खेत सींचने लायक भी नहीं रहा गंगाजल

ताज़ा अध्ययन में यह बात सामने आ चुकी है कि गंगा का जल तो हरिद्वार पहुंचने तक ही खासा प्रदूषित हो जा रहा है और हरिद्वार से ही यह जल न तो पीने लायक नहाने लायक। मानक के अनुसार तो अब यह खेत सींचने के लिए भी योग्य नहीं है। ऐसा नहीं है कि गंगा शुद्धि अभियान के तहत कुछ हो ही न रहा हो और प्रदूषण नियंत्रण के तंत्र बिल्कुल निष्क्रिय हों। हां, जो हो रहा है, वह पर्याप्त नहीं है। गंगा के प्रदूषण को लेकर सबसे पहले चिंता 1980 में सामने आयी जब वाराणसी से लेकर पटना तक इसके पानी के नमूने लेकर जांच की गई और पाया गया कि इसमें एस्केरिसिया कोली (प्रसिद्ध नाम ई. कोलाई) सहित कई अत्यंत हानिकारक बैक्टीरिया की मात्रा हानिकारक स्तर तक मौजूद है। इन तीस सालों में चिंता के अनुसार जो उपाय किये गये, वे कारगर नहीं हुए। ताज़ा अध्ययन में यह बात सामने आ चुकी है कि गंगा का जल तो हरिद्वार पहुंचने तक ही खासा प्रदूषित हो जा रहा है और हरिद्वार से ही यह जल न तो पीने लायक नहाने लायक। मानक के अनुसार तो अब यह खेत सींचने के लिए भी योग्य नहीं है। ऐसा नहीं है कि गंगा शुद्धि अभियान के तहत कुछ हो ही न रहा हो और प्रदूषण नियंत्रण के तंत्र बिल्कुल निष्क्रिय हों। हां, जो हो रहा है, वह पर्याप्त नहीं है। उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुख्य पर्यावरण अधिकारी (प्रशासनिक) जेएस यादव के मुताबिक पांच वर्षों के दौरान दायित्वों के निर्वहन में लापरवाही बरतने पर फैज़ाबाद, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी और बिजनौर के क्षेत्रीय अधिकारियों को निलंबित किया जा चुका है। इस अवधि में बोर्ड ने पांच अवर अभियंताओं को भी निलंबित किया है।

मानकों की पूर्ति न करने वाले और बगैर ईटीपी के चलते पाये गये 131 उद्योगों में से 69 के विरुद्ध बंदी की कार्रवाई की गई है। 14 जल प्रदूषणकारी उद्योगों को कारण बताओ नोटिस जारी किये गये हैं। 48 उद्योगों के विरुद्ध कार्रवाई के निर्देश जारी किये गये हैं। नियमों का उल्लंघन करने पर बोर्ड ने दोषी व्यक्तियों/उद्योगों के खिलाफ अभियोजनात्मक कार्रवाई करते हुए फरवरी 2010 तक जल अधिनियम के तहत 89 और पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम के तहत दो परिवाद भी दायर किये।

बोर्ड अधिकारियों का कहना है कि अधिकतर उद्योगों में ईटीपी तो लगे हैं। उन्हें चलाने क खर्च बचाने के लिए कारखाना मालिक अक्सर उनका इस्तेमाल नहीं करते और उत्प्रवाह बिना शोधित किये चोरी-छिपे बहा देते हैं। वे प्रायः उत्प्रवाह साफ करने के लिए महंगे व प्रभावी रसायनों का उपयोग भी नहीं करते। बहुतेरे उद्योगों में स्थापित ईटीपी अब बेकार हो चुके हैं। स्टाफ की कमी के कारण बोर्ड को नियमों का उल्लंघन करने वे उद्योगों पर नजर रखने में मुश्किलें आती हैं।

फिलहाल हालात तो बदतर है

कारवाई जो भी हो रही है, लेकिन स्थिति तो दिन-ब-दिन बेकाबू होती जा रही है। माइक्रोस्कोप लगाने की जरूरत नहीं, नंगी आंखों से ही जल की स्थिति देखी जा सकती है। भारतीय विष अनुसंधान विज्ञान संस्थान के शोध पर भरोसा करें तो ऋषिकेश से लेकर दक्षिणेश्वर (कोलकाता) तक इसमें हानिकारक तत्व पारे की ख़ासी मात्रा घुल रही है। हालत यह है कि नदी के उद्गम स्थल से लेकर हरिद्वार तक 12 नगरों का तकरीबन 90 मिलियन लीटर अवजल रोज़ाना गंगा में बिना शोधित किये डाला जा रहा है। यह स्थिति तो नगरीय व्यवस्था से उपजे अपजल की है। औद्योगिक कचरे का हाल तो और गंभीर है। गंगा एक्शन प्लान की सीएजी रिपोर्ट ही इस बात का साक्ष्य है कि औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले प्रदूषित जल को शोधित करने की प्रक्रिया केवल खानापूरी तक सीमित है। नतीजा सामने है कि गंगा का निर्मल जल जैसे ही उत्तर प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्र से गुजरता है, वैसे ही उसकी दशा और खराब होने लगती है। एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक कानपुर में बैक्टीरियल लोड यानी कोलीफार्म काउंट को दो लाख से ज्यादा जा पहुंचा है और पटना में अन्य नदियों का जल मिल जाने पर यह तकरीबन 38 हजार एमपीएन प्रति सौ मिलीलीटर हो जाता है।

