खाद्यान्नों-सब्जियों से अधिक फ्लोराइड ले रहे प्रभावित गाँवों के लोग

अब तक माना जाता रहा है कि फ्लोरोसिस रोग पेयजल में फ्लोराइड की मात्रा नियत सीमा से अधिक होने की वजह से होता है। इसी सिद्धान्त का अनुसरण करते हुए सरकारें फ्लोराइड प्रभावित इलाकों में वैकल्पिक पेयजल की व्यवस्था कराती है और इसे ही फ्लोराइड मुक्ति का एकमात्र उपाय मानकर चलती है। मगर एक हालिया शोध ने इस स्थापना पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

इस शोध के मुताबिक फ्लोराइड प्रभावित इलाकों में उपजने वाले खाद्यान्न और सब्जियाँ भी फ्लोरोसिस का वाहक बन सकते हैं। क्योंकि भूमिगत जल से सिंचित इन फसलों में फ्लोराइड की मात्रा नियत सीमा से अधिक पाई गई है।

यह शोध पटना वीमेन्स कॉलेज की जूलॉजी विभाग की विभागाध्यक्ष शाहला यास्मीन और उनके शोध छात्र सुमित रंजन ने किया है, जो बुलेटिन ऑफ इनवायरमेंटल काँटेमिनेशन एण्ड टॉक्सिकोलॉजी के फरवरी, 2015 के अंक में प्रकाशित हुआ है।

गया जिले के कुछ फ्लोराइड प्रभावित गाँवों में उपजने वाले खाद्यान्न और सब्जियों की जाँच कर इस शोध के नतीजे निकाले गए हैं। शाहला यास्मीन बताती हैं कि खाद्यान्नों और सब्जियों में फ्लोराइड की अधिक मात्रा उस इलाके की जियोलॉजिकल संरचना की वजह से भी हो सकती है, इसके अलावा जिस जल से फसलों की सिंचाई की जाती है उसमें फ्लोराइड की अधिक मात्रा होने की वजह से भी ऐसा होता है।

वे कहती हैं, कई दफा ऐसा उर्वरक में फ्लोराइड की अधिक मात्रा होने की वजह से भी हो सकता है। मगर ये नतीजे आँखें खोलने वाले हैं और हमें इस दिशा में सोचने के लिए मजबूर करते हैं कि सिर्फ शुद्ध पेयजल मुहैया कराने से फ्लोरोसिस से मुक्ति मुमकिन नहीं है।

इस शोध में फ्लोराइड प्रभावित गाँवों में चावल में 11.02 मिग्रा प्रति किलो फ्लोराइड पाया गया और धनिया में यह मात्रा औसतन 24.53 मिग्रा प्रति किलो तक था। यह देखा गया कि पत्तीदार सब्जियाँ अधिक फ्लोराइड ऑबजर्व करती हैं, जबकि मटर जैसी सब्जियों में फ्लोराइड की मात्रा कम पाई जाती है।

मटर में फ्लोराइड की मात्रा महज् 1.51 मिग्रा प्रति किलो थी, जबकि पालक में फ्लोराइड की मात्रा 10.49 मिग्रा प्रति किलो थी। (शोध के विस्तृत नतीजे को टेबल में देखें)

खाद्य

फ्लोराइड प्रभावित गाँवों में

सामान्य गाँवों में

गेहूँ

4.8 मिग्रा प्रति किलो

2.26 मिग्रा प्रति किलो

चावल

11.02 मिग्रा प्रति किलो

2.56 मिग्रा प्रति किलो

मटर

1.51 मिग्रा प्रति किलो

2.16 मिग्रा प्रति किलो

सरसो

4.2 मिग्रा प्रति किलो

3.2 मिग्रा प्रति किलो

आलू

3.99 मिग्रा प्रति किलो

2.11 मिग्रा प्रति किलो

पालक

10.9 मिग्रा प्रति किलो

2.73 मिग्रा प्रति किलो

धनिया

24.53 मिग्रा प्रति किलो

2.53 मिग्रा प्रति किलो



इस तरह इस शोध में पाया गया कि औसतन सामान्य गाँवों में एक मनुष्य जितना फ्लोराइड सेवन करता है उसके मुकाबले फ्लोराइड प्रभावित गाँवों के लोग चार गुना अधिक फ्लोराइड ग्रहण कर रहे हैं, वह भी खाद्यान्न और सब्जियों के जरिए। इन चीजों के जरिए जहाँ फ्लोराइड प्रभावित गाँवों के लोग औसतन 10.61 मिग्रा प्रति किलो फ्लोराइड ग्रहण कर रहे हैं वहीं सामान्य गाँवों के लोग महज् 2.65 मिग्रा प्रति किलो फ्लोराइड ही ग्रहण कर रहे हैं।

.अगर इसे पेयजल के मुकाबले देखा जाए तो फ्लोराइड प्रभावित गाँवों में इंसान औसतन 11.28 मिग्रा प्रति लीटर फ्लोराइड लेता है वहीं खाद्यान्न और सब्जियों के जरिए वह 12.56 मिग्रा प्रति किलो फ्लोराइड लेता है।

इस शोध के आँकड़ों पर गौर किया जाए तो हम पाते हैं कि पेयजल के जरिए फ्लोराइड ग्रहण करने से कहीं अधिक लोग खाद्यान्न और सब्जियों के जरिए फ्लोराइड ग्रहण कर रहे हैं। ये कारक सरकार और संस्थाओं को फ्लोराइड मुक्ति के उपायों में बदलाव लाने के लिए प्रेरित करते हैं और इन इलाकों में खेती के दौरान सिंचाई में भूमिगत जल के इस्तेमाल पर और उर्वरक के रूप में कम फ्लोराइड इस्तेमाल करने की अनिवार्यता को अपनाने की सलाह देते हैं।

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Post By: Shivendra
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