खाद्य निगम अधिनियम, 1964 (Food Corporation Act, 1964 in Hindi)

(1964 का अधिनियम संख्यांक 37)


{10दिसम्बर, 1964}


खाद्यान्न और अन्य खाद्य पदार्थों में व्यापार करने के प्रयोजन के लिये तथा तत्सम्बन्धित और तदानुषंगिक विषयों के लिये खाद्य निगमों के स्थापनार्थ उपबन्ध करने के लिये अधिनियम

भारत गणराज्य के पन्द्रहवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो-

अध्याय 1


प्रारम्भिक


1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ


(1) यह अधिनियम खाद्य निगम अधिनियम, 1964 कहा जा सकेगा।
(2) इसका विस्तार 1*** सम्पूर्ण भारत पर है।
(3) यह उस तारीख2 को प्रवृत्त होगा जिसे केन्द्रीय सरकार, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियत करे।

2. परिभाषाएँ


इस अधिनियम में, जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, -

(क) “निगम” से धारा 3 के अधीन स्थापित भारतीय खाद्य निगम अभिप्रेत है;
(ख) “खाद्य निगम” से धारा 3 के अधीन स्थापित भारतीय खाद्य निगम या धारा 17 के अधीन स्थापित राज्य खाद्य निगम अभिप्रेत है;
3{(खख) खाद्य पदार्थ में खाद्य तिलहन और तेल है;}
(ग) “विहित” से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;
(घ) “अनुसूचित बैंक” से भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 (1934 का 2) की द्वितीय अनुसूची में तत्समय अन्तर्विष्ट बैंक अभिप्रेत है;
(ङ) “राज्य खाद्य निगम” से धारा 17 के अधीन स्थापित राज्य खाद्य निगम अभिप्रेत है;
(च) “वर्ष” से वित्तीय वर्ष अभिप्रेत है।

अध्याय 2


भारतीय खाद्य निगम


3. भारतीय खाद्य निगम की स्थापना


(1) उस तारीख4 जो केन्द्रीय सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे, केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये एक निगम की स्थापना करेगी जो भारतीय खाद्य निगम नाम से ज्ञात होगा।

(2) यह निगम पूर्वोक्त नाम का शाश्वत उत्तराधिकार और सामान्य मुद्रा वाला एक निगमित निकाय होगा, जिसे इस अधिनियम के उपबन्धों के अध्यधीन रहते हुए, सम्पत्ति का अर्जन, धारण और व्ययन करने की तथा संविदा करने की शक्ति होगी और उस नाम से वह वाद लाएगा या उस पर वाद लाया जाएगा।

4. कार्यालय और अभिकरण


(1) निगम का प्रधान कार्यालय मद्रास में या ऐसे अन्य स्थान में होगा जिसे केन्द्रीय सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे।

5{(2)निगम भारत में या उससे बाहर अन्य स्थानों में कार्यालय या अभिकरण स्थापित कर सकेगा:

परन्तु ऐसा कोई कार्यालय या अभिकरण, केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन के बिना, भारत से बाहर किसी स्थान में स्थापित नहीं किया जाएगा।}

5. निगम की पूँजी


(1) निगम की आरम्भिक पूँजी एक सौ करोड़ रुपयों से अनधिक इतनी धनराशि होगी जितनी केन्द्रीय सरकार नियत करे।

(2) केन्द्रीय सरकार समय-समय पर निगम की पूँजी उतनी तक और ऐसी रीति से बढ़ा सकेगी जोकि वह सरकार अवधारित करे।

(3) ऐसी पूँजी की, संसद द्वारा उस प्रयोजन के लिये विधि द्वारा सम्यक रूप से विनियोजित किये जाने के पश्चात और ऐसे निबन्धनों और शर्तों के अध्यधीन, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा अवधारित की जाएँ, समय-समय पर उस सरकार द्वारा व्यवस्था की जा सकेगी।

6. प्रबन्ध


(1) निगम के कार्यकलाप और कारबार का साधारण अधीक्षण, निदेशन और प्रबन्ध एक निदेशक बोर्ड में निहित होगा जो सब ऐसी शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा और सब ऐसे कार्य और बातें कर सकेगा जो इस अधिनियम के अधीन निगम द्वारा प्रयोग में लाई जा सकें या की जा सकें।

(2) निदेशक बोर्ड अपने कृत्यों के निर्वहन में उत्पादक और उपभोक्ता के हितों का ध्यान रखते हुए, कारबार के सिद्धान्तों के अनुसार कार्य करेगा और नीति के प्रश्नों पर उसका मार्गदर्शन ऐसे अनुदेशों द्वारा होगा जो उसे केन्द्रीय सरकार द्वारा दिये जाएँ।

(3) यदि कोई सन्देह उठे कि क्या कोई प्रश्ननीति का प्रश्न है या नहीं तो उस पर केन्द्रीय सरकार का विनिश्चय अन्तिम होगा।

7. निदेशक बोर्ड


(1) निगम का निदेशक बोर्ड निम्नलिखित से मिलकर बनेगा, अर्थात-

(क) अध्यक्ष;
(ख) केन्द्रीय सरकार के उन मंत्रालयों का, जिनके कार्य-क्षेत्र के अन्तर्गत-

(1) खाद्य,
(2)वित्त, तथा
(3) सहकारिता,
के विषय हों, क्रमशः प्रतिनिधित्व करने के लिये तीन निदेशक;

(ग) भाण्डागार निगम अधिनियम, 1962 (1962 का 58) की धारा 3 के अधीन स्थापित केन्द्रीय भाण्डागार निगम का प्रबन्ध निदेशक, पदेन;
(घ) एक प्रबन्ध निदेशक;
(ङ) छह अन्य निदेशक।
(2) निगम के वे सब निदेशक, जो उपधारा (1) के खण्ड (ग) में निर्दिष्ट निदेशक से भिन्न हों, केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किये जाएँगे।

(3) प्रबन्ध निदेशक-

(क) ऐसी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे कर्तव्यों का पालन करेगा जो निदेशक बोर्ड उसे सौंपे या प्रत्यायोजित करे; तथा
(ख) ऐसे वेतन और भत्ते प्राप्त करेगा जो निदेशक बोर्ड, केन्द्रीय सरकार के अनुमोदन से नियत करे;

परन्तु प्रथम प्रबन्ध निदेशक ऐसे वेतन और भत्ते प्राप्त करेगा जोकि केन्द्रीय सरकार नियत करे।

