सारांश:
चार विभिन्न पौधों यथा मधुमालती (क्विसक्वैलिस इंडिका), आक (कैलोट्रॉपिस प्रोसेरा), लटजीरा (एकीरैन्थीज एस्पेरा) एवं तुलसी (ओसीमम सैंक्टम) की पत्तियों के सत्त की जीवाणुरोधी व कवकरोधी गतिविधियों की दस सूक्ष्मजीवों में शामिल पाँच जीवाणु (बेसिलस सब्टिलिस, एन्टीरोबैक्टर एरोजीन्स, ई. कोलाई, क्लैबसिएला न्यूमोनी, स्यूडोमोनास ऐरुजिनोसा) और पाँच कवक (ऑल्टरनेरिया पोरी, ऐस्परजिलस फ्लेवस, ऐस्परजिलस नाइजर, ऐस्परजिलस औराइज़ी, पेनिसीलियम क्राइसोजिनम) के विरुद्ध अगर प्रसार विधि (वेल डिफ्यूजन मैथड) द्वारा जाँच करने के लिये कोडोन बायोटेक प्राइवेट लिमिटेड, नोएडा की प्रयोगशाला में एक अध्ययन किया गया। अंतः पात्र अध्ययन से पता चला कि मीथेनॉल सत्त जलीय सत्त से अधिक प्रभावी था। मधुमालती और लटजीरा की पत्तियों का सत्त कवक प्रजातियों के विरुद्ध अधिक प्रभावी पाया गया। इसके विपरीत आक और तुलसी की पत्तियों का सत्त जीवाणु प्रजातियों के विरुद्ध अधिक प्रभावी पाया गया।
Abstract
A study was conducted to investigate and compare antibacterial and antifungal activity of leaf extract taken from four different plants, i.e. Quisqualis indica L., Calotropis procera Ait., Achyranthes aspera L. and Ocimum santum L. against ten micro-organisms comprising five bacteria (Bacillus subtilis, Enterobacter aerogenes, Escherichia coli, Klebsiella pneumoniae, Pseudomonas aeruginosa) and five fungi (Altrenaria porri, Aspergillus flavus, Aspergillus niger, Aspergillus oryzae, Penicillium chrysogenum) using well diffusion method. The in vitro study revealed that methanol extract was more effective than aqueous extract. Leaf extracts of Quisqualis indica L. and Achyranthes aspera L. was reported to be more effective on fungal species whereas the leaf extracts of Calotropis procera Ait. And Ocimum sanctum L. were found to be more effective on bacterial species.
प्रस्तावना
बहुत पुराने समय ये यह ज्ञात है कि पौधों में औषधीय गुण पाए जाते हैं। पौधों से प्राप्त विभिन्न सत्त (निष्कर्ष) संभावित रोगाणुरोधी स्रोत के रूप में उपयोग में लाए जाते हैं और यह एक अत्यंत रुचि का क्षेत्र है। पौधों में उपस्थित जैविक रूप से सक्रिय यौगिकों के बारे में जानने की हमेशा से इस क्षेत्र में कार्य कर रहे वैज्ञानिकों की रुचि रही है। हाल के वर्षों में, पौधों के मूल्यांकन करने के लिये विभिन्न आम रोगजनकों के खिलाफ पौधों की जीवाणुरोधी और कवकरोधी गतिविधि बढ़ रही है। पौधों के