प्रदूषण नियंत्रण संबंधी कुछ तथ्य


उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा प्रदेश में 2275 जल प्रदूषणकारी उद्योग चिन्हित किये गये हैं, जिसमें से 515 स्वतः बंद हो चुके हैं। चल रहे 1760 उद्योगों में से 1685 में ईटीपी स्थापित है। इनमें भी 56 उद्योग ऐसे हैं, जिनमें ईटीपी से शोधित हुआ उत्प्रवाह मानकों की कसौटी पर खरा नहीं उतरता जबकि 75 उद्योगों में ईटीपी स्थापित ही नहीं है। प्रदेश में 545 ऐसे अतिप्रदूषणकारी उद्योग चिन्हित किये गये हैं, जिनका बीओडी (बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड) लोड 100 किलोग्राम प्रतिदिन से ज्यादा है या फिर जिनका उत्प्रवाह विषैला है। इनका उत्प्रवाह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सूबे में प्रवाहित होने वाली 13 नदियों या विभिन्न तालाबों में मिलता है। फिलहाल इनमें से 97 उद्योग बंद है। अतिप्रदूषणकारी उद्योगों से प्रभावित होने वाली नदियों में गंगा, यमुना, गोमती, रामगंगा, हिंडन, सरयू, काली ईस्ट, काली वेस्ट, घाघरा, राप्ती, सई, रिहंद और शारदा शामिल है। इनमें से 448 उद्योग ऐसे हैं जिनमें उत्प्रवाह शुद्धिकरण संयंत्र (ईटीपी) स्थापित है। ईटीपी की सुविधा से लैस उद्योगों में से सिर्फ 385 ऐसे हैं, जिनके शुद्धीकरण संयंत्र उप्र राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानकों को पूरा करते पाये गये हैं। प्रदेश में अब भी 63 उद्योग ऐसे हैं, जिनमें ईटीपी तो लगे हैं, लेकिन वे बोर्ड के मानकों की कसौटियों पर खरे नहीं उतरते।

जाहिर है कि इनका विषैला उत्प्रवाह नदियों-तालाबों के पानी में जहर घोल रहा है। इनके अलावा प्रदेश में ऐसे 2114 उद्योग चिन्हित किये गये हैं, जो सालाना 21253.85 मीट्रिक टन परिसंकटमय अपशिष्ट (हैजार्डस वेस्ट) पैदा करते हैं। फिलहाल इनमें से 376 उद्योग अपने कारणों से बंद हैं, जबकि 89 को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बंद कराया है। चालू उद्योगों में से सिर्फ 1339 ही ऐसे हैं, जिन्हें इस बाबत बोर्ड से इनके स्वतः निस्तारण के प्राधिकार प्राप्त है, जबकि 21 के पास इन्सिनरेटर की व्यवस्था है। बाकी 289 उद्योगों की कचरा निस्तारण व्यवस्था राम भरोसे है। प्रदेश में परिसकटमय अपशिष्ट के निस्तारण के तीन सामूहिक केंद्र इस वक्त चालू है। इनमें से दो कुम्भी (कानपुर देहात) व एक बंथर (उन्नाव) में है। ज़मीन न मिलने के कारण पश्चिम उप्र में ऐसे उद्योगों के लिए सामूहिक कचरा निस्तारण केंद्र नहीं खोला जा पा रहा है। अब बोर्ड की वहां सार्वजनिक निजी सहभागित (पीपीपी मॉडल) पर केंद्र खोलने की योजना है।

हो रही निगरानी


उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड )यूपीपीसीबी) गंगा नदी के जल में प्रदूषण की जांच करने के लिए प्रदेश में 13 स्थानों से पानी के नमूने लेता है। ये स्थान है गढ़मुक्तेश्वर डाउनस्ट्रीम (गाज़ियाबाद), राजघाट डाउनस्ट्रीम नरौरा (बुलंदशहर), कन्नौज अपस्ट्रीम व डाउनस्ट्रीम, बिठूर (कानपुर), कानपुर अपस्ट्रीम व डाउनस्ट्रीम, डलमऊ (रायबरेली), इलाहाबाद अपस्ट्रीम व डाउनस्ट्रीम और तारीघाट डाउनस्ट्रीम (गाजीपुर)।

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