केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार गंगा समेत विभिन्न नदियों की सफाई पर जोर दे रही है और पिछले 10 वर्षों में विभिन्न राज्यों में गंगा और यमुना की सफाई पर 1150 करोड़ रुपए खर्च होने के बावजूद स्थिति चिंताजनक बनी हुई है।
सूचना का अधिकार यानी आरटीआई कानून के तहत राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस अवधि में दिल्ली में यमुना की सफाई पर 322 करोड़ रुपए, हरियाणा में 85 करोड़ रुपए, उत्तर प्रदेश में गंगा यमुना, गोमती की सफाई पर 463 करोड़ रुपए, बिहार में गंगा की सफाई पर 50 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं।
जानकारी के अनुसार, गुजरात में साबरमती नदी के संरक्षण पर पिछले 10 वर्षों में 59 करोड़ रुपए और कर्नाटक में भद्रा, तुंगभद्रा, कावेरी, तुंगा नदी की साफ सफाई पर 39.4 करोड़ रुपए खर्च हुए। महाराष्ट्र में कृष्णा गोदावरी, तापी, पंचगंगा के संरक्षण पर 2000-01 से 2009-10 के बीच 107 करोड़ रुपए खर्च हुए। मध्य प्रदेश में बेतवा, तापी, वाणगंगा, नर्मदा, कृष्णा, चंबल, मंदाकिनी की साफ सफाई पर 57 करोड़ रुपए खर्च किए गए।
पंजाब में सतलुज नदी के संरक्षण पर इस अवधि में 154.25 करोड़ रुपए खर्च किए गए जबकि तमिलनाडु में कावेरी, अडयार, बैगी, वेन्नार नदियों की साफ सफाई पर 615 करोड़ रुपए खर्च हुए।
उत्तराखंड में गंगा नदी के संरक्षण पर 10 वर्षों में 47 करोड़ रुपए खर्च किए गए, जबकि पश्चिम बंगाल में गंगा, दामोदर, महानंदा के संरक्षण पर इस अवधि में 264 करोड़ रुपए खर्च हुए। हिसार स्थित आरटीआई कार्यकर्ता रमेश वर्मा ने राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय से देश में नदियों के संरक्षण पर खर्च का ब्यौरा मांगा था, जिसके जवाब में यह जानकारी मिली।
आरटीआई के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार, साल 2000 से 2010 के बीच देश के 20 राज्यों में नदियों के संरक्षण पर राष्ट्रीय नदी संरक्षरण योजना के तहत 2607 करोड़ रुपए जारी किए गए। राष्ट्रीय नदी संरक्षरण योजना के दायरे में 20 राज्यों की 38 नदियां आती हैं। केंद्रीय जल संसाधन एवं गंगा पुनर्जीवन मंत्री उमा भारती ने कहा कि नरेंद्र मोदी जब बनारस पहुंचे तब उन्होंने गंगा को निर्मल बनाने की सोच पेश की।
इस विषय के महत्व को देखते हुए मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनने के बाद गंगा के विषय पर मंत्रालय में अलग विभाग बना दिया गया। गंगा पर तैयार मापदंड अन्य नदियों पर भी लागू होंगे। उमा ने कहा कि पूरे देश के पर्यावरणविदों, जल संसाधन के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों, साधु संतों, वैज्ञानिकों के समूहों एवं अन्य शिक्षाविदें को “गंगा मंथन” कार्यक्रम से जोड़ा जाएगा। यह कार्यक्रम संसद सत्र को देखते हुए जुलाई के पहले या दूसरे सप्ताह में हो सकता है।
मंत्रालय की रूपरेखा के अनुसार, सचिवों के समूह के सुझावों, मंत्रियों के निष्कर्षों, जानकारों के सुझावों के आधार पर अविरल गंगा, निर्मल गंगा को जन आंदोलन का रूप दिया जाएगा।
इस प्रयास में नदियों के तटों के सांसदों, स्थानीय निकाय के प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाएगा। गंगा को अविरल एवं निर्मल बनाने के लिए सचिवों का समूह विभिन्न आयामों पर अध्ययन कर एक महीने में विस्तृत रिपोर्ट पेश करेगा, जिसमें चार मंत्रालय शामिल हैं।
/articles/karaodaon-kharaca-karanae-kae-baavajauuda-paradauusaita-haain-nadaiyaan