शीशपाल हरडू जी मेरे मित्र हैं जो हरियाणा के सिरसा जिले के ऐलनाबाद ब्लाक के गाँव कुमथल के रहने वाले हैं। कोआपरेटिव विषय में पी.एच.डी. कर चुके शीशपाल जी गवर्नमेंट कालेज मीठी सुरेरां ऐलनाबाद से वर्ष 2021 में प्रिंसिपल पद से रिटायर हुए हैं। रिटायरमेंट के बाद शीशपाल जी ने प्राकृतिक खेती विषय में प्रयोग करने का मन बनाया। गांव कुमथल से दो किलोमीटर बाहर मुख्य सड़क पर सवा चार एकड़ में 'खाओ आर्गेनिक कृषि फार्म' की स्थापना की और सुबह शाम खेत में जा कर काम करना शुरू किया। प्राकृतिक कृषि फार्म शुरू करने के पीछे सोच खुद के लिए प्राकृतिक और पोषण युक्त भोजन की व्यवस्था करना था।
चूँकि पहले कृषि का कोई प्रक्टिकल अनुभव नहीं था और ऊपर से भूमि भी सफ़ेद मिटटी वाली लगभग उसर ही थी। खेत का आधार बनाने के लिए एक गाय और एक बछिया को लेकर आये और उनके गोबर और मूत्र से जीवामृत बनाना शुरू किया। जिसके बेहद शानदार नतीजे मिलने शुरू हुए। शीशपाल जी ने बताया कि पिछली रबी में 36 टन प्रति एकड़ गेहूं का उत्पादन हुआ। जबकि गेहूं भी शरवती और बंसी थे जिनमें उत्पादन हाइब्रिड के मुकाबले थोडा कम ही होता है। शीशपाल जी ने बताया कि मैंने अपने खेत पर भिन्न भिन्न प्रकार की वनस्पतियों को उगाया जिससे मेरे खोत पर जैव विविविधता का निर्माण हुआ और कीटों, पक्षियों, छोटे जीवों को आश्रय मिला और एक पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण होना शुरू हो गया। मुझे तो यह सार्थक बदलाव साफ नजर आ रहे थे लेकिन मेरे से मिलने जुलने वाले व्यक्ति अभी भी इसकी आमदनी के विचार में उलझे हुए थे। मैं सोशल मीडिया के माध्यम से भिन्न भिन्न प्रान्तों में मेरे जैसे प्रयोगशील किसानों से भी जुड़ता चला गया और उनके द्वारा किये गए प्रयोगों को मैंने अपने खेत पर दोहराना शुरू किया। मेरी पत्नी ब्रिजवाला और में सुबह छह बजे घर से निकलते थे और दो किलोमीटर दूर अपने खेत पर पहुंचते और अपना काम करने में जुट जाया करते थे। मैं शुद्ध भोजन उत्पादन के तौर तरीकों का अध्यन और प्रयोग करते कब जीवन शैली से जुड़े प्रयोगों पर पहुंच गया मुझे पता नहीं चला। मैं सोशल मीडिया के माध्यम से सरदार राजपाल माखनी जी से जुड़ा और उनके विचार मुझे सुनने को मिले जिसमें उन्होंने अपने भोजन को नियंत्रित करके और एक अनुशासन विकसित करने की बात पर जोर दिया था। मैं उन्हें सुन तो बहुत दिनों से रहा था लेकिन कैसे अपनी जीवन शैली के साथ प्रयोग शुरू करूँ मेरी समझ में नहीं आ रहा था।
पिछले अनेक वर्षों से में कब्ज से भी परेशान था और मुझे फोर्टिस मोहाली के डॉक्टर ने सलाह दी थी कि आपकी आँतों की बनावट को देखते हुए हरेक तीन महीने के बाद आपको दवा का इस्तेमाल करके आपको आँतों की सफाई कर लेनी चाहिए। एक प्रसिद्ध प्राकृतिक चिकिसालय जिसका काफी प्रचार है वहां जाने का कार्यक्रम बना लेकिन 55 हज़ार रुपये खर्च करके दस दिनों में भी कोई खास सुधार नहीं हुआ तो शीशपाल जी कुछ दिनों के लिए सब कुछ छोड़ कर बैठ गए। एक दिन बिटिया स्वेछांजलि जो घर आई हुई थी उसने शीशपाल जी से कहा कि पापा आप राजपाल माखनी अंकल जी के विडियो देखते हो लेकिन उनकी बतायी सलाह पर प्रयोग शुरू क्यों नहीं करते हो। शीशपाल जी ने तुरंत जवाब दिया कि बेटा राजपाल जी तो मीठा छोड़ने की सलाह देते हैं और मीठा तो मुझे बहुत प्रिय है। इसीलिए मैं आगे नहीं बढ़ पाता हूं बस विडियो देख कर ही रह जाता हूं।
