मास्को की यात्रा से लौटते हुये प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जब यह कहा कि कुडनकुलम परमाणु संयंत्र को दो सप्ताह के भीतर चालू कर लिया जायेगा तो क्या इसका मतलब यह निकाला जाये कि वहां मछुआरों द्वारा चलाया जा रहा आंदोलन खत्म हो गया ? इस सवाल का जवाब अगर गृहमंत्री पी. चिदंबरम से पूछेंगे तो वह भी प्रधानमंत्री की तर्ज पर यही कहेंगे कि कुडनकुलम परमाणु उर्जा संयंत्र परियोजना पर जब देश ने 14 हजार करोड़ रुपये लगा दिए हैं, तो इसे बेकार पड़े नहीं रहने दिया जा सकता। इस परियोजना के खिलाफ आंदोलन में अति हो गई है और यह भी कि संयंत्र की सुरक्षा को लेकर चिंतित लोगों में अंतत: सद्बुद्धि आएगी। लेकिन सच पूछें तो इस सवाल का ठीक-ठीक जवाब तो इस संयंत्र के खिलाफ प्रदर्शनकारियों के संगठन केएनपीपी से जुड़े लोग ही दे सकते हैं, जो मनमोहन सिंह की घोषणा के बाद गुस्से में हैं।
अभी अधिक समय नहीं हुआ, जब तमिलनाडु के कुडनकुलम परमाणु संयंत्र को लेकर भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का बयान मीडिया में आया था। एपीजे कलाम का बयान था कि कुडनकुलम परमाणु संयंत्र पूरी तरह सुरक्षित है। इसके अलावा ढ़ेर सारे लुभावने दावे भी थे- दस हजार स्थानीय युवकों को, तीस किलोमीटर लंबी फोर लेन सड़क का आश्वासन, स्थानीय लोगों के लिये विश्वस्तरीय अस्पताल का लालीपॉप, 25 फीसदी सब्सिडी पर युवाओं को ऋण सुविधा, मछली पकड़ने वालों के लिए मोटर बोट, कोल्ड स्टोर और ठहरने के लिए लॉजिंग की सुविधा, सभी गांव वालों के लिए इंटरनेट के ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी की सुविधा, पांच बड़े स्कूल हॉस्टल की सुविधा... और जाने क्या-क्या। कलाम साहब के बयान के बाद भी लगा था कि अब कुडनकुलम परमाणु संयंत्र को लेकर सरकार का रास्ता साफ हो गया है लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
अब मनमोहन सिंह के बयान के बाद भी कुडनकुलम परमाणु संयंत्र का विरोध कर रहे लोग कमर कस कर मोर्चे पर एक अच्छे सिपाही की तरह डटे हैं। इन सिपाहियों को पता है कि अभी लड़ाई की शुरुवात है और लड़ाई देश की सरकार से है, ऐसे में लड़ाई का परिणाम कुछ भी हो सकता है। लेकिन वे जानते हैं कि उनके हिस्से में अब अपने हक के लिये केवल लड़ना लिखा है।
कुडनकुलम में एनपीसीआईएल रूसी तकनीक की मदद से हजार-हजार मेगावाट वाले दो परमाणु रिएक्टर तैयार कर रहा है। पहले यूनिट का काम दिसम्बर से शुरू होने की संभावना है। चेन्नई से छह सौ पचास किलोमीटर की दूरी पर प्रारंभ हो रहे इस परियोजना पर लगभग तेरह हजार करोड़ रुपए खर्च होने वाले हैं।
कुडनकुलम से तीन किलोमीटर दूर के गांव इडीनथाकराई से आए मुरूगन आंदोलन में सक्रिय कार्यकर्ता की भूमिका में हैं। एक सितम्बर से ही प्रारंभ हुआ यह आंदोलन जल्दी किसी नतीजे पर पहुंचेगा, इसकी उम्मीद आंदोलन में शामिल लोगों को भी नहीं है।
मुरूगन की रोजी रोटी मछली पकड़ने से चलती है लेकिन जबसे आंदोलन शुरू हुआ है, कई बार वे कई-कई दिनों तक मछली पकड़ने नहीं जा पाये हैं। उनका दिल वहां नहीं लगता, काम में दिल ना लगने की एक वजह और है। उनका गांव इडीनथाकराई इस परमाणु परियोजना से लगा हुआ सबसे नजदीक का गांव है, जहां इस परियोजना को लेकर बेहद दहशत का माहौल है।
मुरूगन अब मरते दम तक परियोजना के खिलाफ लड़ने को कमर कस चुके हैं। वे बहुत भोलेपन के साथ सवाल पूछते हैं- “आज जब तमाम विकसित देश परमाणु ऊर्जा के विकल्प को लेकर विचार कर रहे हैं तो हमारा देश क्यों खतरा मोल ले रहा है?”
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और आंदोलनकारियों ने जो मोहलत दी है, उसकी तारीख लगभग एक है। ऐसे में कुडनकुलम परमाणु संयंत्र के मामले में यह फैसला महत्वपूर्ण होगा कि भारत के इस लोकतंत्र में लोक अपने हक की बाजी मारेगा या लोक की भलाई का दावा करने वाला तंत्र !
