हरियाणा और पंजाब में 822 जगह पर पानी की जाँच में लगभग 3 प्रतिशत जगह पर ही पीने का पानी सुरक्षित पाया गया। 58 प्रतिशत जगह तो पीने वाले पानी में प्रदूषण की मात्रा दोगुने से भी ज्यादा थी। माँ के दूध तक में जहर के अंश पाये गए हैं। हरियाणा किसान आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य की कुल भूमि का आधे से ज्यादा हिस्से में (54 प्रतिशत) कोई ना कोई कमी है। किसान और उपभोक्ता का अपना अनुभव भी यही दिखाता है। सवाल यह है कि क्या खेती का कोई और तरीका भी हो सकता है? हरियाणा सरकार के आँकड़े दिखाते हैं कि 2001 के मुकाबले 2011 में एक किलो रासायनिक खाद से मिलने वाली पैदावार 27 प्रतिशत घट गई थी। दूसरी ओर यही आँकड़े दिखते हैं कि 1976 के मुकाबले 2005 में गेहूँ के एक एकड़ में पड़ने वाली रासायनिक खाद की लागत साढ़े दस गुणा से ज्यादा और रासायनिक कीटनाशकों की लागत 772 गुणा बढ़ गई थी। इस बीच गेहूँ की कीमत में मात्र 6 गुणा बढ़ोत्तरी हुई थी। इस सब का नतीजा क्या है? एक तरफ किसान पर खर्च और कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है दूसरी ओर हमारा भोजन स्वास्थ्यवर्धक ना होकर जहरीला होता जा रहा है।
हरियाणा बागवानी विभाग के पत्र क्रमांक Hort| B-II/APEPR/2/14/2012-13/ के अनुसार भिंडी में सुरक्षित मात्रा से 750 गुणा ज्यादा कीटनाशक पाये गए, गोभी में 150 गुणा, टमाटर में 70 गुणा, आलू में 50 गुणा और पालक में 40 गुणा ज्यादा कीटनाशक पाये गए। इसी सरकारी पत्र के अनुसार इन कीटनाशकों से दिमागी तंत्र पर बुरा असर पड़ता है और कैंसर, लीवर, किडनी आदि की भयंकर बीमारियाँ होती हैं।
हरियाणा (और पंजाब) में 822 जगह पर पानी की जाँच में लगभग 3 प्रतिशत जगह पर ही पीने का पानी सुरक्षित पाया गया। 58 प्रतिशत जगह तो पीने वाले पानी में प्रदूषण की मात्रा दोगुने से भी ज्यादा थी। माँ के दूध तक में जहर के अंश पाये गए हैं। हरियाणा किसान आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य की कुल भूमि का आधे से ज्यादा हिस्से में (54 प्रतिशत) कोई ना कोई कमी है। किसान और उपभोक्ता का अपना अनुभव भी यही दिखाता है।
सवाल यह है कि क्या खेती का कोई और तरीका भी हो सकता है? क्या इस कर्ज और जहर से किसी तरह से बचा जा सकता है? 2009 में हरियाणा में हमने इस सवाल से अपनी यात्रा शुरू की थी (देश के कई हिस्सों में तो काफी पहले से यह काम हो रहा है)।
इस अनुभव के आधार पर इस पर्चे में कुछ ऐसे तरीकों की जानकारी दी गई है जिन्हें अपनाकर किसान अपना खर्चा घटा सकता है, अपनी मिट्टी की ताकत बढ़ा सकता है और जहर मुक्त भोजन खा और खिला सकता है। जाहिर है पूरा फायदा तो तभी होगा जब ये सारे तरीके अपनाए जाएँगे और खेत में रासायनिक जहर डालना पूरी तरह बन्द किया जाएगा। परन्तु अगर इनमें से कुछ तरीके भी अपनाए जाते हैं तो भी कुछ तो फायदा होगा ही।