(4) उपधारा (3) के उपबन्धों के अध्यधीन यह है कि निगम के उन निदेशकों की, जो उपधारा (1) के खण्ड (ग) में निर्दिष्ट निदेशक से भिन्न हों, पदावधि और उनकी आकस्मिक रिक्तियाँ भरने की रीति तथा निगम के निदेशकों की नियुक्ति के अन्य निबन्धन और शर्तें ऐसी होंगी जोविहित की जाएँ।

8. निदेशक के पद के लिये निरर्हता


निगम का निदेशक नियुक्त होने के लिये और निदेशक होने के लिये कोई व्यक्ति निरर्हित होगा-

(क) यदि वह दिवालिया न्यायनिर्णित हो या किसी भी समय दिवालिया न्यायनिर्णित किया गया हो, या उसने अपने ऋणों का सन्दाय निलम्बित कर दिया हो या अपने लेनदारों से शमन कर लिया हो; अथवा
(ख) यदि वह विकृत-चित्त हो और किसी सक्षम न्यायालय द्वारा ऐसा घोषित किया हुआ हो; अथवा
(ग) यदि वह किसी ऐसे अपराध का दोष सिद्ध हो या किया गया हो जिसमें कि केन्द्रीय सरकार की राय में नैतिक अधमता अन्तर्ग्रस्त हो; अथवा
(घ) यदि वह सरकार की या सरकार के स्वामित्व या नियंत्रण में के किसी निगम की सेवा से हटाया या पदच्युत किया गया हो; अथवा
(ङ) अध्यक्ष या प्रबन्ध निदेशक होने की दशा के सिवाय, यदि वह भारतीय खाद्य निगम या किसी राज्य खाद्य निगम का वैतनिक अधिकारी हो।

9. निदेशकों का हटाया जाना और पदत्याग


(1) केन्द्रीय सरकार, निगम से परामर्श के पश्चात, प्रबन्ध निदेशक को, प्रस्थापित हटाए जाने के विरुद्ध हेतुक दर्शित करने का युक्तियुक्त अवसर देने के पश्चात्, किसी भी समय उसे पद से हटा सकेगी।

(2) निदेशक बोर्ड किसी भी ऐसे निदेशक को पद से हटा सकेगा जो-

(क) धारा 8 में वर्णित निरर्हताओं में से किसी के अधीन हो या हो गया हो; अथवा
(ख) निदेशक बोर्ड की इजाजत के बिना उसकी तीन से अधिक क्रमवर्ती बैठकों से, उसकी अनुपस्थिति की माफी के लिये बोर्ड की राय में पर्याप्त हेतुक के बिना, अनुपस्थित रहा हो।

(3) निगम का निदेशक अपने पद का त्याग, उसकी लिखित सूचना केन्द्रीय सरकार को देकर, कर सकेगा और ऐसे त्यागपत्र के स्वीकृत कर लिये जाने पर यह समझा जाएगा कि उसने अपना पदरिक्त कर दिया है।

10. बैठक


(1) निगम का निदेशक बोर्ड ऐसे समयों और स्थानों पर बैठक करेगा और अपनी बैठकों में कारबार के संव्यवहार से (जिसके अन्तर्गत बैठकों में गणपूर्ति भी है) सम्बन्धित प्रक्रिया के ऐसे नियमों का अनुपालन करेगा जो निगम द्वारा इस अधिनियम के अधीन बनाए गए विनियमों द्वारा उपबन्धित किये जाएँ।

(2) बोर्ड का अध्यक्ष, या यदि किसी कारण से वह किसी बैठक में हाजिर होने में असमर्थ हो तो अपनी बैठक में उपस्थित निदेशकों द्वारा निर्वाचित कोई अन्य निदेशक, बैठक का सभापतित्व करेगा।

(3) उन सब प्रश्नों का विनिश्चय, जो बोर्ड की किसी बैठक के समक्ष आएँ, उपस्थित और मत देने वाले निदेशकों के बहुमत से किया जाएगा और मत बराबर होने की दशा में अध्यक्ष का, या उसकी अनुपस्थिति में सभापतित्व करने वाले व्यक्ति का, एकद्वितीय या निर्णायक मत होगा और वह उसका प्रयोग करेगा।

11. सलाहकार समितियाँ


(1) केन्द्रीय सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा एक या अधिक सलाहकार समितियों का गठन निगम के परामर्श से कर सकेगी, जो ऐसे व्यक्तियों से मिलकर और ऐसे निबन्धनों और शर्तों पर बनेगी जो विहित की जाएँ।

(2) ऐसी किसी भी सलाहकार समिति का यह कर्तव्य होगा कि वह केन्द्रीय सरकार या निगम को इस अधिनियम के प्रयोजनों से सम्बन्धित किसी ऐसे विषय के बारे में सलाह दें, जिस पर उसकी सलाह, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार द्वारा या निगम द्वारा माँगी जाये।

(3) सलाहकार समितियों के सम्बन्ध में व्यय निगम द्वारा पूरे किये जाएँगे।

12. निगम के अन्य अधिकारी और कर्मचारी


(1) केन्द्रीय सरकार, निगम से परामर्श के पश्चात किसी व्यक्ति को निगम का सचिव नियुक्त करेगी।

(2) ऐसे नियमों के अध्यधीन रहते हुए, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा इस निमित्त बनाए जाएँ, निगम अन्य ऐसे अधिकारियों और कर्मचारियों को, जिन्हें वह अपने कृत्यों के दक्षतापूर्ण सम्पादन करने के लिये आवश्यक समझे, नियुक्त कर सकेगा।

(3) निगम के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति की पद्धति, सेवा की शर्तों और वेतन क्रम-

(क) सचिव के विषय में, ऐसे होंगे जो विहित किये जाएँ,
(ख) अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों के विषय में, ऐसे होंगे जो इस अधिनियम के अधीन निगम द्वारा बनाए गए विनियमों द्वारा अवधारित किये जाएँ।

1{

12क. कुछ दशाओं में सरकारी कर्मचारियों का निगम को अन्तरण करने के लिये विशेष उपबन्ध


