क्या नर्मदा तालाबों और गटर में बदल जाएगी?

नर्मदा घाटी की 20,000 साल पुरानी सभ्यता, संस्कृति को मिटाने पर कौन तुला है?


नर्मदा नदी पर बना बांधनर्मदा नदी पर बना बांध‘‘हे नर्मदा मैया! जिस जमीन को तू हर साल अपने आंचल में समेट कर नया उर्वर जीवन देती रही है, बिजलीघर लग जाने के बाद, तेरी यही नियामत राख के पहाड़ो से बांझ हो जाएगी। तेरे भक्तों को बीमार करके जीते-जी मार डालेगी। तेरी कोख में लगने वाले इस दानवी बिजलीघर की राख और गंदगी से मैया! तेरी जीवनदायनी, निर्मल जलधारा भी जहरीली होने से नहीं बच पाएगी। हे मैया! अब तू ही तारणहार है।…………..माँ इन्हें सद्बुद्धि दे।’’

नर्मदा मैया के नाम यह पाती नर्मदा-दूधी संगम पर स्थित नरसिंहपुर जिले की गाडरवारा तहसील के छः गांवो के किसानों ने भेजी है। मध्यप्रदेश सरकार ने उनकी जमीन एन.टी.पी.सी. को 2640 मेगावाट का सुपर कोयला बिजलीघर बनाने के लिए देने का फैसला किया है। ऐसे दर्जन भर विशाल बिजली कारखाने नर्मदा की घाटी में लगाने की योजनाएं बन चुकी है। मध्यप्रदेश सरकार ने बार-बार ‘इन्वेस्टर्स मीट’ (कंपनियों व पूंजीपतियों के जलसे) बुलाकर उन्हें दावत दी है, उसका यह नतीजा है।

नर्मदा घाटी में कई बड़े बांध बनने से यह नदी पहले ही तालाबों और नाले में बदल गई है। ये बिजली कारखाने और वर्धमान-अभिषेक जैसे कारखाने लगने से क्या अब वह गटर में नहीं बदल जाएगी? क्या उसकी गत भी यमुना और गंगा जैसी नहीं होगी? क्या नर्मदा का पानी आचमन करने लायक, नहाने लायक और मवेशियों के पीने लायक भी रह जाएगा? लाखों किसान व गांववासी तो सीधे उजड़ेंगे ही, इस नदी पर आश्रित करोड़ों लोगों की जिंदगी व रोजी-रोटी भी क्या बर्बाद नहीं हो जाएगी? यह कैसा विकास है?

नर्मदा-तवा संगम पर बांद्राभान में 21 से 23 मार्च 2010 तक दूसरा अंतर्राष्ट्रीय नदी महोत्सव हो रहा है। भाजपा नेता, राज्यसभा सांसद श्री अनिल माधव दवे के एन.जी.ओ. ‘नर्मदा समग्र’ द्वारा आयोजित इस अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार का केन्द्रीय विषय ‘नदी और प्रदूषण’ है। क्या इसमें इस विनाश लीला को रोकने की कोई रणनीति बनेगी? श्री अनिल दवे नर्मदा घाटी के इन भोले-भाले देहातियों की पुकार सुनकर क्या मध्यप्रदेश सरकार को कुछ सद्बुद्धि देंगे?

 

 

ज्वलंत सवाल -


दो साल पहले भी बांद्राभान पर यह महोत्सव हुआ था। तब नर्मदा घाटी के कुछ लोगों ने आयोजकों से कुछ सवाल पूछे थे। इनमें प्रमुख थे -
1. इस महोत्सव में नर्मदा पर बन रहे बड़े बांधों की विनाशलीला और विस्थापितों की दुर्दशा को क्यों एजेण्डा में शामिल नहीं किया गया? क्या यह नदियों की मौत का उत्सव है?
2. नर्मदा के दोनों तरफ कई परियोजनाओं में आदिवासियों को उजाड़ा जा रहा है। क्या वे नर्मदा-पुत्र नहीं हैं? उनकी जिंदगी पर आ रही मुसीबत पर आप मौन क्यों?
3. बरगी बांध बनने से नर्मदा में तरबूज-खरबूज की बाड़ियों का धंधा चौपट हो गया। अब बिजलीघरों की राखड़ और कारखानों के प्रदूषण से मछली खत्म हो जाएंगी। कहार-केवट समुदाय की इस बर्बादी से आपका कोई सरोकार क्यों नहीं?
4. नदियों का निजीकरण, पानी का बाजारीकरण, बोतलबंद पानी के कारखानों वाली अमरीकी कंपनियों को करों में छूट, आदि पर आपने सवाल क्यों नहीं उठाए?
5. मध्यप्रदेश सरकार कंपनियों को क्यों बुला रही है? इनसे नदियां, जमीन, जंगल, जैव विविधता बचेगी क्या? विकास का यह जन-विरोधी मॉडल ही चलेगा क्या?
6. आप रामसेतु और रामजन्मभूमि को बचाने के नाम पर तो पूरी ताकत लगा देते हैं, किन्तु नर्मदा के बांधों में शूल्पणेश्वर, हापेश्वर, सिंगाजी, धाराजी, ओंकारेश्वर के डूबने पर चुप क्यों रहते हैं?
7. इस महोत्सव में शामिल होने के लिए हजारों रुपए का पंजीयन शुल्क क्यों रखा गया है? नर्मदा घाटी में रहने वाले किसानों, मजदूरों, मछुआरों, आदिवासियों, विद्यार्थियों को चर्चा से बाहर क्यों रखा गया है?
8. इस महंगे आयोजन पर खर्च का हिसाब देंगे? यह पैसा कहां से आया?

जब देश के तीन-चौथाई से ज्यादा लोग 20 रु. रोज से नीचे गुजारा कर रहे हैं, तो आपकी यह शान शौकत व फिजूलखर्च जायज है क्या?

 

 

 

हमें जवाब चाहिए -


अफसोस है कि आयोजन श्री अनिल माधव दवे या नर्मदा समग्र ने इन सवालों का जवाब देने की जरुरत नहीं समझी। इन दो सालों में ये सवाल और ज्यादा गंभीर हो गए हैं। हम इनका जवाब चाहते हैं – नदी महोत्सव के आयोजकों से भी और मध्यप्रदेश सरकार व भारत सरकार से भी।

हम आयोजकों और प्रदेश सरकार से यह भी जानना चाहते हैं कि पिछले दो सालों में नर्मदा व अन्य नदियों को, उनके जनजीवन को और उनकी संस्कृति को बचाने के लिए कौन से ठोस कदम उठाए गए? या सिर्फ दो साल में एक बार नदी महोत्सव की नौटंकी करके आप असलियत को ढकना चाहते हैं? इस कार्यक्रम के महंगे रंगीन चिकने निमंत्रण पत्र में जो तीन सवाल छापे गए हैं वे हम पलटकर आपसे भी पूछना चाहते हैं –

1. क्या आप नदियों को कचराघर बना नहीं रहे हैं?
2. क्या आप (बांध बनाकर) नदियों को सुखा नहीं रहे हैं?
3. क्या आप नदियों पर बात ज्यादा, और काम कम (या उल्टा काम) नहीं कर रहे हैं?

श्रीगोपाल गांगूडा, प्रदेश महामंत्री, समाजवादी जनपरिषद
किशन बल्दुआ, नगराध्यक्ष, समाजवादी जनपरिषद, पिपरिया

 

 

 

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