तना, जड़, छाल, पत्ते सहित सभी भाग रोगाणुरोधी गुण रखते हैं। रोगाणुरोधी पदार्थ वे पदार्थ होते हैं जो कि सूक्ष्मजीवों के विकास और अस्तित्व को रोकते हैं। ये सूक्ष्म जीव रोगजनक और गैर-रोगजनक हो सकते हैं, इसलिए विभिन्न बीमारियों के उपचार में रोगाणुरोधी पदार्थों का प्रयोग होता है। रोगाणुरोधी पदार्थ काफी बड़ी संख्या में पाए जाते हैं और ये विभिन्न-विभिन्न स्रोतों जैसे कि रोगाणुओं, पौधों, जानवरों और रसायनों से प्राप्त होते हैं।मधुमालती, कॉम्ब्रीटेसी परिवार से संबंधित, बाहरी उद्यान के लिये एक उत्कृष्ट बेल है। इसे सामान्यतः रंगून लता के रूप में जाना जाता है अभी तक इस पौधे पर ज्यादा अनुसंधान कार्य की रिपोर्ट उपलब्ध नहीं है इसके बीज और पत्तियाँ चिकित्सीय उद्देश्यों में शामिल एंटीजैलमिंटोजीन टूल्स, विशेष रूप से टेपवर्म के विरुद्ध साथ ही में एक शामक के पेट दर्द दस्त, जुकाम, त्वचा परजीवी के रूप में और रिकेटसिआ के विरुद्ध सफलतापूर्वक उपयोग में लाए जाते हैं।
यह एस्क्लेपीडिएसी परिवार से संबंधित है और व्यापक रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में वितरित है। यह पौधा सीधा, लंबा, बड़ा अधिक शाखायुक्त और दूधिया लेटेक्स (शोणित) के साथ सदाबहार होता है। भारत में इसकी छाल व जड़ का स्राव त्वचा रोग और पेट के कीड़ों के उपचार में प्रयोग किया जाता है।
लटजीरा, एमारेन्थेसी परिवार के अंतर्गत आता है। यह एक वार्षिक सीधे तने वाला औषधीय पौधा है जो कि सामान्यतः भारत में एक घास के रूप में पाया जाता है और बुखार, पेचिश और शुगर के उपचार के लिये पारंपरिक दवा के रूप में प्रयोग होता है।
इथेनॉल सत्त उच्च लार्वीसाइड गतिविधि दर्शाता है, साथ ही पौधों की पत्तियों और तने के सत्त से कुछ सूक्ष्मजीवों के विकास में बाधा पहुँचाने की रिपोर्ट दर्ज है।
ओसीमम सैंक्टम सामान्यतः तुलसी के रूप में जाना जाता है और यह लैमीएसी परिवार से संबंधित, प्रमुख औषधीय जड़ी-बूटी है। यह भारतीय मूल का पौधा है और अपने धार्मिक मूल्य से अलग प्राचीन काल से ही आयुर्वेदिक चिकित्सा में प्रयोग किया जाता रहा है। यह जड़ी-बूटी मधुमेह, गठिया, ब्रोंकाइटिस, गले के संक्रमण, त्वचा रोग आदि से लेकर अनेक बीमारियों के लिये प्रयोग होती है। इसके रोगाणुरोधी गुणों का विभिन्न सूक्ष्मजीवों के विपरीत परीक्षण किया गया है।
सामग्री एवं विधि
