुछ सालों में मध्यप्रदेश का चंबल क्षेत्र अवैध खनन का गढ़ बन गया है। पत्थर और रेत का खनन इस क्षेत्र में आम बात है। पर्यावरणविदों का आरोप है कि ये खनन, सत्ताधारी और विपक्ष के नेताओं और अफसरों के संरक्षण से चल रहा है। चंबल क्षेत्र में रेत के अवैध उत्खनन की वजह से जलीय प्रजातियों के लिए संकट खड़ा हो गया है। मुरैना में राष्ट्रीय घड़ियाल अभयारण्य है, जहां रेत के अवैध खनन की वजह से घड़ियालों के लिए संकट पैदा हो रहा है। जबकि यह इलाका केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय ने खनन के लिए प्रतिबंधित कर रखा है।खतरनाक बात यह है कि पहले खनन माफिया एक छोटे से इलाके में खनन की अनुमति लेता है और उसके बाद वह बड़े इलाके तक अतिक्रमण कर लेता है इसके लिए वह न तो कोई कर देता है और न ही उसकी कोई जिम्मेदारी ही होती है। खनन माफिया के काम का तरीका लगभग सब जगह एक समान है क्योंकि आमतौर पर खनन के ठेके नेताओं और मंत्रियों के संबंधियों और सहयोगियों को ही दिए जाते हैं, जिस पर वे अनुमति के दायरे से बाहर जाकर काम करते हैं।
इसी तरह उत्तर प्रदेश के सोनभद्र, सिंगरौली पट्टी में पत्थरों का गोरखधंधा बदस्तूर जारी है। प्रदेश सरकार के संरक्षण में कराए जा रहे गिट्टी, बालू के अवैध खनन देश में काल कमाई का सबसे बड़ा जरिया है। सोनभद्र के बिल्ली, मारकुंडी खनन क्षेत्र में लगभग दो सौ क्रसर्स और डोलोमाइट्स की खदाने हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 2000 में सोनभद्र में किसी भी नई क्रशर यूनिट के लगाए जाने पर पाबंदी लगाया था। लेकिन नई खनन इकाइयों का लगाया जाना तेजी से जारी है। वाराणसी से शक्ति नगर मार्ग पर खनन इकाइयों की भरमार है। चारों तरफ धूल का साम्राज्य दिखाई देता है।
उड़ीसा का क्योंझर जिला बहुत गरीब है। लेकिन भारत के लौह अयस्क का पांचवां भाग यहां पाया जाता है। साथ ही भयानक गरीबी, पिछड़ापन और नक्लवाद भी उसके साथ जुड़ा है। लोहे के अवैध खनन में माफिया के साथ राजनीतिक संरक्षण ने क्योंझर में कई लोग करोड़पति हो गए। नवीन पटनायक सरकार ने गैरकानूनी गतिविधियों को रोकने की कोशिश भी की लेकिन पूरी कामयाबी नहीं मिल पाई। कर्नाटक के लोकायुक्त संतोष हेगड़े ने 27 जुलाई 2011 को राज्य में अवैध खनन मामले की रिपोर्ट पेश करते हुए कहा कि तब के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के परिवार द्वारा संचालित प्रेरणा ट्रस्ट को खनन कंपनियों से 30 करोड़ रुपए की रिश्वत ली। रिपोर्ट में लोकायुक्त हेगड़े ने 2006-2010 के बीच 16,085 करोड़ रुपए के घोटाले का आरोप लगाया था। कर्नाटक खनन मामले से संबंधित रिपोर्ट में मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा, पूर्व मुख्यमंत्री और जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी रेड्डी बंधुओं उनके कुछ सहयोगियों, मंत्री एच श्रीरामूलू और कांग्रेस सांसद अनिल लाड की पत्नी के नाम थे। घोटाले में शामिल लोगों की सूची साबित करती है किस तरह से अधिकारी अपराधी नेता और उनके सगे संबंधी और कृपापात्र लोग बिना किसी मतभेद के इसमें एक साथ शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट की बनाई समिति ने जांच के दौरान पाया कि कर्नाटक में बड़े पैमाने पर अवैध खनन हुआ है। खासकर बेल्लारी के जंगली इलाके में अफसरों और नेताओं की साठगांठ से जमकर अवैध खनन हुआ है। इस समिति ने बेल्लारी क्षेत्र में 2003 से 2010 के बीच हुए बड़े पैमाने पर हुए इस अवैध खनन के बारे में कहा है कि कर्नाटक सरकार कोई भी कार्रवाई करने में नाकाम रही है। इस बारे में लोकायुक्त की रिपोर्ट के बावजूद 2009-10 तक अवैध खनन का यह क्रम जारी रहा।
रेड्डी बंधुओं, जी करुणाकर रेड्डी, जी जनार्दन रेड्डी और जी सोमशेखर रेड्डी के स्वामित्व वाली ओबलापुरम माइनिंग कंपनी पर खनन गतिविधियों में अनियमितता के आरोप हैं। आरोप है कि उन्होंने बेल्लारी के निकट आंध्र प्रदेश की सीमा के अंदर तक आकर माइनिंग कराई। अवैध खनन के जरिए सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाया और लोगों के साथ भी धोखाधड़ी की।
