पंजाब में मुख्य रूप से कपास की खेती भटिंडा, अबोहर, फजिल्का, मुक्तसर, फिरोजपुर एवं मानसा जिलों में की जाती हैं। पंजाब का यह कपास उत्पादक क्षेत्र मालवा क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है और कपास की फसल ‘व्हाइट गोल्ड’ के रूप में जानी जाती है, किन्तु पिछले वर्ष यह फसल किसान की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरी और उनकी तबाही का कारण बनी। इस क्षेत्र में लगभग 11.25 लाख एकड़ कपास की फसल बोई गई जिसमें से लगभग 6.75 लाख एकड़ कपास की फसल सफेद मक्खी के आक्रमण से प्रभावित हुई। पंजाब में मुख्य रूप से कपास की खेती भटिंडा, अबोहर, फजिल्का, मुक्तसर, फिरोजपुर एवं मानसा जिलों में की जाती हैं। पंजाब का यह कपास उत्पादक क्षेत्र मालवा क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है और कपास की फसल ‘व्हाइट गोल्ड’ के रूप में जानी जाती है, किन्तु पिछले वर्ष यह फसल किसान की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरी और उनकी तबाही का कारण बनी।
पिछले वर्ष कपास की फसल की बर्बादी को देखते हुए इस बार पंजाब सरकार ने कई प्रभावी कदम उठाए हैं जिनमें कॉटन एवं अन्य खरीफ फसलों के लिये 8 घंटे बिजली आपूर्ति, समय से फसल की बुआई एवं 25 लाख कॉटन के बीज के पैकेट (450 ग्राम प्रत्येक) की किसानों के लिये व्यवस्था करना इत्यादि। इस पैकेट की लागत 800 रुपए तय की गई।
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना ने किसानों को सलाह दी है कि वे केवल चयनित 38 कॉटन प्रजातियों की ही बुवाई करें। इसके अलावा कृषि विभाग ने 500 स्काउट्स को भी इस कार्य पर नजर रखने के लिये लगाया है जो कि 24 घंटे कृषि प्रक्षेत्र एवं फसल पर नजर रखेंगे। इन सभी उपायों से इस वर्ष पंजाब में लगभग 25 प्रतिशत कॉटन का क्षेत्रफल बढ़ने की उम्मीद है।
पिछले वर्ष 2015 में पंजाब राज्य में एक हृदय विदारक घटना हुई जिसमें 15 किसानों एवं दो ट्रेडर्स बन्धुओं ने आत्महत्या जैसा आत्मघाती कदम उठाया। इस पूरी घटना ने न केवल पंजाब राज्य को हिलाकर रख दिया बल्कि पूरे देश का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। यह एक ऐसा संकेत था जिससे यह पता चल रहा था कि कहीं कुछ-न-कुछ गम्भीर रूप से गलत हो रहा है।
हमारे देश के कई हिस्सों में विभिन्न कारणों जैसे-फसल का उचित मूल्य न मिलना, फसलोत्पादन के लिये ऋण उपलब्ध न होना, समय पर ऋण का भुगतान न होना एवं अन्य कई कारणों से फसल खराब हो जाना आदि के कारण किसान आत्महत्या करते रहे हैं। किन्तु इस बाद दो ट्रेडर्स बन्धुओं की आत्महत्या ने नीति-निर्माताओं के लिये एक नया संकेत दिया। इसकी गम्भीरता का पता इस बात से भी लगाया जा सकता है कि उक्त आत्महत्याओं के बाद सम्पूर्ण पंजाब राज्य का सामाजिक ताना-बाना पटरी से लगभग उतर सा गया था।
आकलन करने पर पता चला कि इन आत्महत्याओं का मुख्य कारण कपास की फसल की बर्बादी को माना गया। यहाँ यह बताना आवश्यक है कि दोनों ट्रेडर बन्धु कीटनाशी दवाओं की दुकान चलाते थे। इस दुकान को चलाने के लिये उन्होंने कई जगह से ऋण ले रखा था और क्षेत्रीय किसानों को उधार में काफी कीटनाशी दवाईयाँ उपलब्ध कराई। किन्तु तभी सफेद मक्खी के तीव्र आक्रमण ने मालवा क्षेत्र की लगभग 60 प्रतिशत से अधिक फसल को अपनी चपेट में ले लिया। ये ट्रेडर बन्धु दोनों तरफ से वित्तीय दबाव में आ गए और अन्ततः उन्होंने अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली।
कपास के उत्पादन में पंजाब राज्य का 5वाँ स्थान है और यह फसल न केवल पंजाब राज्य की बल्कि भारत की भी एक मुख्य नगदी फसल है। कपास का उत्पादन विभिन्न राज्यों जैसे गुजरात (35 प्रतिशत), महाराष्ट्र (21 प्रतिशत), तेलंगाना एवं सीमान्ध्र (14 प्रतिशत), हरियाणा (8 प्रतिशत), पंजाब (7 प्रतिशत), मध्य प्रदेश (6 प्रतिशत), राजस्थान (4 प्रतिशत), कर्नाटक (3 प्रतिशत) एवं अन्य (2 प्रतिशत) आदि में किया जाता है।
