आदिकाल से बह रही गोमती को पहले जमाने में मात्र म्युनिसपैलिटी का कचरा ढोने का नाला नहीं माना जाता था। सांप की भांति बलखाती कोई नदी बहती है तो अपने धारा को सीधा धरने का वह निरंतर प्रयास करती रहती है। इस प्रयास में पुरानी धारा के टुकड़े छोटी-छोटी झीलों (ऑक्स-बो लेक) के रूप में छोड़ती जाती है। भारतीय सर्वेक्षण विभाग के 1912 के नक्शे पर यदि नजर डालें तो पूरे लखनऊ में लगभग 300 झीलें थीं आबादी के साथ जमीन की मांग बढ़ती गई और हमने झीलें पाटकर कालोनियां बना लीं। प्राकृतिक जल स्रोत हमने पाट दिए और अब ‘रूफ टॉप रेन वाटर हार्वेस्टिंग’ की योजनाएं बना रहे हैं।
हजारों वर्षों से गोमती अपने साथ बालू, मृदा आदि लेकर आती है और बरसात में जब इसका ‘डिस्चार्ज 100% बढ़ जाता है तब अपना भार बाढ़ के डूबे क्षेत्र में छोड़ती हुई आगे बढ़ जाता है। बालू और कंकर की इस प्रकार जमा की गई परतें समयोपरांत भूजल का अगाध स्रोत बनती है।
अफसोस, हमने अपनी गोमती की कद्र न जानी और उसे मात्र कचरा ढोने वाले नाले के समान बना दिया। लखनऊ विश्वविद्यालय के भूगर्भ विज्ञान के भूवैज्ञानिक अमित कुमार सिंह तथा डॉ. मुनेंद्र सिंह के हाल में प्रकाशित शोध के अनुसार किसी भी नदी में भौतिक, रासायनिक व जैविक प्रक्रियाएं निरंतर चलती रहती हैं, जो पारिस्थितिक सामंजस्य बना कर रखती हैं। जब उनमें मानव का हस्तक्षेप होने लगता है तो संतुलन डगमगा जाता है और नदी अस्वस्थ हो जाती है।’
आज गोमती अस्वस्थ हो चुकी है। कुछ हमने तथा कुछ प्रकृति ने इतने विष उसके जल में घोल दिए हैं कि पढ़कर ही सिहरन हो जाती है। उपरोक्त शोधकर्ताओंं ने नीमसार, इटौंजा, लखनऊ, गंगागंज, सुल्तानपुर व जौनपुर से नदी जल के नमूनों का प्रयोगशाला में अध्ययन कर पाया कि गोमती जल में अनेक खतरनाक तत्व मानकों से कहीं अधिक मौजूद हैं। साथ गोमती जल, मल के जीवाणुओं से भरा हुआ है।
प्रश्न यह है कि अब किया क्या जाए? मात्र सरकार से गोमती की सफाई का उम्मीद नहीं की जा सकती। सरकार तो उद्योगों का कचरा नदी में जाने से रुकवा सकती है। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगवा सकती है, पर नदी किनारे बसे हजारों लोगों को अपनी शौच की व्यवस्था स्वयं करनी होगी। इस समय गोमती जल को और अधिक अशुद्ध होने से बचाने के लिए आवश्यकता है जनमानस पैदा करने की कि स्वच्छ जल, स्वस्थ शरीर के लिए आवश्यक है। लखनऊ में सरकार ने एशिया का सबसे बड़ा ‘सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट’ लगा दिया है पर अभी जरूरत है नदी किनारे छोटे-छोटे संयंत्र लगाए जाने की। जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से लखनऊ स्थित लोकभारती संस्था ने पर्यावरणविदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, साधू समाज, स्कूली बच्चों को साथ लेकर गोमती यात्रा निकाली है। इस प्रकार के अभियान यदि चलते रहे तो शायद गोमती को उसका पुराना स्वरूप देकर उसकी व्यथा को हर सकेंगे।
लखनऊ में गोमती जल के नमूनों मे पाए गए कुछ तत्व व विषाणु
(अमित कुमार सिंह व डॉ. मुनेंद्र सिंह के शोध पत्र पर आधारित)
