क्या नदियां भी गाती है?

कोसी नदी
कोसी नदी

डा.ओमप्रकाश भारती की पुस्तक नदियां गाती हैं - कोसी नदी का लोकसांस्कृतिक अध्ययन का द्वितीय संस्करण पढ़ रहा था, उसी झण टीवी पर खबर देखा, कोसी अंचल में जल प्रलय! और मैं कठिन समय में चला गया, जहाँ मेरे लिये दृश्यों के साथ शब्द थे।

नादियां गाती हैं, डॉ. ओमप्रकाश भारती की एक महत्वपूर्ण पुस्तक है जिसमें कोसी नदी के जीवन से संबंधित भूगोल, इतिहास और समाजशास्त्र को वैज्ञानिक तरीके से खोजने का प्रयास किया गया है। मिथिलांचल के लोग “कोसी” नाम की वेदना का मर्म अच्छी तरह जानते हैं। इस पुस्तक की खासियत है कि इस अकेली पुस्तक में न केवल साहित्य की कई विधाओं का वरन्‌ समाज विज्ञान के कई विषयों का भी समावेश है। “कोसी: उद्गम से संगम” तक अध्याय में कोसी के उत्पत्ति-स्थल से लेकर विभिन्‍न मार्गों के माध्यम से बिहार तक पहुंचने का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया गया है। इस अध्याय को पढ़ते हुए लगता है मानो नदी-मार्ग पर भूगोल की कोई पुस्तक पढ़ रहे हो। कोसी के उद्गम-स्थल, सप्तकौशिकी क्षेत्र, कोसी की छाड़न धाराएं-सबका ब्योरा लेखक ने मानचित्र सहित दिया है। यह अध्याय एक तरह से कोसी के गीतों की पूर्वपीठिका भी है क्योंकि उसकी भौगोलिक नियति ही उसे तबाही मचाने के लिए मजबूर करती है और इस तबाही की मार्मिक कराहों के भीतर से जन्मता है-कोसी से संबंधित लोकगीत। लेखक ने स्पष्ट लिखा है:

लगभग प्रत्येक 35-40 वर्षों पर कोसी अपने प्रवाह मार्ग को बालू मिट्टी से भरकर अवरुद्ध कर देती है।जान-माल की तबाही मचाते हुए नया प्रवाह मार्ग बना लेगी है। इन तबाहियों को कारण ही असंख्य लोकह्रदय दर्द से कराह उठते हैँ; उनका दर्द स्वर और लय के साथ गीत का रूप लेता है। जिस गीत को गाकर कोसी निवासी जीवन को रागात्मक बनाते हैं ! उनके जीवन में उत्साह और ऊर्जा का संचार होता है। यही उत्साह और ऊर्जा उन्हें जीवन की चुनौतियों से सामना करने का अद्म्य साहस प्रदान करता है।”

इतिहास केवल वही नहीं होता जिसे हम इतिहास की पाठय-पुस्तकों में अथवा महान इतिहासविदों की ज्ञानवर्धी पुस्तकों में पढ़ते हैं। इतिहास का एक क्षेत्रीय पाठ भी होता है जो लोक जीवन के सच्चे अनुभवों, मान्यताओं और धार्मिक धारणाओं से बनता है। इतिहास का यह क्षेत्रीय पाठ ज्ञान की मुख्य धारा का अंग भले ही न बन पाए,लेकिन लोक जीवन तो इसी से संचालित होता है। जीवन तो इस इतिहास में ही धड़कता है। “कोसी: मिथ और लोक इतिहास” नामक अध्याय में लेखक ने कोसी से संबंधित लोक इतिहास, किवदंतियों और मिथक-कथाओं को एक स्थान पर संकलित किया है। नदी और मानव जीवन के अन्त: सम्बंधों और अंतर्द्वन्दों का अदभुत समाजशास्त्रीय अन्वेषण पुस्तक की विशेषता है। कोसी के गीतों का संगीत एवं पुरासंगीतशास्त्रीय विश्लेषण लोकसाहित्य के अध्ययन को नया आयाम देता है। कोसी के लोगों के पारम्परिक ज्ञान-अध्याय में लोकज्ञान और उसकी महत्ता को रेखांकित किया गया है।

कोसी गीतों के संकलन के लिए यायावर बना लेखक जब अपनी यात्राओं का वर्णन करता है तो उसकी भाषा अत्यन्त सर्जनात्मक हो उठती है और इन यात्राओं को पढ़ने पर पाठक को रोमांच एवं जिज्ञासा से पगे उत्तम कोटि के यात्रा-वृतांत का आनंद प्राप्त होगा। भाषा का एक नमूना देखें: “बस चल पड़ी। हूँ करते सर्पीली पहाड़ी ढलान पर रेगेंन लगी। मनमोहक प्राकृतिक वादियों में हम खो चुको थे। सागवान, महुआ और साल को गगनचुंबी बूढ़े वृक्षों की तलहटी  में नवजात छोटे-छोटे पोते वृक्षों की खिलखिलाहट, किलकारियां ग्रकृति को रम्य और रागात्मक बना रहे थे।घाटियों में बिखरी जलराशियां पुरातन भाषा में कुछ गुनगुना  रही थीं।! इसे जीवंतता की भाषा कह सकते हैं। कोसी की तबाही का साक्षी लेखक का बचपन स्वयं रहा है। आंखों देखी त्रासदी को उसने “कोसी की

गोद” नामक अध्याय में साकार किया है। कोसी नदी से संबंधित तीन लोमहर्षक त्रासदियों का वर्णन भी है। 06 जून1981 ई. को पुल टूटने के कारण समस्तीपुर-बनमनखी 416 डाउन पैसेंजर ट्रेन कोसी नदी में गिर गयी थी। दो अन्यलोमहर्षक घटनाओं में कोसी में आयी बाढ़ और सहरसा जाने वाली बस के तीस यात्रियों के कोसी में डूबने की घटना है। प्रीडो द्वारा संग्रहित कोसी के गीत जो मार्च 1943 में “मेन इन इंडियां में प्रकाशित हुए थे, उन्हें भी यहां शामिल किया गया है। नदी के बहाने लोकजीवन पर प्रकाश डालने वाली यह पुस्तक पठनीय भी है और संग्रहणीय भी।

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Post By: Shivendra
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