पंजाब में मुख्य रूप से कपास की खेती भटिंडा, अबोहर, फजिल्का, मुक्तसर, फिरोजपुर एवं मानसा जिलों में की जाती हैं। पंजाब का यह कपास उत्पादक क्षेत्र मालवा क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है और कपास की फसल ‘व्हाइट गोल्ड’ के रूप में जानी जाती है, किन्तु पिछले वर्ष यह फसल किसान की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरी और उनकी तबाही का कारण बनी।
इस क्षेत्र में लगभग 11.25 लाख एकड़ कपास की फसल बोई गई जिसमें से लगभग 6.75 लाख एकड़ कपास की फसल सफेद मक्खी के आक्रमण से प्रभावित हुई। मालवा क्षेत्र के सिंघों गाँव के एक किसान के अनुसार, ‘पंजाब के इस क्षेत्र में कॉटन की फसल को सफेद मक्खी से बचाने के लिये किसानों ने लगभग 10 से 12 बार कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल किया जिसकी लागत लगभग 3300 रुपए प्रति एकड़ प्रति बार आई। साथ ही उन्होंने बताया कि उनकी भी 4 एकड़ कपास की फसल पूर्ण रूप से बर्बाद हो चुकी है।’ किन्तु इसके बावजूद भी सफेद मक्खी का आक्रमण रोकने में कामयाबी नहीं मिली और इस तरह कीटनाशकों के इस्तेमाल पर लगभग 150 करोड़ रुपए व्यर्थ खर्च कर दिये गए।
प्रारम्भिक अनुमान के आधार पर पंजाब के कृषि मंत्री ने कहा कि लगभग 20 से 25 प्रतिशत कपास की फसल सफेद मक्खी के आक्रमण से प्रभावित हुई है। किन्तु धीरे-धीरे इसका प्रभाव तेजी से फैलता गया, जिसके परिणामस्वरूप देखते-ही-देखते दो महीने के अन्तर्गत लगभग दो तिहाई फसल खराब हो गई और किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा।
इस तरह का अनुमान के मुताबिक सफेद मक्खी के आक्रमण से कपास की फसल को लगभग 4200 करोड़ रुपए की हानि हुई। हालांकि सफेद मक्खी का आना पंजाब में कपास की फसल के लिये कोई नई बात नहीं थी किन्तु इस बार वह इतनी तीव्र गति एवं संख्या में आई कि इससे पहले कोई कुछ समझ पाता सफेद मक्खी ने सम्पूर्ण फसल को अपनी चपेट में ले लिया।
अबोहर, फजिल्का, मानसा, भटिंडा एवं मुक्तसर जिलों में सफेद मक्खी का प्रकोप अधिक देखा गया। यहाँ तक कि कुछ क्षेत्रों में इसकी तीव्रता इतनी अधिक हो गई कि किसानों को अपनी खड़ी फसल को ट्रैक्टर से जोतना पड़ा या फसल को खेत से उखाड़ना पड़ा।
कपास की बर्बादी के कारण
1. किसानों को उपलब्ध कराए गए बीज उच्च गुणवत्ता युक्त नहीं थे। ये बीज काफी महंगे थे जिससे किसानों को फसल उगाने में ज्यादा लागत आई और इनका अंकुरण भी औसत ही रहा।
2. फसल पर छिड़के जाने वाले कीटनाशक के मदर कैमिकल को छोटी-छोटी फर्मों ने खरीद कर अपने स्तर पर उनमें मिलावट कर दुगुनी-तिगुनी मात्रा में पैकिंग कर किसानों को बेचा। अतः यह सफेद मक्खी पर प्रभावकारी नहीं रहे।
3. पछेती, खासतौर से 30 अप्रैल के बाद बोई गई फसल में सफेद मक्खी का प्रकोप ज्यादा देखा गया क्योंकि पछेती फसल के पौधों का विकास उतना नहीं हो पाया था कि वे सफेद मक्खी के आक्रमण को सह पाते।
4. ज्यादातर किसानों ने बीटी कॉटन, जोकि विभिन्न कम्पनियों से ऊँचे दामों में खरीदी गई, की बुआई, की, उस पर सफेद मक्खी का प्रकोप देशी कॉटन की प्रजातियों के मुकाबले ज्यादा देखा गया।
5. वर्ष 2015 में अप्रैल-मई का तापक्रम अन्य वर्षों के मुकाबले कम होने से सफेद मक्खी पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा और वह तेजी से भारी संख्या में फैलती गई।
सफेद मक्खी से बचाव के उपाय
1. फसल पर छिड़के जाने वाले कीटनाशक सरकार से लाइसेन्स धारक कम्पनी द्वारा निर्मित एवं पैक किये जाने के बाद ही बाजार में बिक्री के लिये उपलब्ध हों ताकि छोटी-छोटी फर्मों को मिलावट करने का मौका न मिले।
2. सरकार को नकली बीज एवं रसायनोंं की बिक्री को रोकने के लिये एक सघन निगरानी सेल बनानी चाहिए।
3. फसल की बुआई सही समय पर (15 से 30 अप्रैल) करनी चाहिए।
4. बीटी कॉटन के स्थान पर पंजाब सरकार द्वारा अनुशंसित प्रजातियों की बुआई की जाये क्योंकि प्रायः ऐसा देखा गया है कि देशी प्रजातियों पर सफेद मक्खी का प्रकोप कम पाया गया है।
सम्पर्क सूत्र :
डॉ. एस.आर. सिंह,
उपनिदेशक -
विपणन चौ. चरण सिंह राष्ट्रीय कृषि विपणन संस्थान कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार कोटा रोड, बम्बाला, जयपुर 302033 (राजस्थान)
फोन : 0141-2795132,
मोबाइल - 08094777748;
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Post By: RuralWater