हजारों वर्षों से गोमती अपने साथ बालू, मृदा आदि लेकर आती है और बरसात में जब इसका ‘डिस्चार्ज 100% बढ़ जाता है तब अपना भार बाढ़ के डूबे क्षेत्र में छोड़ती हुई आगे बढ़ जाता है। बालू और कंकर की इस प्रकार जमा की गई परतें समयोपरांत भूजल का अगाध स्रोत बनती है।
अफसोस, हमने अपनी गोमती की कद्र न जानी और उसे मात्र कचरा ढोने वाले नाले के समान बना दिया। लखनऊ विश्वविद्यालय के भूगर्भ विज्ञान के भूवैज्ञानिक अमित कुमार सिंह तथा डॉ. मुनेंद्र सिंह के हाल में प्रकाशित शोध के अनुसार किसी भी नदी में भौतिक, रासायनिक व जैविक प्रक्रियाएं निरंतर चलती रहती हैं, जो पारिस्थितिक सामंजस्य बना कर रखती हैं। जब उनमें मानव का हस्तक्षेप होने लगता है तो संतुलन डगमगा जाता है और नदी अस्वस्थ हो जाती है।’
आज गोमती अस्वस्थ हो चुकी है। कुछ हमने तथा कुछ प्रकृति ने इतने विष उसके जल में घोल दिए हैं कि पढ़कर ही सिहरन हो जाती है। उपरोक्त शोधकर्ताओंं ने नीमसार, इटौंजा, लखनऊ, गंगागंज, सुल्तानपुर व जौनपुर से नदी जल के नमूनों का प्रयोगशाला में अध्ययन कर पाया कि गोमती जल में अनेक खतरनाक तत्व मानकों से कहीं अधिक मौजूद हैं। साथ गोमती जल, मल के जीवाणुओं से भरा हुआ है।
प्रश्न यह है कि अब किया क्या जाए? मात्र सरकार से गोमती की सफाई का उम्मीद नहीं की जा सकती। सरकार तो उद्योगों का कचरा नदी में जाने से रुकवा सकती है। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगवा सकती है, पर नदी किनारे बसे हजारों लोगों को अपनी शौच की व्यवस्था स्वयं करनी होगी। इस समय गोमती जल को और अधिक अशुद्ध होने से बचाने के लिए आवश्यकता है जनमानस पैदा करने की कि स्वच्छ जल, स्वस्थ शरीर के लिए आवश्यक है। लखनऊ में सरकार ने एशिया का सबसे बड़ा ‘सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट’ लगा दिया है पर अभी जरूरत है नदी किनारे छोटे-छोटे संयंत्र लगाए जाने की। जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से लखनऊ स्थित लोकभारती संस्था ने पर्यावरणविदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, साधू समाज, स्कूली बच्चों को साथ लेकर गोमती यात्रा निकाली है। इस प्रकार के अभियान यदि चलते रहे तो शायद गोमती को उसका पुराना स्वरूप देकर उसकी व्यथा को हर सकेंगे।
लखनऊ में गोमती जल के नमूनों मे पाए गए कुछ तत्व व विषाणु
तत्व | मात्रा | मानक | टिप्पणी |
आयरन | 96.12 ग्रा./लीटर | 0.3 मिग्रा./लीटर | आयरन जीवाणुओं का बढ़ना |
क्लोराइड | 4.45 मिग्रा./लीटर | 0.25 मिग्रा./ली. | स्वाद खराब होना, क्षरण दर बढ़ना |
सल्फेट | 9.10 मिग्रा./लीटर | 0.20 मिग्रा./ली. | इससे अधिक होने से आंतों में जलन होने लगती है |
मर्करी | 1.06 ग्रा./ली. | 0.001 मिग्रा./ली. | मानक से अधिक होने से विषैला जल |
आर्सेनिक | 4.25 ग्रा./ली. | 0.01 मिग्रा./ली. | मानक से अधिक जल त्वचा कैंसर पैदा करता है। |
क्रोमियम | 1.65 ग्रा./ली. | 0.05 मिग्रा./ली. | कैंसर कारक हो सकता है |
ई-कोलाई (मल जीवाणु) | 8.1x10x10x10 एमपीएन/ मिली. | 0/100 मिली. | मल पीने समान आंत्र शोध कारक |
(अमित कुमार सिंह व डॉ. मुनेंद्र सिंह के शोध पत्र पर आधारित)
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