भारत विश्व में कोयला का सबसे बड़ा उत्पादक देशों में शुमार किया जाता है फिर भी इसे विद्युत उत्पादन के लिए कोयला आयात करना पड़ता है। यदि हम कोयला संसाधन का सही इस्तेमाल और नीति बनाएं तो उर्जा संरक्षण के संबंध में हमारी कई सारी चिंताओं का हल संभव हो सकेगा। आवश्यकता है इसके लिए एक ठोस नीति को सख्ती से अमल में लाने की। अन्यथा काला हीरा के नाम से नामित इस राष्ट्रीय सम्पत्ति का धू-धू कर जलते देखना हमारी नियति बन जाएगी।
प्राकृतिक संपदा से भरपूर झारखंड के कोयला खदानों में लगी आग धीरे-धीरे इसके अस्तित्व के लिए खतरा बनता जा रहा है। ब्लैक डायमंड के रुप में विश्व विख्यात कोयला के लगातार दोहन व इसकी तस्करी ने इस प्राकृतिक संपदा को जबर्दस्त नुकसान पहुंचाया है। गोड्डा जिला में स्थापित ललमटिया कोल परियोजना झारखण्ड में उत्तम कोयला उत्पादन के लिये प्रसिद्ध है। यहां से निकलने वाले कोयले से विद्युत उत्पादन कर बिहार व पूर्वी बंगाल के हिस्से को रोशनी प्रदान की जाती है। किन्तु वर्षों से धू-धू कर जल रहे इस क्षेत्र के कोयले पर केन्द्र अथवा राज्य सरकार की निगाहें अभी तक नहीं गई और न ही नष्ट हो रहे इस राष्ट्रीय सम्पत्ति को बुझाने का कोई सार्थक प्रयास ही किया जा रहा है। आग की वजह से आस-पास के इलाकों से लोगों का पलायन हो रहा है। दूसरी ओर कोयला माफिया सरकारी भ्रष्टाचार का जमकर फायदा उठा रहे हैं। हजारों टन कोयला प्रतिदिन इन माफियाओं द्वारा ऊंची कीमत पर बाहर भेजने की प्रक्रिया जारी है।जिला मुख्यालय गोड्डा से महज 30 किमी की दूरी पर राजमहल परियोजना अन्तर्गत ईसीएल ललमटिया से प्रति वर्ष लाखों टन कोयला निकाला जाता है जिसे दो राज्यों बिहार (कहलगांव विद्युत परियोजना) और पश्चिम बंगाल (फरक्का विद्युत परियोजना) को कोयला आपूर्ति की जाती है। 1971 में तात्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी के समय में दक्षिण बिहार (अब झारखंड) के तीन स्थानों अर्थात तत्कालीन गोड्डा (अनुमंडल) धनबाद एवं रांची के आसपास मिलने वाले प्राकृतिक संपदा का राष्ट्रीयकरण की स्वीकृति प्रदान की गयी थी। इन स्थलों पर भूगर्भशास्त्रियों द्वारा सर्वे कराने के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया था कि राजमहल में दो सौ वर्षों तक कोयला खत्म नहीं हो सकता। इस निष्कर्ष ने क्षेत्र के विकास पर कोई विशेष प्रभाव तो नहीं डाला अलबत्ता निजी कंपनियों ने यहां अपना डेरा जरूर डाल दिया।
![झारखंड के कोयला खदानों में लगते आग झारखंड के कोयला खदानों में लगते आग](/sites/default/files/hwp/import/images/Fire in coal mines of Jharkhand copy.jpg)
हास्यास्पद बात यह है कि इतने बड़े क्षेत्र में लगी आग को बुझाने के लिए प्रबंधक की ओर से यह दावा किया जा रहा है कि आग को मिट्टी डाल कर बुझाने का प्रयास जारी है। यह प्रयोग कितना सफल हो पाता है इसका कोई भी अंदाजा लगा सकता है। पिछले माह कोल इंडिया के अध्यक्ष राजमहल परियोजना के औचक निरीक्षण पर थे। कोयला मे लगी आग से संबंधित कई सवाल उनसे किये गये तथा इसके निराकरण से संबंधित जानकारियां मांगी गई परंतु उन्होंने इस तरह की किसी भी सूचना से इंकार कर दिया। इधर आग लगने के कई कारणों की जांच के आदेश भी जारी कर दिये गये। खदानों में लगी आग सत्ता के गलियारे को भी तपा रही है। राजनीतिक दल इसे राष्ट्रीय सम्पत्ति को नुकसान के तौर पर तो अवश्य देख रहे हैं। परंतु इससे होने वाले फायदे को देखते हुए कोई भी इसके खिलाफ सड़कों पर उतर कर आवाज बुलंद करने की हिम्मत जुटा नहीं कर पा रहा है।
![कोयला खदान में लगी आग को देखता युवक कोयला खदान में लगी आग को देखता युवक](/sites/default/files/hwp/import/images/Fire in coal mines of Jharkhand.jpg)
विश्व कोयला एसोसिएशन के अनुसार भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा हार्ड कोयला उत्पादक देश है। तीसरा सबसे बड़ा कोयला उपभोक्ता तथा चौथा सबसे बड़ा कोयला आयातक देश है। भारत विश्व के उन देशों में है जहां विद्युत उत्पादन के लिए कोयले पर ही निर्भर किया जाता है। देश में 69 प्रतिशत विद्युत का उत्पादन कोयला पर आधारित है। यह अजीब विडंबना है कि भारत विश्व में कोयला का सबसे बड़ा उत्पादक देशों में शुमार किया जाता है फिर भी इसे विद्युत उत्पादन के लिए कोयला आयात करना पड़ता है। यदि हम कोयला संसाधन का सही इस्तेमाल और नीति बनाएं तो उर्जा संरक्षण के संबंध में हमारी कई सारी चिंताओं का हल संभव हो सकेगा। आवश्यकता है इसके लिए एक ठोस नीति को सख्ती से अमल में लाने की। अन्यथा काला हीरा के नाम से नामित इस राष्ट्रीय सम्पत्ति का धू-धू कर जलते देखना हमारी नियति बन जाएगी।
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