कृष्ण क्रांति की जरूरत

पिछले दिनों भारतीय पेट्रोलियम संस्थान में वैज्ञानिकों की टीम ने पर्यावरण के लिए खतरनाक माने जाने वाले प्लास्टिक से पेट्रोलियम बनाने की नई प्रौद्योगिकी विकसित की है। करीब एक दशक के लंबे प्रयोग के बाद आईआईपी के छह वैज्ञानिकों की टीम ने यह कामयाबी हासिल की है। इसमें उत्प्रेरकों का एक संयोजन विकसित किया, जो प्लास्टिक को गैसोलीन या डीजल या एरोमेटिक के साथ-साथ एलपीजी के रूप में एक गौण उत्पाद में तब्दील कर सकता है। वास्तव में बेकार हो चुके प्लास्टिक से पेट्रोलियम उत्पाद तैयार करना, हमारे वैज्ञानिकों की बड़ी उपलब्धि है। किसी आधारभूत उत्पाद या तकनीक के संदर्भ में दूसरों पर आश्रित रहना देश के अर्थतंत्र के लिए कितना भारी पड़ता है इसका ज्वलंत प्रमाण है भारत में कच्चे तेल की कमी। कच्चे तेल की कीमतों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निरंतर उतार-चढ़ाव से पेट्रोलियम उत्पादों की कमी वाले देशों के अर्थतंत्र को जड़ से हिला दिया है। ऐसी विषम परिस्थितियों में हमें इसका स्थायी समाधान खोजना होगा। इसलिए अब हमें इस दिशा में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के ठोस और सकारात्मक उपायों पर विचार करना पड़ेगा।

कृषि के क्षेत्र में हरित क्रांति और श्वेत क्रांति के बाद अब समय है कृष्ण क्रांति। पेट्रोलियम उत्पादों के क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास को कृष्ण क्रांति नाम दिया गया है। इसका मकसद देश को पेट्रोल और डीजल में आत्मनिर्भर बनाने हैं। कच्चा तेल काले रंग का होता है। इसलिए इसके उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास को कृष्ण क्रांति कहा जा रहा है। विश्व के कई देशों जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्राजील वगैरह में एथेनॉल मिश्रित पेट्रोलियम का सफल प्रयोग हो रहा है। ब्राजील में फसल पर कीटनाशी पाउडर छिड़कने वाले विमान इपनेमा का ईंधन, पारंपरिक ईंधन में एथेनॉल को मिलाकर तैयार किया जाता है। यह प्रदूषण रहित होने के साथ-साथ किसी भी अन्य अच्छे ईंधन की तरह उपयोगी होता है। अब इसका प्रयोग विदेशों में मोटरकारों में निरंतर अधिक होता जा रहा है। एथेनॉल गन्ना, चुकंदर, मकई, जौ, आलू, सूरजमुखी या गंध सफेदा से तैयार किया जाता है। इन सबकी फसल के लिए विस्तृत भू-भाग की आवश्यकता है जिसकी भारत में कोई कमी नहीं है।

एथेनॉल चीनी मिलों से निकलने वाली गाद या शीरा से बनाया जाता है। पहले यह बेकार चला जाता था लेकिन अब इसका सदुपयोग हो सकेगा और इससे गन्ना उत्पादकों को भी लाभ होगा। यह पेट्रोल के प्रदूषक तत्वों को भी कम करता है। ब्राजील में बीस प्रतिशत मोटरगाड़ियों में इसका प्रयोग होता है। अगर भारत में ऐसा किया जाए तो पेट्रोल की बचत के साथ-साथ विदेशी मुद्रा की बचत में भी यह सहायक होगा। देश में 18.60 करोड़ हेक्टेयर भूमि बेकार पड़ी है। अगर एक करोड़ हेक्टेयर भूमि में ही एथेनॉल बनाने वाली चीजों की खेती की जाए तो भी देश तेल के मामले में काफी हद तक आत्मनिर्भर हो जाएगा। इसी तरह बायोडीजल के लिए रतनजोत या जटरोपा का उत्पादन किया जा सकता है।

कई विकसित देशों में वाहनों में बायोडीजल का सफल प्रयोग किया जा रहा है। इंडियन ऑयल द्वारा इसका परीक्षण सफल रहा है। वर्तमान वाहनों के इंजन में बिना किसी प्रकार का परिवर्तन लाए इसका प्रयोग संभव है। जटरोपा समशीतोष्ण जलवायु का पौधा है जिसे देश में कहीं भी उगाया जा सकता है। इसे उगाने के लिए पानी की भी अत्यंत कम आवश्यकता होती है। यह बंजर ज़मीन पर भी आसानी से उग सकता है। जटरोपा की खेती के लिए रेलवे लाइनों के पास खाली पड़ी भूमि का उपयोग किया जा सकता है।