(1) जहाँ केन्द्रीय सरकार किन्हीं ऐसे कृत्यों का, जो धारा 13 के अधीन निगम के कृत्य हैैं, सम्पादन करने से परिविरत हो गई है या परिविरत हो जाती है वहाँ केन्द्रीय सरकार के लिये यह विधि पूर्ण होगा कि वह आदेश द्वारा और ऐसी तारीख या तारीखों से (जो पहली जनवरी, 1965 से पूर्व न पड़ने वाली किसी तारीख तक भूतलक्षी हो सकेगी, या भविष्यलक्षी हो सकेगी) जैसी आदेश में विनिर्दिष्ट की जाये, ऐसे किन्हीं अधिकारियों या कर्मचारियों को निगम को अन्तरित कर दे जो केन्द्रीय सरकार के ऐसे विभाग में, जिसमें खाद्य के सम्बन्ध में कार्य होता है या उसके किसी अधीनस्थ या संलग्न विभाग में सेवा करते हैं और उन कृत्यों के करने में लगे हुए हैंः

परन्तु इस उपधारा के अधीन कोई आदेश ऐसे विभाग का कार्यालय के किसी ऐसे अधिकारी या कर्मचारी के बारे में नहीं किया जाएगा जिसने ऐसे अधिकारी या कर्मचारी को निगम को अन्तरित करने की केन्द्रीय सरकार की प्रस्थापना की बाबत, निगम का कर्मचारी न बनने का अपना आशय ऐसे समय के भीतर प्रज्ञापित कर दिया हो जो उस सरकार द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट किया जाये।

(2) उपधारा (1) के अधीन कोई आदेश करते समय केन्द्रीय सरकार यथाशक्य उन कृत्यों पर, जिनका सम्पादन करने से केन्द्रीय सरकार परिविरत हो गई है या परिविरत हो जाती है और उन क्षेत्रों पर, जिनमें ऐसे कृत्यों का सम्पादन किया गया है या किया जा रहा है, विचार करेगी।

(3) उपधारा (1) अधीन किये गए किसी आदेश द्वारा अन्तरित कोई अधिकारी या अन्य कर्मचारी, अन्तरण की तारीख को और उससे, केन्द्रीय सरकार का कर्मचारी नहीं रह जाएगा और निगम का कर्मचारी ऐसे पदनाम से हो जाएगा और जिसे निगम अवधारित करे, और 1{उपधारा (4), (4क), (4ख), (4ग), (5) और (6) के उपबन्धों के अध्यधीन रहते हुए, पारिश्रमिक और सेवा की अन्य शर्तों की बाबत जिनके अन्तर्गत पेंशन, छुट्टी और भविष्य निधि भी है, इस अधिनियम के अधीन निगम द्वारा बनाए गए विनियमों से शास्ति होगा तथा जब तक उसका नियोजन निगम द्वारा समाप्त नहीं कर दिया जाता तब तक वह निगम का अधिकारी या कर्मचारी बना रहेगा।

(4) प्रत्येक अधिकारी या अन्य कर्मचारी, जिसे उपधारा (1) के अधीन किये गए किसी आदेश द्वारा अन्तरित किया गया है, अन्तरण की तारीख से छह मास के भीतर इस बाबत अपने विकल्प का प्रयोग लिखित रूप में करेगा कि उसे-(क) वह वेतन क्रम, जो अन्तरण की तारीख से ठीक पहले उसके द्वारा सरकार के अधीन धारित पद को लागू था या वह वेतन क्रम जो निगम के अधीन उस पद को, जिस पर उसे अन्तरित किया है, लागू है;

(ख) वे छुट्टी, भविष्य निधि, निवृत्ति या सेवा के अन्त में मिलने वाले अन्य फायदे जो केन्द्रीय सरकार के समय-समय पर यथा संशोधित नियमों और आदेशों के अनुसार केन्द्रीय सरकार के कर्मचारियों को अनुज्ञेय हैं या वे छुट्टी, भविष्य निधि या सेवा के अन्त में मिलने वाले अन्य फायदे जो निगम द्वारा इस अधिनियम के अधीन बनाए गए विनियमों के अधीन निगम के कर्मचारियों को अनुज्ञेय हैं,

लागू होंगी और ऐसा विकल्प एक बार प्रयुक्त किये जाने पर अन्तिम होगा;

परन्तु खण्ड (क) के अधीन प्रयुक्त विकल्प केवल उसी पद की बाबत लागू होगा जिस पर ऐसे अधिकारी या कर्मचारी को निगम को अन्तरित किया गया है और निगम के अधीन किसी उच्चतर पद पर नियुक्त होने पर वह केवल उस वेतनक्रम का पात्र होगा जो उस उच्चतर पद को लागू हो;

परन्तु यह और कि यदि अपने अन्तरण की तारीख से ठीक पहले ऐसा कोई अधिकारी या कर्मचारी सरकार के अधीन या तो किसी छुट्टी से हुई रिक्ति में या विनिर्दिष्ट कालावधि की किसी अन्य रिक्ति में किसी उच्चतर पद पर कार्य कर रहा है, तो अन्तरण होने पर उसका वेतन ऐसी रिक्ति की अनवसित कालावधि के लिये संरक्षित किया जाएगा और तत्पश्चात वह उस वेतन क्रम का, जो सरकार के अधीन उस पद को लागू है जिस पर वह प्रतिवर्तित होता या उस वेतनक्रम का, जो निगम के अधीन उस पद को लागू है जिस पर उसे अन्तरित किया गया है, इन दोनों में से जिसके लिये भी वह अपने विकल्प का प्रयोग करे, हकदार होगा;

परन्तु यह और भी कि जब कोई अधिकारी या अन्य कर्मचारी, जो केन्द्रीय सरकार के मंत्रालय के किसी ऐसे विभाग में, जो खाद्य के सम्बन्ध में कार्य करता हो या उसके किसी संलग्न या अधीनस्थ कार्यालयों में सेवा करता हो, ऐसे किसी अन्य अधिकारी या कर्मचारी के, जो उस विभाग या कार्यालय में ऐसे अन्तरण के पूर्व, उससे ज्येष्ठ था, निगम को अन्तरित किये जाने के पश्चात, उस विभाग या कार्यालय में किसी उच्चतर पद पर कार्य करने के लिये प्रोन्नत किया गया है तो वह अधिकारी या अन्य कर्मचारी, जिसे ऐसे उच्चतर पद पर कार्य करने के लिये प्रोन्नत किया गया है, निगम को अन्तरित किये जाने पर, केवल उस वेतन क्रम का, जो उस पद को लागू है जिसे वह, यदि प्रोन्नति न हुई होती तो, धारित करता या उस वेतनक्रम का, जो निगम के अधीन उस पद को लागू है जिस पर वह अन्तरित किया गया है, इन दोनों में से जिसके लिये भी वह अपने विकल्प का प्रयोग करे, हकदार होगा।

