मालूम नहीं, क्यों मेरे पिता मुझे इलेक्ट्रीशियन बनाना चाहते थे, जबकि मेरे मन में कुछ और ही चल रहा था। मैं क्या बनना चाहता था, यह तो नहीं पता था, लेकिन मैं कुछ नया करना चाहता था।
मैं कर्नाटक के मंगलुरु में रहने वाला बाईस साल का युवा उद्यमी हूँ। शुरू से ही फोटोग्राफी मेरा शौक रहा है। बचपन से ही मैं कई रचनात्मक चीजें बनाता रहा हूँ। फिर चाहे वह पेंट के माध्यम से हो या कागज आदि से। लेकिन जब जिन्दगी में कुछ बनने का मौका आया, तो मुझसे कहा गया कि मुझे अपनी सारी रचनात्मक बतौर इलेक्ट्रीशियन दिखानी चाहिए। मुझे यह नामंजूर था।
मैं अपने लिये कोई ऐसा ठिकाना ढूँढ़ने लगा, जो मेरी भावनाओं को समझ सके। मुझे वह माहौल प्रदान करे, जहाँ मैं स्वतंत्र रूप से अपने दिमाग का प्रयोग कर सकूँ। इसी बीच मुझे बंगलुरु की एक ऐसी संस्था के बारे में पता चला जो बच्चों को उनके मन मुताबिक शिक्षा प्रदान करके उनके सपने पूरे करने में मदद करती है। यह मेरी खुशकिस्मती ही थी कि डिजाइन एजुकेशन फॉर योरसेल्फ (डेफी) नामक इस संस्था से मैं जुड़ गया। हालांकि इसके लिये मुझे अपना घर छोड़ना पड़ा। यहाँ रहकर मुझे अपनी किसी भी योजना के विकास के लिये पूरी आजादी और मदद मिली।
यहाँ अनेक कम्प्यूटरों की मदद से तमाम तरह की निशुल्क शैक्षणिक गतिविधियाँ भी चलाई जाती हैं। मतलब कि यदि किसी छात्र के दिमाग में कोई भी विचार अंकुरित हो रहा है, तो यहाँ उसके पोषण की पूरी व्यवस्था है। आगे चलकर मैं यहीं की एक परियोजना का मुखिया बन गया।
चूँकि मैं एक किसान परिवार से आता हूँ, इसलिये खेती और इससे जुड़ी खबरों से मेरा वास्ता पड़ता रहा है। मुझे पता है कि राज्य में हर साल सैकड़ों किसान बारिश पर निर्भरता और कर्ज के कुचक्र में फँसकर खुदकुशी कर लेते हैं। मैंने इसी समस्या को ध्यान में रखकर कोई समाधान निकालने की सोची। इस दिशा में क्या कुछ किया जा सकता है, यह जानने के लिये इंटरनेट पर घंटों बिताए।
इसी दरम्यान मेरे एक जीवविज्ञानी मित्र, जो कि काम के सिलसिले में अमरीका तक जा चुके हैं, ने मुझे एक सलाह दी। उन्होंने मुझे एक नई तरह की खेती- एक्वापोनिक्स (aquaponics) के बारे में बताया। इस तरीके की खेती में आमतौर पर लगने वाले पानी के महज दस फीसदी पानी की मदद से पौधे दोगुनी रफ्तार से बढ़ते हैं। मछलियों और पौधों को मिलाकर की जाने वाली खेती के बारे में मैंने कुछ किसानों को बताया। उनसे बात करने के बाद मुझे अन्दाजा हो गया कि वे मेरी बात इतनी आसानी से नहीं मानने वाले हैं। मुझे उन्हें मनाने के लिये पहले परिणाम दिखाना था।
मुझे एक तरकीब सूझी। मैंने किसानी करने वाले उन बच्चों को विश्वास में लेना शुरू किया, जो डेफी में पढ़ने आते थे। इसके लिये मैंने बाकायदा एक छोटा एक्वापोनिक्स सेटअप तैयार किया। मेरी कवायद का असर दिखने लगा, जब कुछ किसान मेरा सेटअप देखने आने लगे। वहाँ हो रही विशेष खेती के नमूने देखने के बाद उन्होंने उस तंत्र को अपनाने के लिये हामी भर दी। जल्द ही मैंने तरानीरू नाम से अपना स्टार्टअप शुरू कर दिया। इसके तहत मैं किसानों को एक्वापोनिक्स खेती के लिये प्रोत्साहित करता हूँ। मैं उन किसानों की बेहतरी के लिये काम करना चाहता हूँ, जो हमारा पेट भरते हैं और जिनके बिना हमारे अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती।
