कोविड-19 का वाटरशेड प्रबंधन पर प्रभाव

कोविड-19 का वाटरशेड प्रबंधन पर प्रभाव
कोविड-19 का वाटरशेड प्रबंधन पर प्रभाव

COVID-19 ने इस वर्ष के वाटरशेड प्रबंधन कार्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है (फोटो - ILO दक्षिण एशिया-प्रशांत; फ़्लिकर कॉमन्स, CC BY-NC-ND 2.0)

वाटरशेड प्रबंधन पिछले चार दशकों में ग्रामीण क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधनों जैसे कि पानी, मिट्टी और वनस्पति कवर को बढ़ाने के साथ-साथ उपेक्षित वर्गों को आजीविका का साधन प्रदान करने के लिए सबसे विकेन्द्रीकृत, समन्वित, अभिनव, प्रभावी और निरंतर उपयोग में लाए जाने वाले कार्यक्रमों के रूप में उभरा है। हालाकि फिलहाल कोविड-19 के कारण जीवन बदल रहा है, उसका प्रभाव वाटरशेड प्रबंधन पर भी पड़ रहा है। 

प्रगति अभियान के निदेशक और मनेरगा कॉन्सॉर्टियम के मुख्य सदस्य अश्विनी कुलकर्णी कहते हैं कि लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग के कारण देश भर में वाटरशेड गतिविधियों को भाली मोल चुकाना पड़ रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार उपलब्ध कराने का सबसे महत्वपूर्ण माध्यम मनरेगा है, जिसके अंतर्गत वाटरशेड के काम को भी किया जाता है। पिछले कुछ वर्षों में किए गए विश्लेषणों के आंकड़े बताते हैं कि अप्रैल और मई जल संरक्षण की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण है और वाटरशेड की सबसे ज्यादा गतिविधियां इसी दौरान की जाती हैं, लेकिन लाॅकडाउन के कारण सब कुछ रुक गया है। लाॅकडाउन के कारण कमाई के अवसरों में कमी आने से किसान ऋण के एक निरंतर चलने वाले चक्र में फंस सकते हैं। महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में कार्यरत वाटरशेड एग्जीक्यूटिव अमित देशमुख ने बताया कि वाटरशेड के हिसाब से अप्रैल और मई का महीना बहुत महत्वपूर्ण होता है। पिछले कुछ महीनों में नियोजित सभी गतिविधियों को इन महीनों में लागू किया जाना था। रबी की फसल की कटाई के बाद, किसान और खेत दोनों काम के लिए उपलब्ध होते हैं। 

इन महीनों में दो तरह की भौतिक गतिविधियाँ होती हैं। एक, मौजूदा संरचनाओं की मरम्मत और दूसरा, वाटरशेड के विभिन्न हिस्सों में जल संचयन संरचनाओं का विस्तार। आमतौर पर मई के अंत तक वाटरशेड की सभी प्रमुख भौतिक गतिविधियां समाप्त हो जाती हैं और मानसून के आते ही किसान खरीफ की बुआई में व्यस्त हो जाते हैं। महाराष्ट्र के बीड़ में मानवलोक अंबजोगाई के प्रोजेक्ट हेड इरफान शेख ने बताया कि इस वर्ष किसी भी साइट पर नियोजित भौतिक कार्यों में से कोई भी कार्य नहीं किया जा सकता है। लॉकडाउन के कारण ग्रामीणों के साथ-साथ गैर सरकारी संगठनों के तकनीकी कर्मचारियों को खेतों में किसी भी प्रकार का कार्य करने तथा चर्चा के लिए एकत्रित होने पर प्रतिबंध है। पिछले साल महाराष्ट्र में काफी तेज बेमौसम बारिश हुई थी, इससे जल संचयन संरचनाओं को काफी नुकसान पहुंचा था। मानसून के आगमन से पहले इसकी तत्काल मरम्मत की मांग की गई थी, लेकिन लाॅकडाउन की अवधि के दौरान इस कार्य को पूरा नहीं किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि इससे केवल जल संरक्षण के कार्य में ही बाधा नहीं आएगी, बल्कि वाटरशेड को कार्यान्वित करवाने वाले संगठनों पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने कहा कि जल संरक्षण के लिए बड़े स्तर पर खुदाई करने के लिए हमने एडवांस में भुगतान कर दिया है, लेकिन अब लाॅकडाउन ने हमें गंभीर परिस्थितियों में डाल दिया है।

