कोयला पर निर्भरता से बढ़ा है जलसंकट


2016 में जारी जल-संकट ने भारत को मौका दिया है जब वो कोयला आधारित ऊर्जा पर अपनी निर्भरता कम करके वैकल्पिक ऊर्जा के दूसरे स्वच्छ स्रोतों की तरफ ध्यान दे। कोयला की तुलना में सौर और वायु ऊर्जा में पानी की खपत न के बराबर है। सरकार द्वारा वैकल्पिक ऊर्जा से बिजली उत्पादन का लक्ष्य महत्वाकांक्षी है, लेकिन इसकी जगह जिस तरह दूसरे नये कोयला पावर प्लाण्टों को, वह भी सूखा प्रभावित क्षेत्र में बनाने का प्रस्ताव सामने आ रहा है, वह देश के लिये खतरनाक साबित होगा।

बिजली और पानी दोनों में से किसी एक को चुनना हो तो निश्चित तौर पर मनुष्य पानी को चुनेगा। यह सवाल थोड़ा अटपटा है लेकिन जब 2016 के मई और जून के महीने में 11 राज्यों के 266 जिले सूखे की चपेट में हैं, और इसके बावजूद सरकार की नीतियों में जलस्रोतों के प्रबंधन की कोेई दिशा दिखाई ना दे रही हो तो पानी को लेकर चिन्ता वाजिब है। सवाल फिर वही होगा कि पानी तक तो बात ठीक थी लेकिन सवाल में बिजली का उल्लेख क्यों? बिजली का जिक्र उन सात राज्यों से जुड़े आँकड़ों की वजह से आया, जिसे एक गैर सरकारी संस्था ने जारी किया है। ये सात राज्य हैं, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उत्तर-प्रदेश, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना व छत्तीसगढ़। आँकड़े पावर प्लाण्टों के द्वारा किये जा रहे पानी के इस्तेमाल को लेकर थे। सिर्फ इन सात राज्यों में थर्मल पावर प्लाण्ट इतना पानी इस्तेमाल कर लेते हैं, जो एक साल में पाँच करोड़ लोगों की मूलभूत ज़रूरतों के लिये काफी है।

इस गैर सरकारी संस्था द्वारा जारी विश्लेषण, में यह तथ्य सामने आया कि कोयला पावर प्लाण्ट भारत में 4.6 अरब घन मीटर जल का इस्तेमाल प्रति वर्ष करते हैं। जल की यह मात्रा 25.1 करोड़ लोगों के मूलभूत पानी की जरूरत को पूरा करने में सक्षम है। अगर सभी प्रस्तावित पावर प्लाण्ट को बना लिया जाता है, तो पानी की यह मात्रा भारत की कुल आबादी द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले पानी के आस-पास ही बैठती।

उद्योगों में पानी के होने वाले इस्तेमाल में कोयला पावर प्लाण्ट पानी का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। देश में इस साल सूखे के बावजूद, कोयला पावर प्लाण्टों के द्वारा इस्तेमाल हो रहे पानी पर देश की सरकार और नीति निर्माताओं की नजर नहीं गई है।

अक्षत एवं वैकल्पिक ऊर्जा पर काम करने वाली गैर सरकारी संस्था ग्रीनपीस से जुड़े जयकृष्ण के अनुसार, “हमारे देश के ज्यादातर जिले सूखे से प्रभावित हैं और लाखों लोगों का जीवन इसकी चपेट में है। इसके बावजूद भी हम कोयला पावर सेक्टर के द्वारा खपत किये जा रहे पानी की बड़ी मात्रा को नजरअंदाज कर रहे हैं। यहाँ तक कि सरकार सूखा प्रभावित इलाकों में भी कोयला पावर प्लाण्ट को बढ़ाने की योजना बना रही है। जयकृष्ण पानी और बिजली में से कौन सा एक वाले सवाल पर कहते हैं- अगर एक तरफ लोगों की जीविका और आधारभूत ज़रूरतों के लिये पानी और दूसरी तरफ कोयला पावर प्लाण्ट के लिये पानी के बीच में से किसी एक को चुनना हो तो निश्चित रूप से आधारभूत ज़रूरतों के लिये पानी को चुनना ही होगा। सूखा प्रभावित क्षेत्रों में पावर प्लाण्ट को पानी देने की बजाय ज़रूरतमंद लोगों को पानी मुहैया कराया जाना चाहिए।”

आज पानी के संकट से हम जूझ रहे हैं और करोड़ों लोगों की आबादी का पानी कोयला पावर प्लाण्ट में जा रहा है। यह हाल तब है, जब बड़ी संख्या में कोयला पावर प्लाण्ट प्रस्तावित हैं वहाँ काम काज अभी शुरू नहीं हुआ है। वैसे सरकार यूपीए की हो या एनडीए की, विकास का मतलब उसके लिये उद्योग, सड़क और बिजली का विकास ही है। ऐसे में अगर सभी सात राज्यों में प्रस्तावित पावर प्लाण्ट में खपत होने वाले जल को जोड़े तो प्लाण्ट में पानी की कुल खपत में तीगुना वृद्धि हो जायेगी। जयकृष्णा कहते हैं, “अगली बार यदि फिर कम बारिश हुई तो हालात को और अधिक भयावह बना सकता है और जल के संकट को अधिक बढ़ाने वाला साबित हो सकता है।”

अगर यह जल संकट बढ़ता है तो पानी की आपूर्ति को संरक्षित करने के लिये पावर प्लाण्ट को अक्सर बंद करने का भी खतरा बना रहेगा। इससे नये पावर प्लाण्ट निवेशकों के लिये घाटे का सौदा साबित होंगे। इस साल एनटीपीसी, अडानी पावर, जीएमआई, महागैंसों, कर्नाटक पावर कॉर्प जैसे ऊर्जा क्षेत्र के बड़े खिलाड़ियों की कम्पनियों को जल संकट की वजह से अपने पावर प्लाण्ट बंद करने पड़े हैं, जिससे उनके व्यापार को भी नुकसान पहुँचा है।

2016 में जारी जल-संकट ने भारत को मौका दिया है जब वो कोयला आधारित ऊर्जा पर अपनी निर्भरता कम करके वैकल्पिक ऊर्जा के दूसरे स्वच्छ स्रोतों की तरफ ध्यान दे। कोयला की तुलना में सौर और वायु ऊर्जा में पानी की खपत न के बराबर है। सरकार द्वारा वैकल्पिक ऊर्जा से बिजली उत्पादन का लक्ष्य महत्वाकांक्षी है, लेकिन इसकी जगह जिस तरह दूसरे नये कोयला पावर प्लाण्टों को, वह भी सूखा प्रभावित क्षेत्र में बनाने का प्रस्ताव सामने आ रहा है, वह देश के लिये खतरनाक साबित होगा। बहरहाल महाराष्ट्र के लातूर ने पानी की कमी में अधिक पानी पीने वाली फसल गन्ना को लगाने के बाद गम्भीर सूखे का शिकार होकर उसकी कीमत चुका रहा है। इसलिए अब सूखा प्रभावित क्षेत्र के आम जन को ही आगे आकर अपने क्षेत्र में कोयला पावर प्लाण्ट का विरोध करना चाहिए। जिससे पानी का बचाव हो और वैकल्पिक ऊर्जा की मांग करनी चाहिए।

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