कोठिला बैठी बोली जई, आधे अगहन काहे न बई।
जो कहुँ बोते बिगहा चार, तो मैं डरतिऊँ कोठिला फार।।
शब्दार्थ- जई-जौ की जाति का एक अनाज जो प्रायः घोड़ों को दिया जाता है।
भावार्थ- कोठिला में भरी जई कहती है कि मुझे आधे अगहन में क्यों नहीं बोया? यदि चार बीघे में बो देते तो मैं कोठिला फोड़ डालती यदि आधे अगहन में जई की बोवाई चार बीघे भी की गई होती तो घर में अन्न रखने की जगह नहीं मिलती।
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