2{(4क) उपधारा (4) में किसी बात के होते हुए भी, -

(क) ऐसा प्रत्येक अधिकारी या अन्य कर्मचारी, जिसके बारे में उपधारा (1) के अधीन अन्तरण का आदेश, खाद्य निगम (संशोधन) अधिनियम, 1977 के प्रारम्भ की तारीख के (जिसे इस धारा में इसके पश्चात नियत दिन कहा गया है) पूर्व किया गया है, चाहे उसने नियत दिन के पूर्व उपधारा (4) के अधीन विकल्प का प्रयोग किया हो या नहीं, ऐसे विकल्प का प्रयोग नियत दिन से छह मास के भीतर करेगा; तथा(ख) ऐसा प्रत्येक अधिकारी या अन्य कर्मचारी, जिसके बारे में उपधारा (1) के अधीन अन्तरण का आदेश नियत दिन के पश्चात किया जाये, ऐसे आदेश की तारीख से छह मास के भीतर उपधारा (4) के अधीन अपने विकल्प का प्रयोग करेगा, तथा ऐसे प्रत्येक मामले में ऐसा विकल्प एक बार प्रयुक्त किये जाने पर अन्तिम होगा;

परन्तु जब नियत दिन के पूर्व उपधारा (4) के अधीन विकल्प का प्रयोग करने वाला कोई अधिकारी या अन्य कर्मचारी, -

(1) नियत दिन के पूर्व मर गया है या निवृत्त हो गया है अथवा इस उपधारा के अधीन यथापेक्षित विकल्प का प्रयोग करने के पूर्व नियत दिन के पश्चात मर जाता है या निवृत्त हो जाता है, अथवा

(2) इस उपधारा द्वारा यथापेक्षित विकल्प का प्रयोग नहीं करता है, तब उसके द्वारा पहले ही प्रयोग किये गए विकल्प को उपधारा (4) के अधीन उसके द्वारा विधिमान्य रूप से प्रयोग किया गया समझा जाएगा।

(4ख) जब कोई अधिकारी या अन्य कर्मचारी, -

(क) ऐसे अधिकारी या अन्य कर्मचारी के बारे में उपधारा (1) के अधीन अन्तरण का आदेश किये जाने के पश्चात किन्तु, यथास्थिति, उपधारा (4) के अधीन या उपधारा (4क) की अपेक्षानुसार विकल्प का प्रयोग करने के पूर्व मर गया है या निवृत्त हो गया है अथवा मर जाता है या निवृत्त हो जाता है, अथवा
(ख) ऐसे अधिकारी या अन्य कर्मचारी के बारे में उपधारा (1) के अधीन अन्तरण का आदेश किये जाने के पूर्व मर गया है या निवृत्त हो गया है अथवा मर जाता है या निवृत्त हो जाता है,

तब उपधारा (4) में या उपधारा (4क) में किसी बात के होते हुए भी-

(1) खण्ड (क) के अधीन मामले में उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसने उपधारा (4) के अधीन इस विकल्प का प्रयोग किया है; अथवा
(2) खण्ड (ख) के अधीन मामले में उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसका उपधारा (1) के अधीन अन्तरण हुआ है और उसने उपधारा (4) के अधीन इस विकल्प का प्रयोग किया है कि उसे छुट्टी, भविष्य निधि, निवृत्ति या सेवा के अन्त में मिलने वाले अन्य वे फायदे लागू होंगे, जो केन्द्रीय सरकार के समय-समय पर यथा संशोधित नियमों और आदेशों के अनुसार केन्द्रीय सरकार के कर्मचारियों के लिये अनुज्ञेय हैं;

परन्तु इस उपधारा के खण्ड (क) की कोई बात किसी ऐसे अधिकारी या अन्य कर्मचारी को लागू नहीं होगी जिसको नियत दिन के पूर्व सेवा के अन्त में मिलने वाले उन फायदों का सन्दाय कर दिया गया है जो निगम के कर्मचारियों को इस अधिनियम के अधीन निगम द्वारा बनाए गए विनियमों के अधीन अनुज्ञेय है किन्तु यदि ऐसा अधिकारी या अन्य कर्मचारी ऐसी सेवा के अन्त में मिलने वाले फायदों के लिये निगम द्वारा किये गए अभिदायों की रकम नियत दिन से छह मास के भीतर एकमुश्त राशि में वापस कर देता है, तो वह लागू होगी;

परन्तु यह और कि इस उपधारा के खण्ड (ख) की कोई बात किसी ऐसे अधिकारी या अन्य कर्मचारी को लागू नहीं होगी जिसने निगम का कर्मचारी न बनने के अपने आशय की प्रज्ञापना उपधारा (1) के परन्तुक के अधीन दे दी है।

(4ग) जहाँ किसी अधिकारी या अन्य कर्मचारी ने उपधारा (4) के अधीन विकल्प का प्रयोग किया है या उपधारा (4क) या उपधारा (4ख) के साथ पठित उस उपधारा के अधीन वह इस विकल्प का प्रयोग करता है या उसके बारे में यह समझा जाता है कि उसने इस विकल्प का प्रयोग किया है कि उसे छुट्टी, भविष्य निधि या निवृत्ति या सेवा के अन्त में मिलने वाले अन्य वे फायदे लागू होंगे, जो केन्द्रीय सरकार के कर्मचारियों को अनुज्ञेय हैं, वहाँ ऐसे फायदों की संगणना निगम में उसके द्वारा प्राप्त वेतन और भत्तों के आधार पर की जाएगी।}

(5) उपधारा (1) के अधीन किये गए किसी आदेश द्वारा अन्तरित कोई भी अधिकारी या अन्य कर्मचारी, -

(क) इस अधिनियम के अधीन निगम द्वारा बनाए गए विनियमों में विनिर्दिष्ट किये जाने वाले ऐसे प्राधिकारी के, जो निगम के अधीन वैसी ही या समतुल्य नियुक्ति करने केलिये सक्षम हो, अधीनस्थ प्राधिकारी द्वारा न पदच्युत किया जाएगा और न पद से हटाया जाएगा;