मुरूगन को यह भी पता है कि फ्रांस ने आने वाले कुछ सालों में अपने सारे न्यूक्लियर पावर प्लांट की गतिविधियों को धीरे-धीरे कम और फिर खत्म करने का निर्णय ले लिया है। इलाके के लोगों को इस बात का भी मलाल है कि सितंबर में 10 दिन तक अनशन के बाद राज्य की मुख्यमंत्री जयललिता ने लोगों को जितने भी आश्वासन दिये थे, उसका कोई परिणाम सामने नहीं आया। यहां तक कि कुडनकुलम में परमाणु संयंत्र स्थगित करने को लेकर तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने प्रधानमंत्री को पत्र भी लिखा था लेकिन जयललिता की चिट्ठी प्रधानमंत्री कार्यालय में अनसुनी रह गई।
इस परमाणु संयंत्र के खिलाफ आंदोलन में शामिल लोग रुस के चर्नोबिल और जापान के फूकूसिमा का जिक्र करते हुये यह बताना नहीं भूलते कि भोपाल में यूनियन कार्बाइड प्लांट के पीड़ितों को पच्चीस साल गुजर जाने के बाद भी न्याय नहीं मिला। पुराने अनुभव इतने अच्छे नहीं हैं कि नए सिरे से कोई नया जोखिम लिया जा सके। आंदोलन से जुड़े लोगों का स्पष्ट मानना है कि यह लड़ाई वे खुद के लिए नहीं, बल्कि अपनी आने वाली अगली पीढ़ी के लिए लड़ रहे हैं। अपने बच्चों के लिए उनकी कुछ जिम्मेवारी है, उसे निभाते हुए राह में कुछ मुश्किलें भी आएं तो उसकी परवाह नहीं है।
इसे इस बात से और गहराई से समझा जा सकता है कि आंदोलन से जुड़े सैकड़ों लोगों पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया, बहुत से लोगों को जेल भी लेकर गई। पुलिस को उम्मीद रही होगी कि लोग इस तरह टूट जाएंगे, बिखर जाएंगे और इससे आंदोलन कमजोर पड़ेगा। लेकिन सच्चाई यह है कि इस सबके बावजूद आंदोलन से जुड़े लोग पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।
अधिकांश गांव वालों को इसी बात की चिंता है कि फूकूसिमा की घटना एक बार फिर कुडनकुलम में ना दोहरा दी जाए। उनको इस बात का भी डर है कि इस प्लांट से कहीं उनके समुद्र किनारे की जिन्दगी ना प्रभावित हो। लेकिन इस संयंत्र से जुड़े अधिकारी दावा कर रहे हैं कि कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र परिसर में सुरक्षा के सारे इंतजाम पुख्ता हैं, इसलिए डरने की कोई खास बात नहीं है।
लेकिन संयंत्र के अधिकारियों से इतर गांव वालों के भीतर डरने के कई कारण मौजूद हैं। आस-पास के इलाके में संयंत्र द्वारा किये गये उस मॉक ड्रील के बाद भय का माहौल बढ़ा है, जिसमें गांव वालों को चेहरा और मुंह ढ़ककर भागने को कहा गया। न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया ने एक लंबी सूची भी जारी की, कि क्या करें और क्या ना करें? गांव के लोगों का तर्क है कि यदि सारी चीजें इतनी साफ और सुरक्षित हैं तो फिर इस मॉक ड्रील की आवश्यकता ही क्यों पड़ी?
इस परमाणु संयंत्र के पास ही पेरूमनाल नामक मछुआरों की एक बस्ती है, जहां लगभग पांच हजार परिवार रहते हैं। इस बस्ती के लोगों की चिंता यही है कि अगर इस परियोजना का असर समुद्र पर पड़ा तो उनकी रोजी-रोटी का क्या होगा ?
देश की सुरक्षा एवं गुप्तचर एजेंसियों के हवाले से यह खबर आ रही है कि कुडनकुलम में चल रहे आंदोलन के पीछे विदेशी पैसा और रोमन कैथोलिक चर्च का हाथ है। लेकिन आंदोलन का नेतृत्व इसे धर्म पर आधारित नहीं, बल्कि मुद्दों पर आधारित आंदोलन मानता है, जिसमें सभी समाज, जाति और धर्म के लोगों की सहभागिता है।
आंदोलन को नेतृत्व दे रहे स्कूल शिक्षक एसपी उदयकुमार पिछले दस से अधिक सालों से इसी क्षेत्र में विभिन्न सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय हैं। वह मानते हैं कि कुडनकुलम के आंदोलन को कमजोर करने के लिए इसे ईसाई मिशनरी से जोड़ा जा रहा है। उनका दावा है कि आंदोलन ने आज तक किसी एनजीओ से एक पैसा नहीं लिया है और यह सच्चे अर्थों में जनता का आंदोलन है। जनता के इस आंदोलन ने मनमोहन सिंह के बयानों के बाद अपनी ओर से भी बयान जारी किया है- इस परमाणु संयंत्र में रखे यूरेनियम 31 दिसंबर तक नहीं हटाये गये तो आंदोलन और तेज़ होगा।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और आंदोलनकारियों ने जो मोहलत दी है, उसकी तारीख लगभग एक है। ऐसे में कुडनकुलम परमाणु संयंत्र के मामले में यह फैसला महत्वपूर्ण होगा कि भारत के इस लोकतंत्र में लोक अपने हक की बाजी मारेगा या लोक की भलाई का दावा करने वाला तंत्र !
-साभार - रविवार.कॉम
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