1. पशुमूत्र एक अच्छी खाद है- पशुमूत्र को व्यर्थ न जानें दें। इसे इकट्ठा करने के लिये नाली बनाकर मटका दबा दें। प्रति सिंचाई प्रति एकड़ 50 लीटर पशुमूत्र का प्रयोग कर सकते हैं। पानी और मूत्र को समान मात्रा में मिलाकर मिट्टी में या 10 गुना पानी मिलाकर फसल पर छिड़काव भी किया जा सकता है। पशुमूत्र पुराना होने पर भी फायदेमन्द रहता है। पशुओं के नीचे की मिट्टी उठाकर हर 1-2 महीनों में उतनी ही मिट्टी के साथ मिलाकर खेत में डालनी चाहिए।
2. कुरड़ी की खाद सही तरीके से बनाएँ- आमतौर पर कुरड़ी उठाते हुए गर्मी निकलती है। यह इस बात का सबूत है कि खाद पूरी तरह से तैयार ही नहीं है। सही तरीके से तैयार न होने से फायदा भी कम होता है और खरपतवार भी ज्यादा होती है।
गोबर की खाद बनाने की सही विधि
(क) गोबर ऐसी जगह इकट्ठा किया जाये जहाँ बारिश के समय पानी इकट्ठा न हो और न ही उसके ऊपर से पानी बहकर जाता रहे। धूप-छाँव वाली जगह सबसे अच्छी रहती है।
(ख) गोबर के ढेर में नमी बनाये रखना जरूरी है। इसलिये ऐसी जगह चुने जहाँ पानी की सुविधा हो। अगर मुट्ठी में दबाने से हाथ की उँगलियों में हल्की नमी आ जाये तो नमी ठीक है। वरना पानी छिड़कना चाहिए। पानी टपकना नहीं चाहिए।
(ग) गोबर के ढेर की ऊँचाई और चौड़ाई 2.5-3 फुट से ज्यादा न हो। लम्बाई कितनी भी हो सकती है।
(घ) अगर गोबर के ढेर को ढँक कर रखा जाये तो और अच्छा रहता है। लिपाई करने से खाद जल्दी बनती है। लिपाई न कर पाएँ तो काले और मोटे पॉलीथीन से ढँक दें। हर 4-5 हफ्तों में ढेर को पलटने से खाद और जल्दी तैयार होती है।
(ङ.) खेत में डालने के फौरन बाद इसे मिट्टी में मिला देना चाहिए। खुले में धूप में रखने से पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं।
(च) अच्छी खाद दानेदार, सुनहरी और सुगंध वाली होती है, चाय की पत्ती सी। इसका तापमान सामान्य होता है। सही खाद तैयार होने पर मुट्ठी में बन्द करने पर लड्डू सा बँध जाता है, पर मुट्टी खोलने पर बिखर जाता है।
3. गोबर की तरल खाद/जीवामृत-
जीवामृत या तरल खाद बनाने की विधि
ताजा गोबर 10 से 30 किलो या ज्यादा (उपलब्धता अनुसार), मूत्र 5-10 लीटर, गुड़ 1-2 किलो, किसी भी दाल का आटा 1-2 किलो, पानी 200 लीटर तथा एक मुट्ठी पीपल इत्यादि ऐसे पेड़ के नीचे की ऊपरी 1 इंच मिट्टी या ऐसी जगह की मिट्टी, जहाँ कीटनाशकों का प्रयोग न किया गया हो। इन सब पदार्थों को अच्छी तरह मिलाकर, बोरी (यह प्लास्टिक की न हो) से ढँक कर छाया में रखे दें। इस मिश्रण को दिन में 2-3 बार लकड़ी से चलाएँ। तीन-चार दिनों में (मौसम के अनुसार यह अवधि घट-बढ़ सकती है) जब बुलबुले उठने कम हो जाएँ तो समझें कि जीवामृत बन गया है।
प्रयोग विधि
यह सामग्री एक एकड़ में सिंचाई के पानी के साथ लगा दें। पानी की नाली के ऊपर ड्रम को रखकर धार इतनी रखें कि खेत में पानी लगने के साथ ही ड्रम खाली हो जाये। फुवारा से पानी देते हुए जीवामृत को छानकर प्रयोग करना चाहिए। अगर पानी नहीं देना हो तो जीवामृत को मिट्टी पर भी डाला जा सकता है। थोड़ा बहुत पत्तों पर पड़ जाएगा तो कोई नुकसान नहीं। जीवामृत को छानकर 10-20 गुणा पानी मिलाकर छिड़काव भी कर सकते हैं। महीने में एक-दो बार प्रयोग करें। बाद में इसके प्रयोग की जरूरत नहीं होगी। इसका प्रयोग दही बनाने के लिये जामन लगाने जैसा है। इसके प्रयोग से खेत में सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ती है।