देश में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद, आइआइटी-दिल्ली, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम, देहरादून ने जटरोपा की खेती के सफल परीक्षण किए हैं। रेलवे ने भी बायोडीजल का सफल प्रयोग किया है। 31 जनवरी 2003 को पहली बार दिल्ली-अमृतसर शताब्दी एक्सप्रेस में इसका सफल प्रयोग किया गया। जटरोपा की व्यावसायिक खेती के लिए सरकार किसानों को अनुदान एवं आसान शर्तों पर ऋण देकर प्रोत्साहित कर सकती है। बायोडीजल को ज्यादा परिष्कृत करने की आवश्यकता भी नहीं होती।

यह प्रदूषण रहित होता है। इसमें सल्फर की मात्रा शून्य होती है। इसे पर्यावरण के यूरो-3 मानकों में रखा गया है। बायोडीजल ज्वलनशील भी नहीं है। इसका भंडारण और परिवहन भी आसान है। यह ईंधन का श्रेष्ठ और सस्ता विकल्प होगा तथा इस ईंधन की कीमत 11-12 रुपए प्रति लीटर होगी जो परंपरागत डीजल की कीमत से काफी कम है। यह सीएनजी और एलपीजी से भी सस्ती होगी। बायोडीजल की खेती से ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोज़गारी दूर होगी और लोगों की आय बढ़ने से आत्मनिर्भरता बढ़ेगी। इस दिशा में सरकार को जनसाधारण में भी जागरूकता पैदा करने के लिए प्रयास करना चाहिए।

पिछले दिनों भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (आईआईपी) में वैज्ञानिकों की टीम ने पर्यावरण के लिए खतरनाक माने जाने वाले प्लास्टिक से पेट्रोलियम बनाने की नई प्रौद्योगिकी विकसित की है। करीब एक दशक के लंबे प्रयोग के बाद आईआईपी के छह वैज्ञानिकों की टीम ने यह कामयाबी हासिल की है। इसमें उत्प्रेरकों का एक संयोजन विकसित किया, जो प्लास्टिक को गैसोलीन या डीजल या एरोमेटिक के साथ-साथ एलपीजी (रसोई गैस) के रूप में एक गौण उत्पाद में तब्दील कर सकता है। वास्तव में बेकार हो चुके प्लास्टिक से पेट्रोलियम उत्पाद तैयार करना, हमारे वैज्ञानिकों की बड़ी उपलब्धि है।

इस परियोजना का प्रायोजक गेल भी बड़े पैमाने पर पेट्रोलियम उत्पाद तैयार करने के लिए परियोजना की आर्थिक व्यवहारिकता तलाश रही है। इस प्रौद्योगिकी की खास विशेषता यह है कि तरल ईंधन - गैसोलीन और डीजल-ईंधन के यूरो 3 मानकों को पूरा करता है और उत्प्रेरकों और संचालन मापदंड में बदलाव के जरिए इसी कच्चे पदार्थ से विभिन्न उत्पाद हासिल किए जा सकते हैं। इसके अलावा यह प्रक्रिया पूरी तरह पर्यावरण हितैषी भी है, क्योंकि इससे कोई जहरीला पदार्थ उत्सर्जित नहीं होता है। सौ फीसद रूपांतरण पाया गया है और अवशेष बचना कच्चे माल की गुणवत्ता पर निर्भर है, जो स्वच्छ कच्चा माल की स्थिति में आधा फीसद से भी कम हो सकता है।

यह प्रक्रिया छोटे और बड़े उद्योग, दोनों के अनुकूल है। वेस्ट प्लास्टिक्स टू फ्यूल एंड पेट्रोकेमिकल्स नाम से इस परियोजना पर 2002 में कार्य शुरू किया गया था और इस तथ्य तक पहुंचने में चार साल का वक्त लगा कि बेकार हो चुके प्लास्टिक को ईंधन में तब्दील करना संभव है। एक अनुमान के मुताबिक दुनिया भर में तीन सौ टन से अधिक प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जाता है और इसमें सालाना 10 से 12 फीसद बढ़ोतरी हो रही है। पेट्रोल तैयार करने के लिए पॉलीथीलीन और पॉलीप्रोपोलीन जैसे पॉलीओलेफीनीक प्लास्टिक मुख्य कच्चा माल हैं। एक किलोग्राम पॉलीओलेफीनीक प्लास्टिक से 650 मीली लीटर पेट्रोल या 850 मिलीलीटर डीजल या 450-500 मिलीलीटर एरोमेटिक तैयार किया जा सकता है।

जिस गति से विश्व में पेट्रोलियम उत्पादों का उपभोग हो रहा है उसके अनुसार विश्व में अगले 40 साल की मांग पूरी करने के लिए ही कच्चे तेल के भंडार हैं। भविष्य में होने वाली तेल की कमी को पूरा करने के लिए अभी से गंभीरता पूर्वक कदम उठाने होंगे। कृष्ण क्रांति भारत की टिकाऊ विकास को मजबूत करेगी। देश की वर्तमान और भावी सुरक्षा के लिए कृष्ण क्रांति का सफल होना बहुत जरूरी है। सरकार को अपने तमाम प्रयासों से इसके मार्ग में आने वाली प्रत्येक कठिनाई को दूर करना होगा।

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