गोवा में अवैध खनन के मुद्दे पर कांग्रेस चुनाव हार गई। सत्ता में आई भाजपा के मुख्यमंत्री मनोहर पणिक्कर ने विधानसभा में स्वीकार किया कि सरकारी कोशिशों के बावजूद राज्य में अवैध खनन जारी है। उन्होंने राज्य के खनन विभाग के अधिकारियों को भी इसमें शामिल बताया। बिहार के धनबाद जिले को अवैध कोयला व्यापार का अड्डा बताते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने आदिवासियों द्वारा झेली जा रही आर्थिक मुसीबतों और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में अवैध खनन पर राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है। आयोग ने कहा कि खनन करने वाले समूह कोयले के अवैध खनन और उसे एक जगह इकट्ठा करने के लिए आदिवासियों की भर्ती कर रहे हैं। रांची से धनबाद जाते हुए कोयला ढोती साइकिलों की पंक्तियां देखी जा सकती हैं। आयोग ने यह भी कहा कि कोयला खनन को रोकने की कोशिश सरकार ने नहीं की। राजस्थान में 22 मार्च को पुलिस ने भरतपुर जिले में करीब सौ लोगों को गिरफ्तार किया। ये लोग अवैध तरीके से पत्थर निकालने और उसकी ढुलाई में लगे हुए थे। फरवरी में राजस्थान उच्च न्यायालय ने अवैध खनन के मामले में जांच राजस्थान उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति गठित की है और खनन पर एक तफसीलवार रिपोर्ट देने को कहा है। विधानसभा में प्रस्तुत सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में 2005 से 2010 के बीच राज्य में 6,906 अवैध खनन के मामले सामने आए। इससे राज्य को 1,496 करोड़ रुपयों का नुकसान हुआ। पश्चिम बंगाल में कोल इंडिया लिमिटेड के मुताबिक कोयला माफिया और अवैध खनन की वजह से हर महीने 12 करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान हो रहा है। झारखंड में सिस्टर वालसा की हत्या में भी अंगुली कोयला माफिया की ही ओर उठी थी।
कर्नाटक लोकायुक्त संतोष हेगड़े ने 2009-10 के दौरान ही 1800 करोड़ रुपए की सरकारी रायल्टी का नुकसान होने का अनुमान लगाया गया। इसके अलावा 2006-2010 के बीच 1,6,085 करोड़ रुपए के घोटाले का आरोप लगाया था। सामाजिक खनन से नुकसान सिर्फ आर्थिक ही नहीं बल्कि पर्यावरण के साथ मानवीय भी है। तय सीमा से बाहर खनन, वन्य जीवन के साथ छेड़-छाड़ और खनिजों का बिना अनुमति परिवहन के अलावा ओवर लोडिंग और पकड़े जाने पर रिश्वत का चारा ये सब कुछ एक साथ कई चीजों को नुकसान पहुंचा रहा है। यहां तक सांस्कृतिक पुरावशेषों को भी नहीं छोड़ रहा खनन माफिया। आंध्र प्रदेश के करीम नगर जिले के हुस्नाबाद मंडल का एक छोटा सा गांव पोटलपल्ली है जहां हजारों वर्ष पुरानी मेगालिथ महापाषाण कब्रें मिली हैं।
पुरातत्व विभाग को एक शिकायत मिली कि ग्रेनाइट माफिया उस ऐतिहासिक पहाड़ी को नुकसान पहुंचा रहा है। तेलंगाना भूमि रक्षा समिति ने जिलाधिकारी और राजस्व विभाग को ग्रेनाइट माफिया द्वारा महापाषाण कब्रों को पहुंचाए जा रहे नुकसान के बारे में शिकायत की। अधिकारियों ने वह जानकारी पुरातत्व विभाग को दी। पुरातत्व विभाग के निर्देश पर एक तीन सदस्यीय दल ने पोटलपल्ली का दौरा किया और पहाड़ी पर उन्हें दस महापाषाण कब्रें मिलीं जिनमें चार को घसीटकर अवैध रूप से सड़क बनाने के लिए रखा गया था। हर पुरावशेष की परिधि 100 फुट और व्यास 33 फुट था। बाकी बचे पुरावशेषों को संरक्षित घोषित कर दिया गया है। सवाल है कि माफिया की निगाह में उन पुरावशेषों की कोई कीमत नहीं है। लेकिन राज्य और समाज के लिए तो वे मूल्यवान धरोहर है। उसी तरह उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद का हाल है। इलाहाबाद के भीटा और कौशंबी जिले की पगोशा पहाड़ी अपने शैलाश्रयों और गुफा चित्रों के लिए प्रसिद्ध रही है। यहां पुरापाषाण काल के अवशेष आज भी सुरक्षित हैं लेकिन खनन माफिया के धरकरम का नतीजा है कि वह विरासत खतरे में पड़ गई है। पटना के पास जहानाबाद जिले में स्थित बराबर पहाड़ियों के साथ भी कुछ ऐसा ही सुलूक हो रहा है। गुफाओं में दरारें पड़ रही हैं। ये गुफाएं मौर्यकाल की शानदार निशानियां हैं। कर्नाटक के पूर्व लोकायुक्त न्यायमूर्ति संतोष हेगड़े ने कोलकाता में कहा कि बिना राजनीतिक दलों की सहायता के खनन माफिया काम नहीं कर सकता।