4. बाहर से ली गोबर की खाद में और जान डालें- अगर बाहर से गोबर की खाद लेते हैं और वह सही तरीके से तैयार नहीं है तो उसमें भी जान डाल सकते हैं। कुरड़ी की खाद को खेत के एक कोने में डालकर, ढेले/डल्ले तोड़ लें और उतने ही वजन की खेत की मिट्टी के साथ अच्छी तरह मिला लें। फिर इसको ऐसे फैला लें कि ढेर 1 फुट ऊँचा, 3 फुट चौड़ा हो। इसमें इतना जीवामृत मिला लें कि इसमें बीज बोया जा सके। उपचार करके प्रति 1 वर्ग फुट 10 ग्राम बीज हरी खाद (इसके बारे में विस्तार से आगे बताया है) का बीज डाल दें। 25 से 30 दिनों बाद फसल को काटकर टुकड़े कर लें, जीवामृत में भिगोकर फिर वापस ढेर में डालकर मिला लें। फिर ढेर बनाकर पराल इत्यादि से ढँक दें। 10 दिन बाद ताकतवर खाद तैयार है। दो महीने तक इसका प्रयोग किया जा सकता है। जरूरत हो तो जीवामृत/पानी का छिड़काव करें। दूसरा तरीका है कुरड़ी की खाद का 2.5-3 फुट ऊँचा और इतना ही चौड़ा ढेर लगा लें। उसमें 1-1 फुट पर नीचे तक लगभग 3 इंच चौड़े छेद कर लें। छेद 60 डिग्री के कोण पर हों। ऊपर से पराल इत्यादि से ढँक दें। एक हफ्ते के बाद अगले तीन हफ्तों तक हर हफ्ते हर छेद में एक-एक लीटर जीवामृत डालें। 40 दिनों में ताकतवर खाद तैयार हो जाएगी।
5. जमीन ढँक कर रखें और आग लगाना बन्द करें- आग लगाने का मतलब है नोटों की गड्डी को आग लगाना। आग न लगाने पर जुताई पर होने वाला थोड़ा सा फालतू खर्चा कई गुणा ज्यादा फायदा करता है। पराल आदि कृषि अवशेषों की या तो खाद बना सकते हैं या इनकी मोटी सानी काट करके इससे भूमि को ढँक सकते हैं। 2 से 4 इंच तक सानी से खेत को ढकने से गेहूँ, ईख आदि के फुटाव में कोई दिक्कत नहीं होगी (दालों/बेलों की फुटाव में दिक्कत हो सकती है)। चौड़े पत्ते से फुटाव पर जरूर असर पड़ सकता है। जमीन ढँकने से पानी की भी बचत होगी और खरपतवार भी कम होगा। मूल सिद्धान्त है जो मिट्टी से लिया, उसका ज्यादा-से-ज्यादा हिस्सा वापस मिट्टी में पहुँचाना है।
6. हरी खाद का प्रयोग जरूरी है- इसके लिये 10 से 20 किलो कई तरह की मौसमी फसलों का बीज लें ना कि केवल जन्तर। इनमें तरह-तरह के अनाज, दालें, तिलहन, मसाले (सौंफ, धनिया, मिर्च, मेथी इत्यादि) पत्तेदार सब्जियाँ और रेशे वाली फसलों के बीज हों। 30 से 45 दिन के बाद (बीज बनने से पहले और तना सख्त होने से पहले) या तो जुताई करके जमीन में दबा दें या मेज मार दें। अगर जुताई करें तो दबाने और बुवाई के बीच में 10-15 दिन का फर्क जरूर हो। मेज मारने के बाद तुरन्त बुवाई की जा सकती है। अगर 30 दिन से कम समय मिले तो भी हरी खाद लाभदायक रहती है। अलग से हरी खाद बोने के स्थान पर खड़ी फसल में आखिरी पानी देने से पहले भी हरी खाद का बीज बिखेरा जा सकता है।
7. बीज उपचार जरूरी है- बीज उपचार से फुटाव अच्छा होता है और बीमारियों से भी बचाव होता है।
विधियाँ
10 किलो गाय का गोबर और 10 लीटर मूत्र और 20 किलो दीमक की बाँबी, कीड़ियों की बाँबी या ऐसे पेड़ के नीचे की ऊपरी 1 इंच मिट्टी या डोले की मिट्टी, जिसमें कीटनाशक न प्रयोग किये गए हों, लेकर मिला लें और आटे की तरह गूँथ लें। इस में 60 से 100 किलो बीज मसल लें, बीज पर इस मिश्रण की परत चढ़ जाएगी। इसमें इतना पानी मिला लें कि सब बीज आसानी से अलग-अलग हो जाएँ।