1{(ख) ऐसी जाँच के पश्चात ही, जिसमें उसे उसके विरुद्ध आरोपों की सूचना दे दी गई है और उन आरोपों के सम्बन्ध में सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर दे दिया गया है, पदच्युत किया जाएगा, या पद से हटाया जाएगा या पंक्ति में अवनत किया जाएगा, अन्यथा नहीं;}

2{परन्तु ऐसी जाँच ऐसी जाँच के पश्चात उस पर ऐसी शास्ति अधिरोपित करने की प्रस्थापना है वहाँ ऐसी शास्ति ऐसी जाँच के दौरान दिये गए साक्ष्य के आधार पर अधिरोपित की जा सकेगी और ऐसे व्यक्ति को प्रस्थापितशास्ति के विषय में अभ्यावेदन करने का अवसर देना आवश्यक नहीं होगा;}

1{परन्तु यह और कि}यह खण्ड-

(1) वहाँ लागू न होगा जहाँ कोई अधिकारी या कर्मचारी ऐसे आचार के आधार पर पदच्युत किया गया या पद से हटाया गया या पंक्ति से अवनत किया गया है जिसके लिये आपराधिक आरोप पर वह सिद्ध दोष हुआ है ; अथवा

(2) वहाँ लागू न होगा जहाँ किसी अधिकारी या कर्मचारी को पदच्युत करने या पद से हटाने या पंक्ति से अवनत करने की शक्ति रखने वाले किसी प्राधिकारी का समाधान हो जाता है कि किसी कारण से, जो उस प्राधिकारी द्वारा लेखबद्ध किया जाएगा, यह युक्तियुक्त रूप में व्यवहार्य नहीं है कि ऐसी जाँच की जाये; अथवा

(3) ऐसे किसी अधिकारी या कर्मचारी को लागू नहीं होगा जिसे, निगम को अन्तरित किये जाने के पश्चात खुले विज्ञापन और बाहरी व्यक्तियों के साथ प्रतियोगिता के आधार पर निगम के अधीन किसी उच्चतर पद पर नियुक्त किया गया है।

(6) यदि यथापूर्वोक्त अन्य किसी अधिकारी या कर्मचारी की बाबत ऐसा कोई प्रश्न उठे कि उपधारा (5) में यथानिर्दिष्ट जाँच करना युक्तियुक्त रूप में व्यवहार्य है या नहीं तो उस पर उस प्राधिकारी का विनिश्चय अन्तिम होगा जो उसे पदच्युत करने या पद से हटाने या पंक्ति से अवनत करने को सशक्त है।

(7) उपधारा (1) की कोई भी बात केन्द्रीय सचिवालय सेवा या अन्य किसी सेवा के सदस्यों को या केन्द्रीय सरकार के किसी मंत्रालय से या किसी राज्य सरकार से या किसी संगठन से उस विभाग को जो उस उपधारा में निर्दिष्ट है या उससे संलग्न या अधीनस्थ कार्यालयों में से किसी को भी प्रतिनियुक्ति पर भेजे गए व्यक्तियों को लागू नहीं होगी।}

13.निगम के कृत्य


(1) इस अधिनियम के उपबन्धों के अध्यधीन रहते हुए, निगम का यह प्राथमिक कर्तव्य होगा कि वह खाद्यान्न और अन्य खाद्य पदार्थों के क्रय, भण्डारकरण, संचलन, परिवहन, वितरण और विक्रय का काम करे।

(2) यथापूर्वोक्त के अध्यधीन रहते हुए, निगम, केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन से-

(क) खाद्यान्न और अन्य खाद्य पदार्थों के उत्पादन की अभिवृत्ति भी ऐसे साधनों द्वारा कर सकेगा जिन्हें वह ठीक समझे;
(ख) चावल मिलें, आटा मिलें तथा खाद्यान्न और अन्य खाद्यपदार्थों के प्रसंस्करण के लिये अन्य उपक्रम भी स्थापित कर सकेगा या स्थापित करने में सहायता कर सकेगा; तथा
(ग) अन्य ऐसे कृत्यों का निर्वहन कर सकेगा जो विहित किये जाएँ या जो इस अधिनियम के अधीन उसे प्रदत्त कृत्यों में से किसी के अनुपूरक, आनुषंगिक या पारिणामिक हैं।

14. कार्यपालिका समिति और अन्य समितियाँ


(1) निगम का निदेशक बोर्ड एक कार्यपालिका समिति का गठन कर सकेगा, जो निम्नलिखित से मिलकर बनेगी-

(क) बोर्ड का अध्यक्ष;
(ख) प्रबन्ध निदेशक; तथा
(ग) तीन अन्य निदेशक, जिनमें से एक अशासकीय व्यक्ति होगा।

(2) निदेशक बोर्ड का अध्यक्ष कार्यपालिका समिति का अध्यक्ष होगा।

(3) निदेशक बोर्ड के साधारण नियंत्रण, निदेशन और अधीक्षण के अध्यधीन रहते हुए, कार्यपालिका समिति, निगम की क्षमता में किसी भी विषय के बारे में कार्य करने के लिये सक्षम होगी।

(4) निदेशक बोर्ड अन्य ऐसी समितियों का, जो चाहे पूर्णतः निदेशकों से या पूर्णतःअन्य व्यक्तियों से अथवा भागतः निदेशकों से और भागतः अन्य व्यक्तियों से, जैसा वह ठीक समझे, मिलकर बनी हैं, ऐसे प्रयोजनों के लिये, जिनका वह विनिश्चय करे, गठन कर सकेगा।

(5) इस धारा के अधीन गठित समिति ऐसे समयों और स्थानों पर बैठक करेगी और अपनी बैठकों में कारबार के संव्यवहार से (जिसके अन्तर्गत बैठकों में गणपूर्ति भी है) सम्बन्धित प्रक्रिया के ऐसे नियमों का अनुपालन करेगी जो निगम द्वारा इस अधिनियम के अधीन बनाए गए विनियमों द्वारा उपबन्धित किये जाएँ।

(6) समिति के सदस्यों को (जो बोर्ड के निदेशकों से भिन्न हों) समिति की बैठकों में हाजिर होने और निगम का अन्य कोई कार्य करने के लिये निगम द्वारा ऐसी फीसें और भत्तें दिये जाएँगे जो उसके द्वारा इस अधिनियम के अधीन बनाए गए विनियमों द्वारा नियत किये जाएँ।

