क्षारीय मिट्टी को सामान्य मिट्टी के बराबर उत्पादक बनाया जा सकता है। इसका सही उपचार करके प्रति हेक्टेयर करीब 8 टन धान और 4 टन गेहूँ प्रतिवर्ष पैदा किया जा सकता है।
मिट्टी की जाँच कराएँ
खेत की जाँच करवाएँ ताकि पता चले कि उसमें कितना जिप्सम मिलाना है। अच्छी मात्रा में जिप्सम लेकर उसे इतना पीस लें कि छलनी से छन जाए एक हेक्टेयर के लिये 7.5 से 12.5 टन तक जिप्सम की जरूरत पड़ती है।
भूमि सुधार से पहले आप यह देख लें कि सिंचाई के लिये बढ़िया पानी है या नहीं। अगर सम्भव हो तो उथले ट्यूबवेल का प्रबन्ध करें। ज्यादातर क्षारीय भूमि निचले इलाकों में होती है जहाँ आस-पास के ऊँचे इलाकों से पानी बहकर जमा हो जाता है। इसको रोकने के लिये खेत के चारों तरफ करीब 60 सेमी ऊँची मेड़ बनाएँ ताकि बाहर से पानी आकर जमा न हो और भूमि सुधार में बाधक न हो। भूमि को जहाँ तक सम्भव हो समतल बनाएँ जिससे पानी तथा उर्वरक एक-सा पहुँच सके। जब आप अच्छी तरह से भूमि को समतल कर लेंगे तो लाजिमी है कि जल निकास भी अच्छा होगा। सतही जल निकास की व्यवस्था करें खासतौर से भारी वर्षा के समय। यह देखें कि जरूरत से ज्यादा पानी खेत में न ठहरे। भूमि को समतल कर लेने के बाद क्यारी बनाएँ और उसमें करीब 10 सेमी पानी भर दें। अब मिट्टी के नम होते ही भूमि में मौजूद छोटे-छोटे कंकड़ों को निकाल दें और फिर 10 सेमी गहरी सिंचाई करें।
इस तरह करने से बेकार का लवण सतही मिट्टी से 10-20 सेमी नीचे चला जाएगा। दूसरी सिंचाई के बाद जब खेत में नमी बन गई हो उस समय बारीक पिसी हुई जिप्सम का छिरकाव करें और उस मिट्टी में 10 सेमी नीचे मिला दें। जिप्सम मिलाने के बाद फिर सिंचाई करें और पानी को खेत 10-15 दिनों तक जमा रहने दें जिससे जिप्सम अच्छी तरह फूल जाए।
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