एक दूसरी विधि-
50 ग्राम चूना 20 लीटर पानी में 24 घंटे के लिये भिगो कर रख दें। ठंडा होने के बाद 5 किलो गोबर और 5 लीटर मूत्र मिला लें। फिर इस घोल में पोटली में बीज बाँधकर कुछ देर डुबोकर निकाल लें। सुखाते समय राख मसलने से भी फायदा होता है। दो लीटर लस्सी या कच्चे दूध में दो सौ ग्राम गुड़ मिलाकर भी बीज उपचार कर सकते हैं। भिगोकर रखने वाले तरीकों से उपचार करते हुए भिगोने के समय का विशेष ख्याल रखना है। यह ध्यान रहे की भीगने और मसलने से बीज की ऊपरी परत ना छिल जाये। धान 14 घंटे, गेहूँ 6 घंटे, चना 4 घंटे, कपास 6 घंटे, बाजरा 5 घंटे, ज्वार 5 घंटे, लोबिया 4 घंटे, मूँग उड़द 3 घंटे तक भिगोया जाना चाहिए। उपचार के बाद बीज छाया में सुखाकर शीघ्र ही बोना चाहिए। पौध को भी इस बीजामृत में डुबाकर रोपाई करें।
8. ज्यादा पानी भी पैदावार घटा सकता है- मुख्य नाले के अलावा किल्ले के अन्दर छोटी नाली बनाकर एक खूड छोड़कर पानी देना सबसे अच्छा रहता है। वरना छोटी-छोटी क्यारी बनाकर पानी लगाना चाहिए। मल्चिंग की हुई/ढँकी हुई जमीन में सिंचाई करने में विशेष ध्यान रखें। पानी तभी दें जब नमी ऊपर से 2-3 इंच नीचे चली जाये।
9. एक फसल न लेकर, मिश्रित खेती करें- केवल गेहूँ बोना न तो पैदावार के लिये का अच्छा है और न खाने के लिये मिश्रित खेती मिट्टी की उत्पादकता बढ़ाने और कीटों का नियंत्रण करने, दोनों में सहायक सिद्ध होती है। वैसे भी हर किसान को कम-से-कम अपने परिवार के काम आने वाली ज्यादा-से-ज्यादा फसलें अपने खेत में उगानी ही चाहिए ताकि कम-से-कम उसके परिवार को तो जहर मुक्त भोजन मिले।
जहाँ तक सम्भव हो सके हर खेत में फली वाली या दलहनी (दो दाने वाली) एवं कपास, गेहूँ या चावल जैसी एक दाने वाली फसलों को मिलाकर बोएँ। दलहनी या फली वाली फसलें नाइट्रोजन की पूर्ति में सहायक होती हैं। इसके अलावा मिश्रित खेती बीमारियों, कीड़ों, मौसम और बाजार की मार से किसानों को बचा सकती हैं। कई किसानों को लगता है कि यह सम्भव नहीं है परन्तु अब कई किसान गेहूँ के साथ 5 से 6 अन्य फसलें (चना, सरसों, धनिया, राजमा, मेथी) ले रहे हैं। केवल सरसों को अलग से काटना पड़ता है बाकी सब इकट्ठी कट जाती हैं।
10. खरपतवार नियंत्रण- अगर खेत में ठीक ढंग से तैयार गोबर की खाद डालेंगे और यूरिया इत्यादि रासायनिक खाद का प्रयोग बन्द कर देंगे तो खरपतवार कम हो जाएगी। वैसे भी खरपतवार तभी नुकसान करती है जब वह मुख्य फसल से ऊपर जाने लगे या उसमें बीज बनने लगे। खरपतवार निकाने के लिये सस्ते औजार उपलब्ध हैं जिनकी सहायता से कम मेहनत से खेत से खरपतवार निकाली जा सकती है। निकालकर भी खरपतवार का खाद के रूप में या भूमि ढँकने में ही प्रयोग करना चाहिए। फेंकना नहीं चाहिए।
