खगड़िया का पानी पीने लायक नहीं

खगड़िया जिले के पानी को करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद भी वहां के पानी को आर्सेनिक और आयरन से मुक्त नहीं किया जा सका। जिससे वहां के लोगों को पीने के पानी का बहुत बड़ी समस्या उभर कर सामने आ रही है। इसी समस्या को उजागर कर रहे हैं मनेंद्र कुमार।

आर्सेनिक मुक्त जलापूर्ति योजना खगड़िया प्रखंड के मोरकाही टोला, नन्हुक मंडल टोला, जंगली मथार टोला, वरखंडी टोला तथा गोगरी प्रखंड के राटन गांव में शुरू किया गया है। कार्यपालक अभियंता के मुताबिक कुल 33 का लक्ष्य मिला था, लेकिन अभी तक यह 13 स्थानों पर चालू हो सका है। लो वोल्टेज के कारण परवत्ता एवं अलौली में ग्रामीण जलापूर्ति योजना की शुरुआत नहीं की जा सकी है। बैलदौर, चौथम एवं रांको में पानी टंकी को शुरू कर दिया गया है। जिले में आर्सेनिक प्रभावित 40 मुहल्ले का चयन किया गया है।

खगड़िया जिले में लोगों को आजादी के कई दशक बीत जाने के बाद भी शुद्ध पानी भी नसीब नहीं है। जिले के 129 पंचायतों में आयरन युक्त पानी पाया जाता है, वहीं गंगा एवं गंडक नदी के किनारे बसे गांवों में आर्सेनिक मिश्रित पानी पाया जाता है, जो सबसे खतरनाक माना जाता है। ऐसे जगहों पर लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के द्वारा चापाकल में लाल चिन्ह लगा दिया गया है। हालांकि बिहार सरकार के द्वारा यह घोषणा की गई थी कि जिले के आर्सेनिक प्रभावित टोले, मुहल्ले को शुद्ध पेयजल की व्यवस्था की जाएगी, लेकिन सरकार की घोषणा हवा-हवाई साबित हो रही है। गौरतलब है कि एनडीए सरकार के प्रथम कार्यकाल में ही जिले के अलौली, रांको, परवत्ता, गोगरी, चौथम और बेलदौर में (जलमीनार) पानी टंकी का निर्माण कार्य शुरू किया गया था।

कई जगहों पर पानी टंकी बनकर तैयार हो गया, लेकिन आज तक इस टंकी से पानी नहीं टपका है, बल्कि विभाग को विद्युत आपूर्ति ठीक ढंग से नहीं होने की शिकायत है। खोखले दावे करने में माहिर जिले के जनप्रतिनिधि भी इस गंभीर समस्या के प्रति उदासीन हैं। प्रखंड मुख्यालय, गांवों की बात तो छोड़ दें, आलम यह है कि शहर के पूर्वी भाग समाहरणालय, प्रखंड कार्यालय, अनुमंडल कार्यालय, सिविल कोर्ट, सदर अस्पताल सहित दर्जनों कार्यालय एवं शिक्षण संस्थानों में आज तक पाइप लाइन बिछाने का काम पूरा नहीं हो सका है। जिला मुख्यालय में अगर ऐसी हालत है तो, ग्रामीण क्षेत्रों में कैसी हालत होगी इसका अंदाजा सहज लगाया जा सकता है।

उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार द्वारा जिले को आयरन मुक्त बनाने में करोड़ों रुपये की राशि खर्च की जा चुकी है, लेकिन समस्या अब भी जस की तस बनी हुई है। कई गांवों में लाखों रुपये खर्च कर सौर उर्जा के द्वारा संचालित मिनी पानी टंकी का भी निर्माण किया गया है, लेकिन यह योजना भी सरकारी लापरवाही की वजह से असफल होता नजर आ रहा है। लोकस्वास्थ्य अभियंत्रण प्रमंडल खगड़िया के द्वारा विधायक निधि से प्राथमिक एवं मध्य विद्यालय के चापाकल में ही 37 हजार की लागत से वाटर फिल्टर लगाया गया था, लेकिन चंद दिनों में ही अधिकांश चापाकल खराब हो गए। हालांकि, बैंक के सहयोग से कई उच्च विद्यालयों में शुद्ध पानी के लिए एक्वाफ्रेश मशीनें दी जा रही हैं। आखिरकार सरकार के द्वारा करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद भी जिले को आयरन मुक्त बनाने का मकसद पूरा नहीं हो सका है।

इस बाबत लोक स्वास्थ्य प्रमंडल के कार्यपालक अभियंता ई. मनोज कुमार चौधरी का कहना है कि जिले को आयरन मुक्त बनाने का प्रयास किया जा रहा है, इसके तहत जिले में 1467 नलकूप लौह निष्कासन संयत्र लगाया गया है। मिनी जलापूर्ति योजना के तहत 8 आयरन फ्री प्लांट चालू किया गया, जिसमें खगड़िया प्रखंड के दुर्गापुर, चतरा, चौथम के हरदिया, ब्रम्हा, मानसी के चुकती, बलहा, गोगरी प्रखंड के तहत मलिया, मुश्कीपुर एवं समसपुर गांव में शुरू किया गया है। वहीं आर्सेनिक मुक्त जलापूर्ति योजना खगड़िया प्रखंड के मोरकाही टोला, नन्हुक मंडल टोला, जंगली मथार टोला, वरखंडी टोला तथा गोगरी प्रखंड के राटन गांव में शुरू किया गया है। कार्यपालक अभियंता के मुताबिक कुल 33 का लक्ष्य मिला था, लेकिन अभी तक यह 13 स्थानों पर चालू हो सका है। लो वोल्टेज के कारण परवत्ता एवं अलौली में ग्रामीण जलापूर्ति योजना की शुरुआत नहीं की जा सकी है। बैलदौर, चौथम एवं रांको में पानी टंकी को शुरू कर दिया गया है। जिले में आर्सेनिक प्रभावित 40 मुहल्ले का चयन किया गया है, जहां सौर ऊर्जा की मदद से जलापूर्ति की जानी है।

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