यह 12 सितम्बर 2023 की शाम को बातचीत हो रही थी। घर के सभी सदस्य वहां थे, बेटा सर्वेश, बहुरानी अन्नु, बिटिया स्वेछांजलि और पत्नी ब्रिजबाला तो बिटिया ने मेरा उत्साहवर्धन करते हुए कहा कि पापा जी ऐसी तो कोई बात नहीं है कि आप मीठा नहीं छोड़ सकते हैं आप में तो बहुत हिम्मत है आप चाहें तो आप इस चैलेंज को पार कर सकते हैं।
शीशपाल जी बताते हैं कि बिटिया के वचन सुनकर उनके मन में एक अजीव सा शक्ति का विस्फोट हुआ और उनके मन से इस चैलेन्ज को सामने से पकड़ने का विचार बनना शुरू हो गया। सर्वेश ने कहा पापा जी आज हम आपके फेवरेट स्पंज वाले रसगुल्ले लेकर आते हैं और आप अपनी इच्छा शक्ति का प्रयोग शुरू करें।
शीश पाल जी ने बताया कि उस रात मैंने चार स्पंज वाले रसगुल्ले बड़े आराम से और तसल्ली से आनंद लेकर खाए और सुबह जब मैं उठा तो मेरे अंदर कुछ नया मुझे अनुभव हुआ। मैंने गौर से महसूस किया तो वो मेरा संकल्प था। मैंने मीठा नहीं खाना है। अगला एक सप्ताह मेरे लिए सुस्ती, बोरियत और उदासी भरा था जिसे मैंने अपने धैर्य और दृढ संकल्प के जरिये काटा। मैंने अपनी सुस्ती को तोड़ने के लिए अपना एक रूटीन बनाना शुरू किया जिसमें सुबह एक लीटर धीरे धीरे पानी पीना शुरू किया और खाली समय में गीता के दस पेज पहने शुरू किये।
अब मेरे रूटीन में मेरा मन लगने लग गया था और मैंने सुबह शाम थोड़ा व्यायाम भी शुरू कर दिया। एक हफ्ते के बाद मेरी सुस्ती दूर हो गई और मेरे अंदर एक नई ऊर्जा का फुटाव हुआ जिसे मैंने साक्षात महसूस किया। मैंने थोड़ा और विचार करके देखा तो मुझे लगा कि अब मुझे एक कदम और आगे बढ़ना चाहिए। मैं पिछले कुछ दिनों से महसूस कर रहा था कि प्रोसेस्ड पॅकेज फूड, फास्ट फूड जैसे चाऊमीन, बर्गर, पिज्जा कोल्ड ड्रिंक आदि का भी त्याग कर ही देना चाहिए। मैंने अपना मन मजबूत किया और बस एक ही बार में जंक फूड का भी त्याग कर दिया।
मैंने एक दिन सोशल मीडिया में देखा कि अंकित बैंयापुरिया जो सोनीपत जिले के बैंयापुर गांव का निवासी था जिसने 75 दिन हार्ड चैलेन्ज के नाम से मुहिम की शुरुआत की जिसे उसने कैमरे पर रिकॉर्ड किया। उसके शरीर में आये सार्थक बदलावों को देखा कर उसकी फैन फोल्लोविंग में रिकार्ड वृद्धि हुई और उसे एक दिन प्रधानमंत्री ने अपने आवास पर आमंत्रित किया और मैंने उसके विचारों को सुना। मेरे मन में भी अंकित के प्रयोग का समर्थन किया और मेरा मन पहले से भी जयादा मजबूत हो गया। मेरे परिवार ने कई बार मेरे सामने स्पंज के रसगुल्ले मंगवाए और मेरे से पूछा भी लेकिन मेरा मन इतना मजबूत था कि एक बार भी मेरे मन को इच्छा नहीं हुई कि मैं मीठा फिर से खाना शुरू कर दूं।
अब तक मेरा शरीर अंदर से मेरा साथ देना शुरू कर चुका था। मेरी कब्ज की समस्या मुझे अब तंग नहीं कर रही थी। मेरी पीठ में भी जो दर्द होता था वो अब पहले की तरह परेशान नहीं कर रहा था। मेरा वजन भी अब तेजी से कम होने लग रहा था। मेरे पांच साल पुराने कपडे जो मुझे टाईट हुआ करते थे अब मुझे बड़े आराम से आने लगे थे।
मैं अपने इस नए रूप से खुश था और मुझे मेरे मिलने जुलने वालों से कॉम्प्लीमेंट भी मिलने शुरू हो गए। मुझे सोशल मीडिया से भी प्रोत्साहन मिल रहा था। मुझे मेरे कुछ मित्रों ने कहा कि आपकी उम्र अब पांच साल कम दिखाई पड़ रही है।