15. बोर्ड के या उसकी समिति के सदस्य द्वारा कुछ दशाओं में मत का न दिया जाना


निगम के निदेशक बोर्ड का या उसकी समिति का कोई ऐसा सदस्य, जिसका निदेशक बोर्ड के या उसकी समिति की किसी बैठक के समक्ष विचारार्थ आने वाले विषय में कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष धन-सम्बन्धी हित हों, सुसंगत परिस्थितियों के अपने ज्ञान में आने के पश्चात यथा सम्भव शीघ्र ऐसी बैठकों में अपने हित की प्रकृति का प्रकटन करेगा और वह प्रकटन, यथास्थिति, बोर्ड या समिति के कार्यवृत्त में अभिलिखित किया जाएगा और वह सदस्य, बोर्ड या समिति के किसी विचार-विमर्श या विनिश्चय में, जो उस विषय की बाबत हो, कोई भाग नहीं लेगा।

अध्याय 3


प्रबन्ध बोर्ड


16. प्रबन्ध बोर्ड, उनका गठन और उनके कृत्य

(1) केन्द्रीय सरकार सम्बन्धित राज्य सरकार या सरकारों से इस निमित्त प्राप्त प्रार्थना पर या अन्यथा, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा एक राज्य या दो या अधिक राज्यों के लिये, जो एक दूसरे से लगे हुए हों, एक प्रबन्ध बोर्ड की स्थापना कर सकेगी, यदि उस राज्य या उन राज्यों में कोई राज्य खाद्य निगम काम न कर रहा हो।

(2) प्रबन्ध बोर्ड का प्रधान कार्यालय ऐसे स्थान में होगा जिसे केन्द्रीय सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे।

(3) प्रबन्ध बोर्ड निम्नलिखित से मिलकर बनेगा-

(क) एक अध्यक्ष, जो भारतीय खाद्य निगम के निदेशक बोर्ड द्वारा नियुक्त किया जाएगा;
(ख) उक्त निगम का वरिष्ठम कार्यपालक अधिकारी, जो प्रबन्ध बोर्ड के प्रधान कार्यालय में नियोजित हो; तथा
(ग) दस से अनधिक अन्य सदस्य, जो उक्त निगम के निदेशक बोर्ड द्वारा नियुक्त किये जाएँगे।

(4) उपधारा (3) के खण्ड (क) और (ग) में निर्दिष्ट प्रबन्ध बोर्ड के सदस्य दो वर्ष की अवधि तक पद धारण करेंगे और पुनर्नियुक्ति के पात्र होंगे तथा उनकी नियुक्ति के अन्य निबन्धन और शर्तें ऐसी होंगी जो विहित की जाएँ।

(5) प्रबन्ध बोर्ड निगम को ऐसे विषयों पर सलाह देगा, जो साधारणतया या विनिर्दिष्टतया उसे निर्दिष्ट किये जाएँ, और ऐसे अन्य कृत्यों का सम्पादन करेगा जो निगम उसे प्रत्यायोजित करे।
(6) धारा 20, 21 और 25 के उपबन्ध, प्रबन्ध बोर्ड के सदस्यों के सम्बन्ध में यावत्शक्य उसी प्रकार लागू होंगे जिस प्रकार वे राज्य खाद्य निगम के निदेशक बोर्ड के सदस्यों के सम्बन्ध में लागू होते हैं;

परन्तु धारा 20 के खण्ड (ङ) में महाप्रबन्धक के प्रतिनिर्देश का अर्थ यह किया जाएगा कि वह उपधारा (3) के खण्ड (ख) में निर्दिष्ट निगम के अधिकारी के प्रति निर्देश है।

(7) भारतीय खाद्य निगम, प्रबन्ध बोर्ड से परामर्श के पश्चात, ऐसा कर्मचारीवृन्द नियुक्त कर सकेगा जिसे वह उस बोर्ड को इस अधिनियम के अधीन उसके कृत्यों के सम्पादनार्थ समर्थ बनाने के लिये आवश्यक समझे।

(8) प्रबन्ध बोर्ड, लिखित रूप में आदेश द्वारा अपने सदस्यों में से किसी एक या अधिक को अपनी ऐसी शक्तियों और कृत्यों का, जो बोर्ड ठीक समझे, प्रयोग और सम्पादन, ऐसी शर्तों और परिसीमाओं के अध्यधीन,यदि कोई हों, जो उस आदेश में विनिर्दिष्ट की जाएँ, करने के लिये प्राधिकृत कर सकेगा।

(9) प्रबन्ध बोर्ड ऐसी प्रक्रिया का अनुसरण करेगा जो इस अधिनियम के अधीन भारतीय खाद्य निगम द्वारा बनाए गए विनियमों द्वारा उपबन्धित की जाये।

(10) जहाँ कोई प्रबन्ध बोर्ड-

(1) किसी राज्य के लिये, अथवा
(2) दो या अधिक राज्यों के लिये,

स्थापित कर दिया गया हो वहाँ ऐसा बोर्ड-

(क) खण्ड (1) में निर्दिष्ट दशा में, उस राज्य के लिये खाद्य निगम की स्थापना होते ही, तथा
(ख) खण्ड (2) में निर्दिष्ट दशा में, ऐसे राज्यों में से किसी एक या अधिक के लिये ऐसे निगम की स्थापना होते ही, विघटित हो जाएगा।

(11) जहाँ कोई प्रबन्ध बोर्ड उपधारा (10) के खण्ड (ख) के अधीन विघटित हो जाता है वहाँ केन्द्रीय सरकार उस राज्य या उन राज्यों के लिये, जिनके लिये कोई खाद्य निगम स्थापित न किया गया हो, एक नया प्रबन्ध बोर्ड स्थापित कर सकेगी।

(12) इस अधिनियम के अधीन प्रबन्ध बोर्ड के कृत्यों के निर्वहन के व्यय भारतीय खाद्य निगम द्वारा पूरे किये जाएँगे।

अध्याय 4


राज्य खाद्य निगम


17. राज्य खाद्य निगम की स्थापना


(1) केन्द्रीय सरकार, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा और राज्य सरकार से परामर्श के पश्चात उस राज्य के लिये एक खाद्य निगम की ऐसे नाम से स्थापना कर सकेगी जो इस अधिसूचना में विनिर्दिष्ट हो।