वाटरशेड गतिविधियों से केवल जल और मृदा संरक्षण ही नहीं किया जाता, बल्कि ये गतिविधियां ग्रामीणों को आजीविका का अवसर भी प्रदान करती हैं। मंदी की अवधि के दौरान, जब रोजगार के लिए खेती का कोई भी कार्य उपलब्ध नहीं होता, जब वाटरशेड गतिविधियां ही मजदूरों के लिए रोजगार का साधन बनती हैं। ज्यादातर मामलों में मजदूर इसी तरह धन अर्जित करते हैं और इससे खरीफ सीजन के लिए बीज खरीदने और खेतों को तैयार करने का कार्य करते हैं। लॉकडाउन को बढ़ाने से देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भारी असर पड़ेगा। एक तरफ, वाटरशेड गतिविधियों के न होने से घेरलू और खेती के कार्यों के लिए पानी की समस्या खड़ी हो सकती है। तो वहीं दूसरी ओर, इससे खरीफ की फसलों में निवेश कम होगा, जो भूस्वामी के साथ-साथ भूमिहीन किसानों को भारी आर्थिक संकट में डाल सकता है। हैदराबाद स्थित वाटर सपोर्ट सर्विसेज एंड एक्टिविटीज नेटवर्क के निदेशक बक्का रेड्डी बताते हैं कि वाटरशेड के कार्यो की दृष्टि से हम एक साल खो चुके हैं। वाटरशेड कार्य न होने के कारण विशेष रूप से महाराष्ट्र के बेसाल्ट बेल्ट का इलाका सबसे अधिक प्रभावित होगा, जिससे भूजल का पुनर्भरण सीमित स्तर पर ही होगा। 

वर्तमान में लोगों के सामने जीवन और आजीविका का प्रश्न खड़ा है। एक तरफ, सोशल डिस्टेंसिंग कोरोना वायरस की चेन को तोड़ने और कोविड़-19 ने निपटने के लिए महत्वपूर्ण है, तो वहीं इसने ग्रामीण इलाकों में लोगों की आवाजाही को भी सीमित कर दिया है। कोरोना संक्रमण फैलने का डर और स्थानीय प्रशासन द्वारा लगाए गए प्रतिबंध स्थानीय एनजीओ के साथ साथ वाटरशेड गतिविधियों में लगे पेशेवरों के लिए बाधा बन रहे हैं। ऐसे में प्रवासी श्रमिका के शहरों से पलायन ने ग्रामीण इलाकों में आय सृजन से संबंधित कार्यों की मांग को बढ़ा दिया है। अब लाॅकडाउन को दूसरे चरण में 3 मई तक के लिए बढ़ाया गया है। गृह मंत्रालय द्वारा जारी नई गाइडलाइन में वाटरशेड कार्यान्वयन से संबंधित विभिन्न चुनौतियों या समस्याओं का समाधान करने का प्रयास किया गया है। सरकार द्वारा जारी दिशानिर्देशों में कृषि गतिविधियों के साथ-साथ सिंचाई और जल संरक्षण कार्यों पर मुख्य रूप से फोकस करते हुए मनरेगा के कार्यां को अनुमति दी गई है। राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को कहा गया है कि आय के अवसर बढ़ाने के लिए उन्हीं कार्यो पर फोकस किया जाएगा, जहां 4-5 श्रमिकों की ही आवश्यकता होती है। साथ ही कार्य करने के दौरान सामाजिक दूरी बनाए रखना बेहद जरूरी है। अब, ग्राम पंचायतों और स्थानीय प्रशासन के लिए प्रमुख कार्य स्थानीय समुदाय को विश्वास में लेते हुए सोशल डिस्टेंसिंग को सुनिश्चित करने वाले वाटरशेड कार्य की योजना और उसका आवंटन करना होगा। मनरेगा के तहत वाटरशेड की ऑन-फार्म गतिविधियों का कार्यान्वयन भूमिहीन लोगों पर विशेष ध्यान देने के साथ न्यूनतम वैज्ञानिक और प्रशासनिक निगरानी के साथ किया जाना चाहिए।

 

अनुवादः हिमांशु भट्ट/ हिंदी इंडिया वाटर पोर्टल


मूल लेख पढ़ने के लिए इंडिया वाॅटर पोर्टल की अंग्रेजी वेबसाइट पर जाएं, जिसका लिंक नीचे दिया गया है:- 

 


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