विभिन्न साक्षात्कारों पर आधारित
मैं कर्नाटक के मंगलुरु में रहने वाला बाईस साल का युवा उद्यमी हूँ। शुरू से ही फोटोग्राफी मेरा शौक रहा है। बचपन से ही मैं कई रचनात्मक चीजें बनाता रहा हूँ। फिर चाहे वह पेंट के माध्यम से हो या कागज आदि से। लेकिन जब जिन्दगी में कुछ बनने का मौका आया, तो मुझसे कहा गया कि मुझे अपनी सारी रचनात्मक बतौर इलेक्ट्रीशियन दिखानी चाहिए। मुझे यह नामंजूर था।
मैं अपने लिये कोई ऐसा ठिकाना ढूँढ़ने लगा, जो मेरी भावनाओं को समझ सके। मुझे वह माहौल प्रदान करे, जहाँ मैं स्वतंत्र रूप से अपने दिमाग का प्रयोग कर सकूँ। इसी बीच मुझे बंगलुरु की एक ऐसी संस्था के बारे में पता चला जो बच्चों को उनके मन मुताबिक शिक्षा प्रदान करके उनके सपने पूरे करने में मदद करती है। यह मेरी खुशकिस्मती ही थी कि डिजाइन एजुकेशन फॉर योरसेल्फ (डेफी) नामक इस संस्था से मैं जुड़ गया। हालांकि इसके लिये मुझे अपना घर छोड़ना पड़ा। यहाँ रहकर मुझे अपनी किसी भी योजना के विकास के लिये पूरी आजादी और मदद मिली।
यहाँ अनेक कम्प्यूटरों की मदद से तमाम तरह की निशुल्क शैक्षणिक गतिविधियाँ भी चलाई जाती हैं। मतलब कि यदि किसी छात्र के दिमाग में कोई भी विचार अंकुरित हो रहा है, तो यहाँ उसके पोषण की पूरी व्यवस्था है। आगे चलकर मैं यहीं की एक परियोजना का मुखिया बन गया।
चूँकि मैं एक किसान परिवार से आता हूँ, इसलिये खेती और इससे जुड़ी खबरों से मेरा वास्ता पड़ता रहा है। मुझे पता है कि राज्य में हर साल सैकड़ों किसान बारिश पर निर्भरता और कर्ज के कुचक्र में फँसकर खुदकुशी कर लेते हैं। मैंने इसी समस्या को ध्यान में रखकर कोई समाधान निकालने की सोची। इस दिशा में क्या कुछ किया जा सकता है, यह जानने के लिये इंटरनेट पर घंटों बिताए।
इसी दरम्यान मेरे एक जीवविज्ञानी मित्र, जो कि काम के सिलसिले में अमरीका तक जा चुके हैं, ने मुझे एक सलाह दी। उन्होंने मुझे एक नई तरह की खेती- एक्वापोनिक्स (aquaponics) के बारे में बताया। इस तरीके की खेती में आमतौर पर लगने वाले पानी के महज दस फीसदी पानी की मदद से पौधे दोगुनी रफ्तार से बढ़ते हैं। मछलियों और पौधों को मिलाकर की जाने वाली खेती के बारे में मैंने कुछ किसानों को बताया। उनसे बात करने के बाद मुझे अन्दाजा हो गया कि वे मेरी बात इतनी आसानी से नहीं मानने वाले हैं। मुझे उन्हें मनाने के लिये पहले परिणाम दिखाना था।
मुझे एक तरकीब सूझी। मैंने किसानी करने वाले उन बच्चों को विश्वास में लेना शुरू किया, जो डेफी में पढ़ने आते थे। इसके लिये मैंने बाकायदा एक छोटा एक्वापोनिक्स सेटअप तैयार किया। मेरी कवायद का असर दिखने लगा, जब कुछ किसान मेरा सेटअप देखने आने लगे। वहाँ हो रही विशेष खेती के नमूने देखने के बाद उन्होंने उस तंत्र को अपनाने के लिये हामी भर दी। जल्द ही मैंने तरानीरू नाम से अपना स्टार्टअप शुरू कर दिया। इसके तहत मैं किसानों को एक्वापोनिक्स खेती के लिये प्रोत्साहित करता हूँ। मैं उन किसानों की बेहतरी के लिये काम करना चाहता हूँ, जो हमारा पेट भरते हैं और जिनके बिना हमारे अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती।
विभिन्न साक्षात्कारों पर आधारित
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