(2) उपधारा (1) के अधीन स्थापित राज्य खाद्य निगम शाश्वत उत्तराधिकार और सामान्य मुद्रा वाला, उस उपधारा के अधीन अधिसूचित नाम का एक निगमित निकाय होगा, जिसे इस अधिनियम के उपबन्धों के अध्यधीन रहते हुए, सम्पत्ति का अर्जन, धारण और व्ययन करने की तथा संविदा करने की शक्ति होगी और उक्त नाम से वह वाद लाएगा या उस पर वाद लाया जाएगा।

(3) राज्य खाद्य निगम का प्रधान कार्यालय, राज्य के भीतर ऐसे स्थान में होगा जो केन्द्रीय सरकार द्वारा शासकीय राजपत्र में अधिसूचित किया जाये।

(4) इस अधिनियम के उपबन्धों के अध्यधीन रहते हुए, राज्य खाद्य निगम, भारतीय खाद्य निगम के कृत्यों में से उनका, जो वह निगम उसे प्रत्यायोजित करे, सम्पादन कर सकेगा।

18. राज्य खाद्य निगम की पूँजी


(1) राज्य खाद्य निगम की पूर्ति दस करोड़ रुपयों से अनधिक इतनी धनराशि होगी जितनी केन्द्रीय सरकार, भारतीय खाद्य निगम से परामर्श के पश्चात नियत करे।

(2) केन्द्रीय सरकार, ऐसे परामर्श के पश्चात, समय-समय पर, राज्य खाद्य निगम की पूँजी इतनी तक और ऐसी रीति से बढ़ा सकेगी जोकि वह सरकार अवधारित करे।

(3) ऐसी पूँजी की-

(क) संसद द्वारा उस प्रयोजन के लिये विधि द्वारा सम्यक रूप से विनियोजित किये जाने के पश्चात केन्द्रीय सरकार द्वारा, तथा
(ख) भारतीय खाद्य निगम द्वारा, ऐसे अनुपात और ऐसे निबन्धनों और शर्तों के अध्यधीन, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा अवधारित की जाएँ, व्यवस्था की जाएगी।

19. राज्य खाद्य निगम का प्रबन्ध


(1) राज्य खाद्य निगम के कार्यकलाप और कारबार का साधारण अधीक्षण, निदेशन और प्रबन्ध एक निदेशक बोर्ड में निहित होगा, जो एक अध्यक्ष, एक महाप्रबन्धक और दस से अनधिक अन्य सदस्यों से मिलकर बनेगा, जो सब भारतीय खाद्य निगम द्वारा, केन्द्रीय सरकार और राज्य सरकार से परामर्श के पश्चात, नियुक्त किये जाएँगे।

(2) महाप्रबन्धक-

(क) ऐसी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे कर्तव्यों का पालन करेगा, जो निदेशक बोर्ड उसे सौंपे या प्रत्यायोजित करे; तथा
(ख) ऐसे वेतन और भत्ते प्राप्त करेगा और सेवा के ऐसे निबन्धनों और शर्तों से शासित होगा जो निदेशक बोर्ड, भारतीय खाद्य निगम के परामर्श से, नियत करे।

(3) निदेशक बोर्ड अपने कृत्यों के निर्वहन में उत्पादक और उपभोक्ता के हितों का ध्यान रखते हुए, कारबार के सिद्धान्तों के अनुसार कार्य करेगा और नीति के प्रश्नों पर उसका मार्ग-दर्शन ऐसे अनुदेशों द्वारा होगा जो उसे भारतीय खाद्य निगम द्वारा दिये जाएँ।

(4) यदि कोई सन्देह उठे कि क्या कोई प्रश्न नीति का प्रश्न है या नहीं तो वह विषय केन्द्रीय सरकार को निदेशित किया जाएगा, जिसका उस पर विनिश्चय अन्तिम होगा।

(5) निदेशक बोर्ड के सदस्य, जो महाप्रबन्धक से भिन्न हों, पारिश्रमिक या फीस के रूप में ऐसी धनराशियाँ प्राप्त करने के हकदार होंगे जो विहित की जाएँ;

परन्तु कोई भी शासकीय सदस्य, उसकी सेवा की शर्तों का विनियमन करने वाले नियमों के अधीन उसके लिये अनुज्ञात किन्हीं भत्तों से भिन्न पारिश्रमिक प्राप्त करने का हकदार नहीं होगा।

(6) निदेशक बोर्ड के सदस्यों की पदावधि और उनकी आकस्मिक रिक्तियाँ भरने की रीति ऐसी होगी जो विहित की जाये।

20. निदेशक बोर्ड के सदस्य के पद के लिये निरर्हता


राज्य खाद्य निगम के निदेशक बोर्ड का सदस्य नियुक्त होने के लिये और सदस्य होने के लिये कोई व्यक्ति निरर्हित होगा

(क) यदि वह दिवालिया न्यायनिर्णित हो या किसी भी समय दिवालिया न्यायनिर्णित किया गया हो, या उसने अपने ऋणों का सन्दाय निलम्बित कर दिया हो, या अपने लेनदारों से शमन कर लिया हो; तथा अथवा
(ख) यदि वह विकृत-चित्त हो और किसी सक्षम न्यायालय द्वारा ऐसा घोषित किया हुआ हो; अथवा
(ग) यदि वह किसी ऐसे अपराध का दोष सिद्ध हो या किया गया हो जिसमें कि केन्द्रीय सरकार की राय में नैतिक अधमता अन्तर्ग्रस्त हो; अथवा
(घ) यदि वह सरकार के या सरकार के स्वामित्व या नियंत्रण में के किसी निगम की सेवा से हटाया या पदच्युत किया गया हो; अथवा
(ङ) अध्यक्ष या महाप्रबन्धक होने की दशा के सिवाय, यदि वह भारतीय खाद्य निगम या किसी राज्य खाद्य निगम का वैतनिक अधिकारी हो।

21. निदेशक बोर्ड के सदस्यों का हटाया जाना और पदत्याग


(1) भारतीय खाद्य निगम, राज्य खाद्य निगम से परामर्श के पश्चात महाप्रबन्धक को, प्रस्थापित हटाए जाने के विरुद्ध हेतुक दर्शित करने का युक्तियुक्त अवसर देने के पश्चात, किसी भी समय उसे पद से हटा सकेगा।

(2) राज्य खाद्य निगम का निदेशक बोर्ड उस बोर्ड के किसी भी ऐसे सदस्य को पद से हटा सकेगा जो-