दिलचस्प बात यह है कि नक्सली- जो कि माओ के कथित सपनों को भारत भूमि पर साकार करने के लिए खून बहा रहे हैं वे भी इन्हीं खनिज प्रचुर इलाकों में सक्रिय हैं और अवैध खनन के मामले में उनकी रहस्यमय चुप्पी मायने रखती है। लगता है अवैध खनन में अपना हिस्सा लेने से अधिक उनकी रुचि नहीं है। अवैध खनन से केवल आर्थिक नुकसान नहीं होता बल्कि पर्यावरण, समाज, संस्कृति और मानवीय क्षति भी होती है। जल, जंगल, जमीन और मानव का सहसंबंध भी प्रभावित होता है। शायद नक्सलियों को ये सब दिखाई नहीं देता। आमतौर पर अवैध खनन ने खेल में भारतीय राजनीतिक प्रतिष्ठानों का असली गुरुघंटाल चेहरा सामने ला दिया है। यह पूरा मुद्दा एक तरह से उस राष्ट्रीय त्रासदी की तरह है जहां राष्ट्रहित शायद सबसे तुच्छ है। हद तो यह है कि अवैध खनन के मामले में सरकारी कार्रवाई लगभग रहस्मयी है और इसके खिलाफ कोई जनांदोलन भी नहीं दिखाई देता। जो कुछ पहलकदमी हुई है वह अदालतों, सीएजी और लोकायुक्त जैसी संस्थाओं की मेहरबानी से। राजस्थान उच्च न्यायालय ने जयपुर-जोधपुर रेलवे लाइन के करीब पैंतालीस मीटर के दायरे के भीतर हो रहे खनन पर कहा कि यह ‘पूरा जंगलराज’ है। नियमों का खुला उल्लंघन है और जनता के जीवन को खतरे में डालने वाला है। राजस्थान उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने सीधे खनन विभाग और राज्य सरकार को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया कि ‘वे लोक कल्याणकारी राज्य बनने के बजाय राष्ट्रीय संपत्ति और मानव जीवन को खतरे में डाल रहे हैं।’ अपनी सख्त टिप्णणी में न्यायालय ने कहा कि ‘अगर रोका न गया तो ये लोग हाईकोर्ट को भी खोद डालेंगे।’
सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि विभिन्न राज्यों में अवैध खनन जारी है। खनन के लिए नियम मौजूद हैं लेकिन राज्यों के स्तर पर उनका उल्लंघन हो रहा है समस्या की जड़ पर अंगुली रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘समय के साथ मैंने महसूस किया है कि कमी कानूनों में नहीं हमारे चरित्र में है।’
आयोग की सिफारिशें
लौह अयस्क और मैगनीज के अवैध खनन पर नियुक्त एमबी शाह आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है। सरकार ने उस पर अपनी कार्रवाई रिपोर्ट भी प्रस्तुत की है। शाह आयोग की अहम सिफारिशों में कहा गया है कि मिनरल कंसेशन रूल्स 1960 के नियम को संशोधित कर उसमें दो नए उपबंध बी और सी जोड़े जाए, जिससे राज्य सरकार से खनन के पट्टे का नवीनीकरण कराने के लिए प्रार्थना पत्र देते समय अभ्यर्थी को वन और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से मंजूरी साथ लेना जरूरी हो। खनन पट्टे के डीम्ड विस्तार की अवधि को एक साल सीमित किया जाए। खानों की सीमा का ठीक से निर्धारण हो।
अवैध खनन के दोषी के पट्टे की अवधि निर्धारण का अधिकार राज्य सरकार को हो। साथ ही ऐसे अभ्यर्थी के नवीनीकरण के आवेदन को रद्द करने का अधिकार हो। खनन क्षेत्र की सीमा निर्धारित करने के लिए खंभों के बीच की दूरी बीस मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए। साथ ही खंभे कंक्रीट के होने चाहिए। आईबीएम अपने कर्तव्यों का ठीक से निर्वहन करें इसके लिए जरूरी है कि उसके अधिकारी महीने में कम से कम एक बार खानों का दौरा करें और तय करें कि खंभें सही जगह लगे हैं। अवैध खनन को रोकने और सरकारी रायल्टी वसूलने के लिए जांच चौकियां, कंप्यूटरीकृत नापतौल की व्यवस्था होनी चाहिए।
इस मामले में खान मालिक या ट्रांसपोर्टरों पर भरोसा करना अनुचित है। लौह अयस्क और मैगनीज के अवैध खनन का मुख्य कारण है इससे होने वाले निर्यात से बड़ा मुनाफा। इसलिए सरकार को इनके निर्यात पर रोक लगानी चाहिए।
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