छतरपुर (मप्र), जनसत्ता, 14 जुलाई। उप्र से सटे छतरपुर जिले के लौंडी अनुभाग के ग्राम गोहानी में कुएं का पानी पीने से दो की मौत हो गई जबकि सौ से अधिक ग्रामीण पीड़ित हैं। गांव में स्वास्थ्य विभाग की टीम डेरा डाले हुए है और पीड़ितों का उपचार कर रही है। जबकि पीएचई विभाग ने अभी तक जहर बन चुके पानी के सेंपल तक लेना उचित नहीं समझा है।
जिला मुख्यालय से तकरीबन सौ किलोमीटर दूर 1700 की आबादी वाले ग्राम गोहानी में पांच सार्वजनिक कुएं हैं। अचानक सवर्ण बस्ती में स्थित डीला कुआं का पानी जहर बन गया। गांव के काजू सिंह ने बताया कि जिस परिवार ने कुएं के पानी का सेवन किया, उसे उल्टी दस्त शुरू हो गए। जयराम सिंह के सात साल के बेटे पुष्पेंद्र और जानकीशरण शुक्ला की विवाहिता पुत्री नीता की कुआं का पानी पीने के बाद मृत्यु हो गई। जानकारी के मुताबिक अभी भी गांव के करीब सौ से अधिक लोग बीमार हैं। जिसमें हर उम्र के हैं। खास है कि वे लेग उल्टी दस्त से ग्रसित हैं जिन्होंने विशेष कुएं का पानी पिया था। गांव में उल्टी दस्त फैलने की खबर मिलते ही स्वास्थ्य विभाग सक्रिय हुआ और तत्काल टीमें गांव में पहुंची। स्वास्थ्य अधिकारी का कहना है कि पानी पीने से लोग डायरिया का शिकार हो चुके हैं। जिन्हें मौके पर ही उपचार दिया जा रहा है। अधिकारियों के अनुसार स्थिति अब नियंत्रण में है।
भूजल विशेषज्ञ राकेश रावत का मानना है कि भीषण गर्मी से कुएं का पानी तलहटी तक पहुंच चुका था। ऐसे समय कुएं के पानी में क्लोरीन, फिटकरी इत्यादि का उपयोग कर पानी को साफ किया जाना चाहिए। ऐसा न होने की दशा में पानी जहरीला होना शुरू हो जाता है। गांव के काजू सिंह का कहना है कि गांव के किसी भी कुएं में कभी भी कोई दवा नहीं डाली गई। ग्राम गोहानी में सैकड़ों लोग जहरीले पानी के सेवन से जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं वहीं लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग अभी तक नहीं चेता है। पानी के सैंपल तक नहीं लिए गए। जिससे जांच कराई जा सके। विभाग के एसडीओ ओपी अग्रवाल का कहना है कि सेंपल लेने की अनुमति ली जा रही है।
गांव के कुछ लोग तो देवी-देवताओं का प्रकोप मान रहे हैं। उनका कहना है कि कुएं की मर्यादा का उल्लंघन होने से देवता नाराज हो गए जिनके प्रकोप के कारण पानी जहर का रूप ले चुका है। आने वाले दिनों में संबंधित कुएं की पूजा-अर्चना की जाएगी। फिलहाल ग्रामीणों ने जहरीलें कुएं से पानी का उपयोग बंद कर दिया है।
/articles/kauen-kaa-paanai-banaa-jahara