(क) धारा 20 में वर्णित निरर्हताओं में से किसी के अधीन हो या हो गया हो; अथवा
(ख) निदेशक बोर्ड की इजाजत के बिना उसकी तीन से अधिक क्रमवर्ती बैठकों से, उसकी अनुपस्थिति की माफी के लिये बोर्ड की राय में पर्याप्त हेतुक के बिना, अनुपस्थित रहा हो।

(3) ऐसे बोर्ड का सदस्य अपने पद का त्याग, उसकी लिखित सूचना भारतीय खाद्य निगम को देकर कर सकेगा और ऐसे त्यागपत्र के स्वीकृत कर लिये जाने पर यह समझा जाएगा कि उसने अपना पद रिक्त कर दिया है।

22. बैठकें


(1) राज्य खाद्य निगम का निदेशक बोर्ड ऐसे समयों और स्थानों पर बैठक करेगा और अपनी बैठकों में कारबार के संव्यवहार से (जिसके अन्तर्गत बैठकों में गणपूर्ति भी है) सम्बन्धित प्रक्रिया के ऐसे नियमों का अनुपालन करेगा जो निगम द्वारा इस अधिनियम के अधीन बनाए गए विनियमों द्वारा उपबन्धित किये जाएँ।

(2) निदेशक बोर्ड का अध्यक्ष, या यदि किसी कारण से वह किसी बैठक में हाजिर होने में असमर्थ हो तो बैठक में उपस्थित बोर्ड के सदस्यों द्वारा निर्वाचित बोर्ड का कोई अन्य सदस्य, बैठक का सभापतित्व करेगा।

(3) उन सब प्रश्नों का विनिश्चय, जो निदेशक बोर्ड की किसी बैठक के समक्ष आएँ, उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के बहुमत से किया जाएगा और मत बराबर होने की दशा में अध्यक्ष का, या उसकी अनुपस्थिति में सभापतित्व करने वाले व्यक्ति का, एक द्वितीय या निर्णायक मत होगा और वह उसका प्रयोग करेगा।

23. अधिकारियों आदि की नियुक्ति और उनकी सेवा की शर्तें


(1) राज्य खाद्य निगम ऐसे अधिकारी और अन्य कर्मचारियों को, जिन्हें वह अपने कृत्यों के दक्षतापूर्ण सम्पादन करने के लिये आवश्यक समझे, नियुक्त कर सकेगा।

(2) राज्य खाद्य निगम द्वारा इस अधिनियम के अधीन नियोजित हर व्यक्ति सेवा की ऐसी शर्तों के अध्यधीन होगा और ऐसे पारिश्रमिक का हकदार होगा जो इस अधिनियम के अधीन उस निगम द्वारा बनाए गए विनियमों द्वारा अवधारित किये जाएँ।

24. कार्यपालिका समिति और अन्य समितियाँ-


(1) राज्य खाद्य निगम का निदेशक बोर्ड एक कार्यपालिका समिति का गठन कर सकेगा, जो निम्नलिखित से मिलकर बनेगी-

(क) निदेशक बोर्ड का अध्यक्ष;
(ख) महानिदेशक; तथा
(ग) निदेशक बोर्ड के तीन अन्य सदस्य, जिनमें से एक अशासकीय व्यक्ति होगा।

(2) निदेशक बोर्ड का अध्यक्ष कार्यपालिका समिति का अध्यक्ष होगा।

(3) निदेशक बोर्ड के साधारण नियंत्रण, निदेशन और अधीक्षण के अध्यधीन रहते हुए, कार्यपालिका समिति, राज्य खाद्य निगम की क्षमता में किसी भी विषय के बारे में कार्य करने के लिये सक्षम होगी।

(4) निदेशक बोर्ड अन्य ऐसी समितियों का, जो चाहे पूर्णतः बोर्ड के सदस्यों से या पूर्णतः अन्य व्यक्तियों से अथवा भागतः ऐसे सदस्यों से और भागतः अन्य व्यक्तियों से, जैसा वह ठीक समझे, मिलकर बनी हों, ऐसे प्रयोजनों के लिये, जिनका वह विनिश्चय करे, गठन कर सकेगा।

(5) इस धारा के अधीन गठित समिति ऐसे समयों और स्थानों पर बैठक करेगी और अपनी बैठकों में कारबार के संव्यवहार से (जिसके अन्तर्गत बैठकों में गणपूर्ति भी है) सम्बन्धित प्रक्रिया के उन नियमों का अनुपालन करेगी जो राज्य खाद्य निगम द्वारा इस अधिनियम के अधीन बनाए गए विनियमों द्वारा उपबन्धित किये जाएँ।

(6) समिति के सदस्यों को (जो बोर्ड के निदेशकों से भिन्न हों) समिति की बैठकों में हाजिर होने और राज्य खाद्य निगम का कोई भी अन्य कार्य करने के लिये उस निगम द्वारा ऐसी फीसें और भत्ते दिये जाएँगे जो कि उसके द्वारा इस अधिनियम के अधीन बनाए गए विनियमों द्वारा नियत किये जाएँ।

25. बोर्ड के या उसकी समिति के सदस्य द्वारा कुछ दशाओं में मत का न दिया जाना


राज्य खाद्य निगम के निदेशक बोर्ड का या उसकी समिति का कोई ऐसा सदस्य, जिसका निदेशक बोर्ड या उसकी समिति की किसी बैठक के समक्ष विचारार्थ आने वाले विषय में कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष धन-सम्बन्धी हित हो सुसंगत परिस्थितियोें के अपने ज्ञान में आने के पश्चात यथासम्भव शीघ्र, ऐसी बैठक में अपने हित की प्रकृति का प्रकटन करेगा और वह प्रकटन, यथास्थिति, बोर्ड या समिति के कार्यवृत्त में अभिलिखित किया जाएगा और वह सदस्य बोर्ड या समिति के किसी भी विचार-विमर्श या विनिश्चय में, जो उस विषय की बाबत हो, कोई भाग नहीं लेगा।

अध्याय 5


वित्त, लेखा और संपरीक्षा


26. क्रियाकलाप के कार्यक्रम और वित्तीय प्राक्कलनों का निवेदित किया जाना


(1) खाद्य निगम हर एक वर्ष के प्रारम्भ पूर्व आगामी वर्ष के दौरान
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