क्योटो संधि पर अमल क्यों नहीं हो रहा?

क्योटो संधि के तहत औद्योगिक देश ग्रीन हाउस गैसों से होने वाले प्रदूषण को ख़त्म करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.

इसके अनुसार इन देशों के इन गैसों, विशेष तौर पर कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को अगले दस साल में 5.2 प्रतिशत के स्तर से नीचे लाना है. इन गैसों को जलवायु के परिवर्तन के लिए दोषी माना जाता है.

अमरीका अड़ा


क्योटो संधि 1997 में बनाई गई थी और इसके अनुसार उन सब देशों को इस संधि की पुष्टि करनी है जो धरती के वायुमंडल में 55 प्रतिशत कार्बनडाइऑक्साइड छोड़ते हैं.

इस संधि को मार्च 2001 में भारी धक्का लगा जब अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने घोषणा की कि वे कभी इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे. फिर इस संधि के प्रावधानों में कुछ फेरबदल करने के बाद इसे 2002 में जर्मनी में जलवायु पर हुई वार्ता के दौरान अंतिम रूप दिया गया.

अगर 2008 में इस संधि को अमल में लाना है तो इस पर हस्ताक्षर करने वाले देशों और 39 औद्योगिक देशों को भी प्रदूषण करने वाली गैसों का स्तर कम करना होगा.

अमरीका 1990 तक इन गैसों से दुनिया में सबसे अधिक प्रदूषण फैला रहा था और इन गैसों को पर्यावरण में छोड़ने में उसका लगभग 36 प्रतिशत हिस्सा था.

इसके तहत रूस जैसे देशों को कुछ रियायत दी गई क्योंकि उसके जंगल आदि कार्बन डाइऑक्साइड के असर को कुछ हद तक कम कर देते हैं.लेकिन कई रियायतों के बाद भी अमरीका जैसे विकसित देश इसे स्वीकार करने को तैयार नही हैं.

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Post By: tridmin
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