मैंने सोचा कि मुझे अब अपने जीवन को जीवन शैली के शोध में लगाना चाहिए और यूट्यूब के माध्यम से अपने विचारों और अनुभवों को जगत के सामने रखना चाहिए ताकि प्रयोगशील व्यक्ति मेरे अनुभवों से प्रेरणा लेकर अपने जीवन में कुछ प्रयोग कर सकें।
मेरे बेटे सर्वेश ने मुझे कहा कि मैं आपका चैनल बना देता हूं और आप एक सप्ताह में एक विडियो शूट कीजिये और उसे हम चैनल पर डाल देंगे जिससे आपको सब जगह से फीडबैक भी मिलेगी और अच्छी बातों का प्रचार प्रसार भी होगा।
मैंने पहला विडियो बनाया और बेटे को दे दिया मुझे तो एडिट करना आता नहीं था मेरे बेटे ने विडियो एडिट किया और हमने वो विडियो अपने चैनल पर डाला। अब मैं लगभग हर सप्ताह एक विडियो बना लेता हूँ। मेरे विडियो बनाने से अब मेरे विचार और अनुभव मेरे घर में भी भी चर्चा में आये और उन्होंने ने भी अपनी रसोई में कुछ बदलाव शुरू किये। मेरा अध्यन भी अब जीवनशैली पर भी केन्द्रित हो गया है। मैंने फूड चेन का भी अध्यन शुरू किया है।
मैंने अब कुछ नतीजे निकाले हैं जिन्हें मैं आप सभी के साथ सांझा करना चाहता हूँ
- किसी प्रकार का भी कृत्रिम खाद्य पदार्थ जैसे सिंथेटिक मीठा, कैमिकल युक्त खाना मानव हित में नहीं है।
- हमें अपने भोजन की व्यवस्था स्वयं करने की ही कोशिश करनी चाहिए इसका मतलब यह नहीं है कि हम भोजन स्वयं ही बाजार से खरीद कर लायें। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि पैकेट बंद मसाले, खाद्य तेल, पैकेट बंद आटा, आदि इन सभी को अपनी रसोई में बाजार से खरीदकर नहीं लेकर आना चाहिए क्यूंकि कितना भी बड़ा ब्रांड हो वो उस दर्जे की शुद्धता की बराबरी नहीं कर सकता है जो हम अपने अपने घर में बनाते हैं।
- हमारे देश में एक वो समय था जब एक कारतूस पर चर्बी लगाने की वजह से देश में फौज ने विद्रोह हो गया था। आज चर्बी हम न जाने किस किस रूप में खा रहे हैं हम जानते भी नहीं है। आने वाला समय इतना खतरनाक है कि खाद्यानों का उत्पादन अब खेतों से ना होकर बड़ी बड़ी फक्ट्रियों में शुरू होने वाला है। स्विटजरलैंड देश में कीटों को पाल कर उनसे प्रोटीन निकाल कर उसे उसे चाकलेट में मिला कर खाने के लिए प्रस्तुत किया गया है। यह एक बड़ी चिंता का विषय है। क्यूंकि हमारे देश में शाकाहार करने वाले भी बहुत बड़ी संख्या में जनता है।
- शुद्ध दूध की उपलब्धता आज एक स्वपन बन चुका है जबकि देश में दूध की नदियाँ बहने लग रही है और आज दूध एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या बन चुका है। डॉक्टर भी दूध छोड़ने की सलाह देते नज़र आते हैं।
- कम खाना आज कामयाबी का शर्तिया सिद्दांत है क्यूंकि बार बार ठूंस-ठूंस कर खाना एक बड़ी समस्या है क्यूंकि हमारा शरीर एक बार ग्रहण किये भोजन को पचाने की प्रक्रिया में अभी होता है हम और भोजन ग्रहण कर लेते हैं जिससे पूरी पाचन प्रणाली उलझ जाती है। शरीर धीरे-धीर डायबिटीज की ओर अग्रसर हो जाता है।
- व्रत करना एक अच्छी आदत है जिससे शरीर में टूटी फूटी कोशिकाओं और अंगों का पुनर्निर्माण भी होता है। हमें साप्ताहिक व्रत स्वाश्य करना चाहिए।
- कृषि और पशुपालन में प्रयोग किये जाने वाले रासायनिक पदार्थ बेहद खतरनाक हैं उसके बारे में हमें लगातार शोध करते रहना चाहिए क्यूंकि इनका सीधा भोजन के माध्यम से हमारे ऊपर प्रयोग होता है। हमें जहर रहित सब्जियों की प्राप्ति के लिए उपभोक्ता संघ बनाकर किसानों से सम्पर्क करना चाहिए।
स्रोत- गुड़गांव टुडे पुरुषाय सोमवार, 19 फरवरी 2014
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