किसान के खून से बने पसीने की सिंचाई से जमीनों पर अमन-चैन के गुलाब तो खिलते ही हैं और भी बहुत कुछ इस धरती की कोख से पैदा होता है, जिसका स्वाद किसान विरोधी भूमि अधिग्रहण अध्यादेश जारी करने वाले भी बखूबी लेते होंगे।किसानों ने 24 फरवरी को जन्तर-मन्तर पर जिस महारैली का ऐलान किया है वह जीवन के आदर्शों के वास्ते तो है ही, वह मौजूदा सरकार को वादाखिलाफी याद दिलाने के लिए भी है। गौरतलब है कि जब प्रधानमन्त्री विगत वर्ष चुनाव प्रचार करते हुए देश में जगह-जगह रैलियों को सम्बोधित कर रहे थे तो उन्होंने कहा था कि उनकी सरकार किसानों और गरीबों के राडार पर होगी। उन्होंने अभी हाल ही में झारखण्ड में विधनसभा चुनाव के दौरान यह भी कहा कि उनकी सरकार आदिवासियों की जमीनों का अधिग्रहण नहीं करेगी, परन्तु राजधानी दिल्ली में स्थित अपने अन्तःपुर पहुँचते ही भूमि अधिग्रहण अध्यादेश जारी करवा दिया। इसी भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को बदलने की माँग को लेकर भारतवर्ष के किसान काफी कुपित हैं।
वास्तव में इससे कौन इनकार कर सकता है कि किसान के खून से बने पसीने की सिंचाई से जमीनों पर अमन-चैन के गुलाब तो खिलते ही हैं और भी बहुत कुछ इस धरती की कोख से पैदा होता है, जिसका स्वाद किसान विरोधी भूमि अधिग्रहण अध्यादेश जारी करने वाले भी बखूबी लेते होंगे। यह इस देश का कितना हतभाग्य है कि किसानों को खाद भी लूटनी पड़ रही है। और दूसरी ओर हमारे कृषि मन्त्री किसानों को जैविक खाद तथा जैविक खेती का उपदेश दे रहे हैं।
इस अध्यादेश को आज किसानों के लिए ही विनाशकारी नहीं माना जा रहा है, बल्कि इसके लागू होने से भारत के जनतान्त्रिक नियोजन को भी खतरा उत्पन्न हो गया है। केन्द्रीय कृषि मन्रीहो कह रहे हैं कि किसानों को मुफ्त में मृदा स्वास्थ्य कार्ड बाँटे जाएँगे। लेकिन क्या वे यह बताएँगे कि इस अध्यादेश के कानून बन जाने के बाद किसान किन जमीनों की मिट्टी का स्वास्थ्य जाँचेगा। क्या वह उन कब्रगाहों और श्मशान भूमियों की मिट्टी के स्वास्थ्य की जाँच करेगा, जहाँ पर इस देश की किसान और कृषि विरोधी नीतियों के कारण सपरिवार आत्महत्या कर अकाल मर गए लोगों की यादें दफ़न हैं।
किसानों की जमीन ही जब छिन जाएगी तो वह मृदा स्वास्थ्य कार्ड का क्या करेगा? वह किस भूमि पर जैविक खाद का प्रयोग करेगा? वह किस जमीन पर जैविक खेती करेगा?खबर आई है कि पूरे भारतवर्ष से किसानों, मजदूरों, मछुआरों और जनपक्षधर आन्दोलनकारी ताकतों के लगभग 70 से ज्यादा संगठनों की अगुआई में इस महीने की 24 तारीख को इस भूमि अधिग्रहण कानून को बदलने की माँग को लेकर दिल्ली में संसद की चौखट जन्तर-मन्तर पर एक महारैली का आह्वान किया गया है। उधर सामाजिक कार्यकर्ता तथा विभिन्न समाज सुधार आन्दोलनों एवं जनलोकपाल आन्दोलन से देशव्यापी हुए अन्ना हजारे भी इस मुद्दे को लेकर जन्तर-मन्तर पर अपने समर्थकों के साथ धरना-प्रदर्शन करने का ऐलान कर चुके हैं। इस बहती गंगा में कांग्रेस भी हाथ धो लेना चाहती है। केजरीवाल एण्ड पार्टी को तो इस तरह के आन्दोलनों को अपहृत करने में महारत हासिल रही है, भला वह कैसे पीछे रहते। पर सबसे आश्चर्यजनक है, इस प्रकार के मुद्दों पर पहलकदमी लेने का सार्वभौमिक अधिकार रखने वाली लाल राजनीतिक ताकतों का ‘वॉच एण्ड वेट’।
और एक बार फिर सत्ता के शीर्ष प्रतिष्ठान की विद्रूपता सबके सामने है। किसानों की जमीन ही जब छिन जाएगी तो वह मृदा स्वास्थ्य कार्ड का क्या करेगा? वह किस भूमि पर जैविक खाद का प्रयोग करेगा? वह किस जमीन पर जैविक खेती करेगा? उन आदिवासियों का क्या होगा जिनके पास इस देश में आज तक एक अदद मतदाता पहचान पत्र तक नहीं है? सवाल कई हैं और जवाब सिर्फ एक ही है कि मौजूदा व्यवस्था की कोख से भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के रूप में एक और लुटेरा कानून पैदा हो गया है, जो हमें 1894 में बने भूमि अधिग्रहण कानून की ओर ले जाएगा। 70 प्रतिशत आबादी की निर्भरता और रोजगार का महत्वपूर्ण साधन भूमि भी अगर उनसे छिन जाएगी तो फिर आने वाली भुखमरी और भयावहता का सिर्फ अन्दाजा ही लगाया जा सकता है।
