चक्रवात तेजी से घूमती हवा होती है, जिसे उसकी रफ्तार के हिसाब से पांच श्रेणियों में बांटा जाता है। हर तूफान का एक नाम भी होता है। नाम रखने की ये परंपरा अमेरिका से वर्ष 1953 में शुरु हुई थी और अब तक निरंतर जारी है। तब अमेरिका में स्थित संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी ‘नेशनल हरीकेन सेंटर और वर्ल्ड मेटीरियोलाॅजिकल ऑर्गेनाइजेशन’ (डब्ल्यूएमओ) की अगुवाई वाला एक पैनल तूफानों और उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के नाम रखता था। अमेरिका में तूफानों का नाम सम (ऑड) और विषम (ईवन) प्रक्रिया के तहत ही रखा जाता है। ऑड वर्षों में आने वाले तूफानों का नाम महिलाओं के नाम पर रखा जाता है, जबकि ईवन वर्षों में आने वाले तूफान का नाम पुरुषों के नाम पर रखा जाता है। तूफानों और चक्रवातों का नाम रखना इसलिए भी जरूरी था, ताकि लोग नाम से ही तूफान से होने वाले खतरे और उसकी भयावहता का अंदाजा लगा सकें और सतर्क रहें। लोगों को समझने में मुश्किल न हो, इसलिए इन नामों को काफी सरल/आसान रखा जाता था, लेकिन उत्तरी हिंद महासागर वाले देशों में काफी विभिन्नता पाए जाने के कारण ये एजेंसी यहां आने वाले तूफानों का नाम नहीं रखती थी।
उत्तरी हिंद महासागर के देशों में काफी विभिन्नता पाई जाती है। यहां किसी भी कार्य को करने से पहले वहां की सांस्कृतिक, आर्थिक और सामाजिक विभिन्नता का पता होना बेहद जरूरी है। इन इलाकों में विभिन्नता को जानना थोड़ा जटिल भी है। इस जटिलता का एहसास आपको यहां के इलाकों में कुछ किलोमीटर चलने पर ही विभिन्नता देखने पर हो जाएगा। एक प्रकार से इन देशों के हर जनपद में आपको विभिन्नता का एहसास होगा। इसलिए 2004 में डब्ल्यूएमओ के अंतर्राष्ट्रीय पैनल भंग कर दिया और संबंधित देशों को अपने-अपने इलाकों में आने वाले चक्रवातों का नाम रखने के लिए कहा था। भारत, बांग्लादेश, म्यांमार, मालदीव, श्रीलंका, ओमान और थाईलैंड ने मिलकर इन नामों को रखने की परंपरा को शुरू किया। नाम रखने की भी एक प्रक्रिया होती है, जिसमें हर देश आठ नाम देता है, यानी कुल 64 नाम आते हैं। जिस देश का नाम रखने का नंबर आता है, उस देश के नामों की सूची में से तूफान या चक्रवात का नाम रखा जाता है। नाम रखते वक्त इस बात का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है कि ‘नाम किसी की भावनाओं को ठेस न पहुंचाए।’’ उदाहरण के तौर पर, जैसे 2013 में एक तूफान का नाम ‘महासेन’ रखा था। तब इस नाम को लेकर आपत्ति जताई गई थी, क्योंकि महासेन श्रीलंका के एक राजा थे, जिन्होंने वहां शांति और समृद्धि लाने का कार्य किया था। इसके बाद इस तूफान का नाम ‘वियारु’ रख दिया गया था। इसलिए नाम रखते वक्त काफी ध्यान रखा जाता है, जैसे ‘तितली’ तूफान का नाम पाकिस्तान, ‘फानी’ तूफान का नाम बांग्लादेश ने दिया था। पिछल महीने आए ‘अम्फान’ चक्रवात को नाम थाईलैंड़ ने दिया था, जबकि ‘वायु’ तूफान का नाम भारत ने रखा था। अब मुंबई में आ रहा चक्रवात ‘निसर्ग’ को नाम बांग्लादेश ने दिया था। निसर्ग का अर्थ ‘ब्रह्मांड’ होता है।
इस बार भी तूफानों के 160 नामों की सूची जारी हुई है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने अप्रैल 2020 में चक्रवातों के नाम की सूची जारी की है। सूची में निसर्ग पहला नाम है, जबकि अर्नब, आग, व्योम, अजार, तेज, गति, पिंकू औल लालू जैसे नाम भी शामिल हैं। 2004 में जब अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में तूफानों के नामकरण की परंपरा शुरु हुई थी, तब सबसे पहला नाम ‘ओनिल’ था।
चक्रवाती तूफान गर्मियों में आने शुरु होते हैं, लेकिन जिस तरह से हर साल चक्रवातों के आने की संख्या बढ़ रही है, ये जलवायु परिवर्तन का ही असर है। चक्रवात आने में पूरा खेल गर्म और ठंड़ी हवाओं का है। दरअसल, वायुमंडल में हवा हमेशा रहती है। जैसे ही गर्मी बढ़ती है, तो समुद्र गर्म होने लगता है। इससे गर्म हवा ऊपर उठने लगती है। हवा ऊपर इसलिए भी उठती है, क्योंकि गर्म होने के बाद हवा हल्की हो जाती है। गर्म हवा के ऊपर उठने से नीचे का क्षेत्र खाली होने लगता है। ऐसे में वहां वायु का निम्न दबाव क्षेत्र बन जाता है। खाली जगह होने पर ठंडी हवा उस जगह (निम्न दबाव क्षेत्र) पहुंचने का प्रयास करने लगती है, लेकिन निरंतर घूमती पृथ्वी उसके मार्ग में बाधा बन जाती है। इससे निम्न दबाव क्षेत्र में आने का प्रयास कर रही ठंडी हवा पृथ्वी के घूमने के कारण अधिक दबाव वाले क्षेत्र की तरफ ही बढ़ने लगती है। इसी तरह से चक्रवात बनते हैं। इसलिए इक्वेटर के ऊपर, उत्तरी गोलार्ध में, तूफान बाईं तरफ घूमते हैं और नीचे, दक्षिणी गोलार्ध में, तूफान दाईं तरफ घूमते हैं।
तूफान और चक्रवात पहले से ही आते रहे हैं, लेकिन बीते कुछ सालों से ये हर साल आ रहे हैं। इसका कारण जलवायु परिवर्तन है। क्योंकि जलवायु परिवर्तन या ग्लोबल वार्मिंग के कारण हर साल तापमान बढ़ रहा है। ठंड के दिन लगातार कम होते जा रहे हैं। सूरज का ताप बढ़ने से समुद्र भी गर्म हो रहे हैं और उनके ऊपर चलने वाले हवाएं भी जल्द ही ज्यादा गर्म हो जाती हैं। ऐसे में इस प्रकार के तूफानों और चक्रवातों से इंसानों को नुकसान है, तो वहीं समुद्र का तापमान बढ़ने से जलीय जीवन को। यही बढ़ता तापमान ग्लेशियरों के पिघलने और जलस्रोतों के सूखने का कारण भी बन रहा है, जिससे जल संकट गहरा रहा है। इन सभी घटनाओं को रोकने के लिए जलवायु परिवर्तन को रोकना जरूरी है। इसके लिए जीवनशैली में बदलाव और प्रदूषण को कम करना बेहद जरूरी है।
हिमांशु भट्ट (8057170025)
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