जयपुर स्थित काला डेरा में अपने विवादास्पद कारखाने को बन्द करने का निर्णय कोका कोला ने लिया। इण्डिया रिसोर्स सेन्टर को मिले दस्तावेजों पर यकीन करें तो अब कोका कोला की आने वाले समय में इस प्लांट को फिर से शुरू करने की भी कोई योजना नहीं है।
कोका कोला के काला डेरा प्लांट के खिलाफ 13 सालों से संघर्ष चल रहा था। प्लांट पर आरोप था कि उसकी वजह से आस-पास के क्षेत्रों में पानी की जबरदस्त किल्लत रहने लगी थी क्योंकि कोका कोला के प्लांट में असीमित पानी का उपयोग होता था, जिसकी वजह से जमीन के अन्दर पानी का स्तर लगातार नीचे गिरता जा रहा था। कोका कोला किसी शैतान की मानिन्द आस-पास के लोगों का सारा पानी निगलता जा रहा था।
1998 में ही जब इस क्षेत्र में ग्राउंड वाटर की स्थिति चिन्ताजनक पाई गई थी, फिर ना जाने कैसे वर्ष 2000 में दैत्य की तरह पानी का शोषण करने वालाी कोका कोला जैसी कम्पनी को यहाँ बॉटलिंग प्लांट बैठाने दिया गया।
अब कोका कोला को भी यहाँ पानी निकालने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है, प्लांट बन्द करने के पीछे यह एक वजह कम्पनी की तरफ से बताई जा रही है। बड़ा सवाल यह है कि ग्राउंड वाटर की स्थिति इस दुर्दशा तक पहुँचा कर कम्पनी तो चली जाएगी लेकिन वहाँ आस-पास रहने वाले लोगों का क्या होगा?
काला डेरा संघर्ष समिति महेश योगी के अनुसार आस-पास के गाँव के हालात बद-से-बदतर हो चुके हैं। संघर्ष पानी का है और कोका कोला के पास काला डेरा छोड़कर जाने का विकल्प है लेकिन स्थानीय लोगों का पानी पीने के बाद इस तरह, बिना कीमत चुकाए कोका कोला के चुपके से चले जाने को सही ठहराया जा सकता है?
वैसे कम्पनी द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि कम्पनी घाटे में चल रही है, इसलिये इसे बन्द किया जा रहा है। वैसे कोका कोला के गैर जिम्मेवार व्यावसायिक व्यवहार की एक केस स्टडी काला डेरा हो सकता है। किस तरह किसानों और खेतों का पानी इस कम्पनी ने यहाँ रहते-रहते सोख लिया। इण्डिया रिसोर्स सेन्टर के अमित श्रीवास्तव के अनुसार उनके पास इस सम्बन्ध में सारे दस्तावेज मौजूद हैं, जिससे यह साबित होता है कि किस प्रकार कोका कोला ने स्थानीय लोगों के पानी पर अपना हाथ साफ किया है।
वर्ष 2014 में मिशिगन विश्वविद्यालय के स्टीफन एम रोज स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक के डॉ. अनिल करनानी ने पाया कि काला डेरा में कोका कोला कम्पनी का सीएसआर परियोजना में कई कमियाँ हैं और वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि पानी के कमी वाले क्षेत्र से कोका कोला कम्पनी जिस तरह पानी निकाल रही है, वह वास्तव में आम आमदी के लिये त्रासदी है।
वर्ष 2008 में कोका कोला ने अपने कुछ बॉटलिंग प्लांट की समीक्षा की योजना बनाई। इसमें काला डेरा भी शामिल था। द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (टेरी) जो कोका कोला के लिये यह अध्ययन कर रही थी, उसने काला डेरा प्लांट को बन्द कर दिये जाने की अनुशंसा की थी क्योंकि प्लांट के वहाँ होने से ग्राउंड वाटर की स्थिति दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही थी और इसके पीड़ित आस-पास के गाँवों के लोग होने को विवश थे।
वैसे कोका कोला द्वारा पानी प्रबन्धन को लेकर बरती जाने वाली लापरवाही से अब पूरा देश वाकिफ हो गया है, इसी का परिणाम यह है कि कोका कोला अब भारत के जिस हिस्से में जाने की सोचता है, उसके पहुँचने से पहले वहाँ विरोध प्रारम्भ हो जाता है। इसका एक उदाहरण तमिलनाडु है। जहाँ की सरकार जमीन देने पर विचार कर रही थी लेकिन अब तमिलनाडु सरकार ने कोका कोला को जमीन ना देने का विचार बना लिया है। इससे पहले बनारस का प्लांट बन्द किया जा चुका है। अप्रैल 2014 में उत्तराखण्ड में प्रस्तावित प्लांट का आदेश राज्य सरकार ने निरस्त कर दिया।
कोका कोला को भारत के जागरूक नागरिकों ने बेनकाब कर दिया है। अब देश की जनता का इरादा अपना पानी चोरी करने का अधिकार किसी राष्ट्रीय या बहुराष्ट्रीय कम्पनी को देने का नहीं है। वह पानी पर अपना अधिकार समझने लगी है।
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