सरकार द्वारा कोकाकोला प्लांट लगाने के मनमाने फैसले को बिना देरी किए वापस लेना चाहिए। उत्तराखंड राज्य के जल, जंगल और ज़मीन ही यहां की जनता की पूँजी है और सरकार खुले हाथों से इस पूँजी को लुटा रही है। ऐसे में तो सबकुछ जनता के हाथ से निकल जाएगा। उत्तराखंड के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने हिमालय नीति, जल नीति सहित अनेक मसौदे राज्य सरकार को सौंपे हैं लेकिन उन पर सरकार ने कभी कोई पहल नहीं की। सुरेश भाई ने टीम अन्ना को छरबा गांव के लोगों के संघर्ष और सरकार द्वारा लुटाए जा रहे जंगल की उनके लिए उपयोगिता भी समझाई। देहरादून के छरबा गांव में कोकाकोला प्लांट स्थापित किए जाने के खिलाफ चल रहा संघर्ष एक और कदम आगे बढ़ गया है। 14 मई को आंदोलन को समर्थन देने छरबा गांव में पहुंचे समाजसेवी अन्ना हजारे ने ग्रामीणों के आंदोलन को हरसंभव सहयोग का भरोसा दिलाया। जनतंत्र यात्रा के दूसरे चरण के पहले दिन छरबा गांव पहुंचे अन्ना ने कहा कि लोकतंत्र का मौजूदा मॉडल फेल हो गया है। बकौल अन्ना गांधी जी ने देश की आज़ादी के समय तक ही कांग्रेस का समर्थन किया था। गांधी चाहते थे कि आज़ादी के बाद देश में दलविहीन जनतंत्र की स्थापना की जाए। अगर ऐसा होता तो देश में दलीय राजनीति और संसद के बजाय जनसंसद की भूमिका अधिक होती। आज राजनीतिक दल देश में विकास के जिस मॉडल को बढ़ावा दे रहे हैं वह भी देश की बहुसंख्यक जनता के लिए विनाश का माध्यम बन रहा है।इशारों इशारों में उत्तराखंड सरकार द्वारा कोकाकोला प्लांट स्थापित करने के लिए किए गए सौदे का विरोध करते हुए अन्ना ने कहा कि जनसंसद, संसद से बड़ी होती है और संसद (सरकार) बिना जनता की राय के कोई फैसला नहीं कर सकती। अन्ना ने उपस्थित जनसमूह को अपनी शक्ति का एहसास कराते हुए कहा कि जनतंत्र तभी मजबूत होगा जब हम अपने संविधान को समझेंगे। संविधान में कहीं भी राजनीतिक दलों की बात नहीं की गई है। अन्ना ने बिना नाम लिए राज्य सरकार की ओर इशारा किया कि किसी भी सरकार को जनता से पूछे बिना फैसला करने का क्या अधिकार है?
जल, जंगल ज़मीन बचाओ ग्रामीण समिति और छरबा बचाओ समिति द्वारा आयोजित कार्यक्रम में उत्तराखंड नदी बचाओ अभियान की महत्वपूर्ण भूमिका रही। यहां तक कि नदी बचाओ के आह्वान पर ही अन्ना हजारे ने छरबा गांव के मुद्दे को समझा और वहां पहुंचे। नदी बचाओ अभियान द्वारा इस मौके पर छरबा गांव की स्थितियों और जनसंघर्ष को समझाने के लिए एक पर्चा भी वितरित किया गया। देहरादून से 32 किमी दूर विकासनगर के निकट स्थित है छरबा गांव। इसी गांव में कोकाकोला प्लांट स्थापित करने के लिए राज्य सरकार ने 17 अप्रैल को कोकाकोला कंपनी के साथ समझौता किया है। जिसके मुताबिक ग्राम समाज की 368 बीघा ज़मीन कंपनी को दी जाएगी। इस फैसले के बाद से ही गांव में विरोध और आंदोलन का सिलसिला चल रहा है।
अन्ना की जनतंत्र यात्रा में उनके साथी पूर्व सांसद व चौथी दुनिया के संपादक संतोष भारतीय ने छरबा के आंदोलन को हरसंभव सहयोग का भरोसा दिलाया। उन्होंने कहा कि जो राजनीतिक दल चुनाव आते ही वोट मांगने छरबा गांव में पहुंच जाते होंगे वे आज आंदोलन की घड़ी में छरबा नहीं आ रहे होंगे। उन्होंने कहा कि जैसा संकट आज छरबा गांव के ऊपर सरकारों ने पैदा कर दिया है वैसे ही संकट का सामना पूरे देश की गरीब व आम जनता महसूस कर रही है। सरकारें बहुराष्ट्रीय व विदेशी कंपनियों के हाथों में खेल रही है उनके लाभ के लिए जनता को दांव पर लगाया जा रहा है। बकौल संतोष जब भी जरूरत होगी वे छरबा के आंदोलन के साथ खड़े रहेंगे।
उत्तराखंड नदी बचाओ अभियान से जुड़े सुरेश भाई ने कहा कि सरकार ने कोकाकोला प्लांट लगाने का जो फैसला मनमाने तरीके से किया है उसे बिना देरी किए वापस लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड राज्य के जल, जंगल और ज़मीन ही यहां की जनता की पूँजी है और खुले हाथों से इस पूँजी को लुटा रही है। ऐसे में तो सबकुछ जनता के हाथ से निकल जाएगा। बकौल सुरेश भाई उत्तराखंड के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने हिमालय नीति, जल नीति सहित अनेक मसौदे राज्य सरकार को सौंपे हैं लेकिन उन पर सरकार ने कभी कोई पहल नहीं की। सुरेश भाई ने टीम अन्ना को छरबा गांव के लोगों के संघर्ष और सरकार द्वारा लुटाए जा रहे जंगल की उनके लिए उपयोगिता भी समझाई।
