कोपेनहेगन। विकसित देशों की शह पर डेनमार्क द्वारा तैयार एक मसौदे के लीक होने से कोपेनहेगन सम्मेलन पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। विकसित और विकासशील देशों के बीच इस मसौदे को लेकर गहरे मतभेद पैदा हो गए हैं। यह मसौदा सम्मेलन से पहले तैयार कर लिया गया था और गत एक-दो दिसम्बर को भारत, चीन समेत कुछ गिने-चुने देशों को पढाया गया था। एक ब्रिटिश समाचार पत्र में मसौदे के अंश प्रकाशित होने के बाद जी-77 देशों ने मसौदे पर कडा ऎतराज जताते हुए कहा है कि यदि विकसित देशों ने सब कुछ पहले ही तय कर लिया था, तो सम्मेलन की आवश्यकता ही कहां थी। कुछ वार्ताकारों ने मेजबान डेनमार्क पर पक्षपात के आरोप लगाते हुए कहा है कि वह खास मित्र देशों के साथ बंद दरवाजे में अंतिम मसौदा तय कर रहा है।
इसलिए है बवाल
मसौदे के अंतर्गत, 2050 तक गरीब देशों को अपना प्रति व्यक्ति उत्सर्जन 1.44 टन तक सीमित करना होगा, जबकि विकसित देशों के लिए उत्सर्जन की सीमा 2.67 टन प्रति व्यक्ति होगी। इसमें जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर नियंत्रणकारी भूमिका संयुक्त राष्ट्र के बजाय विश्व बैंक को देने का प्रस्ताव भी है। चीन और समूह-77 देशों ने इस मसौदे के प्रावधानों को क्योटो प्रोटोकॉल एवं यूएनएफसीसी को खत्म करने वाला करार दिया है।
गरीब देशों को अहमियत नहीं
ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन (बेसिक) व सूडान ने इस मसौदे की कडी निन्दा की है। समूह-77 के अध्यक्ष सूडान के लूमुंबा स्टैनिसलैस डिया पिंग ने कहा कि इस मसौदे में अब तक हुए संयुक्त राष्ट्र के समझौतों और विभिन्न देशों के बीच हुई बातचीत को अहमियत नहीं दी गई है। बेसिक देशों ने इस मसौदे के समानान्तर एक अलग मसौदा भी रखा है।
मौजूदा दशक सबसे गर्म
कोपेनहेगन सम्मेलन में पेश वल्र्ड मेट्रोलोजिकल ऑर्गनाइजेशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा 2000 से 2010 तक का दशक अब तक का सबसे गर्म दशक बन सकता है। साथ ही 2009 अब तक के पांच सबसे ज्यादा गर्म वर्षों की सूची में जगह पा सकता है। रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि भारत में मई और चीन में जून का महीना बेहद गर्म रहा। वहीं अटलांटिक में भी बढते तापमान पर शोधकर्ताओं ने चिंता जाहिर की है।
ना रखें ज्यादा अपेक्षा!
इधर, जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी समिति (आईपीसीसी) कहा है कि अगर सम्मेलन के दौरान ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में 20 प्रतिशत कमी के लक्ष्य पर भी सहमति बनती है तो विकासशील देशों की उम्मीदें पूरी नहीं होने के बावजूद यह स्थिति सुखद होगी। आईपीसीसी के अध्यक्ष राजेन्द्र पचौरी ने कहा कि अमरीका के बेहद कम लक्ष्य की वजह से औद्योगिक देशों से ज्यादा कटौती की अपेक्षा करना मुश्किल होगा। दरअसल, कई विकासशील देश 2020 तक हानिकारक गैसों के उत्सर्जन में 40 प्रतिशत तक कमी का लक्ष्य निर्धारण चाह रहे हैं जबकि मंदी की मार झेल रहे विकसित देश इसे 14 से 18 प्रतिशत रखने की फिराक में हैं।
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