11. बीमारियों और कीड़ों से बचाव के देसी तरीके उपलब्ध हैं- इन सब तरीकों को अपनाने से मिट्टी और फसल की ताकत बढ़ेगी। इससे फसल की कीड़ों और बीमारियों से लड़ने की ताकत बढ़ेगी। जहर डालना बन्द करेंगे तो खेत में मित्र कीटों की तादाद बढ़ेगी। मिश्रित खेती भी कीट नियंत्रण में सहायक होती है। फिर भी जरूरत पड़े तो कई घरेलू तरीकों से इलाज किया जा सकता है। एक किलो ताजा गोबर, 5 लीटर मूत्र, 50 ग्राम गुड़ और एक-एक किलो नीम, आक और पापड़ी (करंज) के पत्ते ले लें गोबर और गुड़ को मिला लें और पत्तों को काट लें। सारी सामग्री को मटके में डालकर ढँक कर रख दें। हफ्ते बाद छानकर रख लें और मटके में केवल मूत्र दोबारा डाल लें। इस प्रकार 4 महीने तक छानकर दवाई इकट्ठी की जा सकती है। एक लीटर पानी में 15 से 20 मिली लीटर दवा मिलाकर छिड़काव कर सकते हैं। दवा को बनाकर रखा भी जा सकता है। ऐसे ही कई और तरह की वनस्पति को मिलाकर दवा बनाई जा सकती है। ऐसे सब पौधे जिनको बकरी नहीं खाती या जिनसे दूध नहीं निकलता है या जिन से बदबू आती है या जिन का स्वाद कड़वा है या जो जहरीले हैं जैसे नीम, आक, धतूरा, मेन्थर, गुडम्बा, कुशन्दी, भाँग, सत्याबाशी, कंडाई, बेशरम, बकाण, करंज, अरंड, तुम्बा, गाजर या कांग्रेस घास इत्यादि से भी दवाई बनाई जा सकती है। जल्दी तैयार करने के लिये उबालना होगा। 5 से 10 गुना पानी मिलाकर केवल मूत्र का स्प्रे करने से भी कीट नियंत्रण होता है। 100 लीटर पानी में 10 लीटर खट्टी लस्सी/शीत का घोल फफूँद नाशक और पोषक, दोनों का काम करता है। लस्सी में ताँबे का टुकड़ा डालकर रखने से इसकी ताकत और बढ़ जाती है। इसे बीमारी के लक्षण दिखते ही प्रयोग करना चाहिए। देर करने से प्रभाव कम हो जाता है। सात दिन बाद दोबारा स्प्रे करना भी जरूरी है। इन दवाइयों से बीज उपचार भी किया जा सकता है। ध्यान रहे, रासायनिक स्प्रे के लिये प्रयोग होने वाले पम्प का प्रयोग देसी दवा के स्प्रे के लिये न करें। तेले-चेपे के लिये प्रति एकड़ 5-10 किलो राख का छिड़काव सहायक होता है। लहसुन और तीखी मिर्च को मिलाकर देसी दवाइयों की ताकत और बढ़ाई जा सकती है।
12. खेत में प्रति एकड़ कम-से-कम 5-7 भिन्न-भिन्न प्रकार के पेड़ जरूर हों- खेत के अन्दर पेड़ों की ऊँचाई 5-7 फुट से ज्यादा न होने दें। उनकी काँट-छाँट करके खाद बनाने या भूमि ढँकने के लिये प्रयोग करें। पेड़ों के आस-पास धूप-छाँव चाहने वाली फसलें (हल्दी, अदरक, लोबिया, पेठा, धनिया, पुदीना, पपीता, अरबी, मूँगफली, बेल वाली सब्जियाँ।) ले सकते हैं। सहजन का पेड़ या अन्य जल्दी बढ़ने वाले पेड़ जरूर लगाएँ। अगर पूरे खेत की हरी बाड़ हो जाये तो बहुत अच्छा रहता है। वैसे भी अपने खेत के पानी और मिट्टी को अपने खेत में बनाए रखना जरूरी है।
ये सब तरीके अपनाएँगे तो आपके खेत में केंचुए और अन्य सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ जाएगी और मिट्टी की उत्पादन क्षमता मिट्टी में जीवों की संख्या पर ही निर्भर करती है। ये तो कुछ बातें हैं। खेती बहुत विशाल क्षेत्र है और इसमें कई किस्म के प्रयोग किये जा रहे हैं। जैसे एक साल पुराने गोसों को 50 लीटर पानी में भिगोकर रखे दें। 4 दिन बाद गोसे निकाल कर फिर सुखा लें। गोसों का पानी प्रति टंकी 2 लीटर मिलाकर एक एकड़ में स्प्रे करें। 