मधुमालती (क्विसक्वैलिस इंडिका), आक (कैलोट्रॉपिस प्रोसेरा), लटजीरा (एकीरैन्थीज एसपेरा), तुलसी (ओसीमम सैंक्टम) के ताजा पौधे नोएडा और ग्रेटर नोएडा के विभिन्न भागों से अक्रमतः एकत्र किए गए थे।इन पौधों के औषधीय गुणों को ध्यान में रखते हुए उनकी पत्तियों के सत्त के जीवाणुरोधी गुणों का दस सूक्ष्मजीवों में शामिल पाँच जीवाणु (बैसीलस सब्टिलिस, एन्टीरोबैक्टर एरोजीन्स, ई. कोलाई, क्लैबसिएला न्यूमोनी, स्यूडोमोनास ऐरुजिनोसा) और पाँच कवक (अॅाल्टरनेरिया पोरी, ऐस्परजिलस फ्लेवस, ऐस्परजिलस नाइजर, ऐस्परजिलस औराइज़ी पेनिसीलियम क्राइसोजिनम) के विपरीत तुलनात्मक अध्ययन किया गया।
निष्कर्ष प्रक्रियाएँ: (क) 20 प्रतिशत जलीय सत्त निकालने के लिये 2 ग्राम हवा में सुखाए पौधे को मूसल और मोर्टार में दस मिली. पानी में पीसा गया। वाटमान फिल्टर पेपर नम्बर 1 का उपयोग कर सत्त (निष्कर्ष) को छान लिया गया। (ख) 20 प्रतिशत एल्कोहॉल सत्त निकालने के लिये 2 ग्राम हवा के सूखे पौधे को मूसल और मोर्टार में 20 मिली. मिथाइल एल्कोहॉल में पीसा गया और 2-3 दिनों के लिये मिथाइल एल्कोहॉल के सम्पूर्ण वाष्पीकरण के लिये ओवन में सुखाया गया। सूखे मिश्रण में 10 मिली. मिथाइल एल्कोहॉल मिलाकर वाटमान फिल्टर पेपर नंबर 1 से फिल्टर किया गया था। छनित्र (फिल्टरेट) को एकत्रित करके 40C में जीवाणुहीन ट्यूबों में फिल्टर किया गया।
टेस्ट जीवों की तैयारी: इस अध्ययन में प्रयोग परीक्षण जीवों के रूप में दस सूक्ष्मजीवों में सम्मिलित पाँच जीवाणु (बैसीलस सब्टिलिस, एन्टीरोबैक्टर एरोजीन्स, ई. कोलाई, क्लैबसिएला न्यूमोनी, स्यूडोमोनास ऐरुजिनोसा) और पाँच कवक (अॅाल्टरनेरिया पोरी, ऐस्परजिलस फ्लेवस, ऐस्परजिलस नाइजर, ऐस्परजिलस औराइज़ी पेनिसीलियम क्राइसोजिनम) अध्ययन किया गया। सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली से प्राप्त किए गए। जीवाणुओं और कवकों के टाइप कल्चर क्रमशः पेाषक तत्व अगर (न्यूट्रिऐंट अगार मीडिया) और आलू डेक्सट्रोज अगर (पोटेटो डेक्सट्रोज) पर संरोपित (सबकल्चर) किये गये थे। जब तक अध्ययन के लिये आवश्यक थे, 40C पर संग्रहित किये गए।
रोगाणुरोधी गतिविधि परीक्षण: जीवाणुरोधी गतिविधि का आकलन करने के लिये 0.6 मिली मानकीकृत जीवाणु शेयर निलंबन (बैक्टीरियल स्टॉक सस्पेंशन) 60 मिली जीवाणुहीन पोषक तत्व अगर के साथ मिलाया गया। 20 मिली. संरोपित पोषक तत्व अगर जीवाणुहीन पेट्री डिश में वितरित किया गया। डिश को कम से कम मिनट तक सुखाया गया। प्रत्येक थाली में 10 मिमी. व्यास के कूपक एक जीवाणुहीन छिद्रक के द्वारा (कॉर्क बॉरर नंबर 4) बनाये गये। अगर सतह से सत्त के प्रसार को रोकने के लिये एक बूँद पोषक तत्व अगर से कूपक की सतह को बंद किया गया। चार में से तीन कूपकों में 0.1 मिली जीवाणुहीन जल/एल्कोहॉल डाला गया और नियंत्रित के रूप में चिन्हित किया गया। फिर प्लेटो को 370C पर रात भर संरोपण किया गया। कूपक के आस-पास के निषेध क्षेत्र की उपस्थिति इस गतिविधि का सबूत था। प्रत्येक परीक्षण तीन बार दोहराया गया और नियंत्रण की तुलना में, पौधों के सत्त द्वारा उत्पादित निषेध क्षेत्रों के व्यास का मध्यमान जीवाणुरोधी गतिविधि के रूप में व्यक्त किया गया। जीवाणुओं के समान यह विधि कवक प्रजातियों के लिये भी अपनायी गई। पोषक तत्व अगर के स्थान पर पोटेटो डेक्सट्रोज अगर का प्रयोग किया गया।
