प्रकृति ने हमें कश्मीर के रूप में प्राकृतिक सौन्दर्य का एक अनुपम उपहार दिया है। 1,01,387 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले इस राज्य की हसीन वादियाँ दुनिया भर के लोगों के लिये सदियों से आकर्षण का केन्द्र रही हैं। बर्फ से ढकी पर्वत घाटियाँ, झरनों, हरे-भरे बागानों, चमकती झीलें व चिनार के पेड़ों के सौन्दर्य का अद्भुत नजारा देखते ही बनता है। जम्मू कश्मीर राज्य में लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर है, यहाँ बोली जाने वाली प्रमुख भाषा ऊर्दू है तथा कश्मीरी, डोगरी, हिन्दी, पंजाबी, लद्दाखी आदि भाषाएँ भी बोली जाती हैं। यहाँ मुगल बादशाहों द्वारा निर्मित बाग-बगीचे अपनी सुन्दरता के लिये विश्व प्रसिद्ध है। बर्फ से ढकी इन खूबसूरत वादियों में आकर किसी का भी मन भाव विभोर हुए बिना नहीं रह सकता। प्रस्तुत है कश्मीर के कुछ खास चश्मों के फोटो चित्र...
कोकरनाग
स्थान- कश्मीर, श्रीनगर से 79 किलोमीटर दूर यह पापशोधन नाद या पाप-धोने के झरने के नाम से भी जाना जाता है।
ऊँचाई- 20.12 मीटर
घर- एक बोटेनिकल गार्डन और रोज गार्डन
महान मुगल इतिहासकार अबुल फाजी ने मीठे पानी के इस झरोखे को लिपिबद्ध किया था। प्रकृति के इस अमूल्य तोहफे को आज भी दिव्य माना जाता है। कई बीमार व्यक्तियों का इसके पानी के द्वारा इलाज किया जाता है। इसी वजह से कोकरनाग को ‘पापशोधन नाग’ या ‘पाप-धोने’ वाले झरने के नाम से जाना जाता है।
कोकरनाग जो कि श्रीनगर से 79 किलोमीटर की दूरी पर स्थिति है। इसकी ऊँचाई 20.12 मीटर है। इस पर एक बोटेनिकल व रोज गार्डन बने हुए हैं, जिसमें लगे कई तरह के फूल और पेड़ वातावरण में सुगन्ध बिखेर रहे हैं। यह झरना घने जंगलों के बीच से निकलता है और आगे जाकर कई धाराओं में बँट जाता है, धाराओं में बँटने से यह मुर्गे के पंजे समान की आकृति बनाता है। इसी वजह से इसका नाम कोकरनाग पड़ा है।
कोकरनाग, अपने साफ पानी, खुशबू और अपने बागों के शान्त सौन्दर्य की वजह से सभी झरनों में सबसे मनोहर है।
यहाँ रहने के लिये उचित दर पर कॉटेज उपलब्ध है। इसके नजदीक घूमने की जगहों में शामिल हैं- ढकसुम, अच्छबाई और वेरीनाग।
वेरीनाग
स्थान- जिला कोठार, पश्चिम पूर्वी कश्मीर में 78 किलोमीटर अनन्तनाग होते हुए कश्यप ऋषि के पुत्र नीला नाग के नाम पर रखा गया।
पुनर्निर्माण- 1620 में बादशाह जहाँगीर वेरिनाग द्वारा
भारत के बड़े झरनों में से एक, वेरीनाग कोठार जिले में स्थित है। यह कश्मीर में 78 किलोमीटर पश्चिम में (वाया अनन्तनाग) स्थित है। जम्मू-श्रीनगर हाइवे के द्वारा यहाँ तक आसानी से पहुँचा जा सकता है।
कश्यप ऋषि के पुत्र के नाम पर इसका नामकरण हुआ है जिन्होंने इस घाटी का पुनर्निर्माण किया था। इस झरने की असली आकृति गोलाकार (कुण्ड) थी। 1620 में बादशाह जहाँगीर ने इसका आकार बदलकर मुगल परम्परानुसार अष्टकोण कर दिया। झरने की परिधि 80 मीटर की है। आज इस पर ईंटों द्वारा मेहराब बना दिये गए हैं। इसका पानी एकदम साफ-सुथरा है जिसमें इसके किनारे लगे पान वृक्षों के प्रतिबिम्ब आसानी से देखे जा सकते हैं। यहाँ तैरती मछलियों को देखने का दृश्य इतना मनोहर है कि कोई भी वहाँ सदियाँ बिता सकता है। झरने के चारों ओर बहुत हरियाली है, किनारे पर लगे फूलों के गुच्छे इसमें रंग भर देते हैं।
यहाँ एक शिव मन्दिर भी है जिसमें श्रद्धालु हिन्दूनव वर्ष (हिन्दू कैलेण्डर अनुसार) के अवसर पर पवित्र कुण्ड में स्नान करने के लिये आते हैं।
करीब 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है वेरावुथुर, जिसे की झेलम का स्रोत माना जाता है। यहाँ पर कई आस-पास के झरनों का पानी इकट्ठा होता है, जिसे सप्त ऋषि नाम दिया गया है। इसी संगम स्थल में त्यौहार के अवसर पर लोग नहाने आते हैं। नदी के जन्मदिन को प्रतिवर्ष मेला लगाकर मनाया जाता है।
चश्में शाही
कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में चश्में शाही पाया जाता है। चश्में शाही को साफ पानी का सबसे अच्छा साधन माना जाता है। इसका दूसरा नाम शाही बाग भी है। इसका निर्माण 1632 ई. में बादशाह शाहजहाँ ने कराया था। यहाँ बगीचे के मध्य में एक पानी का स्रोत है जो इस बाग की सुन्दरता को दुगुना करता है। इसका पानी पीने से पेट की कई बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं।
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