बिहार सरकार ने केंद्र सरकार से कहा है कि कोसी-मेची नदी लिंक योजना को राष्ट्रीय योजना घोषित की जाए।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 11 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में कहा कि कोसी-मेची नदी परियोजना को राष्ट्रीय नदी जोड़ परियोजना में शामिल किया जाए। इससे 2 लाख 14 हजार हेक्टेयर क्षेत्र लाभान्वित होगा।
उन्होंने ये भी कहा कि इस परियोजना के पूरा हो जाने से बाढ़ की आशंका कम होगी और लोग पानी का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल कर सकेंगे।
सूत्रों के मुताबिक, किसी प्रोजेक्ट को राष्ट्रीय प्रोजेक्ट का दर्जा मिलने से खर्च का भार राज्य सरकार पर कम और केंद्र सरकार के कंधे पर ज्यादा होता है। यही वजह है कि बिहार सरकार इस परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा दिलवाना चाह रही है।
क्या है ये परियोजना
कोसी नदी नेपाल में हिमालय से निकलती है और पर्वतों से होती हुई उत्तरी बिहार में बढ़ती है। बिहार में बाढ़ से सबसे ज्यादा तबाही कोसी नदी ही लेकर आती है। कोसी के कारण हर साल इतना नुकसान होता है कि अब कोसी को उत्तर बिहार का शोक तक कहा जाने लगा है।
कोसी नदी साल-दर-साल अपना मार्ग बदलती है और अपने साथ भारी मात्रा में गाद लाती है। कोसी से होने वाले नुकसान को देखते हुए दशकों पहले भारत और नेपाल सरकार के बीच समझौते के एक ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुए थे। कोसी-मेची नदी जोड़ परियोजना इसी समझौते का हिस्सा है।
परियोजना के अंतर्गत पूर्वी कोसी मेन कनाल को महानंदा की सहायक नदी मेची से जोड़ा जाएगा ताकि महानंदा के उस बेसिन क्षेत्र को पानी मिल सके, जहां पानी की कमी है। दरअसल इस परियोजना में कोसी का अतिरिक्त पानी महानंदा बेसिन में पहुंचाया जाएगा। जल संसाधन विभाग के अधिकारियो के अनुसार इस परियोजना के पूरा हो जाने के बाद अररिया, पूर्णिया, कटिहार और किशनगंज जिले के किसानों को खरीफ सीजन में सिंचाई के लिए पानी मिलेगा।
कब अस्तित्व में आई ये परियोजना
उल्लेखनीय हो कि वर्ष 2004 में केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने देश भर में नदियों को जोड़ने की परियोजना के अध्ययन करने का निर्णय लिया था। इसमें बिहार भी शामिल था। बिहार सरकार ने केंद्र सरकार को 15 मई 2008 को एक प्रस्ताव दिया। इसके बाद उसी साल जून को नेशनल वाटर डेवलपमेंट एजेंसी (एनडीडब्ल्यूडीए) और बिहार के जल संसाधन विभाग के अधिकारियों के बीच बैठक हुई। इस बैठक में बिहार की 6 नदी जोड़ परियोजनाओं पर चर्चा हुई जिनमें दो परियोजना सिंचाई से संबंधित थी। कोसी-मेची नदी जोड़ परियोजना इसी का हिस्सा है।
अधिकारियों के मुताबिक, एनडीडब्ल्यूए ने अपनी पड़ताल में इस परियोजना को लाभदायक पाया और कहा कि वह इसके लिए जल्द ही डीपीआर तैयार करेगा। एनडीडब्ल्यूए की रिपोर्ट में बताया गया है कि जिस कनाल के जरिए पानी महानंदा बेसिन में ले जाया जाएगा, उस कनाल के रास्ते में कोई वन क्षेत्र नहीं है और न ही इससे पर्यावरण पर कोई नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि कोसी का पानी केवल प्री-मॉनसून में ही महानंदा बेसिन के लिए छोड़ा जाएगा ताकि खरीफ के सीजन में फसलों की सिंचाई की जा सके।
कितना आएगा खर्च
वर्ष 2013-2014 के आधार पर तैयार किए प्राक्कलन के मुताबिक, प्रोजेक्ट पर 2903.24 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। रिपोर्ट में बताया गया है कि इस प्रोजेक्ट के रखरखाव, क्षरण आदि पर हर साल 395 करोड़ रुपए खर्च होंगे, लेकिन हर साल इससे 1448.10 करोड़ का फायदा भी होगा।
हालांकि, अभी परियोजना पर 4900 रुपए खर्च होने का अनुमान लगाया गया है। पिछले साल केंद्र सरकार इन परियोजना को हरी झंडी दी है। जानकारों के मुताबिक, केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना के बाद ये दूसरी सबसे बड़ी नदी परियोजना है।
जल संसाधन विभाग से जुड़े एक अधिकारी के मुताबिक, इससे न केवल चार जिलों के 2.14 लाख हेक्टेयर खेत को सिंचाई का पानी मिलेगा, बल्कि इससे बाढ़ का प्रकोप भी कम होगा। इस परियोजना के तहत हनुमाननगर बराज से कोसी का पानी महानंदा बेसिन की तरफ मोड़ा जाएगा।
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