परिणाम एवं विवेचना
चार विभिन्न पौधों की पत्तियों से प्राप्त सत्त से जीवाणुरोधी और कवकरोधी गुणों का सूक्ष्मजीवों पर परीक्षण किया गया और परिणामों को सारणी 1 में दर्शाया गया। परीक्षण में सूक्ष्मजीवों की विभिन्न डिग्री के साथ रोगाणुओं के विरुद्ध विकास के निषेध का अध्ययन किया गया। पौधों से निष्कर्षित यौगिकों की सफल भविष्यवाणी निष्कर्षण प्रक्रिया में प्रयोग विलायक के प्रकार पर निर्भर है। पारंपरिक चिकित्सक पानी का विलायक के रूप में प्रयोग करते थे। लेकिन पहली टिप्पणी (सारणी 1) से पता चलता है कि इन पौधों से रोगाणुरोधी पदार्थ निकालने के लिये मीथेनॉल, पानी की तुलना में एक बेहतर विलायक है। यह सक्रिय यौगिकों के कार्बनिक विलायकों की तुलना में बेहतर घुलनशीलता के कारण हो सकता है।
मधुमालती की पत्तियों का एल्कोहॉलिक सत्त रोगाणुरोधी गतिविधि की तुलना में कवकरोधी गतिविधि में अधिक प्रभावी था। ऑल्टरनेरिया पोरी और पेनिसीलियम क्राइसोजिनम के विरुद्ध उच्चतम गतिविधि (21 मिमी.) और निम्नतम गतिविधि (11 मिमी.) एन्टीरोबैक्टर एरोजीन्स के विरुद्ध पायी गई। जबकि इसके विपरीत, आक की पत्ती का एल्कोहॉलिक सत्त बैक्टीरियल प्रजातियों के खिलाफ अधिक प्रभावी पाया गया जो कि क्लैबसिएला न्यूमोनी के विरुद्ध अधिकतम (15 मिमी.) और न्यूनतम (06 मिमी.) ऐस्परजिलस प्रजाति के विरुद्ध पायी गई। जब पत्ती के सत्त स्थान पर दूसरे सत्त का विभिन्न सूक्ष्मजीवों के विरुद्ध उपयोग किया गया तो इसी प्रकार के परिणाम प्राप्त हुए।
लटजीरा का जलीय और एल्कोहॉलिक सत्त सूक्ष्मजीवों के विरुद्ध अत्यधिक प्रभावी था। मीथेनॉलिक सत्त कवक प्रजातियों के विपरीत अत्यधिक प्रभावी था। ऑल्टरनेरिया पोरी और पेनिसीलियम क्राइसोजिनम के विपरीत अधिकतम गतिविधि (20 मिमी.) और जीवाणु ई. कोलाई के खिलाफ न्यूनतम (12 मिमी.) पायी गई। प्राप्त परिणाम कवक विकास पर बताये गये पहले अवलोकन द्वारा समर्थित थे। तुलसी के जलीय और एल्कोहॉलिक सत्त में सभी पत्तियों के सत्त से निम्नतम जीवाणुरोधी और कवकरोधी गतिविधि पाई गई। पत्ती के सत्त का जीवाणुरोधी प्रभाव का परीक्षण एक विशेष एकाग्रता में किया गया था।
सारणी 1 - अगर प्रसार विधि द्वारा विभिन्न पौधों की पत्तियों के जलीय तथा मिथेनॉलिक सत्त की जीवाणुरोधी और कवकरोधी गतिविधियों का अंतः पात्र अध्ययन | ||||||||