300 ग्राम कच्ची सब्जियों के छिलके जिन में प्याज, लहसुन, मिर्च न हो को 50 ग्राम गुड़ के साथ एक लीटर पानी में मिलाकर बोतल को बन्द कर दें। प्रतिदिन थोड़ा सा ढक्कन खोलकर गैस बाहर निकाल दें। ऐसा एक महीने तक करना होगा। फिर अगले 2 महीने बोतल को रखा रहने दें। इसको छान कर दवाई निकाल लें। इसके बाद एक लीटर पानी में एक ढक्कन दवाई मिलाकर छिड़काव करना फसल की बढ़वार बढ़ाता है। धान की फसल भी बिना खड़े पानी के लेने से पैदावार ज्यादा मिलती है।
इन तरीकों को अपना कर जरूर देखें, चाहे जमीन के थोड़े से हिस्से पर प्रयोग करें। अगर कर्ज, खर्च और जहर से मुक्ति चाहिए तो ये तरीके अपनाने जरूरी हैं। कुदरती खेती के मूल सिद्धान्तों को अपनाते हुए खुद के प्रयोग करें और किसान-वैज्ञानिक बनें। असली रास्ता यही है क्योंकि मुनाफे के लिये काम करने वाली कम्पनियाँ तो ऐसे बिना खर्चे के तरीके आपको बताने से रही।
कुदरती खेती है जीवन की नई राह
कुदरती खेती आत्मनिर्भर गाँव की नींव बन सकती है। गाँव का पैसा गाँव में रह सकता है। इससे किसान एक अच्छा और स्वस्थ जीवन जी सकता है परन्तु खेती का कोई भी तरीका भ्रष्ट तरीकों से, टैक्स की चोरी से की गई कमाई वाली जीवनशैली नहीं दे सकता। यह हमें तय करना है कि क्या हम आज की आपाधापी और असुरक्षा वाला जीवन चाहते हैं या हमें नए सुकून भरे रास्तों की तलाश है।
1. किसान को बाजार की जकड़न से बचाना है ताकि वह अपनी शर्तों पर, जब चाहे तब अपनी फसल बेच सके।
2. अपने आस-पास से देसी बीज, पशुओं की देसी नस्लों, नुस्खों, फसल मिश्रण एवं अन्य ज्ञान को इकट्ठा करना है ताकि ऐसा न हो कि हमारे बुजुर्गों के जाने के साथ ही यह ज्ञान भी खत्म हो जाये।
3. खेती-किसानी को बचाएँ, किसान को खुशहाल बनाएँ और एक बेहतर समाज की नींव रखें।
4. कुदरती खेती अपनाएँ ताकि गाँव का पैसा गाँव में रहे।
5. कुदरत के साथ जीना है, कुदरत से लड़कर नहीं।
कुदरती खेती का यह काम बिना किसी बाहरी पैसे के आपस के चन्दे से समाज सुधार के नजरिए से हो रहा है। इसमें सहयोग करें। अपनी राय और अपने अनुभव हमें जरूर बताएँ। अगर ऐसी खेती देखना चाहते हैं, प्रशिक्षण लेना चाहते हैं, अपने गाँव में बैठक करवाने के लिये, बड़ी पुस्तिका की प्रति के लिये, जरूरत के नए औजारों या अन्य किसी सहायता लेने-देने के लिये सम्पर्क करेंः
कुदरती खेती अभियान के संयोजकः
उदयभान सपुत्र श्री लखमीचन्द,
गाँव व डाकखाना बेलरखां,
तहसील नरवाना, जींद,
मोबाइल - 9416561553
सह संयोजक
नरेश बल्हारा (रोहतक)
मोबाइल - 9215807944
सलाहकार
राजेन्द्र चौधरी,
भूतपूर्व प्रोफेसर, अर्थशास्त्र विभाग,
महर्षि दयानन्द विश्विविद्यालय, रोहतक, निवासः 904, भूमितल, सेक्टर 3,
रोहतक 124001
फोनः 9416182061
rajinderc@gmail.com,
अन्य सम्पर्क सूत्र तेज सिंह डीघल
(झज्जर)
मोबाइल - 9812705504,
महेन्द्र सिंह
(खोरी सेंटर, रेवाड़ी)
मोबाइल - 9728134481,
नारायण सिंह
(लाखनमाजरा)
मोबाइल - 9416162230,
भीम सिंह सहलंगा
(झज्जर)
मोबाइल - 9812177231, 9466418267,
फूल कुमार,
भैंणी मातो (रोहतक)
मोबाइल - 9468245297.
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