इसलिए इस महारैली से विवेकपूर्ण सन्देश सरकार को दिया ही जाना चाहिए। इसलिए इसकाविरोध लाजिमी है।
(लेखक कृषि चौपाल का सम्पादक हैं)
ई-मेल : krishichaupal@gmail.com
वास्तव में इससे कौन इनकार कर सकता है कि किसान के खून से बने पसीने की सिंचाई से जमीनों पर अमन-चैन के गुलाब तो खिलते ही हैं और भी बहुत कुछ इस धरती की कोख से पैदा होता है, जिसका स्वाद किसान विरोधी भूमि अधिग्रहण अध्यादेश जारी करने वाले भी बखूबी लेते होंगे। यह इस देश का कितना हतभाग्य है कि किसानों को खाद भी लूटनी पड़ रही है। और दूसरी ओर हमारे कृषि मन्त्री किसानों को जैविक खाद तथा जैविक खेती का उपदेश दे रहे हैं।
इस अध्यादेश को आज किसानों के लिए ही विनाशकारी नहीं माना जा रहा है, बल्कि इसके लागू होने से भारत के जनतान्त्रिक नियोजन को भी खतरा उत्पन्न हो गया है। केन्द्रीय कृषि मन्रीहो कह रहे हैं कि किसानों को मुफ्त में मृदा स्वास्थ्य कार्ड बाँटे जाएँगे। लेकिन क्या वे यह बताएँगे कि इस अध्यादेश के कानून बन जाने के बाद किसान किन जमीनों की मिट्टी का स्वास्थ्य जाँचेगा। क्या वह उन कब्रगाहों और श्मशान भूमियों की मिट्टी के स्वास्थ्य की जाँच करेगा, जहाँ पर इस देश की किसान और कृषि विरोधी नीतियों के कारण सपरिवार आत्महत्या कर अकाल मर गए लोगों की यादें दफ़न हैं।
किसानों की जमीन ही जब छिन जाएगी तो वह मृदा स्वास्थ्य कार्ड का क्या करेगा? वह किस भूमि पर जैविक खाद का प्रयोग करेगा? वह किस जमीन पर जैविक खेती करेगा?खबर आई है कि पूरे भारतवर्ष से किसानों, मजदूरों, मछुआरों और जनपक्षधर आन्दोलनकारी ताकतों के लगभग 70 से ज्यादा संगठनों की अगुआई में इस महीने की 24 तारीख को इस भूमि अधिग्रहण कानून को बदलने की माँग को लेकर दिल्ली में संसद की चौखट जन्तर-मन्तर पर एक महारैली का आह्वान किया गया है। उधर सामाजिक कार्यकर्ता तथा विभिन्न समाज सुधार आन्दोलनों एवं जनलोकपाल आन्दोलन से देशव्यापी हुए अन्ना हजारे भी इस मुद्दे को लेकर जन्तर-मन्तर पर अपने समर्थकों के साथ धरना-प्रदर्शन करने का ऐलान कर चुके हैं। इस बहती गंगा में कांग्रेस भी हाथ धो लेना चाहती है। केजरीवाल एण्ड पार्टी को तो इस तरह के आन्दोलनों को अपहृत करने में महारत हासिल रही है, भला वह कैसे पीछे रहते। पर सबसे आश्चर्यजनक है, इस प्रकार के मुद्दों पर पहलकदमी लेने का सार्वभौमिक अधिकार रखने वाली लाल राजनीतिक ताकतों का ‘वॉच एण्ड वेट’।
और एक बार फिर सत्ता के शीर्ष प्रतिष्ठान की विद्रूपता सबके सामने है। किसानों की जमीन ही जब छिन जाएगी तो वह मृदा स्वास्थ्य कार्ड का क्या करेगा? वह किस भूमि पर जैविक खाद का प्रयोग करेगा? वह किस जमीन पर जैविक खेती करेगा? उन आदिवासियों का क्या होगा जिनके पास इस देश में आज तक एक अदद मतदाता पहचान पत्र तक नहीं है? सवाल कई हैं और जवाब सिर्फ एक ही है कि मौजूदा व्यवस्था की कोख से भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के रूप में एक और लुटेरा कानून पैदा हो गया है, जो हमें 1894 में बने भूमि अधिग्रहण कानून की ओर ले जाएगा। 70 प्रतिशत आबादी की निर्भरता और रोजगार का महत्वपूर्ण साधन भूमि भी अगर उनसे छिन जाएगी तो फिर आने वाली भुखमरी और भयावहता का सिर्फ अन्दाजा ही लगाया जा सकता है।
इसलिए इस महारैली से विवेकपूर्ण सन्देश सरकार को दिया ही जाना चाहिए। इसलिए इसकाविरोध लाजिमी है।
(लेखक कृषि चौपाल का सम्पादक हैं)
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