| क्विसक्वैलिस इंडिका | कैलोट्रॉपिस प्रोसेरा | एकीरैन्थीज एस्पेरा | ओसीमम सैंक्टम | ||||
टेस्ट प्रजातियाँ | ज.स. | मि.स. | ज.स. | मि.स. | ज.स. | मि.स. | ज.स. | मि.स. |
निषेध जोन (मिमी.) जीवाणु प्रजातियाँ बैसिलस सब्टिलिस | 16 | 18 | 13 | 15 | 13 | 15 | 06 | 08 |
एन्टीरोबैक्टर एरोजीन्स | 09 | 11 | 10 | 12 | 12 | 13 | 05 | 07 |
ई. कोलाई | 14 | 17 | 08 | 10 | 10 | 12 | 04 | 06 |
क्लैब्सिएला न्यूमोनी | 12 | 15 | 12 | 14 | 13 | 14 | 05 | 07 |
स्यूडोमोनास ऐरुजीनोसा | 13 | 15 | 06 | 08 | 12 | 14 | 04 | 05 |
कवक प्रजातियाँ ऑल्टरनेरिया पोरी | 20 | 21 | 06 | 07 | 18 | 20 | 04 | 05 |
ऐस्परजिलस फ्लेवस | 17 | 19 | 04 | 06 | 17 | 19 | 03 | 05 |
ऐस्परजिलस नाइजर | 15 | 17 | 04 | 06 | 18 | 19 | 04 | 06 |
ऐस्परजिलस औराइज़ी | 16 | 18 | 04 | 06 | 20 | 21 | 03 | 04 |
ऐस्परजिलस क्राइसोजिनम | 18 | 21 | 06 | 08 | 18 | 20 | 04 | 06 |
ज.स. - जलीय सत्त मि.स.- मिथेनॉलिक सत्त |
विभिन्न एकाग्रता स्तर पर तुलसी की जीवाणुरोधी गतिविधि कुछ हद तक कवकरोधी गतिविधि में अपेक्षाकृत अधिक पायी गई थी।
जाँच के उद्देश्य से किये गये जीवाणुरोधी परीक्षण के अनुसार ग्राम पॉजिटिव बैक्टीरिया सब्टीलिस, ग्राम नैगेटिव बैक्टीरियल प्रजातियों की तुलना में अत्यधिक संवेदनशील पाए गए। ऐसा ग्राम पॉजीटिव और ग्राम निगेटिव बैक्टीरिया के बीच सेल वाल संरचनाओं में अंतर के कारण हो सकता है। ग्राम निगेटिव बैक्टीरिया की बाहरी झिल्ली एंटीबायोटिक सहित कई र्प्यावरणीय पदार्थों, के लिये एक बाधा के रूप में कार्य करता है।
समग्र तुलनात्मक अध्ययन से पता चलता है कि पत्ती का मीथेनॉल सत्त बैसिलस सब्टीलिस के लिये अधिकतम जीवाणुरोधी गतिविधि और ऑल्टरनेरिया पोरी, ऐस्परजिलस ओराइजी और पेनिसिलियम क्राइसोजिनम के लिये अन्य फंगल प्रजातियों की तुलना में अधिकतम कवकरोधी गतिविधि गुणों वाला है।
विभिन्न पौधों की पत्तियों की जीवाणुरोधी और कवकरोधी गतिविधियों के इन रोगाणुओं के विपरीत तुलनात्मक विश्लेषण से ज्ञात हुआ है कि इन पौधों में नए रोगाणुरोधी एजेंटों के विकास और बाहर ले जाने के लिये आगे औषधीय मूल्यांकन के लिये विकल्प एंटीबायोटिक पदार्थ की खोज की संभावना है।
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सम्पर्क
शुभदा कपिल, श्वेता सांगुरी, पूर्णिमा गोपीनाथन, एफ के पांडे एवं तृप्ति भटनागर Shubhada Kapil, Sweta Sanguri, Purnima Gopinathan, FK Pandey & Tripti Bhatnagar
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