ग्राम प्रधान छरबा रोमी राम जायसवाल ने कहा कि गांव के लोग इस भूमि को किसी भी कीमत पर नहीं देना चाहते और सरकार अपनी मर्जी से जंगल को विदेशी कंपनी को लुटा रही है। इतना ही नहीं इसके लिए गांव वालों की राय तक नहीं ली गई। उन्होंने कहा कि 5000 परिवारों का गांव पहले ही उद्योग धंधों से घिर चुका है अब शीतल नदी के किनारे एक ओर बची हरित पट्टी को भी सरकार उजाड़ने में लगी है। जबकि सुनीता रावत ने कोक प्लांट लगने के बाद गांव में होने वाले जलसंकट और पर्यावरण प्रदूषण पर चिंता जताई। इस सभा में गांव और आसपास क्षेत्रों के सैकड़ों लोग मौजूद थे।
जल, जंगल ज़मीन बचाओ ग्रामीण समिति और छरबा बचाओ समिति द्वारा आयोजित कार्यक्रम में उत्तराखंड नदी बचाओ अभियान की महत्वपूर्ण भूमिका रही। यहां तक कि नदी बचाओ के आह्वान पर ही अन्ना हजारे ने छरबा गांव के मुद्दे को समझा और वहां पहुंचे। नदी बचाओ अभियान द्वारा इस मौके पर छरबा गांव की स्थितियों और जनसंघर्ष को समझाने के लिए एक पर्चा भी वितरित किया गया। देहरादून से 32 किमी दूर विकासनगर के निकट स्थित है छरबा गांव। इसी गांव में कोकाकोला प्लांट स्थापित करने के लिए राज्य सरकार ने 17 अप्रैल को कोकाकोला कंपनी के साथ समझौता किया है। जिसके मुताबिक ग्राम समाज की 368 बीघा ज़मीन कंपनी को दी जाएगी। इस फैसले के बाद से ही गांव में विरोध और आंदोलन का सिलसिला चल रहा है।
अन्ना की जनतंत्र यात्रा में उनके साथी पूर्व सांसद व चौथी दुनिया के संपादक संतोष भारतीय ने छरबा के आंदोलन को हरसंभव सहयोग का भरोसा दिलाया। उन्होंने कहा कि जो राजनीतिक दल चुनाव आते ही वोट मांगने छरबा गांव में पहुंच जाते होंगे वे आज आंदोलन की घड़ी में छरबा नहीं आ रहे होंगे। उन्होंने कहा कि जैसा संकट आज छरबा गांव के ऊपर सरकारों ने पैदा कर दिया है वैसे ही संकट का सामना पूरे देश की गरीब व आम जनता महसूस कर रही है। सरकारें बहुराष्ट्रीय व विदेशी कंपनियों के हाथों में खेल रही है उनके लाभ के लिए जनता को दांव पर लगाया जा रहा है। बकौल संतोष जब भी जरूरत होगी वे छरबा के आंदोलन के साथ खड़े रहेंगे।
उत्तराखंड नदी बचाओ अभियान से जुड़े सुरेश भाई ने कहा कि सरकार ने कोकाकोला प्लांट लगाने का जो फैसला मनमाने तरीके से किया है उसे बिना देरी किए वापस लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड राज्य के जल, जंगल और ज़मीन ही यहां की जनता की पूँजी है और खुले हाथों से इस पूँजी को लुटा रही है। ऐसे में तो सबकुछ जनता के हाथ से निकल जाएगा। बकौल सुरेश भाई उत्तराखंड के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने हिमालय नीति, जल नीति सहित अनेक मसौदे राज्य सरकार को सौंपे हैं लेकिन उन पर सरकार ने कभी कोई पहल नहीं की। सुरेश भाई ने टीम अन्ना को छरबा गांव के लोगों के संघर्ष और सरकार द्वारा लुटाए जा रहे जंगल की उनके लिए उपयोगिता भी समझाई।
ग्राम प्रधान छरबा रोमी राम जायसवाल ने कहा कि गांव के लोग इस भूमि को किसी भी कीमत पर नहीं देना चाहते और सरकार अपनी मर्जी से जंगल को विदेशी कंपनी को लुटा रही है। इतना ही नहीं इसके लिए गांव वालों की राय तक नहीं ली गई। उन्होंने कहा कि 5000 परिवारों का गांव पहले ही उद्योग धंधों से घिर चुका है अब शीतल नदी के किनारे एक ओर बची हरित पट्टी को भी सरकार उजाड़ने में लगी है। जबकि सुनीता रावत ने कोक प्लांट लगने के बाद गांव में होने वाले जलसंकट और पर्यावरण प्रदूषण पर चिंता जताई। इस सभा में गांव और आसपास क्षेत्रों के सैकड़ों लोग मौजूद थे।
Path Alias
/articles/kaokaa-kaolaa-kae-vairaodha-kao-ananaa-kaa-samarathana
Post By: admin